नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक के निधन के कुछ दिन बाद हरियाणा के चरखी दादरी में सर्व खाप पंचायत हुई, जहां बीजेपी सरकार की आलोचना की गई कि उन्होंने मलिक के अंतिम संस्कार में राज्य सम्मान नहीं दिया.
इसे “अकल्पनीय अपमान” बताते हुए, खापों ने फैसला किया कि सत्य पाल मलिक को मरणोपरांत सभी उत्तर भारतीय खापों द्वारा दिए जाने वाले भारत सम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.
फोगाट खाप के अध्यक्ष सुरेश फोगाट की अध्यक्षता में हुई इस पंचायत बैठक में फोगाट, सांगवान, श्योराण, हवेली, सतगामा, चिड़िया और सतगामा खापों के प्रतिनिधि, किसान संगठन और सामाजिक संगठनों ने भाग लिया.
खाप पंचायत की बैठक के बाद, बीजेपी ने अपने राजस्थान इकाई के प्रवक्ता कृष्ण कुमार जानू को निष्कासित कर दिया. जानू एक जाट नेता हैं, जिन्होंने पहले भी अपनी समुदाय के नेताओं के साथ पार्टी के बर्ताव पर सवाल उठाए थे. इस मुद्दे ने बीजेपी के भीतर ‘जाट दुविधा’ को सामने ला दिया है—ऐसी राजनीति जिसमें पार्टी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में इस समुदाय को साधने की कोशिश करती है, जबकि हरियाणा में गैर-जाटों को जुटाने की रणनीति अपनाती है.
पंजाब में जाट सिख हमेशा बीजेपी से दूरी बनाए रखते हैं. बीजेपी और जाटों के रिश्ते, जो 1999 में तब मजबूत हुए जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजस्थान में इस समुदाय को ओबीसी आरक्षण देने का वादा किया था, हाल के दिनों में कमजोर हुए हैं. 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन हरियाणा और राजस्थान के जाट बहुल क्षेत्रों में खराब रहा. इसी पृष्ठभूमि में, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का ‘हटाया जाना’ और दिवंगत सत्य पाल मलिक के शीर्ष बीजेपी नेतृत्व से बिगड़े रिश्ते अब पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं.
पार्टी ने 8 अगस्त को अपने जाट प्रवक्ता को बाहर का रास्ता दिखाया, जब कृष्ण कुमार जानू ने सत्य पाल मलिक और जगदीप धनखड़—दो प्रमुख जाट चेहरों—के साथ हुए “अपमानजनक बर्ताव” को उजागर किया. वरिष्ठ नेतृत्व की आलोचना करते हुए जानू का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब साझा हुआ, जिसके बाद उन्हें छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया.
सत्य पाल मलिक, जिन्होंने कई राज्यों के राज्यपाल के रूप में कार्य किया और एक समय बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे, लंबे समय की बीमारी के बाद पिछले हफ्ते 79 साल की उम्र में निधन हो गया. वह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे जब मोदी सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म किया. बाद में, सत्य पाल मलिक गोवा और मेघालय के राज्यपाल रहे, लेकिन बीजेपी से मतभेद के बाद वह नरेंद्र मोदी सरकार के कट्टर आलोचक बन गए. 6 अगस्त को उनके अंतिम संस्कार में प्रमुख बीजेपी नेता शामिल नहीं हुए.
जगदीप धनखड़ का 21 जुलाई को अचानक इस्तीफा—जो कथित तौर पर बीजेपी नेतृत्व के दबाव में हुआ—भी जाट समुदाय को पसंद नहीं आया, बीजेपी नेताओं का कहना है. कई लोगों ने जगदीप धनखड़ की नियुक्ति को पार्टी द्वारा जाट समुदाय के महत्व को मान्यता देने के रूप में देखा था, भले ही उन्हें एक प्रभावशाली जाट नेता नहीं माना जाता था. अब, वह उनके हटाए जाने को भी उसी नज़र से देख रहे हैं.
सालों से बीजेपी ने अपने जाट नेताओं को अहम पद देने की कोशिश की है. जैसे हरियाणा में सुभाष बराला और ओ.पी. धनखड़, राजस्थान में सतीश पूनिया, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संजीव बालियान व भूपेंद्र सिंह चौधरी. हालांकि, पार्टी के हालिया फैसलों ने जाटों में यह भावना मजबूत की है कि बीजेपी उन्हें पीछे कर रही है और ओबीसी, दलित और सवर्ण नेताओं को तरजीह दे रही है, बीजेपी नेताओं का कहना है.
जब बीजेपी ने सत्य पाल मलिक को किनारे किया, तो जाटों ने इसका विरोध किया. इसके बाद पार्टी ने उस समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया ताकि स्थिति शांत हो सके. अब जगदीप धनखड़ भी पद से बाहर हैं.
हरियाणा के कंडेला खाप के अध्यक्ष टेक राम कंडेला ने दिप्रिंट से कहा कि जब धनखड़ उपराष्ट्रपति थे, तब हरियाणा की खापों या जाटों और उनके बीच खास लगाव नहीं था. उन्होंने कहा, “लेकिन, जिस तरह से उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया, वह दिखाता है कि बीजेपी जाटों के साथ कैसा बर्ताव करती है.”
हरियाणा के धनखड़ खाप के अध्यक्ष युधबीर धनखड़ ने बीजेपी पर “राजनीतिक खेल” के तहत यह कदम उठाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “यह पार्टी (बीजेपी) इस समुदाय से बहुत दूर है.” उन्होंने चेतावनी दी कि भविष्य में बीजेपी को जगदीप धनखड़ के साथ किए गए बर्ताव का नतीजा भुगतना पड़ेगा.
“हमारे लिए वह हमारे ‘गोत्र’ के भाई हैं. उनके इस्तीफे ने सभी खापों और जाट समुदाय के सदस्यों में नाराजगी फैला दी है. जब पार्टी ने उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया था, तो उन्हें पूरा कार्यकाल पूरा करने देना चाहिए था. अब, सोशल मीडिया पर उनके दफ्तर को सील किए जाने जैसी खबरें फैल रही हैं. यह सब समुदाय को अच्छा नहीं लग रहा,” खाप नेता ने कहा.
राष्ट्रीय आबादी का लगभग 2.5 प्रतिशत हिस्सा होने के बावजूद, जाट एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं. इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में समुदाय की राजनीतिक ताकत बहुत प्रभावशाली है और इसे नाराज़ करना जोखिम भरा है. अपने दो सबसे पहचाने जाने वाले नेताओं के पक्ष में बोलने पर जानू की निष्कासन ने बीजेपी के भीतर ‘जाट दुविधा’ पर फिर से बहस छेड़ दी है, जो नेताओं का कहना है कि जल्द सुलझने वाली नहीं है.
अमिटी यूनिवर्सिटी, मोहाली की राजनीति विज्ञान की सहायक प्रोफेसर और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज़ (सीएसडीएस) की पूर्व शोधकर्ता ज्योति मिश्रा ने दिप्रिंट से कहा कि हरियाणा में जाट समुदाय का बीजेपी से दूरी बनाने का कारण केवल जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर नाराजगी से कहीं गहरा है.
मिश्रा ने कहा, “जाट समुदाय की दूरी की वजह है बीजेपी के शासन में राज्य पर राजनीतिक नियंत्रण का कम होना, जहां जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से जाना केवल इस बात को मजबूत करता है कि पार्टी, जिसने कभी उनके वोट मांगे थे, अब गैर-जाट हितों को प्राथमिकता दे रही है.”
हरियाणा में बड़े विवाद
जाट असंतोष की जड़ें बड़े विवादों में हैं. कृषि से गहरा जुड़ाव और गांवों में प्रभाव रखने वाले इस समुदाय ने 2020-21 के किसान आंदोलन और जून 2022 में शुरू की गई अग्निपथ भर्ती योजना को लेकर केंद्र के रवैये को ठीक नहीं माना. भाजपा ने बाद में कृषि कानून वापस ले लिए. लेकिन पार्टी के अंदरूनी लोग मानते हैं कि नुकसान पहले ही हो चुका था. उस समय भाजपा में एक भी एकजुट करने वाला जाट चेहरा न होने से स्थिति और बिगड़ी.
मोदी 3.0 में अब केवल दो जाट नेता राज्य मंत्री हैं. भाजपा के अजमेर सांसद भागीरथ चौधरी कृषि और किसान कल्याण के राज्य मंत्री हैं. राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी कौशल विकास और उद्यमिता के राज्य मंत्री हैं. केंद्रीय प्रतिनिधित्व में कमी समुदाय के लिए चिंता का कारण है.
मोदी 2.0 की 2019 की कैबिनेट में भी केवल दो जाट राज्य मंत्री थे — बलियान चौधरी और राजस्थान के कैलाश चौधरी.
दिप्रिंट ने पहले बताया था कि 2019 की कैबिनेट और मौजूदा कैबिनेट, वाजपेयी की 1999 से 2004 तक की कैबिनेट से बिल्कुल अलग है. उस समय राष्ट्रीय लोक दल के अजीत सिंह और भाजपा के साहिब सिंह वर्मा मंत्री थे. वसुंधरा राजे सिंधिया, जो जाट परिवार में ब्याही गईं, राज्य मंत्री थीं. आरएलडी नेता सोमपाल सिंह शास्त्री भी 1998 में मंत्रिपरिषद में थे.
समय के साथ हालात काफी बदल गए हैं. अब साफ दिखता है कि 2014 से हरियाणा, राजस्थान और यूपी में जाटों का प्रभाव घटा है.
2024 लोकसभा चुनाव से पहले, उत्तर प्रदेश भाजपा ने पश्चिमी यूपी के जाट मतदाताओं को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन किया. लेकिन कई भाजपा नेता मानते हैं कि पार्टी को अपने जाट नेताओं को मजबूत करना चाहिए, ताकि दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े. वे भाजपा नेता संजीव बलियान का उदाहरण देते हैं, जिन्होंने 2019 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से आरएलडी अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह को हराया था.
हरियाणा में जाटों की आबादी राज्य की 22-27 प्रतिशत है. पहले इसने उनकी राजनीतिक बढ़त सुनिश्चित की थी.
लेकिन 2014 से भाजपा ने गैर-जाट एकीकरण की नीति अपनाई. धीरे-धीरे जाट प्रतिनिधित्व घटाया और लंबे समय से हरियाणा की कृषि व राजनीतिक पहचान तय करने वाले समुदाय को हाशिए पर डाल दिया. 2024 चुनाव से पहले भाजपा ने हरियाणा भाजपा अध्यक्ष ओ.पी. धनखड़ को हटाकर ओबीसी नेता नायब सैनी को नियुक्त किया.
हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा का चुनाव हमेशा जाति-आधारित राजनीति का मैदान रहा है. 2014 में ‘मोदी लहर’ में भाजपा का उभार जाट राजनीति से हटने का संकेत था. भाजपा ने 90 में से 24 जाट उम्मीदवार उतारे, जिनमें से छह जीते. सफलता दर 24-25 प्रतिशत रही.
2016 में मनोहर लाल खट्टर सरकार के दौरान जाट आरक्षण आंदोलन भाजपा-जाट रिश्तों में मोड़ बन गया.
प्रदर्शन हिंसक हो गए. 30 लोगों की मौत हुई और सार्वजनिक व निजी संपत्ति का नुकसान हुआ. सरकार की सख्त प्रतिक्रिया ने पहले से मौजूद दूरी को और बढ़ा दिया.
जाट आंदोलन के दौरान हरियाणा सरकार ने सेना बुलाई और प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई. इससे जाटों में नाराज़गी बढ़ी. भाजपा के कुरुक्षेत्र सांसद राज कुमार सैनी, जिन्होंने जाट आरक्षण का विरोध किया, के बयान ने तनाव और बढ़ाया.
जब पार्टी द्वारा वादा किया गया आरक्षण बिल कानूनी अड़चनों में फंसा तो जाट खुद को ठगा महसूस करने लगे.
पहले, सत्य पाल मलिक के जगदीप धनखड़ पर तंज — “टूटी खाट और झुका हुआ जाट किसी काम का नहीं होता” — हरियाणा के जाटों में गूंजा. बाद में जगदीप धनखड़ को हटाना, जाटों के लिए विरोध का मुद्दा बन गया.
2019 के राज्य चुनाव में भाजपा ने गैर-जाट रणनीति पर जोर दिया. जाट उम्मीदवार घटाकर 19 किए. उनमें से केवल चार जीते. इनमें से भाजपा ने जय प्रकाश दलाल को मंत्री बनाया और कमलेश धांडा को राज्य मंत्री. कैबिनेट में दो और जाट मंत्री थे — उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला (जेजेपी) और रंजीत सिंह (निर्दलीय).
मार्च 2024 में खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी आने के बाद कैबिनेट में एक जाट मंत्री और एक राज्य मंत्री रहे. महिपाल धांडा राज्य मंत्री बने और कमलेश धांडा को हटा दिया गया. जेजेपी से गठबंधन टूटने के बाद जाट मंत्रियों की संख्या चार से घटकर तीन रह गई.
2024 आम चुनाव से पहले ओबीसी मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की नियुक्ति ने भाजपा की ओबीसी एकीकरण की नीति को पुख्ता कर दिया.
2024 राज्य चुनाव में भाजपा ने केवल 16 जाट उम्मीदवार उतारे. सफलता दर 38 प्रतिशत रही, और छह जीते.
वर्तमान 14 सदस्यीय सैनी मंत्रिमंडल में दो जाट मंत्री हैं — महिपाल धांडा और श्रुति चौधरी. सैनी के सीएम बनने से पहले भाजपा ने उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाया और जाट नेता ओम प्रकाश धनखड़ को हटाया. तब से जाट असंतोष बढ़ा, जिसमें 2023 के पहलवान आंदोलन, किसान आंदोलन और अग्निपथ योजना ने और आग लगाई.
रोहतक और जींद समेत ग्रामीण इलाकों में जाट किसानों ने इन घटनाओं को भाजपा द्वारा उनके कृषि हितों की अनदेखी का सबूत माना.
पहले हरियाणा भाजपा को व्यापारी और शहरी मतदाताओं की पार्टी माना जाता था. जाट नेताओं में ओ.पी. धनखड़ और सुभाष बराला जैसे चेहरे थे, जो किसान मोर्चा से जुड़े थे. राम मंदिर आंदोलन के दौरान 1990 के दशक में कप्तान अभिमन्यु शामिल हुए. जाट नेता राम चंदर बैंदा 1996, 1998 और 1999 में फरीदाबाद से भाजपा सांसद बने. किशन सिंह सांगवान ने 1998 में सोनीपत से इनेलो टिकट पर जीत दर्ज की, 1999 में भाजपा के हिस्से में सीट आने पर वे भाजपा के उम्मीदवार बने और 2004 में भी जीते. 2012 में उनका निधन हो गया. 2018 में पूर्व भाजपा सांसद रामचंद्र बैंदा का निधन हुआ.
मोदी के शुरुआती वर्षों में ही जाट आरक्षण आंदोलन के कारण भाजपा और जाटों के बीच दूरी बढ़ने लगी. लेकिन 2024 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कई जाट नेताओं को जोड़ा, जिनमें किरण चौधरी और दिवंगत सतपाल सांगवान के बेटे सुनील सांगवान शामिल हैं, जो चरखी दादरी से जीते.
पंजाब, राजस्थान और यूपी की स्थिति
पंजाब में भाजपा ने कुछ प्रमुख जाट नेताओं को जोड़ा, जैसे सुनील जाखड़, जाट सिख रवनीत बिट्टू, परनीत कौर और तरणजीत सिंह संधू. लेकिन 2020-21 के किसान आंदोलन की चोट अब भी है, जब जाट सिख किसानों को ‘खालिस्तानी’ कहा गया.
राजस्थान में भी हालात अलग नहीं हैं. 2023 विधानसभा चुनाव के बाद कई समुदाय नेताओं को लगता है कि उन्हें किनारे किया गया है. जाट समुदाय यहां 200 सीटों में से 50 पर असर डालता है.
धनखड़ के हटने के बाद कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने कहा कि भाजपा ने व्यवस्थित तरीके से जाटों को किनारे किया.
वर्तमान राजस्थान कैबिनेट में दो जाट मंत्री हैं — कन्हैयालाल चौधरी और सुमित गोदारा. जाट नेता झबर सिंह खर्रा और विजय सिंह चौधरी राज्य मंत्री हैं. भाजपा ने ज्योति मिर्धा को उपाध्यक्ष और संतोष अहलावत को महासचिव बनाया है, लेकिन कई इसे प्रतीकात्मक मानते हैं.
2024 लोकसभा चुनाव में राजस्थान में जाट बहुल सीटों पर भाजपा को हार मिली.
भाजपा नेता उम्मीद करते हैं कि सतीश पूनिया को राष्ट्रीय भूमिका मिले.
उत्तर प्रदेश में 2024 में भाजपा की सीटें 62 से घटकर 33 हो गईं. कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर — सभी जाट बहुल सीटें — हार गईं. भाजपा संगठन स्तर पर अधिक जाट नेताओं को शामिल करने की योजना बना रही है.
कई जाट नेताओं ने किसानों और पहलवानों के साथ सरकार के रवैये को लेकर नाराज़गी जताई.
भाजपा प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कहा कि कांग्रेस भ्रम फैला रही है. भाजपा ने सरकार और संगठन में जाट समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व दिया है.
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को नए जाट नेताओं को भाजपा में लाने का श्रेय दिया जाता है. लेकिन भाजपा के राहुल कस्वां, जो पांच बार चूरू से सांसद रहे, 2024 चुनाव से पहले कांग्रेस में चले गए और जीत गए.
यूपी में भाजपा के जाट नेताओं में भूपेंद्र चौधरी और संजीव बलियान शामिल हैं.
भाजपा नेता मानते हैं कि राहुल कस्वां का कांग्रेस में जाना इस बात का सबूत है कि पार्टी ने जाट नेतृत्व की दूसरी पंक्ति नहीं बनाई, जो भविष्य में समुदाय तक पहुंचने में समस्या बन सकती है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: न्यूयॉर्क में मुनाफा, UP में नुकसान—जेन स्ट्रीट की ‘बाजार हेरफेर’ ने टियर-2 और 3 पर क्या असर डाला