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Thursday, 25 April, 2024
होमदेशभारतीय रसोई की चीज़ों का इस्तेमाल कर रिसर्चर्स ने विकसित किया कोविड का नया 'सूंघने वाला टेस्ट'

भारतीय रसोई की चीज़ों का इस्तेमाल कर रिसर्चर्स ने विकसित किया कोविड का नया ‘सूंघने वाला टेस्ट’

ये टेस्ट नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट मोहाली और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ के रिसर्चर्स के दिमाग की उपज है.

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नई दिल्ली: सूंघने की क्षमता खत्म होने को कोविड-19 का एक लक्षण माना गया है लेकिन भारतीय शोधकर्ताओं के एक समूह का कहना है कि ऐसे में मरीज़ों की सभी तरह की गंध पहचानने या पकड़ने की क्षमता खत्म नहीं होती.

नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (एनएबीआई) मोहाली और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) चंडीगढ़ के रिसर्चर्स के अनुसार मरीज़ों की केवल कुछ खास तरह की गंध को पकड़ने और पहचानने की क्षमता खत्म होती है.

ये अनुमान एक छोटी सी स्टडी से लगाया गया है जो कुछ कोविड-19 मरीज़ों और एक गैर-कोविड कंट्रोल ग्रुप पर की गई. इसी अनुमान के आधार पर एक स्मेल टेस्ट विकसित किया गया है और टीम का दावा है कि इससे बीमारी का पता लगाने में मदद मिल सकती है.

टीम ने अपने नतीजे, जिनका अभी पियर रिव्यू होना बाकी है इस महीने के शुरू में एमईडीआरएक्सआईवी पोर्टल पर डाले हैं. इस पोर्टल पर रिसर्चर्स अपना पूरा किया हुआ लेकिन गैर-प्रकाशित काम डालते हैं.

स्टडी के बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए एनएबीआई के महेंद्र बिश्नोई ने कहा, ‘हम इस अभूतपूर्व चुनौती (कोविड-19) के खिलाफ लड़ाई में कुछ योगदान देना चाहते थे जो दुनिया भर में तबाही फैला रही थी.

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‘अप्रैल 2020 के शुरू में अपने बायोटेक्नोलॉजी विभाग के मार्गदर्शन और मंज़ूरी से हमने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया’.

बिश्नोई ने कहा कि टीम के अंदर दो कारणों से स्मेल टेस्ट को विकसित करने की दिलचस्पी पैदा हुई. उन्होंने कहा, ‘एक, कुछ इंटरनेशनल रिपोर्ट्स कह रहीं थीं कि सूंघने और चखने के अहसास का खत्म होना कोविड-19 इनफेक्शन का एक प्रमुख लक्षण है और दूसरा, सेंसरी सिस्टम पर चल रही हमारी रिसर्च जिसमें हम भोजन को सूंघने में अपनी आंतों के विभिन्न सेंसरी रिसेप्टर्स की भूमिका पर काम कर रहे हैं.


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कैसे की गई स्टडी

स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने एक प्रोटोटाइप स्मेल टेस्ट डिज़ाइन किया जिसमें उन्होंने पांच अलग-अलग ओडोरेंट्स इस्तेमाल किए जो भारतीय रसोइयों में आमतौर पर पाए जाते हैं.

बिश्नोई ने बताया, ‘ओडोरेंट्स का चयन एक ऑनलाइन सर्वे के ज़रिए किया गया जिसमें हमने करीब 100 लोगों को, 30 ओडोरेंट्स की एक लिस्ट दी. हमने उनसे पूछा कि वो कौनसी गंध हैं जिन्हें वो आसानी से पहचान सकते हैं’.

उनकी जानकारी के आधार पर टीम ने पांच ओडोरेंट्स शॉर्टलिस्ट किए: नारियल का तेल, इलायची, सौंफ, पुदीना और लहसुन.

इन ओडोरेंट्स को 2 एमएल की ट्यूब्स में भरकर, एक बैग में पैक कर दिया गया. स्टडी के प्रतिभागियों को एक रेस्पॉन्स शीट दी गई जिसमें एक प्रश्नावली थी कि क्या वो ओडोरेंट्स को सूंघकर उनकी पहचान कर सकते हैं.

पहली स्टडी पीजीआईएमईआर में भर्ती, बिना लक्षण वाले 49 कोविड-19 मरीज़ों पर की गई. साथ ही साथ बिना कोविड-19 के 35 लोगों पर भी ये टेस्ट किया गया.

इसके बाद का प्रयोग चंडीगढ़ के धनवंत्री आयुर्वेद अस्पताल में किया गया, जहां टेस्ट किट में एक खाली (पानी) सैम्पल था. पहली स्टडी के नतीजों को पुष्ट करने के लिए ओडोरेंट्स का क्रम भी बदल दिया गया था.

शोधकर्ताओं के अनुसार, स्टडी से पता चला कि कोविड-19 मरीज़ों की सूंघने की क्षमता पूरी तरह खत्म नहीं होती और ये ओडोरेंट की किस्म पर निर्भर करती है. कोविड-19 मरीज़ कुछ खास तरह की गंध क्यों नहीं सूंघ पाते ये गुत्थी अभी सुलझनी बाकी है.

उन्होंने कहा, ‘हमने देखा कि केवल 6.1 प्रतिशत कोविड-19 मरीज़ ही, सभी पांचों ओडोरेंट्स को सूंघ या पहचान नहीं पाए थे’. टीम ने अपनी स्टडी में लिखा कि 38.8 प्रतिशत मरीज़, कम से कम एक ओडोरेंट को नहीं सूंघ पाए जबकि 16 प्रतिशत दो ओडोरेंट्स नहीं सूंघ पाए.

टीम के अनुसार, केवल 4.1 प्रतिशत प्रतिभागी स्टडी में इस्तेमाल पांच ओडोरेंट्स में से किसी एक को भी पहचान या सूंघ नहीं पाए थे.

टीम ने लिखा कि स्वस्थ लोगों में सभी ने ओडोरेंट्स को सूंघ लिया हालांकि 14 प्रतिशत ने कम से कम एक गंध की गलत पहचान की.

स्टडी से रिसर्चर्स इस नतीजे पर पहुंचे कि पुदीना और नारियल का तेल दो गंध थीं जिन्हें अधिकतर कोविड-19 मरीज़ सूंघ नहीं पाए.

टीम अब टेस्ट को पोर्टेबल किट्स में तब्दील करने पर काम कर रही है.

बिश्नोई ने कहा, ‘अब ये धारणा बन गई है और हमारे काम व हाल ही में छपे, दूसरे अंतर्राष्ट्रीय कार्यों से सुबूत मिले हैं कि स्मेल टेस्ट से खतरे वाले या गैर-लक्षण वाले लोगों का पता चलाया जा सकता है’.

लेकिन टीम ने नोट किया कि इन टेस्टों के नतीजे आसानी से गड़बड़ा सकते हैं, अगर लोगों को पता चल जाए कि ये ओडोरेंट्स उनके सामने किस क्रम में रखे गए हैं. इसलिए टीम को इन किट्स को बेतरतीब करने का उपाय करना पड़ता है जिसमें यदि मुमकिन हो तो अलग-अलग ओडोरेंट्स इस्तेमाल हो सकते हैं.

किट्स को अंतिम रूप देने के लिए फिलहाल उनकी व्यापक टेस्टिंग की जा रही है.

बिश्नोई ने कहा कि इस कनसेप्ट को लोग घर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो कुछ खास तरह की गंध की पहचान कर उन्हें फिर हर रोज़ सूंघ सकते हैं. सूंघने की क्षमता के अचानक खत्म होने और साथ में मामूली लक्षण या बिना लक्षण के लोगों को आईसोलेट होकर ज़रूरी एहतियात करने में मदद मिलेगी और वो जल्दी से जल्दी अपना टेस्ट भी करा सकते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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