नई दिल्ली: राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश की चुनावी लड़ाई में सभी राजनीतिक दलों ने जी तोड़-मेहनत की और कोई कसर न छोड़ते हुए अपने सबसे बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा. एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हिंदी भाषी राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रचार का बड़ा बोझ उठाया, वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी व्यक्तिगत रूप से 200 से अधिक रैलियों को संबोधित किया. विभिन्न दलों द्वारा अपने-अपने नेताओं के प्रचार अभियान के बारे में दी गई जानकारी के अनुसार कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी, जिन्होंने 147 रैलियों को संबोधित किया, दूसरे स्थान पर रहीं. उनके बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे जिन्होंने 117 रैलियों को संबोधित किया.
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने इस साल 15 जनवरी तक चुनावी रैलियों और रोड शो पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि कोविड के ओमीक्रॉन संस्करण के कारण इसके मामलों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी. बाद में इस प्रतिबंध को दो बार – पहले 22 जनवरी तक और फिर 31 जनवरी तक – बढ़ाया गया.
नतीजतन, पार्टियों ने वर्चुअल रैलियों के साथ शुरुआत की, और जैसे ही प्रतिबंधों में ढील दी गई उन्होंने अपने सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली नेताओं द्वारा संबोधित की गई सार्वजनिक सभाओं का बड़े पैमाने पर आयोजन शुरू कर दिया.
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मोदी और योगी की ‘डबल इंजन‘ वाली जोड़ी
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पार्टी के चुनाव अभियान को गति देने के लिए राज्य में 24 सार्वजनिक रैलियों और पांच वर्चुअल रैलियों को संबोधित किया. शारीरिक उपस्थिति वाली रैलियों की संख्या वही थी, जो उन्होंने 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में दर्ज की थी. जिसे बीजेपी ने उनके ही नाम पर बिना किसी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लड़ा था. चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया था.
हालांकि इस बार बीजेपी के पास मुख्यमंत्री फेस और उनके द्वारा किए गए काम थे, फिर भी मोदी ने ही आगे बढ़कर दल का नेतृत्व किया. ग्राउंड रिपोर्ट्स ने पहले ही यह बताया था कि हालांकि राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी भावना फैली थी, खासकर बेरोजगारी और आवारा मवेशियों जैसे मुद्दों पर, लेकिन पीएम की निजी लोकप्रियता पहले जैसी ही बरकरार थी. मोदी ने 10 फरवरी को सहारनपुर में अपनी पहली सार्वजनिक रैली को संबोधित करके अपने ऑफ़लाइन अभियान की शुरुआत की और 7 मार्च को राज्य के चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में मतदान होने से कुछ दिन पहले शनिवार को वाराणसी में एक रोड शो के साथ इसका समापन किया. इससे पहले उन्होंने वहां एक रैली को भी संबोधित किया था.
साल 2017 के चुनाव अभियान में मोदी को शुरू में 12 रैलियों को संबोधित करना था लेकिन उन्होंने 24 सभाओं के संबोधन के साथ अपना अभियान खत्म किया था. हालांकि, इस वर्ष चुनाव अभियान की प्रकृति को कोविड प्रतिबंधों के कारण थोड़े बदलाव से गुजरना पड़ा. प्रधानमंत्री ने अपने महीने भर के प्रचार अभियान की शुरुआत 31 जनवरी को अपनी पहली ‘जन चौपाल’ वर्चुअल मीटिंग को संबोधित करके की. इसके बाद, 10 फरवरी को अपनी पहली शारीरिक उपस्थिति वाली रैली आयोजित करने से पहले उन्होंने पांच वर्चुअल रैलियों को संबोधित किया. साल 2017 के चुनाव के दौरान भी उनका प्रचार अभियान 30 दिनों तक चला था.
इस बार पीएम की कोशिशों को उनके ‘डबल-इंजन’ सरकार के दूसरे साथी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई गुना बढ़ा दिया और उन्होंने राज्य में विधानसभा चुनावों के दौरान अपने द्वारा संबोधित की गई सार्वजनिक रैलियों की संख्या के मामले में सभी को पीछे छोड़ दिया. पार्टी के अनुमान के मुताबिक, योगी ने 403 सीटों वाली विधानसभा के लिए सात चरणों में होने वाले चुनाव के दौरान 200 से अधिक जनसभाओं को संबोधित किया.
गृहमंत्री अमित शाह ने लगभग 60 रैलियां और रोड शो किए जबकि बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी करीब 40 रैलियों को संबोधित किया. वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने गृह राज्य में लगभग 40 रैलियों को संबोधित किया.
अपनी रैलियों में, बीजेपी ने ‘डबल-इंजन’ सरकार पर ध्यान केंद्रित किया और राज्य की सुधरी हुई कानून व्यवस्था के साथ-साथ महामारी के बीच प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं, कश्मीर मुद्दे, अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर आदि का भी उल्लेख किया. सार्वजनिक रैलियों के माध्यम से बड़ी संख्या में मतदाताओं को लक्षित करने के साथ-साथ पार्टी ने सीमित संख्या में उपस्थित दर्शकों (मतदाताओं) के साथ ‘प्रभावी मतदाता संवाद’ के अलावा जमीन पर अपने कार्यकर्ताओं की मदद से घर-घर संपर्क अभियान भी चलाया.
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प्रियंका का ‘लड़की हूं…‘ वाला अभियान और टीम अखिलेश-ममता की उपस्थिति
जहां तक विपक्षी दलों की बात है, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पर्दे के पीछे रहते हुए इस राज्य में सिर्फ तीन रैलियों को संबोधित किया. हालांकि, उनकी बहन और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने 147 रैलियां संबोधित की.
प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस के प्रचार अभियान ने अपने प्रमुख नारे ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ – जिसमें महिला उम्मीदवारों को 40 प्रतिशत टिकट और राज्य के महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए दोपहिया और स्मार्टफोन जैसे अन्य लाभों का वादा किया गया था – के कारण शुरुआत में सबका ध्यान आकर्षित किया.
इस बार के चुनाव के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 117 रैलियां की, जबकि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने केवल 18 रैलियां संबोधित कीं. इसके अलावा अखिलेश ने ‘रथ यात्रा’, ‘नुक्कड़ सभा’ और ‘विजय यात्रा’ भी की.
अखिलेश ने महंगाई, बेरोजगारी, आवारा पशुओं और अब निरस्त कर दिए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन जैसे मुद्दों पर बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. उनके भाषणों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर किए गए कई कटाक्ष भी शामिल थे.
इस बीच, प्रियंका ने सरकार से जाति और धर्म आधारित राजनीति समेत कई अन्य मुद्दों पर तीखे सवाल किए.
इस धमाकेदार प्रचार अभियान में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसे अन्य राज्यों के राजनीतिक नेताओं की भागीदारी भी देखी गई जिन्होंने वाराणसी में अखिलेश और उनके सहयोगी तथा राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी के साथ एक संयुक्त रैली की.
इस चुनाव के नतीजे गुरुवार, 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे.
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