पटना: बिहार के दिग्गज नेता रघुवंश प्रसाद सिंह पिछले 30 सालों से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव के लिए एक आदर्श ढाल बने हुए थे.
पूर्व केंद्रीय मंत्री, जिनका रविवार सुबह नई दिल्ली स्थित एम्स में निधन हो गया, ने पार्टी के मुखिया लालू यादव के विपरीत अपनी साफ-सुथरी छवि के कारण समाज के सभी वर्गों और राजनीतिक तबके के बीच खासा सम्मान हासिल किया था.
उनका यह रिश्ता शुक्रवार को उस समय टूट गया, जब रघुवंश प्रसाद ने लालू को संबोधित दो-लाइन का एक साधारण सा त्यागपत्र भेजा, ‘मैं कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद से पिछले 32 वर्षों से आपके पीठ पीछे खड़ा रहा हूं. लेकिन अब और नहीं.’
इस पर तत्काल भेजे जवाबी पत्र में लालू ने लिखा कि उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा कि ‘रघुवंश बाबू’ उन्हें छोड़ देंगे. साथ ही कहा कि एक बार उनकी तबीयत ठीक हो जाए तो फिर दोनों बैठेंगे और इसे सुलझा लेंगे.
राजद प्रमुख ने रविवार को ट्वीट कर अपनी संवेदना व्यक्त की. उन्होंने ट्वीट किया, ‘प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन आप इतनी दूर चले गए. नि:शब्द हूं. दुःखी हूं. बहुत याद आएंगे.’
प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया?
मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है। लेकिन आप इतनी दूर चले गए।
नि:शब्द हूँ। दुःखी हूँ। बहुत याद आएँगे।
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 13, 2020
राजद के ब्रह्म बाबा
बुजुर्ग नेता रघुवंश प्रसाद के साथ रहे केदार यादव ने पीटीआई को बताया कि सांस लेने में तकलीफ और अन्य बीमारियों के कारण रविवार सुबह करीब 11 बजे उनका निधन हो गया. वह 74 वर्ष के थे.
रघुवंश प्रसाद, जिनकी पत्नी का पहले ही निधन हो चुका है, के परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं.
यद्यपि सिंह ने अपने निधन से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया था लेकिन उनकी विरासत राजद का पर्याय बनी हुई है. गणित के पूर्व प्रोफेसर ने अपने राजनीतिक करियर का अधिकांश हिस्सा निर्विवाद रूप से राज्य में राजद के दूसरे सबसे बड़े नेता के तौर पर बिताया था.
उन्हें लालू की तरफ से दिए गए नाम ब्रह्म बाबा (बुद्धिमत्ता की वजह से) से भी जाना जाता था क्योंकि वह अपनी बात कहने में कतई नहीं हिचकिचाते थे, यहां तक कि कई मौकों पर लालू के साथ मतभेदों को सार्वजनिक रूप से जता देते थे.
यह जानते हुए कि रघुवंश बाबू सार्वजनिक रूप से उनसे असहमति जताएंगे लालू पब्लिक मीटिंग में कहते थे कि अब ब्रह्म बाबा बोलेंगे. वह अब तक के एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्हें राजद प्रमुख ने इस तरह की आजादी दे रखी थी.
कुछ ही लोगों को याद होगा कि तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सिंह ने कैसे 2005 में यूपीए-1 सरकार के तहत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की शुरुआत की थी.
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने एक बार कहा भी था कि सिंह को नरेगा शुरू करने का उचित श्रेय नहीं मिला.
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चार दशक लंबा राजनीतिक सफर
रघुवंश प्रसाद को 1977 में पहली बार एक यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया था. उन्होंने स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर की सरकार में मंत्री के तौर पर काम भी किया था.
पांच बार के विधायक रघुवंश प्रसाद 1994-95 में बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष भी रहे.
उन्होंने पहली बार 1996 में संसद में प्रवेश किया. चार बार सांसद रहे रघुवंश प्रसाद हमेशा बेहद सम्मानित नेताओं में शुमार रहे. वह राजद के उन कुछ नेताओं में शामिल थे जिन्होंने अपने परिवार को राजनीति में बढ़ावा नहीं दिया.
जब 1999 के संसदीय चुनावों में लालू पहली बार मधेपुरा से चुनाव हार गए थे तो रघुवंश प्रसाद को ही लोकसभा में राजद का नेता नियुक्त किया गया, वे वाजपेयी सरकार के कड़े आलोचक थे.
उनके राजनीतिक जीवन का ढलान 2014 में तब शुरू हुआ जब वह वैशाली संसदीय सीट पर अपराधी से नेता बने रमा सिंह से हार गए. फिर 2019 में भी उनकी हार हुई.
2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने उच्च जातियों के लिए आरक्षण को लेकर अपनी पार्टी के रुख का सार्वजनिक तौर पर विरोध किया. लालू को लिखे खुले पत्र में उन्होंने कहा, ‘हमने अपने चुनावी घोषणापत्र में सवर्ण गरीबों के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण का वादा किया था. अब हम इसका विरोध कैसे कर सकते हैं?’
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असंतोष
राजद प्रमुख के रांची में न्यायिक हिरासत में होने के बीच सिंह ने खुद को पार्टी में निरंतर अलग-थलग पड़ते पाया.
एक बार उन्होंने कहा था, ‘तेजस्वी सार्वजनिक सभाओं में मेरा परिचय कराते हैं और कहते हैं कि रघुवंश बाबू पांच मिनट बोलेंगे. जबकि उनके पिता तक ने कभी मुझे समय-सीमा देने की हिम्मत नहीं की.’
हाल ही में लालू के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने तो यहां तक कह दिया था कि यदि रघुवंश बाबू पार्टी छोड़ना चाहें तो ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. तेजप्रताप ने कहा, ‘यह समुद्र से एक बाल्टी पानी निकालने जैसा होगा.’
जनवरी 2020 में सिंह ने लालू के दूसरे बेटे तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद के कामकाज के तरीके को लेकर नाराजगी जताई थी.
पार्टी के कामकाज के तरीके में बदलाव के लिए एक खुला पत्र लिखने के बाद उन्होंने इस संवाददाता से कहा था, ‘इस पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए तेजस्वी के चेहरे से ज्यादा कुछ चाहिए. पार्टी को जमीनी स्तर पर आंदोलन शुरू करने की जरूरत है. हमने जाति फॉर्मूला अपनाया था लेकिन यह नाकाम हो गया है.’
लेकिन जनवरी में उन्होंने राजद छोड़ने की किसी भी संभावना से साफ इनकार किया था. उनकी टिप्पणी थी, ‘इस उम्र में मैं कहां जाऊंगा? फिर भी उनकी मांग का पार्टी में यह कहते हुए मखौल उड़ाया गया कि वह राज्य सभा सीट चाहते हैं.’
बिहार के अंतिम प्रतिबद्ध समाजवादी नेता को पार्टी के अंदर पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया था.
उनके निधन पर प्रतिक्रिया जताते हुए उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा, ‘रघुवंश बाबू एक बेहतरीन इंसान थे.’ मोदी ने दिप्रिंट से कहा, ‘वह कौरवों की सेना का मार्गदर्शन करने वाले कर्ण की तरह थे. ऐसे व्यक्ति को अपनी पार्टी में बनाए न रख पाना लालू की नाकामी है.’
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने शोक संदेश में कहा कि सिंह ‘जमीन से जुड़े एक उत्कृष्ट नेता’ थे.
उन्होंने ट्वीट किया, ‘रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन दुखद है. जमीन से जुड़े एक उत्कृष्ट नेता रघुवंश बाबू ग्रामीण भारत की अभूतपूर्व समझ रखने वाले एक सच्चे मार्गदर्शक थे. अपनी संयमी और उदार जीवनशैली के साथ उन्होंने सार्वजनिक जीवन को समृद्ध बनाया. उनके परिवार और अनुयायियों के प्रति संवेदना.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार में पेट्रोलियम परियोजनाओं के शुभारंभ के दौरान सिंह को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा, ‘रघुवंश प्रसाद सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं. उनका निधन बिहार के साथ-साथ देश की राजनीति के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है.
Raghuvansh Prasad Singh Ji is no longer among us. I pay my tributes to him: PM @narendramodi
— narendramodi_in (@narendramodi_in) September 13, 2020
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