नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने दर्जन भर से ज्यादा ‘कष्टकारी’ नेताओं के खिलाफ गोपनीय फाइलें सहेजकर रख रखी थीं. यह खुलासा पीएमओ के पूर्व अधिकारी ने एच.डी. देवगौड़ा की जल्द ही रिलीज होने वाली बायोग्राफी में किया है.
देवगौड़ा ने अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार के बाद 1996 में राव की जगह ली थी.
राव ने वे फाइलें गौड़ा को सौंप दी थी, जिसे लेने के लिए उन्होंने अपने करीबी सहयोगी और पीएमओ में तत्कालीन संयुक्त सचिव, एस.एस. मीनाक्षीसुंदरम को भेजा. गौड़ा के दो उत्तराधिकारियों—आई.के. गुजराल और वाजपेयी—के कार्यकाल के दौरान ये फाइलें पीएमओ में ‘रखी’ थी. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वाजपेयी के पद से हटने के बाद भी वे फाइलें पीएमओ में थीं या उन्हें हटा दिया गया था.
मीनाक्षीसुंदरम ने फरो इन ए फील्ड नामक बायोग्राफी के लिए सुगाता श्रीनिवासराजू को दिए इंटरव्यू में बताया, ‘फाइलें किसी ‘एटम बम’ की तरह थीं. राव ने मुझे उनके मंत्रिमंडल में शामिल और उससे बाहर कई बेहद महत्वपूर्ण लोगों के बारे में एक दर्जन से अधिक फाइलें दी थीं. अगर मैं गलत नहीं हूं तो ये फाइलें मुलायम सिंह यादव, जे. जयललिता, एस. बंगारप्पा, शरद पवार और अन्य नेताओं से जुड़ी थीं.’ पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया की तरफ से प्रकाशित यह किताब इस महीने के अंत में रिलीज होने की संभावना है.
किताब में मीनाक्षीसुंदरम के हवाले से बताया गया है, ‘राव के पास ऐसी राजनीतिक हस्तियों पर कुछ गोपनीय फाइलें थी जो परेशानी का सबब बन सकते थे… इन फाइलों का इस्तेमाल तब किया जा सकता था जब वह किसी तरह का दुर्व्यवहार करें या डबल-क्रॉस करें.’
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‘फाइलें एटम बम जैसी थीं’
पवार, नरसिम्हा राव सरकार में लगभग 20 महीने तक रक्षा मंत्री रहे थे, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मार्च 1993 में उन्हें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में दिल्ली से मुंबई जाने पर राजी किया. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव गौड़ा सरकार में रक्षा मंत्री थे. 1990 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी का भरोसा हासिल कर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने बंगारप्पा नवंबर 1992 तक (प्रधानमंत्री के रूप में राव के कार्यकाल के शुरुआती दौर में) इस पद पर थे. जब राव प्रधानमंत्री थे तब जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं.
मीनाक्षीसुंदरम के मुताबिक एक दिन राव ने गौड़ा से कहा था कि ‘चूंकि वह प्रधानमंत्री के रूप में वापसी नहीं कर रहे है’ उन्हें वे गोपनीय फाइलें उनसे ले लेनी चाहिए.
मीनाक्षीसुंदरम के मुताबिक, ‘राव ने गौड़ा से एक ऐसे अधिकारी का नाम देने के लिए कहा, जिस पर उन्हें उन फाइलों को सौंपने को लेकर भरोसा हो. गौड़ा ने मुझे राव के पास भेजा और मुझसे यह भी कहा कि मुझे उन्हें फाइलें दिखाने की जरूरत नहीं है, बल्कि केवल संक्षिप्त में यह बता दूं कि इसमें क्या है. फाइलें किसी एटम बम से कम नहीं थीं.’
पीएमओ के तत्कालीन अधिकारी बताते हैं कि जब तक वह पीएमओ में थे, वे फाइलें उनके पास रहीं. उन्होंने कहा, ‘जब वाजपेयी ने सत्ता संभाली तो मैंने वे फाइलें अशोक सैकिया (वाजपेयी के समय पीएमओ में एक संयुक्त सचिव) को सौंप दीं…जैसा मैं गौड़ा के लिए था वही वह वाजपेयी के लिए थे. इस बीच, जब गुजराल प्रधानमंत्री बने तो मीनाक्षीसुंदरम ने उन्हें फाइलों के बारे में बताया. उन्होंने बताया, ‘उन्होंने (गुजराल ने) मुझसे कहा था कि मैं उन्हें अपने पास ही रखूं क्योंकि उनके पास ऐसा कोई नहीं था जिस पर वह भरोसा कर सकें. वाजपेयी के आने पर मैंने ब्रजेश मिश्रा को फाइलों के बारे में बताया. तो उन्होंने भी मुझे उन्हें रखे रहने के लिए कहा.’
मीनाक्षीसुंदरम ने लेखक को बताया कि जब पीएमओ में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा था, ‘मैंने कहा कि मैं उन्हें किसी को सौंपना चाहता हूं. तभी अशोक सैकिया सामने आए. वाजपेयी के पद छोड़ने के बाद अशोक ने उन्हें किसी और को दिया या नहीं, मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है.’
2004 में डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद उन फाइलों का क्या हुआ, यह अटकलों का विषय है. अशोक सैकिया का 2007 में निधन हो गया था.
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव बने नृपेंद्र मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने कभी ऐसी किसी फाइल के बारे में नहीं सुना और न ही किसी ने उनके बारे में बात की.’
दिप्रिंट का इस मामले में शरद पवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया लेकिन उनके परिवार के सदस्यों में से एक ने पीएमओ के पास ऐसी गोपनीय फाइलें होने के बारे में किसी भी जानकारी से साफ इनकार किया.
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