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Friday, 19 April, 2024
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कांग्रेस को कोटा की धरती से खत्म करने वाले ओम बिड़ला, कैसे बने मोदी-शाह की पहली पसंद

कोटा की राजनीति से कांग्रेस और बीजेपी दिग्गज ललित किशोर चतुर्वेदी को बाहर करने वाले ओम बिरला अब लोकसभा को संभालेंगें.

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नई दिल्ली: सोमवार 17 वीं लोकसभा का पहला दिन था और सभी सांसद पहले दिन की गहमागहमी के बाद संसद के अगले दिन की तैयारी में मशरूफ थे. वर्णमाला के हिसाब से मंगलवार को राजस्थान के सांसदों को शपथ लेना था .कोटा से दूसरी बार चुने गए बीजेपी सांसद ओम बिड़ला अपने घर पर अपने साथी सीपी जोशी के साथ बातचीत कर डिनर के लिए बैंठने ही वाले थे कि उनके फोन की घंटी बजी और उन्हें बीजेपी अध्यक्ष से तुरंत मिलने को कहा गया .

थोड़ी देर पहले ही बीजेपी के निर्णय लेने की सबसे बड़ी कमेटी संसदीय बोर्ड की बैठक खत्म हुई थी. ओम बिड़ला ने अपने साथी को बस इतना ही कहा कि लगता है कुछ अच्छी खबर आने वाली है. घंटे भर बाद जब वह लौटे तो चितौड़गढ़ के उनके सांसद दोस्त और परिवार खुशियों में डूब चुका था कि अगले दो दिनों के बाद ओम बिरला 17 वीं लोकसभा के स्पीकर होगें.

थोड़ा सा फ़्लैशबैक में चलते हैं. 1993-1994 की बात होगी ओम बिड़ला छात्र संघ की राजनीति में अपनी जगह बना रहे थे राजस्थान की राजनीति में भैरोंसिंह शेखावत और ललित किशोर चतुर्वेदी जैसे दिग्गजों का सिक्का चल रहा था.

छात्र संघ की राजनीति से जुड़े ओम बिड़ला के विश्वविद्यालय में ललित किशोर चतुर्वेदी का कार्यक्रम था ओम बिड़ला ने ललित किशोर चतुर्वेदी का उस कार्यक्रम में जमकर विरोध किया. तब तक ओम बिड़ला बीजेपी युवा मोर्चा की नज़र में आ चुके थे .उमा भारती युवा मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष थी. राजस्थान बीजेपी में संगठन मंत्री थे वर्तमान राज्यसभा सांसद और गुजरात के प्रभारी ओम माथुर ने ओम बिड़ला का नाम युवा मोर्चा के लिए बढ़ाया. उमा भारती के साथ युवा मोर्चा में जगह मिलने के बाद ओम बिड़ला ने राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


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चतुर्वेदी एपीसोड की यादें अभी ताज़ा थीं और 2003 का विधानसभा सामने खड़ा था. हडौती का इलाक़ा राज्य पूर्व अध्यक्ष रहे बीजेपी सरकार में मंत्री रहे ललित किशोर चतुर्वेदी का गढ़ था लेकिन 1998 के विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस के दिग्गज नेता शांतिलाल धारीवाल ने ललित किशोर चतुर्वेदी को उनके ही गढ़ में उन्हें चारों खाने चित्त कर दिया .

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चतुर्वेदी कोटा विधानसभा से 1977 से 1993 तक बिना ब्रेक के लगातार जीतते रहे थे .इसलिए 2003 में सर्तकता बरतते हुए वो अपनी सीट कोटा छोड़कर बगल की सीट डिगोद से लड़ना चाहते थे. ललित किशोर चतुर्वेदी के विरोधी खेमे ने  कोटा सीट पर ओम बिड़ला को उतारा.

ओम बिड़ला ने शांति धारीवाल को हरा चुनाव जीत लिया और बीजेपी की लहर में भी ललित किशोर चतुर्वेदी चुनाव हार गए. कोटा में पहली बार चुनाव लड़ने गए ओम बिड़ला ने मज़ाक़ में मुझसे कहा था, ‘कोटा की धरती को मैं नेताविहीन कर दूंगा’. ओम बिड़ला ने समय रहते वह कर दिखाया. हडौती के सारे कांग्रेसी दिग्गजों को उन्होने अपने सामने दुबारा चुनाव नहीं जीतने दिया. पहले चुनाव में कांग्रेस के शांति धारीवाल को दूसरे में रामनारायण मीणा, तीसरे में रामकिशन वर्मा और ललित किशोर चतुर्वेदी वापस कोटा नहीं जा सके .

उमा भारती के साथ काम करते हुए ओम बिड़ला तब के बीजेपी अध्यक्ष और निवर्तमान उपराष्ट्रपति वेकैंय्या नायडू के संपर्क में आए और तब से दिल्ली की राजनीति में वेंकैय्या उनके मेन्टर बन गए. वसुंधरा के विरोध में रहकर भी वो चुनाव जीतते रहे और कोटा में अपने ही बीजेपी विधायकों के विरोध के बावजूद जीतकर लोकसभा पहुंचे. अपने जुझारूपन को ओम बिड़ला लोकसभा में नहीं छोड़ेंगे पर हर दल के नेताओं के साथ व्यक्तिगत संबंधों के हिमायती रहे ओम बिड़ला अपने इस गुण का इस्तेमाल लोकसभा के गतिरोध तोड़ने में जरूर करेंगे.

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