डायमंड हार्बर: पश्चिम बंगाल का दक्षिण 24 परगना जिला, जिसे सूरजमुखी का देश भी कहा जा सकता है, यहां के खेत इस चुनावी मौसम में पीले-पीले फूलों से लहलहा रहे हैं. लेकिन खिले हुए फूल इस तथ्य को छिपा नहीं सकते कि यह जिला राज्य में सबसे ज्यादा राजनीतिक हिंसा का शिकार रहा है. स्थानीय निवासी जैसे-जैसे बंगाल विधानसभा में वोटिंग के लिए तैयार हो रहे हैं उन्हें इसी बात का सबसे ज्यादा डर लग रहा है.
बंगाल की राजनीति में हत्या, मारपीट, आगजनी और तोड़फोड़ जैसी राजनीतिक हिंसा लंबे समय से रही है, लेकिन दक्षिण 24 परगना में यह साल 2018 के पंचायत चुनावों के बाद से देखने को मिल रही है.
दिप्रिंट को मिली केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास पुलिस द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण 24 परगना में वर्ष 2019 में राजनीतिक हिंसा की 178 घटनाएं, 2019 में 157, जनवरी और अगस्त 2020 के बीच 78 और जब इस साल विधानसभा चुनाव कैंपेन तेज़ी पकड़ रहा था तब 27 फरवरी से 30 मार्च के बीच 22 हिंसा की घटनाएं देखी गईं.ये संख्या बंगाल के अन्य सभी जिलों की तुलना में इसी समयावधि में सबसे ज्यादा हैं.
दिप्रिंट ने इस जिले के डायमंड हार्बर, कुल्पी, काकद्वीप और पथरप्रतिमा इलाकों की यात्रा की ताकि यह पता किया जा सके कि हिंसा का यह इतिहास मौजूदा अभियान को कैसे आकार दे रहा है और क्या ममता बनर्जी की टीएमसी यहां अपनी 31 विधानसभा सीटों पर अपनी मज़बूत पकड़ बनाए रख पाएंगी.
तृणमूल का अभेद्य दुर्ग
दक्षिण 24 परगना में चार लोकसभा और 31 विधानसभा सीटें हैं. इन विधानसभा क्षेत्रों में से 18 मुख्य रूप से ग्रामीण हैं, जबकि अन्य 13 शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों का मिश्रण है. कम से कम 17 निर्वाचन क्षेत्रों में 30 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है, जिनमें से कम से कम सात में 45 प्रतिशत से अधिक मुसलमान हैं.
यह जिला 2009 लोकसभा चुनाव के बाद से तृणमूल कांग्रेस का गढ़ रहा है, जो कि दक्षिण बंगाल पर ममता बनर्जी के कथित एकाधिकार का कारण है.
इस बार दक्षिण 24 परगना में क्रमश 1, 6 और 10 अप्रैल को दूसरे, तीसरे और चौथे चरण की वोटिंग हो रही है, जिसमें ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी के संसदीय क्षेत्र डायमंड हार्बर में तीसरे चरण में मतदान होगा.
दक्षिण 24 परगना जिले के एक गांव में पेड़ों पर तृणमूल कांग्रएस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के झंडे बंधे हुए । फोटोः मधुपर्णा दास । दिप्रिंट
तृणमूल कांग्रेस का दबदबा इस जिले में 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद से कायम हुआ जब उसने पहली बार 1977 से सत्ता पर काबिज़ वाममोर्चा सरकार को हराया. इसके बाद से ममता बनर्जी की पार्टी ने अपनी स्थिति इतनी मजबूत कर ली है कि कई स्थानीय निवासियों का कहना है कि यहां कोई विपक्ष नहीं है.
भाजपा ने 2018 के पंचायत चुनाव के बाद से ही अपनी उपस्थिति यहां बढ़ाने के लिए पुरजोर प्रयास किए हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 में से आश्चर्यजनक 18 सीटें जीतने के बावजूद भी वह दक्षिण 24 परगना की 31 में से एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत सकी.
पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग के अनुसार, 2018 के पंचायत चुनाव में टीएमसी ने डायमंड हार्बर 1 और डायमंड हार्बर 2 में क्रमशः 22 और 24 पंचायत समिति सीटें जीतीं, जबकि काकद्वीप, कुल्पी और पथरप्रतिमा में करीब 50 फीसदी सीटें निर्विरोध रह गईं.
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ग्रामीणों ने ‘वर्षों में मतदान नहीं किया है, अम्फान राहत से भी वंचित रहे’
तृणमूल के वोटर होने का दावा करने वाले इन इलाकों के कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें वर्षों से यहां अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करने दिया गया.
उन्होंने कहा, ‘मैं 20 साल से तृणमूल का कार्यकर्ता हूं. लेकिन अब मैं भाजपा में शामिल हो गया हूं. हमने सरकारी योजनाओं के माध्यम से मिलने वाले पैसे में कट देने सहित सब कुछ बर्दाश्त किया. 2018 में हमने काफी हिंसा देखी.’ काकद्वीप में 55 वर्षीय प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक रंजीत कुमार बंश ने कहा, ‘तृणमूल के मतदाता होने के बावजूद हमें मतदान करने की अनुमति नहीं थी.’
ज्यादातर ग्रामीण लगातार मारपीट व हिंसा के डर के बारे में बात करते हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ ‘कट मनी’ सिंडिकेट्स और ‘टर्फ वॉर’ के आरोप भी लगाते हैं. कुछ का यह भी आरोप है कि पिछले साल कोविड-19 महामारी के बीच जब अम्फान चक्रवात से उनका गांव प्रभावित हुआ उस वक्त भी सरकार की ओर से उन्हें वित्तीय सहायता नहीं दी गई.
सुंदरवन से निकटता और बंगाल की खाड़ी के साथ गंगा/हुगली नदियों के संगम पर बसा होने के कारण काकद्वीप, पथरप्रतिमा और डायमंड हार्बर अम्फान से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र थे.
काकद्वीप के प्रतापादित्य ग्राम पंचायत क्षेत्र में एक मछुआरे जयंता नायक ने बताया कि उनके घर पर स्थानीय तृणमूल नेताओं ने कब्जा कर लिया और उन्हें वहां से हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने अम्फान तूफान आने के बाद सरकार की वित्तीय सहायता के वितरण में भ्रष्टाचार का विरोध किया था.
उन्होंने कहा, ‘मेरा परिवार अब हमारे रिश्तेदार के घर पर रहता है. जिस दिन मैं शिकायत दर्ज कराने के लिए पंचायत में गया, उसी दिन गुंडों ने आकर मुझे अपने घर से बाहर निकाल दिया.’
नायक ने आगे कहा, ‘मैं दीदी के साथ दशकों से रहा हूं, लेकिन पहले तो अम्फान में मेरा घर बुरी तरह से बर्बाद हो गया और अब एक साल हो गया है में खुद ही अपने घर में घुसने को नहीं पा रहा हूं.’
हालांकि, इस तरह का गुस्सा टीएमसी की संभावनाओं को पूरी तरह से खत्म नहीं करता है. कुल्पी के हरिचंदा गांव की एक महिला बिश्वेश्वरी तांती, जिसके पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा है, जहां वह सूरजमुखी उगाती है, ने नायक की बातों जैसी ही बातें कहीं, लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि वे ममता को साथ नहीं छोडेंगी.
ममता बनर्जी की समर्थक, बिश्वेश्वरी तांती, दक्षिण परगना जिले के कुल्पी में अपने सूरजमुखी के खेतों में खड़ी हुई
उन्होंने कहा, ‘हम दीदी के अलावा किसी और को कभी नहीं जानते थे. लेकिन देखो उन्होंने हमारे साथ क्या किया है. मैं आपको बता दूं कि मैंने पिछले 10 साल में मतदान नहीं किया है. मैं कभी भी सीपीएम के साथ नहीं थीं और न ही भाजपा में शामिल हुई. मैं अभी भी तृणमूल समर्थक हूं.’
पथरप्रतिमा क्षेत्र के अंदर मधेब गंज में एक छोटी सी दुकान चलाने वाले प्रबीर जना ने कहा कि इस क्षेत्र में भाजपा का कोई नामों-निशान नहीं है और मतदाता अभी भी तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमें पूरी अम्फान सहायता राशि नहीं मिली और हमने अपनी नकदी योजनाओं में से भी कट दिया है, लेकिन हमारे क्षेत्र में सिर्फ तृणमूल कांग्रेस है. हमें उनके साथ रहना होगा.’
तृणमूल का दावा ‘अतिशयोक्ति’
दिप्रिंट द्वारा ऐक्सेस किए गए भाजपा की एक आंतरिक रिपोर्ट में दावा किया गया कि दिसंबर 2018 और अप्रैल 2020 के बीच दक्षिण 24 परगना में उसके कम से नौ कार्यकर्ता और स्थानीय नेता मारे गए. लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने इसे ‘अतिशयोक्ति’ बताया. हालांकि, ये दावे पुलिस की रिपोर्ट में भी नहीं दिखे और न ही स्वतंत्र रूप से वेरिफाई किए जा सके.
तृणमूल के युवा अध्यक्ष और अभिषेक बनर्जी के करीबी सहयोगी सौकत मोलाह ने कहा, ‘पिछले पांच साल में कुछ छिट-पुट घटनाओं को छोड़कर इलाके में बड़ी हिंसा की कोई घटना नहीं हुई है. हम यहां कम से 28 सीटें जीतेंगे और अन्य क्षेत्रों में भी जो समस्याएं हैं, हम उनका समाधान कर रहे हैं.’
मोलाह ने कहा, ‘अभिषेक इस क्षेत्र में पांच से अधिक रैलियां संबोधित कर चुके हैं और इससे भी अधिक रैली करने की योजना है. जबकि सीएम खुद 3 अप्रैल के बाद क्षेत्र में चुनाव प्रचार शुरू करेंगी. उन्होंने यह भी बताया कि 30 मार्च को डायमंड हार्बर में केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह की एक पूर्व-निर्धारित रैली रद्द कर दी गई थी. अब पीएम मोदी 1 अप्रैल के बाद इक्की-दुक्की रैलियां कर सकते हैं.’
ग्रामीणों द्वारा लगाए गए ‘कट मनी’ और अम्फान राहत न मिलने इत्यादि के आरोपों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मोलाह ने कहा, ‘ये छिट-पुट घटनाएं हैं. कुछ पंचायत सदस्यों ने ग्रामीणों से पैसे लेने का प्रयास किया. लेकिन दीदी ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की है. विपक्ष को यहां कोई पैठ बनाने का कोई मौका नहीं मिलेगा.’
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चैलेंजर और इसकी अपनी समस्याएं
एक तरफ जहां बीजेपी जिले में टीएमसी को कड़ी टक्कर देने की उम्मीद कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उसे अपनी ही कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें सबसे बड़ी समस्या गुटबाजी की है. इसके सात उम्मीदवार चुनाव से कुछ महीने पहले तृणमूल से शामिल हुए नेता हैं. इनमें मौजूदा टीएमसी विधायक दीपक हल्दर भी हैं, जो अब डायमंड हार्बर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार हैं. फाल्टा, सतगछिया और माथुरपुर में प्रत्याशियों के चुनाव को लेकर स्थानीय भाजपा नेता शिकायत कर रहे हैं.
नाम न बताए जाने की शर्त पर एक जिला बीजेपी नेता ने कहा, ‘हमें जिले के कम से 20 निर्वाचन क्षेत्रों में बढ़त हासिल होती, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा उम्मीदवारों के चयन ने हमारी संभावनाओं को कम कर दिया है. अब हमें केवल सात-आठ सीटों पर ही जीत मिल सकती है.
नेता ने कहा, ‘पार्टी ने बाबू मास्टर (एक स्थानीय बाहुबली जो हत्या, हत्या और अपहरण के प्रयास सहित कई अपराधिक मामलों का आरोपी है, लेकिन कभी दोषी नहीं पाया गया) जैसे कुछ असामाजिक तत्वों को शामिल किया, जिनसे हमने इतने वर्षों तक संघर्ष किया. उसने हमारे आदमियों को मार डाला और घायल कर दिया. वही आदमी अब अपने साथ 11 सुरक्षा गार्डों के साथ चलता है. हम इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं?’
हालांकि दक्षिण 24 परगना में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व जिलाध्यक्ष अभिजीत दास ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पालन करना होगा क्योंकि पार्टी एक योजना के अनुसार चलती है.
दास ने कहा, ‘हमने कुछ फैसलों का विरोध किया था. लेकिन अब हमें मिलकर काम करना होगा. लोगों में भय का भाव है. वे चुनाव के बाद की हिंसा के बारे में आशंका जता रहे हैं. हम उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं. केंद्रीय बल भी यहां पर लोगों में विश्वास-बहाली में लगे हुए हैं.
चुनाव आयोग ने दूसरे चरण के चुनाव वाले दिन चार निर्वाचन क्षेत्रों-काकद्वीप, पथरप्रतिमा, गोसबा और सागर में केंद्रीय बलों की 70 कंपनियों (2 हजार से अधिक कर्मियों) को तैनात किया है.
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