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Thursday, 25 April, 2024
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प्रशांत किशोर ने ठीक कहा कि BJP सालों तक मजबूत बनी रहेगी, और इसका काफी श्रेय विपक्ष को जाता है

कहा गया है कि जब आपके दोस्त ऐसे हों तो आपको दुश्मनों की क्या जरूरत है, लेकिन भाजपा के मामले में कहा जा सकता है कि जब उसके दुश्मन ही ऐसे हों तो उसे दोस्तों की क्या जरूरत?

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चुनाव रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर ने सही कहा है कि भाजपा अभी दशकों तक शक्तिशाली बनी रहेगी. और यह कोई नरेंद्र मोदी की विरासत या अमित शाह के संगठन कौशल या चुनावी प्रबंधन के कारण नहीं होगा. बल्कि इसलिए होगा कि उसके सामने कोई वास्तविक चुनौती नहीं दिखती है. इसलिए भाजपा अगर भारतीय राजनीति पर वास्तव में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखती है तो इसके लिए वह विपक्ष को शुक्रिया अदा कर सकती है.

मोदी और शाह के नेतृत्व में भाजपा ने जब 2014 के बाद से राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू की थी तब विपक्ष ने भी उसके उत्कर्ष की राह आसान बनाई थी और उसके लिए मैदान खुला छोड़ दिया था. अब भाजपा जैसी लोकप्रिय और मजबूत पकड़ वाली पार्टी को परास्त करने के दो ही उपाय हो सकते हैं. या तो उतनी ही शक्तिशाली और लोकप्रिय अखिल भारतीय पार्टी सामने आए या भविष्य की सुसंगत तथा आकर्षक कल्पना लेकर एकजुट विपक्ष सामने आए.

इनमें से कोई भी विकल्प उभरता नहीं दिख रहा है. और देखा जाए तो वास्तविक अर्थों में दूसरी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस तो अपने अंदर के दुश्मनों से जूझने में उलझी है, तो दूसरे विपक्षी खिलाड़ी 2024 से पहले एकजुट मोर्चा बनाने की जगह एक-दूसरे की टांग-खिंचाई में व्यस्त हैं.


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मोदी-शाह के अधीन मजबूत भाजपा

राम मंदिर आंदोलन और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के छह साल के कार्यकाल को भाजपा के लिए लोगों के समर्थन के मामले में मील का पत्थर जरूर माना जा सकता है, लेकिन मोदी-शाह के दौर में पार्टी ने भारी बढ़त हासिल की है और वह एकमात्र शक्तिशाली राष्ट्रीय पार्टी के रूप में उभरी है. यह भी सच है कि उसे दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी जैसे लोकप्रिय क्षेत्रीय नेताओं के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा है. यह भी सच है कि दक्षिण भारत में उसका प्रभाव सीमित ही रहा है. लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने पार्टी को एक राष्ट्रीय ताकत बना दी है, भले ही कुछ राज्यों में वह कमजोर है. जबकि इसका अर्थ ये होगा कि दोनों राज्यों में 2019 के लोकसभा चुनावों पर नज़र डालें तो पता चल जाएगा कि राज्य विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बावजूद कैसे बीजेपी ने अपने आपको राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया है.

भाजपा इतनी शक्तिशाली और विजेता क्यों बनी, यह गहन शोध और विमर्श का विषय है. चुनावों की खबरें देते रहने के अपने अनुभव से मैं कह सकती हूं यह मोदी की अभूतपूर्व लोकप्रियता और लोगों से संवाद करने की उनकी क्षमता, उनकी सरकार के जनकल्याण कार्यक्रमों, चुनावों और मतदाताओं के कुशल प्रबंधन, और पार्टी के संकीर्ण हिंदुत्व तथा बहुसंख्यकवादी स्वर को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों के मेल से संभाव हुआ है.

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यह स्थिति क्यों बनी रहेगी

प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी गलत नहीं मानी जा सकती. उनका मानना है कि पार्टी ने वोटों में जो 30 फीसदी की अपनी हिस्सेदारी बनाई है वह आननफानन में खत्म कहीं जाने वाली नहीं है. भाजपा ने राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी पकड़ इतनी मजबूत बना ली है कि उसे आसानी से ढीला नहीं किया जा सकता. इसके अलावा, उसके पास व्यापक और अनुशासित संगठन है, और आरएसएस का उपयोगी काडर के साथ एक लोकप्रिय नेता है.

लेकिन बात केवल मोदी या आज की भाजपा की नहीं है. मुद्दा यह भी है कि विपक्ष में कितनी संभावना दिखती है या नहीं दिखती है. मोदी हमेशा भाजपा के चेहरे नहीं बने रहेंगे, और 2024 शायद प्रधानमंत्री के रूप में उनका आखिरी लोकसभा चुनाव होगा. अभी कुछ नहीं कहा जा सकता कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा, और क्या वह उनके जितना ही प्रभावशाली होगा/होगी. इसके बावजूद अगर ऐसा लगता है कि भाजपा एक ताकत बनी रहेगी तो इसकी वजह यह है कि सात साल के बाद भी आज उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं नज़र आ रहा.


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भाजपा के उत्कर्ष में सिर्फ मोदी-शाह का हाथ नहीं

चूंकि अकेली कोई ताकत नहीं है, इसलिए एकमात्र विकल्प एकजुट विपक्ष है जिसके पास साफ सोच हो और उसे जोड़े रखने वाली मजबूत वजह हो. दुर्भाग्य से, भाजपा के प्रतिद्वंद्वियों के लिए यह संघर्ष लंबा है विपक्ष के अंदर इतने सारे विरोधाभास हैं कि उनकी एकजुटता मुश्किल लगती है.

फिलहाल जो कुछ चल रहा है उसी पर नज़र डाल लीजिए. बसपा और सपा एक-दूसरे के गले पर सवार हैं. जिन्ना के बारे में अखिलेश यादव के बयान के बाद बसपा सपा पर आरोप लगा रही है कि भाजपा से उसकी मिलीभगत है. पश्चिम बंगाल और गोवा में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ तलवार भांज रही हैं. गोवा में बाहरी दल के रूप में तृणमूल कॉंग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने-अपने पैर फैलाने की कोशिश में हैं. आप और काँग्रेस एक-दूसरे को फूटी आंखों भी नहीं सुहाते. बीजू जनता दल और जगन रेड्डी की वाइएसआर कांग्रेस तटस्थता का रुख अपनाए रहती हैं. यही हाल तेलंगाना राष्ट्र समिति का है. बल्कि इन दलों ने संसद में भाजपा की मदद ही की है. यानी विपक्ष में कोई किसी को पसंद नहीं करता, कोई किसी पर भरोसा नहीं करता भले ही वे भाजपा के खिलाफ अपनी ताकत जताने के लिए मंच पर साथ बैठे या हाथों में हाथ पकड़े नज़र आते रहे हों. विपक्ष बुरी तरह बिखरा हुआ तो है ही, उसके पास न कोई एक चेहरा है और न एक विचार है जिसके बूते वह भाजपा को चुनौती दे सके.

यानी भाजपा आने वाले वर्षों में निश्चिंत रह सकती है और इसका ज्यादा श्रेय देश के बेजान, दिशाहीन, और विचारशून्य विपक्ष को जाता है. कहा गया है कि जब आपके दोस्त ऐसे हों तो आपको दुश्मनों की क्या जरूरत है, लेकिन भाजपा के मामले में कहा जा सकता है कि जब उसके दुश्मन ही ऐसे हों तो उसे दोस्तों की क्या जरूरत?

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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