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Friday, 3 May, 2024
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सिर्फ एक BJP विधायक ही नहीं, ‘लालू यादव ने सुशील मोदी को भी NDA से तोड़ने की कोशिश की’

सुशील मोदी के क़रीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि लालू बीजेपी के साथ वही करने की कोशिश कर रहे थे, जो बीजेपी ने कांग्रेस के साथ मध्य प्रदेश में किया और राजस्थान में भी करने की कोशिश की.

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पटना: बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने आरोप लगाया है कि विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद ने, नीतीश कुमार की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के एक विधायक को, मंत्री पद के वादे से लुभाने की कोशिश की. लेकिन, दिप्रिंट को पता चला है, कि बीजेपी द्वारा ‘किनारे’ कर दिए जाने के बाद, लालू ने ख़ुद सुशील कुमार मोदी को पाला बदलकर, आरजेडी में आने की पेशकश की थी.

मोदी के क़रीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि लालू बीजेपी के साथ वही करने की कोशिश कर रहे थे, जो बीजेपी ने कांग्रेस के साथ मध्य प्रदेश में किया और राजस्थान में भी करने की कोशिश की- ऐसे सबसे क़द्दावर नेता का समर्थन लेना, जिसे ज़ाहिरी तौर पर किनारे कर दिया गया हो. लेकिन, सूत्रों के मुताबिक़, मोदी ने लालू की पेशकश ठुकरा दी.

मोदी ने ख़ुद मंगलवार को ट्वीट करते हुए, इस ओर इशारा किया: ‘लालू यादव रांची से एनडीए विधायकों को फोन कॉल (8051216302) करके, मंत्री पद की पेशकश कर रहे हैं. जब मैंने फोन किया तो सीधे लालू ने उठाया. मैंने कहा जेल के अंदर से ये गंदी हरकतें मत कीजिए, आप सफल नहीं होंगे’.

‘बातचीत’

मोदी के ट्वीट्स और स्थानीय मीडिया की ख़बरों में आरोप लगाया गया, कि पहली बार के बीजेपी विधायक ललन पासवान ने, उनसे संपर्क करके बताया कि लालू ने, जो फिलहाल रांची में न्यायिक हिरासत में हैं, उनसे कहा कि वो बुद्धवार को होने वाले, विधान सभा स्पीकर के चुनाव में वोटिंग से ग़ैर-हाज़िर रहें, जिसमें बीजेपी के विजय सिन्हा 126-114 के अंतर से विजयी रहे.

लालू चारा घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जेल भेजे गए हैं, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से आरआईआईएमएस रांची में भर्ती थे. लेकिन बिहार विधान सभा चुनावों से कुछ पहले ही, आरजेडी के सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाली झारखंड सरकार ने, ज़ाहिरी तौर पर कोविड-19 के संपर्क में आने के डर से, उन्हें आरआईआईएमएस डायरेक्टर के ब्रिटिश ज़माने के बंगले, केली हाउस में शिफ्ट कर दिया.

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मोदी के एक क़रीबी सहायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘सुशील मोदी ने ललन पासवान से वो मांगा, जिससे उन्हें फोन आया था, और फिर अपनी लैण्डलाइन से वो नंबर डायल किया. लालू ने ख़ुद वो फोन उठाया’.

सूत्रों का कहना है कि लालू और मोदी के बीच बातचीत कुछ इस तरह रही:

लालू: ‘तुम्हारी पार्टी ने तुम्हें छोड़ दिया है’.

मोदी: ‘आप और हम दोनों ही सियासत में छोड़ दिए गए हैं’.

लालू: ‘इधर आ जाओ’.

मोदी (इशारा करते हुए कि लालू ने ऐसा ऑफर पहली बार नहीं दिया है) : ‘मैंने तब भी नहीं किया था, और अब भी ऐसा नहीं करूंगा’.

सूत्रों ने बताया कि मोदी ने फिर लालू से कहा, कि एनडीए को तोड़कर नीतीश कुमार की नई सरकार को अस्थिर करने की कोशिश बद कर दें, जिसके जवाब में आरजेडी सुप्रीमो ने कथित रूप से कहा ‘अरे तुम्हारा पार्टी अभी टूटेगा नहीं’ और फोन काट दिया.

आरजेडी ने इन आरोपों को मनगढ़ंत क़रार दिया है.

आरजेडी महासचिव और विधायक आलोक मेहता ने कहा, ‘अकेले पटना में एक दर्जन से अधिक लोग हैं, जो लालू जी की आवाज़ की नक़ल करते हैं. किसी ने शायद बीजेपी विधायक को छलने की कोशिश की’.


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मेहता ने कहा, ‘बीजेपी नेतृत्व ने सुशील मोदी जी को किनारे कर दिया है, और अब वो वापस पार्टी की निगाहों में आना चाहते हैं, ताकि उन्हें केंद्रीय मंत्री बना दिया जाए. वो ख़ुद को बिहार में एनडीए सरकार के रक्षक के रूप में दिखा रहे हैं. आरजेडी, एनडीए विधायकों का समर्थन लेने की कोशिश नहीं कर रही’.

लेकिन, दूसरे प्रमुख बीजेपी नेताओं ने भी, कथित रूप से विधायकों को पार्टी बदलने के लिए फुसलाने की कोशिश करने के लिए, लालू को निशाने पर लिया है.

बिहार के दो मुख्यमंत्रियों में से एक रेणु देवी ने कहा, ‘किसी व्यक्ति का चरित्र और उसके दस्तख़त कभी बदलते नहीं हैं. अपने अच्छे दिनों में लालू जी ने अपनी सरकार को स्थिर करने के लिए, असैम्बली में हर सियासी पार्टी को तोड़ा था’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम झारखंड की अदालतों में केस करेंगे, कि न्यायिक हिरासत में रहते हुए, लालू को ये सब कैसे करने दिया जा रहा है’.

सहयोगी और लंबे समय से विरोधी

लालू प्रसाद यादव और सुशील कुमार मोदी के आपसी रिश्ते, पांच दशक पहले 1974 तक जाते हैं, जब आरएसएस की छात्र विंग एबीवीपी, और समाजवादी छात्र संगठनों ने आपस में हाथ मिला लिया था. लालू पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष बन गए, जबकि मोदी इसके महासचिव बने, और यूनिवर्सिटी इंदिरा गांधी और कांग्रेस के ख़िलाफ, जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में आंदोलन का एक बड़ा केंद्र बन गई.

लालू और मोदी ने इमर्जेंसी के दौरान, तक़रीबन 19 महीने एक साथ जेल में बिताए.

उनके रास्ते 1990 में एक बार फिर टकराए, जब लालू सीएम बने और मोदी पहली बार एक बीजेपी विधायक बने. कई सार्वजनिक बैठकों में लालू ने ऐलान किया कि मोदी ‘अपना आदमी’ है, और इशारा किया कि वो मोदी के पाला बदलकर, उनके साथ आने के खिलाफ नहीं थे. उसकी बजाय, मोदी लालू-विरोध गतिविधियों का एक केंद्र बन गए.

सुशील मोदी चारा घोटाले से जुड़ी पीआईएल के याचिकाकर्ताओं में से एक थे, जिसके लिए लालू अभी जेल में हैं. फिर सदन में नेता प्रतिपक्ष के नाते, उन्होंने लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी की सरकारों के प्रदर्शन पर, ज़ोरदार हमला करना शुरू कर दिया. आरजेडी के सत्ता गंवाने के बाद, 2005 में जब जेडी(यू)-बीजेपी सत्ता में आ गई, और नीतीश कुमार सीएम तथा मोदी उनके डिप्टी बन गए, उसके बाद भी मोदी ये हमले करते रहे,

2017 में, लालू और उनके परिवार की कथित अवैध संपत्ति के बारे में, मोदी की सिलसिलेवार प्रेस वार्ताओं के बाद जेडी(यू)-आरजेडी-कांग्रेस महागठबंधन की सरकार गिर गई, और बीजेपी के साझीदार के तौर पर, नीतीश एनडीए में वापस आ गए.

किनारे हुए हैं, बाहर नहीं

इसी महीने हुए विधान सभा चुनावों में, बीजेपी ने तय किया कि सुशील मोदी अब उप-मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, जिससे ऐसा लगा कि उन्हें किनारे कर दिया गया है. लेकिन फिर उन्हें राज्य विधान परिषद की आचार समिति का अध्यक्ष बना दिया गया, और उन्हें एक दफ्तर आवंटित किया गया है.

दो डिप्टी सीएम, तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी, तथा नए स्पीकर विजय सिन्हा, उन्हीं के ख़ेमे से हैं.

सोमवार को, जब विधायकों ने शपथ ली, तो बीजेपी के 74 में क़रीब 50 विधायक, मोदी के दफ्तर में उनसे आशीर्वाद लेने गए.

एक वरिष्ठ बीजेपी विधायक ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘शायद लालू ने सोचा होगा, कि चूंकि मौजूदा विधायकों में सुशील मोदी के काफी समर्थक हैं, इसलिए पेशकश करने के लिए, वो एक सही लक्ष्य होंगे.

विधायक ने आगे कहा, ‘लेकिन लालू एक चीज़ भूल गए- सुशील मोदी एक ‘परिवर्तित’ बीजेपी नेता नहीं हैं. उन्होंने एक आरएसएस शाखा से शुरूआत की, उसके प्रचारक बने, और एबीवीपी के साथ अपना राजनीति सफर शुरू किया. बहुत से मुद्दों पर वो बहुत से उदारवादियों से ज़्यादा उदार दिख सकते हैं, लेकिन आरएसएस के दर्शन में, उनकी जड़ें अंदर तक गईं हुईं हैं’.

लीडर ने ये भी कहा, ‘मुझे 2013 की वो शाम याद है, जब नीतीश कुमार का बीजेपी से अलग होना तय दिख रहा था…ऐसी अफवाहें थीं कि सुशील मोदी नीतीश के पास जेडी(यू) में चले जाएंगे, चूंकि वो दोनों बहुत क़रीब हैं. लेकिन मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा, कि किसी को ग़लतफहमी में नहीं रहना चाहिए- वो चाहेंगे कि मरने के बाद उनका शरीर, भगवा झंडे में लिपटा हुआ हो. लालू जी ने शायद ग़लत निशाना चुन लिया’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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