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Tuesday, 30 April, 2024
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बेटे वरुण को लोकसभा टिकट नहीं दिया जाना ‘ठीक नहीं’ — ‘वे एक बहुत अच्छे सांसद थे’ : मेनका गांधी

वर्तमान में सबसे लंबे समय तक सांसद रहीं मेनका, जो इस बार सुल्तानपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी, ने यह भी कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि इस बार कई भाजपा सांसदों को टिकट क्यों नहीं दिए गए.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद मेनका गांधी ने कहा कि उनके बेटे वरुण गांधी को उनके निर्वाचन क्षेत्र पीलीभीत से लोकसभा टिकट देने से इनकार किया जा रहा है, यह “ठीक नहीं” है.

दिप्रिंट को दिए एक विशेष इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मुद्दों और अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिहाज से वे बहुत अच्छे सांसद थे, लेकिन मुझे यकीन है कि भविष्य में क्या होगा, वो जो कुछ भी करेंगे, वो उनके लिए अच्छा होगा, यह भारत के लिए अच्छा होगा.”

कांग्रेस द्वारा अभी तक अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवारों की घोषणा नहीं करने के सवाल पर मेनका ने कहा, “उन्हें वहां उम्मीदवार रखना चाहिए था.”

मेनका गांधी वर्तमान में सबसे लंबे समय तक सांसद रहीं हैं और इस साल उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से वे अपना 10वां लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही हैं. उन्होंने अब तक नौ चुनाव लड़े हैं, उनमें से आठ बार उन्होंने जीत हासिल की है.

यह पूछे जाने पर कि क्या वे मोदी के लिए जनादेश मांग रही हैं या भारत के लिए उन्होंने कहा, “मैं भारत के लिए जनादेश मांग रही हूं.”

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उन्होंने कहा, “यह हर चीज़ का एक मिश्रण है — मोदी, पार्टी, मैं. इसे सफल बनाने के लिए इसमें हर चीज़ का संयोजन होना चाहिए.”

मेनका ने दिप्रिंट को आगे बताया कि उन्हें इस बारे में “जानकारी नहीं” कि इस बार पार्टी के कई सांसदों को टिकट क्यों नहीं दिए गए. हालांकि, वे फैसले लेने की क्षमता के करीब भी नहीं थीं. उन्होंने कहा, “अगर मानदंड संसद के सदस्य थे जिन्होंने काम नहीं किया…लेकिन यह वास्तव में कोई मानदंड नहीं था.”

अपने राजनीतिक करियर पर नज़र डालते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें कोई पछतावा नहीं है. मेनका ने कहा, “शायद मैं चीज़ों को बेहतर तरीके से कर सकती थी, लेकिन जब भी मैं स्थिति को सुधारने के लिए जो कुछ भी कर सकती हूं, उसे करने में मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी.”


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‘लोगों को मुझ पर भरोसा है’

मेनका ने दिप्रिंट को बताया कि कोई भी चुनाव कभी भी पार्क में टहलने जैसा नहीं होता है, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि वे “कभी भी चुनावी मोड से बाहर नहीं रहती हैं”.

उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान वे जिन मुद्दों पर फोकस करती हैं, वे दो तरह के होते हैं. उन्होंने कहा, पहला लोगों की बड़ी ज़रूरतें, जैसे अधिक सड़कें, बाईपास, ट्रेन. उन्होंने कहा, दूसरा मुद्दा उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान है. गांधी ने कहा कि दूसरा मुद्दा उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण है.

मेनका ने कहा, “हज़ारों लोग मेरे पास आते हैं. किसी की ज़मीन पर पड़ोसी ने कब्ज़ा कर लिया है, कोई बीमार है और नहीं जानता कि क्या करें…वे छोटे, व्यक्तिगत मुद्दे लेकर आते हैं. वे उन्हें हल करने के लिए मुझ पर भरोसा करते हैं और मैं उन पर भरोसा करती हूं.”

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान मेनका महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की प्रभारी थीं, लेकिन दूसरे कार्यकाल में उन्हें बाहर रखा गया. हालांकि, उनका कहना है कि उनके लिए हल्के या भारी पोर्टफोलियो जैसी कोई चीज़ नहीं है. गांधी ने कहा, “मैं जो कुछ भी कर सकती हूं और अगर मैं मंत्री नहीं भी हूं, तो भी मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगी, जो कुछ भी मैं कर सकती हूं. इससे मुझे उन चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक समय मिलता है जो मेरे दिल के सबसे करीब हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “हल्का पोर्टफोलियो एक भारी पोर्टफोलियो बन गया और यह एकमात्र ऐसी चीज़ थी जिसने भारत को इस अर्थ में बदल दिया कि ‘बेटी बचाओ’ ने काम किया, इसलिए अब लोग लड़कियों से छुटकारा नहीं पाते. इसलिए मुझे उस बदलाव पर बहुत गर्व है.”

धारा 377 को लेकर अमित शाह से मुलाकात की

नई भारतीय न्याय संहिता में पाशविकता/वहशीता को दंडित करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के समान कोई प्रावधान नहीं होने पर उन्होंने कहा कि वे इससे “भ्रमित” थीं और इस बारे में गृह मंत्री अमित शाह से मिलने गईं.

‘आवारा कुत्तों के खतरे’ के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि किसी को भी ‘खतरा’ शब्द से निजात मिलनी चाहिए.

मेनका ने कहा, “केवल एक ही खतरा है, वो है मानवीय खतरा है, जो किसी की भी ज़िंदगी को खतरे में डालता है, लेकिन आवारा कुत्तों की जो समस्या उभर रही है उसे पैसे लगाकर बहुत आसानी से हल किया जा सकता है.”

उन्होंने आगे कहा: “नसबंदी के लिए कोई संस्था नहीं है…जो नगर पालिकाएं ऐसा करना चाहती हैं वे अवैध एनजीओ को पकड़ लेती हैं जिन्हें कुछ भी पता नहीं होता है. वे कुत्तों को उठाते हैं, उनकी नसबंदी करते हैं, उन्हें कहीं और फेंक देते हैं, इसलिए काटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं…नसबंदी कार्यक्रम संभवतः भारत में सबसे खराब चलने वाला कार्यक्रम है क्योंकि पैसा नहीं है. सरकार इसमें शून्य पैसा डालती है.”

सांसद ने कहा, “जितनी अधिक अवैध नसबंदी होती है, काटने की स्थिति उतनी ही बदतर होती जाती है, लेकिन अगर सरकार इसे व्यवस्थित, बुद्धिमान तरीके से तीन साल के भीतर करे, तो हम पूरे मुद्दे को नियंत्रित कर लेंगे.”

(इस इंटरव्यू को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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