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Friday, 22 November, 2024
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अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि पर राहुल गांधी के जाने के क्या हैं मायने

भाजपा का मानना है कि इसे राहुल गांधी को अटल बिहारी वाजपेयी से सीखने के अवसर के रूप में देखना चाहिए, न कि केवल मीडिया अभ्यास के रूप में.

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नई दिल्ली: भारत जोड़ो यात्रा के दिल्ली पहुंचने पर राहुल गांधी ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के आइकन रहे अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि सदैव अटल पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी.

पूर्व प्रधानमंत्री की समाधि पर जाने को लेकर पार्टी के भीतर ही कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं. किसी ने इस विचार का विरोध किया तो कुछ ने इसे सराहा और राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के विज़न के लिए सही बताया. हालांकि भाजपा ने इसे सिर्फ फोटोबाजी कहा जबकि जिन राजनीतिक विश्लेषकों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने कहा कि इस दौरे से कोई असर नहीं पड़ेगा.

राजधानी में राहुल गांधी सिर्फ वाजपेयी की समाधि तक ही नहीं रूके बल्कि कई महत्वपूर्ण हस्तियों की समाधि का भी दौरा किया जिसमें जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री शामिल हैं. यह भाजपा से खुद को अलग दिखाने की कोशिश थी.

दिल्ली आधारित सीएसडीएस के लोकनीति के सह-निदेशक संजय कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘राहुल गांधी अपने इस अंदाज से यह संदेश देना चाहते हैं कि वह राजनीतिक फायदों से अलहदा भारत को जोड़ रहे हैं. वह यह बतलाना चाहते हैं कि पीएम मोदी और सरकार सिर्फ अपने नेताओं को याद करती है. पीएम मोदी नेहरू और इंदिरा गांधी की समाधि पर नहीं जाते. यह मोदी की ध्रुवीय राजनीति को दिखाता है. वहीं गांधी हर नेता की समाधि जा रहे हैं, वो भी राजनीतिक फायदों से काफी उठकर.’

हालांकि यह पहली दफे नहीं है कि राहुल गांधी वाजपेयी के जरिए भाजपा और नरेंद्र मोदी पर निशाना साध रहे हों.

12 जून 2018 को राहुल ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं वाजपेयी, आडवाणी और जसवंत सिंह को ‘अपमानित’ करने पर निशाना साधा और एम्स में भर्ती वाजपेयी से मिलने न जाने पर आलोचना भी की.

गांधी ने ट्वीट कर कहा था, ‘एकलव्य ने अपना अंगूठा काट दिया था क्योंकि उसके गुरू ने मांग की थी. भाजपा में, वे अपने गुरू को ही काट देते हैं…वाजपेयी जी, आडवाणी जी, जसवंत सिंह जी और उनके परिवारों को अपमानित करना ही प्रधानमंत्री का भारतीय संस्कृति की रक्षा करने का तरीका है.’

उसी दिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मुंबई में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी वाजपेयी सरकार के खिलाफ लड़ी लेकिन जब वे बीमार पड़े तो हम ही पहले थे जो सबसे पहले उनके पास गए. यह कांग्रेस पार्टी की विचारधारा है. हम अपने विरोधियों का भी सम्मान करते हैं.’

16 अगस्त 2018 को वाजपेयी का निधन हो गया था.

पूर्व कांग्रेसी नेता अश्विनी कुमार के अनुसार राहुल सराहना के हकदार हैं. उन्होंने कहा, ‘पहले की राजनीति घृणा की नहीं थी. यहां तक कि मैंने भी अटल जी के बड़े ह्रदय और स्टेट्समैनशिप पर लिखा है. यह अच्छी बात है कि वे सभी नेताओं के पास गए जिन्होंने राष्ट्र को बनाने में अगम भूमिका निभाई. यह प्यार की राजनीति की शुरुआत है. नफरत की राजनीति खत्म होनी चाहिए.’

भाजपा का मानना है कि इसे राहुल गांधी को अटल बिहारी वाजपेयी से सीखने के अवसर के रूप में देखना चाहिए, न कि केवल मीडिया अभ्यास के रूप में.

दिप्रिंट से बात करते हुए भाजपा के प्रवक्ता केके शर्मा ने कहा, ‘यह अच्छा है कि राहुल ने वाजपेयी जी की समाधि का दौरा किया. भारत जोड़ो से पहले कांग्रेस ने भारत तोड़ो के लिए काफी काम किया है. वे टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ थे. राहुल ने समाधि का दौरा अपने पुराने पापों को धोने के लिए किया जो कांग्रेस ने किए हुए हैं. लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि अटल जी पहले स्वयंसेवक थे. उनकी विचारधारा राष्ट्रधर्म थी. राहुल गांधी को अटल जी से कुछ सीखना चाहिए न कि इसका इस्तेमाल सिर्फ फोटो के लिए करना चाहिए.’


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पहले की उपेक्षाएं

विरोधी भी वाजपेयी का सम्मान करते थे इसलिए उन्हें भारतीय राजनीति का अजातशत्रु भी कहा जाता है लेकिन सोनिया गांधी ने कई मौकों पर उनकी आलोचना भी की.

1998 में वाजपेयी सरकार ने राजस्थान के पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किए थे. जब देश प्रधानमंत्री के नेतृत्व की सराहना कर रहा था कांग्रेस नेता सोनिया गांधी 10 दिनों तक चुप रहीं. जब उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी तो उसे भारत के लिए ऐतिहासिक माना गया. उन्होंने कहा था, ‘असली ताकत संयम में है न कि शक्ति के प्रदर्शन में.’

वहीं अगले साल 1999 में उज्जैन की एक रैली में उन्होंने वाजपेयी का अनादर किया और उन्हें गद्दार कहा. भाजपा ने इस पर मांफी मांगने के लिए उन्हें कहा था.

फिर 2002 में उन्होंने कहा था कि वाजपेयी ने अपना ‘मानसिक संतुलन’ खो दिया है.

2003 में अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में भाषण देते हुए सोनिया ने वाजपेयी सरकार को ‘अयोग्य, असंवेदनशील और भ्रष्ट’ करार दिया था. यह बताया गया कि इसके बाद वाजपेयी भी अपना आपा खो बैठे थे और जवाब में कहा कि ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेता ने डिक्शनरी में उपलब्ध सभी शब्दों को ले लिया और उन्हें एक पैराग्राफ में इस्तेमाल कर लिया. उन्होंने कहा, ‘इस तरह विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री के प्रति अपना सम्मान दिखाते हैं. मैं विपक्ष के कारण नहीं, बल्कि जनता के जनादेश के कारण प्रधानमंत्री हूं. लेकिन कांग्रेस पार्टी जनादेश का सम्मान तक नहीं करना चाहती है.’

जब यूपीए सरकार में थी तब उन्होंने करगिल विजय दिवस भी नहीं मनाया था जो कि हर साल पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत के उपलक्ष्य में 26 जुलाई को मनाया जाता है. कांग्रेस के राशिद अल्वी ने कथित तौर पर कहा था, ‘करगिल कोई जश्न मनाने की चीज़ नहीं है…एनडीए ही इसका जश्न मना सकती है.’

जब संसद में यूपीए सरकार से यह सवाल पूछा गया तो तब के रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा था कि आगे से यह मनाया जाएगा.

वाजपेयी के कार्यकाल में उनके साथ काम कर चुके लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता सुधींद्र कुलकर्णी, जो कि हाल ही में राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में दिखे हैं, उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अटल जी की समाधि पर जाना राहुल गांधी का अच्छा कदम है. भारत जोड़ो यात्रा सभी विचारधाराओं को जोड़ने की यात्रा है और मतभेदों के बाद भी सद्भावना बनाने के लिए है. नेहरू और वाजपेयी के बीच भी कई मुद्दों पर मतभेद थे लेकिन वाजपेयी के मन में नेहरू के लिए बहुत सम्मान था. अब यह मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पर है कि वो भी नेहरू के लिए अपना सम्मान दिखाए. राहुल गांधी खुले दिल के साथ आगे आए हैं, इसका स्वागत किया जाना चाहिए.’

हालांकि एक राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि राहुल का वाजपेयी और आडवाणी के प्रति प्यार सिर्फ ‘सोशल मीडिया कथानक’ भर है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘कांग्रेस पार्टी ने खुद पीवी नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, शरद पवार जैसे अपने नेताओं का अतीत में अनादर किया है. वाजपेयी को सम्मान देकर वे जो कथानक बनाना चाहते हैं वो ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएगा. सोनिया गांधी ने कई मौकों पर वाजपेयी का अपमान किया. यह सिर्फ सोशल मीडिया पर कथानक तैयार करेगा, उससे आगे कुछ भी नहीं.’

(अनुवाद: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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