नई दिल्ली: गुजरात में एक बात कही जाती है, ‘जब कुछ नहीं काम करता, तो मोदी काम करता है.’ और इस साल के अंत में प्रस्तावित राज्य विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री के सबसे भरोसेमंद सेनापतियों में से एक हैं सी.आर. पाटिल जो यह सुनिश्चित करने में जुटे हैं कि राज्य में बीजेपी का तीन दशक पुराना शासन जारी रहे.
गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद पाटिल आउटरीच कैंपेन ‘वन डे वन डिस्ट्रिक्ट’ कार्यक्रम के तहत शिकायतें दूर करने और समर्थन जुटाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं, व्यापारियों, डॉक्टरों से लेकर चार्टर्ड अकाउंटेंट और धार्मिक नेताओं तक से मिल रहे हैं.
लेकिन इस सारी कवायद में एक प्रमुख चेहरा स्पष्ट तौर पर गायब है और वो हैं मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, जिन्होंने पिछले सितंबर में विजय रूपानी की जगह यह कुर्सी हासिल की थी.
हालांकि, पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पाटिल और मुख्यमंत्री के बीच किसी तरह की अनबन नहीं चल रही है—जैसा रूपाणी के शासनकाल के दौरान था, जब संगठन और मुख्यमंत्री के बीच एक राय नहीं थी.
सूत्रों ने कहा, शायद, इसलिए क्योंकि योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा आदि मुख्यमंत्रियों द्वारा शासित राज्यों की तुलना में गुजरात एकमात्र ऐसा बीजेपी शासित राज्य है जहां पार्टी के राज्य प्रमुख का मुख्यमंत्री से अधिक प्रभाव दिखाई देता है.
सूत्रों ने बताया कि पाटिल का हर निर्णय अधिक मुखरता से लिया गया होता है—चाहे वह पार्टी मामलों का हो या शासन संबंधी—जबकि मुख्यमंत्री ने अपने ‘विनम्र’ स्वभाव के साथ पार्टी और प्रशासन के बीच की खाई को पाट दिया है. सूत्रों ने दावा किया कि हालांकि, दोनों के व्यक्तित्व एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं, लेकिन वे अपनी-अपनी भूमिका में एकदम उपयुक्त नजर आते हैं.
मुख्यमंत्री बनने से पहले राजनीति से ज्यादा अपने भक्तिपूर्ण कार्यों के लिए चर्चित रहे भूपेंद्र पटेल—जो पहली बार विधायक बने हैं—उनको पाटीदार समुदाय की नाराजगी खत्म करने के लिए एक नए चेहरे के तौर पर इस पद पर बैठाया गया था. गौरतलब है कि 2015 में हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आरक्षण आंदोलन के बाद इस वोटबैंक में भाजपा के खिलाफ नाराजगी काफी ज्यादा बढ़ गई थी.
लेकिन नियुक्ति के कुछ ही महीनों के भीतर पटेल राज्य सरकार के प्रशासनिक प्रमुख बन गए हैं, जबकि पाटिल गुजरात में मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की आंख-कान के तौर पर उभरे हैं, जो गांधीनगर से लेकर दिल्ली तक महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं.
राज्य के नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि पटेल के लो-प्रोफाइल व्यक्तित्व, पूरी तल्लीनता से हर किसी की बात सुनने, और ‘मुख्यमंत्री पद की अकड़’ के बिना पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ तालमेल कायम करने की आदत ने पार्टी और सरकार के बीच अच्छा समन्वय कायम करने में मदद की है.
उन्होंने कहा, लेकिन सवाल फैसलों का हो तो इसमें पाटिल ज्यादा दखल रखते हैं.
इस साल के शुरू में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में से चार में पार्टी की जीत के तुरंत बाद प्रधानमंत्री ने 11 मार्च को अहमदाबाद में एक विशाल रोड शो किया था. इस दौरान मोदी और मुख्यमंत्री पटेल के साथ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी मौजूद थे, जो भीड़ का अभिवादन करते हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए समर्थन मांग रहे थे. यह अन्य राज्यों में प्रधानमंत्री के रोड शो के विपरीत था, जहां कोई भी राज्य इकाई प्रमुख एक ही फ्रेम में नहीं देखा गया.
पिछले हफ्ते, जब पाटिल ‘वन डे वन डिस्ट्रिक्ट’ कार्यक्रम के लिए हीरा कारोबार हब सूरत में थे, तो भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनका जोरदार स्वागत किया, जब वे मोटरसाइकिलों के काफिले से घिरी खुली जीप में सवार हुए.
गुजरात भाजपा के उपाध्यक्ष डॉ. भरतभाई बोघरा ने दिप्रिंट को बताया, ‘पाटिल साहब पार्टी कार्यकर्ताओं या जनता की शिकायतों को मौके पर ही सुलझाते हैं. उनके काम करने का तरीका एकदम सटीक है. रूपाणी सरकार के दौरान जो मुख्य विवाद था, वह अब नहीं है…पार्टी और सरकार के बीच समन्वय की कोई समस्या नहीं है.’
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अहम फैसलों में दिखा असर, पीएम की आंख-कान बने
अपने ‘इनोवेटिव विचारों’ और ‘पार्टी कैडर को सक्रिय करने’ की क्षमता के कारण राज्य के नेताओं की प्रशंसा पाने वाले पाटिल पिछले कुछ वर्षों में गुजरात में मोदी और शाह के प्रमुख सिपहसालार बन गए हैं.
2009 से नवसारी सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे तीन बार के सांसद पाटिल मूल रूप से महाराष्ट्र के हैं और कभी सूरत में एक पुलिस कांस्टेबल थे. सूत्रों ने बताया कि 2014 के बाद जब वह मोदी के नए लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के प्रभारी रहे, तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष शाह के समय—तब उन्होंने पीएम को काफी प्रभावित किया.
पाटिल कांग्रेस विधायकों को पार्टी में शामिल करने और कथित तौर पर असंतुष्ट कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल के साथ बातचीत का चैनल खोलने जैसे अहम राजनीतिक मामलों को संभाल रहे हैं. साथ ही, शासन से जुड़े मसलों में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई है.
मार्च में जब कांग्रेस विधायक आनंद पटेल ने पार-तापी-नर्मदा नदी-जोड़ने परियोजना का विरोध कर रहे आदिवासियों के प्रति समर्थन जताया तो पाटिल ने मोदी, शाह और जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाकात की और दिल्ली में घोषणा की कि परियोजना को स्थगित कर दिया गया है. बाद में मुख्यमंत्री पटेल ने उनके बयान की पुष्टि की.
पिछले माह, मालधारी (पशुपालक) समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्य विधानसभा में पारित शहरी क्षेत्रों में गुजरात मवेशी नियंत्रण विधेयक का विरोध व्यक्त करते हुए पाटिल से संपर्क किया. इसके बाद पाटिल ने इसे लागू करने पर पुनर्विचार करने के अनुरोध के साथ मुख्यमंत्री से संपर्क साधा.
पाटिल ने उनसे मिलने वाले मालधारी समुदाय के सदस्यों को आश्वस्त किया था कि विधेयक को वापस ले लिया जाएगा क्योंकि गुजरात नगर पालिका अधिनियम में आवारा पशुओं की समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं. अंततः बिल को रद्द कर दिया गया.
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‘पूरी तरह समन्वय’, वजह है मुख्यमंत्री का ‘विनम्र’ होना
जाति के लिहाज से तटस्थ छवि वाले पूर्व मुख्यमंत्री रूपाणी को हटाने की वजह पाटीदार समुदाय के साथ भाजपा के समीकरण सुधारने से इतर यह भी थी कि महामारी के दौरान रूपाणी सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. उस पर स्वास्थ्य सेवाओं को लचर तरीके से संभालने का आरोप लगा था.
बतौर मुख्यमंत्री पटेल के बारे में बताते हुए पार्टी के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘ऐसा नहीं है कि वह कुछ नहीं कर रहे हैं. वडोदरा, पाटन, मोरबी, गिर आदि आठ जिलों को सभी घरों को नल का पानी मिलने लगा है. सरकार ने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से डांग स्थित शबरी धाम तक एक तटीय राजमार्ग परियोजना के लिए 2,440 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं और गति शक्ति परियोजना भी शुरू की है. गुजरात पहला ऐसा राज्य हो गया है जिसने जिलेवार सतत विकास योजना तैयार की है. राज्य ने केंद्र प्रायोजित योजना के तहत 10 मिलियन स्वास्थ्य कार्ड बांटे हैं.
गुजरात के पूर्व मंत्री रणछोड़ देसाई ने कहा कि ‘पार्टी और सरकार के बीच बेहतरीन समन्वय कायम है.’
उन्होंने कहा, ‘भूपेंद्रभाई का सबसे अच्छा गुण उनकी विनम्रता है. वह सबकी बात सुनने और हमेशा कुछ न कुछ सीखने को तैयार रहते हैं और परिवार की तरह पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलते हैं. उन्हें मुख्यमंत्री होने का कतई अहंकार नहीं है.’
देसाई ने आगे कहा, ‘2017 की तरह इस बार सरकार के खिलाफ कोई नाराजगी नहीं है…इसलिए विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए जीत हासिल करना कतई मुश्किल नहीं होगा. सीएम का लो-प्रोफाइल होना पार्टी के लिए लोगों तक आउटरीच में मददगार है.’
पार्टी के एक राज्य पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उनके धार्मिक और सामाजिक संपर्कों ने पार्टी को समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचाने में मदद की है. हम सभी जानते हैं कि गुजरात चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जाता है, इसलिए अन्य लोग केवल दिल्ली के फैसलों को लागू करने के लिए हैं.’
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