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Friday, 22 November, 2024
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अब BJP का रुख? चुनावी राज्य गुजरात में क्या है हार्दिक पटेल के इस्तीफे का मतलब

हार्दिक पटेल 2015 के पाटीदार आंदोलन के साथ अचानक सुर्खियों में आए थे. अपेक्षा की जा रही थी कि गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते आगामी चुनावों में वो पार्टी के प्रचार की कमान संभालेंगे.

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नई दिल्ली: कांग्रेस छोड़ने वाले पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के बीजेपी में शामिल होने की संभावना है- ये संकेत पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को दिया है.

सूत्रों ने बताया कि पटेल के पार्टी में शामिल होने की बातचीत ‘चार महीने से अधिक से चल रही है’. पिछले कुछ हफ्तों में मीडिया के साथ बातचीत में अपनी हिंदू पहचान का दिखावा करने के अलावा, वो बीजेपी नेतृत्व की प्रशंसा भी करते रहे हैं.

28 वर्षीय पटेल 2015 में पाटीदार आंदोलन के साथ सुर्खियों में आए थे, जो समुदाय के लिए अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के दर्जे और आरक्षण की मांग के लिए शुरू हुआ था. पार्टी में शामिल होने के सिर्फ तीन साल के बाद उनका इस्तीफा ऐसे समय आया है जब राज्य के विधानसभा चुनावों में कुछ महीने ही बचे हैं.

अपेक्षा की जा रही थी कि गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते, आगामी चुनावों में अन्य युवा नेताओं के साथ मिलकर वो पार्टी के प्रचार की कमान संभालेंगे. अपने इस्तीफे में उन्होंने कई मुद्दों पर पार्टी की तीखी आलोचना की और उन मुद्दों का उल्लेख किया जो बीजेपी एजेंडा में प्रमुख हैं- जैसे राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और सीएए-एनआरसी.

बीजेपी सूत्रों के अनुसार, उन्हें उम्मीद है कि पटेल के पार्टी में संभावित प्रवेश से उन्हें प्रभावशाली नरेश पटेल की काट करने में सहायता मिलेगी- एक राजकोट स्थित उद्योगपति जिनका पाटीदार समुदाय में काफी प्रभाव माना जाता है- अगर वो कांग्रेस में शामिल होने का फैसला करते हैं.

वो हार्दिक पटेल को आम आदमी पार्टी (आप) की युवा अपील की संभावित काट के रूप में भी देखते हैं, जिसने राज्य पर अपनी निगाहें जमा ली हैं.

एक गुजरात बीजेपी नेता ने दिप्रिंट को बताया: ‘पटेल बीजेपी नेतृत्व के संपर्क में हैं और उन्हें जल्द ही बीजेपी में लिया जा सकता है, चूंकि उन्होंने इसके लिए इच्छा जताई है. उन्होंने इस दिशा में शुरुआती कदम उठा लिए हैं और उनकी रूचियों का पता लगाने के लिए और बातचीत किए जाने की जरूरत है’.

नेता ने आगे कहा, ‘बीजेपी एक बड़ा परिवार है और राष्ट्र सेवा में हर किसी का स्वागत है. पाटीदार समुदाय के अधिकारों की लड़ाई की अगुवाई करके उन्होंने अपने साहस का प्रदर्शन किया है’.

गुजरात बीजेपी के एक दूसरे वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया है कि पटेल के बीजेपी में शामिल होने के लिए शीर्ष स्तर पर बातचीत की गई है, हालांकि ‘कुछ प्रदेश नेता उनके बीजेपी में शामिल किए जाने के पक्ष में नहीं हैं’.

लेकिन, नेता ने कहा: ‘(गुजरात बीजेपी प्रमुख) सीआर पाटिल ने पटेल के शामिल होने से मिलने वाले चुनावी फायदों को लेकर कुछ पॉज़िटिव इनपुट्स दिए हैं’.

पिछले सप्ताह गुजरात की बीजेपी सरकार ने पटेल तथा कुछ अन्य लोगों के खिलाफ पाटीदार आंदोलन से जुड़ा एक पुराना केस वापस ले लिया था.

उनके इस्तीफे के बारे में बात करते हुए एक गुजरात कांग्रेस नेता ने कहा कि हो सकता है कि ये स्थिति नरेश पटेल के पार्टी में शामिल होने की अटकलों से पैदा हुई हो. ‘हो सकता है कि उनका (पटेल का) कांग्रेस से मोहभंग पार्टी मामलात में उनकी गैर-भागीदारी का नतीजा हो लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने छोड़ने का फैसला तब लिया जब उन्हें लगा कि नरेश पटेल पार्टी में शामिल हो सकते हैं. उन्हें शायद लगा कि ऐसी सूरत में पाला बदलना एक बेहतर राजनीतिक विकल्प रहेगा’.


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भाजपा को हार्दिक की जरूरत

गुजरात बीजेपी को हार्दिक पटेल की जरूरत मुख्य रूप से नरेश पटेल की काट के लिए है, जो लेउवा पटेल समाज के एक प्रभावशाली व्यवसायी हैं. लेउवा पाटीदार की दो उप-जातियों में से एक है, दूसरी कदवा पटेल है.

पाटीदार या पटेल गुजरात में एक प्रभावशाली जाति हैं और गुजरात की करीब 6 करोड़ की आबादी में इनकी संख्या लगभग 1.5 करोड़ है. ऐसा माना जाता है कि 182 विधानसभा सीटों में से करीब 65-70 सीटों पर इनका प्रभाव है.

गुजरात ने कई पाटीदार सीएम देखे हैं, जिनमें चिमनभाई पटेल, केशुभाई पटेल, बाबूभाई पटेल और आनंदीबेन पटेल शामिल हैं. वर्तमान सीएम भूपेंद्र पटेल एक कदवा पटेल हैं और हार्दिक भी वही हैं.

पाटीदार आंदोलन से पहले तक पटेलों को बीजेपी के प्रति निष्ठावान माना जाता था और आंदोलन से पार्टी को एक बुरा झटका लगा था.

तत्कालीन सीएम आनंदीबेन पटेल को 2015 के आंदोलन को ठीक से न संभाल पाने के कारण पद से हटाना पड़ा था और 2017 के गुजरात चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन 1985 के बाद से सबसे खराब रहा था, जब उसे केवल 99 सीटें मिली थीं, जबकि 2012 में उसके पास 116 सीटें थीं.

कांग्रेस ने 77 सीटें जीतकर एक अच्छा प्रदर्शन किया था. सौराष्ट्र में, जो 1995 के बाद से बीजेपी का गढ़ रहा था, पार्टी का आंकड़ा 19 सीटों पर आ गया था जबकि कांग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं. माना जाता है कि मध्य गुजरात के अलावा हार्दिक का सौराष्ट्र में भी काफी असर है.

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पिछले साल पार्टी ने पाटीदार समुदाय को तसल्ली देने के लिए विजय रुपाणी को हटाकर उनकी जगह भूपेंद्र पटेल सीएम पद पर बिठा दिया था. लेकिन ऐसा माना जाता है कि सीएम का पटेल समुदाय में एक सीमित प्रभाव है.

बीजेपी के पास एकमात्र दूसरे बीजेपी नेता हैं पूर्व गुजरात डिप्टी सीएम नितिन पटेल लेकिन उनकी उम्र हो चुकी है और नए मंत्रिमंडल में उन्हें उपमुख्यमंत्री पद नहीं दिया गया था.

एक गुजरात बीजेपी नेता ने कहा, ‘हार्दिक युवा, ऊर्जावान और महत्वाकांक्षी हैं और नरेश पटेल के मजबूत प्रभाव वाले क्षेत्रों में उनकी काट के लिए हमें एक पाटीदार चेहरे की जरूरत है’.

नेता ने आगे कहा, ‘पिछले विधानसभा चुनावों में पाटीदार आंदोलन की वजह से पार्टी ने बहुत सारी सीटें गंवा दी थीं. फिलहाल ऐसा कोई आंदोलन नहीं है लेकिन नरेश के रसूख को देखते हुए हार्दिक हमारे लिए कीमती साबित होंगे’.

एक चौथे गुजरात बीजेपी नेता ने कहा, ‘अगर हार्दिक बीजेपी में शामिल हो जाते हैं तो उनके और पार्टी दोनों के लिए फायदे की स्थिति होगी’.

नेता ने आगे कहा, ‘हार्दिक केवल 28 वर्ष के हैं और उनके पास एक पूरा जीवन पड़ा है. उन्हें सौराष्ट्र या किसी दूरी पाटीदार सीट से मैदान में उतारकर बीजेपी को चुनावी फायदा होगा’.

बीजेपी के लिए दूसरी चुनौती है आप.

ऊपर हवाला दिए गए दूसरे गुजरात बीजेपी नेता ने कहा, ‘हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में सबसे बड़े आइकॉन हैं लेकिन बेरोजगारी और शिक्षा के मुद्दे उठाकर आप युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रही है. युवाओं के बीच हार्दिक की अच्छी पकड़ है. आप को बेअसर करने और युवा पाटीदारों का समर्थन फिर से जीतने में वो सहायक साबित हो सकते हैं, जो अन्यथा विरोधी-लहर के चलते आप के पाले में जा सकते हैं’.

लेकिन एक बीजेपी नेता ने, जो हार्दिक पटेल के पार्टी में शामिल होने को लेकर संशय में हैं, कहा, ‘युवा नेताओं के साथ सिर्फ ये दिक्कत होती है कि वो अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में उतावले होते हैं’.

नेता ने आगे कहा, ‘(नवजोत सिंह) सिद्धू और हार्दिक के बीच बहुत समानताएं हैं. दोनों भीड़ को आकर्षित करने वाले और महत्वाकांक्षी हैं लेकिन वो ये नहीं जानते कि कोई संगठन कैसे चलाया जाता है या अपनी बारी का इंतज़ार कैसे किया जाता है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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