scorecardresearch
Monday, 2 December, 2024
होममत-विमतफिलहाल ज्ञानवापी को भूलकर वाराणसी को 2006 के बमकांड मामले में तो इंसाफ दिलाइए

फिलहाल ज्ञानवापी को भूलकर वाराणसी को 2006 के बमकांड मामले में तो इंसाफ दिलाइए

इंडियन मुजाहिदीन के उन बम धमाकों की जांच का असली खामियाजा न्याय के सिद्धांत को भुगतना पड़ रहा है और यह उन बमों से ज्यादा घातक है.

Text Size:

चीथड़ी हुईं लाशें, शादी के लिए लाए गए बिखरे पड़े उपहार, जहां-तहां जमे पड़े खून के धब्बे, दहशत में भागे सैकड़ों भक्तों की लावारिस चप्पलें-जूते— होली के एक हफ्ते पहले वाराणसी के संकट मोचन मंदिर के आंगन में फटे अमोनियम नाइट्रेट और तेल से भरे प्रेसकूकर्स ने गलियों तक को इन्हीं अवशेषों के रंगों से रंग डाला था. इसके 15 मिनट बाद ही दो और बम रेलवे स्टेशन पर फटे. 21 लोग मारे गए और दर्जनों गंभीर रूप से घायल हो गए.

आज तमाम भारतीय लोग ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सदियों पुराने विवाद से उलझे हैं लेकिन अजीब बात है कि कुछ ही समय पहले हुए नरसंहार को लोग भूल चुके हैं. हालांकि कई राज्यों की पुलिस को लगता है कि उसे मालूम है कि 2006 के बसंत में उस दिन क्या हुआ था और उस कांड को अंजाम देने वालों में से कुछ लोग जेल में बंद भी हैं लेकिन उन पर मुकदमा चलाने की कोई पहल नहीं की जा रही है.

उस बमकांड के बाद देशभर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया था और पुलिस कुछ कार्रवाई करती दिखी थी. देवबंद के मशहूर मदरसे का छात्र और फूलपुर की एक मस्जिद का इमाम रहे स्थानीय निवासी मोहम्मद वलीउल्लाह को अपने पास एक असॉल्ट राइफल, हथगोले और प्लास्टिक विस्फोटक आदि रखने के कारण 10 साल कैद की सज़ा दे दी गई थी लेकिन उसे वास्तव में बमकांड के लिए सजा नहीं दी गई थी. उत्तर प्रदेश पुलिस ने आरोप लगाया था कि वलीउल्लाह ने तीन बांग्लादेशी आतंकवादियों को विस्फोटक और प्रेशर कूकर दिए थे. वे तीन बांग्लादेशी आतंकवादी कौन थे यह कभी पता नहीं लगाया गया.

इंडियन मुजाहिदीन ने 2005 में दिल्ली में बम धमाके किए थे और जुलाई 2011 में मुंबई के ट्रेनों में हमले किए थे. जिस तरह इन दोनों मामलों में सबूत मौजूद हैं कि पुलिस ने इनके लिए उन लोगों पर आरोप लगाए जिनका इनसे कोई संबंध नहीं था. वैसा ही वाराणसी के मामले में किया गया और इनमें जो नए सबूत सामने आए उसकी जांच करने से भी माना कर दिया गया.


यह भी पढ़ें : भारतीय सेना का बहुसंस्कृतिवाद हमेशा एक मुद्दा रहा है, सेना के इफ्तार ट्वीट पर विवाद क्यों एक चेतावनी है


चश्मदीद की बात

पूरी कहानी सादिक इसरार शेख नाम के शख्स पर टिकी है जिसे फांसी की सजा दी जानी है. वह उन 38 लोगों में शामिल है जिन्हें 2006 में अहमदाबाद में कई जगह बम धमाके करने के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई है. मुंबई की एक झोपड़पट्टी में रहने वाला शेख गुजरात पुलिस से पूरी बातचीत में यही कहता रहा कि वह ‘कम्युनिस्ट विचार का’ है. इस बातचीत को हालांकि वीडियो टेप किया गया है लेकिन इसे उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमे में सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. उसने यह भी कहा है कि ‘इसके अलावा बाबरी मस्जिद कांड का दर्द मेरे दिल में बैठ गया था.’

उसके एक रिश्तेदार मुजाहिद सलीम आज़मी ने, जो संगठित अपराध की दुनिया से जुड़ा था, उसका परिचय गिरोह के सरदार आसिफ रज़ा खान से करवाया था. फरवरी 2001 में शेख लश्कर-ए-तैय्यबा में ट्रेनिंग लेने के लिए पाकिस्तान गया और वापस लौटकर उसने उस जिहादी गिरोह को जन्म लेते और मजबूत होते देखा, जो बाद में इंडियन मुजाहिदीन के नाम से जाना गया.

‘दिप्रिंट’ के पास उपलब्ध दस्तावेज़ बताते हैं कि नवंबर 2005 में शेख ने छह किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट जैल नाम का विस्फोटक हासिल किया था. यह उसने बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को बताया. यह विस्फोटक इंडियन मुजाहिदीन के दक्षिण भारतीय नेटवर्क के भगोड़े चीफ रियाज़ शाहबन्द्री ने मुंबई भेजा था. इंडियन मुजाहिदीन का गुर्गा आबु रशीद अहमद ने इसे लिया और सरायमीर के निवासी शाहनवाज आलम की मार्फत आजमगढ़ भेज दिया.

शेख ने बताया कि देशी बम सरायमीर में इंडियन मुजाहिदीन द्वारा किराए पर लिए गए एक घर में बनाया गया. इसे पाकिस्तान में लश्कर से ट्रेनिंग पा चुके आरिफ बद्र नाम के गुर्गे ने साधारण घड़ी के टाइमर पर आधारित करके बनाया. ग्रुप के कमांडर आतिफ अमीन ने आरिज खान के साथ मिलकर इन प्रेशर कूकर बमों को संकट मोचन में लगाया. रेलवे स्टेशन में बम असद खान और मोहम्मद सर्वर आजमी आदि ने लगाए.

आंध्र प्रदेश पुलिस के आतंकवाद विरोधी जांचकर्ता भी इन्हीं निष्कर्षों पर पहुंचे. एक गोपनीय डॉसियार में पुलिस ने खबर दी कि इन हमलों का शुरुआती परीक्षण मार्च 2016 में किया गया था. इसमें कहा गया कि बम लगाने वाले उसी दिन सुबह बस से बनारस पहुंचे, बम लगाए और सरायमीर लौट गए.

जिन लोगों के नाम आए हैं उनमें से कुछ जीवित हैं. इंडियन मुजाहिदीन नेटवर्क का केंद्रीय कमांडर आतिफ अमीन दिल्ली पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. आखिरी बार इस्लामी स्टेट के प्रचार वीडियो में दिखा अबु रशीद अहमद के बारे में कहा जाता है कि वह सीरिया में मारा गया. शाहनवाज आलम के बारे में कहा जाता है कि वह मोसुल में घेराबंदी में मारा गया.

आरिज खान जेल में है और बटला हाउस कांड में शामिल होने के आरोप में मिली फांसी की सजा के खिलाफ अपील कर रहा है. असद खान के ऊपर इंडियन मुजाहिदीन के द्वारा किए गए हमलों से जुड़े होने के कारण आतंकवाद के मामले में मुकदमा चलाया जा रहा है. मोहम्मद सरवको जयपुर के एक बमकांड में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. जांच के लिए कई मामले पड़े हैं लेकिन क्या कोई उन्हें देखेगा?


यह भी पढ़ें : म्यांमार में ‘आपराधिक’ राज्य-व्यवस्था उभर रही है और चीन इसमें मदद कर रहा है


पुराने संदिग्ध

सच्चाई जानने के प्रति घोर उदासीनता ऐसे कई मामलों की खासियत है. पांच साल पहले एक अदालत ने मुंबई की लोकल ट्रेनों में बम धमाकों में शामिल कमाल शेख, फैसल अंसारी, एहतेशाम सिद्दीकी, नवीद खान, और आसिफ खान को फांसी की सज़ा सुनाई थी. सात दूसरे षडयंत्रकारियों को उम्रक़ैद की सजा और वाहिद शेख को बरी कर दिया था. वाराणसी वाले मामले की तरह साक्ष्य जिरह के लिए लंबे समय तक उपलब्ध थे कि जिन्हें अपराध के लिए सजा सुनाई गई है उन्होंने वास्तव में वह अपराध किया था या नहीं.

उदाहरण के लिए, शेख ने 20 नवंबर 2008 को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल को दिए एक बयान में कहा था कि उसने और आतिफ अमीन ने ‘बम बनाए जिन्हें 2006 में मुंबई की तीन लोकन ट्रेनों में रखा गया.’ इसी तरह, एनआईए को शेख ने यह बताया था कि विस्फोटक कैसे तैयार किए गए थे और उन्हें किसने लगाया था.

एनआईए ने एक अलग मुकदमे में कोर्ट में कहा भी था कि 7/11 के बम धमाकों में ‘इंडियन मुजाहिदीन के गुर्गे शामिल थे लेकिन केवल सादिक शेख, बड़ा साजिद (मोहम्मद साजिद का उपनाम), आतिफ़ अमीन, और अबू रशीद ही नहीं थे.’

कानून लागू करने वाले अधिकारियों ने 7/11 कांड की एटीएस जांच के मुख्य तत्वों पर सवाल पूछे हैं, यह भी कि जिस गोवंडी चॉल को उसने बम फैक्ट्री बताया है उसमें क्या इतनी जगह थी कि सात विस्फोटक यंत्र बनाए जा सकें.

पूर्व डीजीपी राकेश मारिया ने, जो तब मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा इंडियन मुजाहिदीन के हमलों की जांच का नेतृत्व कर रहे थे, लिखा है कि शेख के एक इकबालिया बयान में साफ किया गया है कि उसने 7/11 कांड में क्या भूमिका निभाई थी. दूसरा इकबालिया बयान उसके साथी आरिफ़ बदरुद्दीन शेख का लिया गया.

शेख को दोषी ठहराने वाला जो आरोप पत्र क्राइम ब्रांच ने विशेष जज वाई.डी. शिंदे के समक्ष पेश किया उसे एक दशक से जायदा समय से नहीं खोला गया है. अभियुक्तों की अपील लंबित है.

इसी तरह, 2005 में दिवाली से एक दिन पहले दिल्ली में हुए विस्फोटों के लिए तीन कश्मीरी लोगों पर आरोप लगाते हुए जो सबूत पेश किए गए उनकी भी अनदेखी की गई है. इन विस्फोटों की ज़िम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने ली है. आंध्र प्रदेश पुलिस का कहना है कि संदिग्धों ने पूछताछ में बताया कि दिल्ली में विस्फोट आतिफ़ अमीन ने किए लेकिन दिल्ली पुलिस ने कभी इसके आधार पर कार्रवाई नहीं की. नतीजतन, दो कश्मीरी बरी हो गए और एक को आतंकवाद में शामिल होने के आरोप में दोषी करार दिया गया लेकिन इसका संबंध उन विस्फोटों से नहीं था.

इतिहास से जुड़ी शिकायतों की तरह, यह निराशाजनक रिकॉर्ड बताता है कि आतंकवाद से जुड़े मामलों का वास्तव में हुई घटना से प्रायः संबंध नहीं होता. बल्कि आतंकवाद से जुड़े मामलों का राजनीतिक इस्तेमाल और उन्हें समुदायों पर दबाव डालने और सांप्रदायिक असंतोष को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इंसाफ करने में जाहिर नाकामी से साजिश की कहानियां बनती हैं. मुसलमानों और हिंदुओं में भी कड़ा आक्रोश पैदा होता है, जो इंडियन मुजाहिदीन के बमों से ज्यादा घातक साबित होता है.

इसलिए, वाराणसी बमकांड की जांच का असली खामियाजा इंसाफ के सिद्धांत को भुगतना पड़ा है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक दिप्रिंट के नेशनल सिक्योरिटी एडिटर हैं. वह @praveenswami पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)


यह भी पढ़ें : परिसीमन दिखाता है कि कश्मीर चुनौती के सामने भारतीय लोकतंत्र कैसे संघर्ष कर रहा है


share & View comments