scorecardresearch
Sunday, 5 May, 2024
होमराजनीतिनया चुनाव, पुरानी अदावत : आज़म खान और बेटे ने रामपुर और स्वार के चुनाव को ‘जनता बनाम नवाब’ बनाया

नया चुनाव, पुरानी अदावत : आज़म खान और बेटे ने रामपुर और स्वार के चुनाव को ‘जनता बनाम नवाब’ बनाया

रामपुर के आज़म खान और आज़म खान खानदान और पुराने नवाब परिवार की राजनीतिक दुश्मनी दशकों से चली आ रही है. इस बार आज़म के बेटे अब्दुल्ला और नावेद के बेटे हैदर भी चुनाव मैदान में उतरे हैं.

Text Size:

रामपुर, उत्तर प्रदेशः दोपहर के 1 बजे हैं और नूर महल के परिसर में काफी चहल-पहल है. नूर महल के उत्तराधिकारी काज़िम अली खान के 30 वर्षीय बेटे हैदर अली खान का चुनाव कार्यालय है. हैदर, रामपुर के आखिरी नवाब सैयद रज़ा खान के नाती हैं.

उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में रामपुर के पुराने नवाब खानदान और वहीं के दूसरे नवाब यानि ताकतवर आज़म खान फिर आमने-सामने हैं. काज़िम जिन्हें नावेद मियां के नाम से भी जानते हैं, इस बार आज़म खान के विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं उनके बेटे हैदर जो हमज़ा मियां के नाम से मशहूर हैं, आज़म के बेटे अब्दुल्ला के खिलाफ स्वार से सीट से चुनाव मैदान में हैं.

आज़म खान रामपुर के वर्तमान विधायक हैं और अपने विरोधी के लिए एक मजबूत उम्मीदवार माने जाते हैं. उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा नेता माना जाता है, वे रामपुर के 9 बार विधायक रह चुके हैं औऱ समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का काफी करीबी माना जाता रहा है. वे सपा सरकार के दौरान 2012-2017 में सबसे ताकतवर मंत्री के रूप में जाने जाते थे. लेकिन आज़म खान इस समय 80 से अधिक मामलों में जेल में बंद हैं और उन पर जमीन हथियाने से लेकर बकरी चोरी तक के आरोप हैं.

नावेद मियां स्वार सीट से वर्ष 2002 से अब तक पांच बार विधायक रह चुके हैं. भाजपा को छोड़ वे हर पार्टियों से- बसपा, सपा और कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके हैं. वर्ष 2012 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जबकि 2017 में वे बसपा के उम्मीदवार थे. इस बार वे कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि हम़ज़ा मियां भाजपा के सहयोगी दल अपना दल से चुनाव मैदान में इस उम्मीद से हैं कि शायद कुछ हिंदू वोट पा जाएं.

रामपुर और स्वार दोनों जगह बड़ा चुनावी घमासान होता दिख रहा है. यहां चुनाव 14 फरवरी को होने हैं और इलाके के लोग सांस बांधे उम्मीद लगाए बैठे हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

दो चुनाव अभियानों की कथा

नूर महल में सभी नावेद मियां का इंतजार कर रहे हैं जिन्हें चुनाव प्रचार के लिए नजदीकी डिग्री कालेज में जाना है. लेकिन पहले उन्हें एक छोटे कानूनी मामले पर अपने कानूनी सलाहकार मज़हर मियां से सलाह करनी है.

जैसे ही मज़हर मियां आते हैं, नावेद मियां उनसे पूछते हैं कि ‘क्या उन्होंने अपना विरोध, सर्कल आफिसर के कार्यालय में दर्ज करा दिया है.’ नावेद मियां कहते हैं कि ‘सारे दस्तावेज़ अधिकारी को सौंप दिए गए हैं ताकि अब्दुल्ला का नामांकन निरस्त हो सके. अगर वे चुनाव जीत भी जाते हैं तब भी हम लोग उसे पिछली बार की तरह कोर्ट में चुनौती देंगे.’

पिछली बार 2017 में नावेद मियां, अब्दुल्ला से सुवार में चुनाव हार गए थे. लेकिन कानूनी लड़ाई में उन्हें हरा दिया था. अब्दुल्ला की विधानसभा सदस्यता को 2019 में कोर्ट ने अपने नामांकन में फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करने के कारण रद्द कर दिया था, यह मुकदमा नावेद मियां ने दाखिल किया था. अब्दुल्ला को दो साल जालसाजी के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ी थी. वे अभी जनवरी महीने में जेल से बाहर आए हैं.

नावेद मियां रामपुर विधानसभा का दौरा करते हुए। फोटोः शंकर अर्निमेष। दिप्रिंट

नावेद मियां डिग्री कालेज में जिंदाबाद के नारों के बीच अपने भाषण की शुरूआत डिग्री कालेज में करते हैं. नवाबी अंदाज़ में वे आज़म खान के परिवार पर हमला बोलते हुए कहते हैं कि ‘हमारी लड़ाई उन लोगों से है जिन्होंने गरीबों की जमीनें हड़पते हुए महल और विश्वविद्यालय बनवाए और आज आतंकवाद के पर्याय बन चुके हैं. लेकिन हमें धार्मिक सौहार्द बनाए रखना है और किसी के प्रभाव का शिकार नहीं होना है.’

लगभग 10-15 मिनट का भाषण खत्म करने के बाद वे लोगों से मिलने के कार्यक्रम में जाते हैं. भीड़ उनसे शालीनता से मिलती है और बिना नारा लगाए चली जाती है.

नूर महल से थोड़ी दूर पर ही तोपखाना गेट है जहां सपा का कार्यालय है. यहां 200-300 आदमी जमा हैं. अब्दुल्ला अपने पिता की अनुपस्थिति में स्टार वक्ता हैं और कुछ इलाकों में दरवाजे-दरवाजे जाकर प्रचार कर रहे हैं. शाम को वे एक छोटी सी जनसभा को संबोधित करते हैं. यहां आजम खान के पक्ष में नारे लग रहे हैं और वातावरण काफी गरम है.

माइक हाथ में लेते ही अब्दुल्ला उपस्थिति भीड़ को बताते हैं कि ‘यह लड़ाई आम जनता और नवाब के बीच है.’ वे योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश की गई ज्यादतियों के बारे में भी लोगों को बताते हैं और यह भी बताते हैं किस तरह से उनके परिवार के खिलाफ बदले की कार्रवाई की गई है.

नावेद मियां की सड़क के किनारे पहली हुई बैठकों के विपरीत, अब्दुल्ला की सभा में काफी भीड़ है और जिस तरह से स्लोगन (नारे) लगाए जा रहे हैं उससे साफ पता चलता है कि रामपुर का मुस्लिम मतदाता आज़म खान के बारे में अपनी साफ़ राय रखता है.


यह भी पढ़ें : आज़म खान बनाम जयाप्रदा, उत्तर प्रदेश में गुरू-चेली की इस चुनावी जंग पर सबकी है नज़र


ऐतिहासिक विरोध

नवाबी खानदान और आज़म खान की दुश्मनी कई दशकों से चली आ रही है. नवाब अली मोहम्मद खान ने रामपुर स्टेट की स्थापना की थी और सैय्यद रज़ा खान यहां के आखिरी नवाब थे. सन 1949 में उन्होंने अपनी रियासत भारत गणराज्य में मिला दी. उनकी मौत के बाद 1966 में उनके बेटे ज़ुल्फ़ीकार अली या मिकी मियां नवाबी परिवार के वारिस बने.

मिकी मियां ने कांग्रेस के टिकट पर 1967,1971,1980,1984 और 1989 का चुनाव लगातार जीता था. उनकी मौत के बाद उनकी विधवा नूरबानो ने यहां से लोकसभा का चुनाव 1996 और 1999 में जीता था.

नफीस सिद्दकी ने रूहेलखंड के नवाबों के ऊपर कई किताबें लिखी हैं, रामपुर भी इसी इलाके में पड़ता है. नफीस बताते हैं कि ‘आजम के पिता मुमताज़ खान एक अच्छे आदमी थे, जो अपनी साइकिल पर एक टाइप मशीन लेकर चलते थे. आजम महत्वाकांक्षी थे और राजनीति में अपनी जगह बनाना चाहते थे, जिससे उनको लगा कि नवाबी खानदान को चुनौती देना जरूरी है. लिहाजा उन्होंने इस चुनौती को अवाम बनाम नवाब की लड़ाई का रंग दे डाला.’

सिद्दकी आगे बताते हैं कि ‘1979 और 1980 के दशक में रामपुर की राजनीति पूरी तरह से नूर महल के अधीन थी. आपातकाल के बाद आज़म ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस के शन्नू मियां से चुनाव हार गए. उसके बाद उन्होंने बीड़ी बनाने वालों और टैक्सटाइल कर्मचारियों के हितों की लड़ाई लड़नी शुरू की. टैक्सटाइल मिल, राज़ा टैक्सटाइल की शुरूआत नवाब राज़ा अली खान ने की थी और आज़म ने यहां आग भड़काना शुरू कर दिया.’


 रामपुर में आज़म खान द्वारा बनाया गया गेट। फोटोः शंकर अर्निमेष। दिप्रिंट

सन् 1980 में आज़म खान यूपी विधानसभा के लिए चुने गए और मिकी मियां लोकसभा चुनावों में विजयी हुए. फिलहाल आज़म जो मिकी मियां के समर्थन से चुनाव जीते थे बाद में शाही परिवार के खिलाफ अगले दशक से विरोधी की भूमिका में आ गए.

बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद और मेरठ में हुए दंगों के बाद, आज़म ने अपनी छवि मजदूर नेता से मुस्लिम नेता के रूप में बना ली और मुलायम के कैबिनेट में मंत्री बनने के बाद वे रामपुर के नए नवाब बन गए.

राजा लाइब्रेरी में काम करने वाले तारिक रज़ा बताते हैं कि ‘शाही खानदान ने यहां 18 फैक्टरियां बनाईं थीं और कानपुर के बाद रामपुर सबसे बड़ा कारोबारी केंद्र था. मिकी मियां ने यहां सरकारी प्रेस की स्थापना की. जब आज़म खान शहरी मामलों के मंत्री बने तब उन्होंने सड़कों और बिजली की स्थिति को दुरूस्त करवाया.’


यह भी पढ़ें : फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में पत्नी, बेटे समेत आज़म खान गए जेल, बीजेपी नेता ने दर्ज कराया था केस


आरोप-प्रत्यारोप

नावेद मियां का कहना है कि ‘आज़म खान ने मंत्री बनने के बाद शाही खानदान के इतिहास को रामपुर से मिटाने की पूरी कोशिश की- चौराहों पर नामफलक (नेमप्लेट) हटाने से लेकर शहर के दरवाज़ों तक हटाने में कोई कोरकसर नहीं रखी.’ आज़म खान को वोट देकर जनता को क्या मिलेगा?

नावेद मियां पूछते हैं कि ‘रामपुर के लिए सबसे खराब समय 2012 से 2017 के बीच का था जब आज़म खान, मुख्यमंत्री जैसा बर्ताव कर रहे थे. उन्होंने अपना खुद का रामपुर बनाना शुरू कर दिया. गरीबों की जमीनें हड़प ली गईं, लेकिन अब वे जेल में हैं. जब एक आदमी अपनी सुरक्षा नहीं कर सकता तो वह सामान्य लोगों की सुरक्षा कैसे करेगा?

उनके बेटे हमज़ा मियां कहते हैं कि ‘हमारे परिवार के लोगों ने 35 स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय बनावाए जिसे सरकार चला रही है. आज़म खान ने सिर्फ एक विश्वविद्यालय (मोहम्मद अली गौहर) बनवाया और सभी खास जगहों पर अपने परिवार वालों को भर दिया. उन्होंने 500 करोड़ रूपए की लागत से एक पुल बनवाया था जिसपर आज बेरोजगार युवक टिकटाक वीडियो बना रहे हैं. वे किस तरह के विकास की बात कर रहे हैं?’

लेकिन अब्दुल्ला हर आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहते हैं कि ‘नवाबों ने 1857 के गदर में ब्रिटिश लोगों का साथ दिया था. यहां ऐसे लोग हैं जिन्होंने 1857 के गदर में विद्रोह कर रहे अपने ही लोगों को मरवा दिया था. उन्हें रानी विक्टोरिया ने पद दिया था. यहां ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने लिए सड़कें आरक्षित करवा रखी थीं. उन्हें सामान्य लोगों से हाथ मिलाने में शर्म आती है. आम जन से हाथ मिलाने के बाद वे लोग अपने हाथों को सैनेटाइज करते हैं. वे आराम की जिंदगी बिताने वाले लोग हैं और उन्हें आम लोगों के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.’ अब्दुल्ला सिर्फ भाजपा के निशाने पर नहीं हैं बल्कि भाजपा के हर नेता भी अपनी जनसभाओं में उनपर निशाना साधते हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के यूपी चुनावों को ’80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत’ बताने वाले बयान के बावत पूछने पर अब्दुल्ला कहते हैं कि ‘यह लड़ाई 100 प्रतिशत बनाम सरकार है. हम नफरत से कुछ हासिल नहीं कर सकते. कोविड ने गरीब और अमीर या हिंदु और मुस्लिम में कोई भेदभाव नहीं किया था.’

अपने पिता पर लगाए आरोपों को भी अब्दुल्ला खारिज करते हैं. ‘आजम खान को कठिन यातनाएं दी गई हैं. हमें बहुत ही छोटे स्तर का शिकार बनाया गया है. हमारे खिलाफ भैंसे और बकरियां चुराने के मुकदमे चल रहे हैं. उन्हें कुछ दमदार मुकदमे डालने चाहिए थे.’

आज़म खान के पुत्र अब्दुल्ला आज़म। शंकर अर्निमेष /दिप्रिंट
आज़म खान के पुत्र अब्दुल्ला आज़म। शंकर अर्निमेष /दिप्रिंट

आज़म खान को जेल में डालने के पीछे पूर्व भाजपा मंत्री के बेटे आकाश सक्सेना का हाथ है, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर सपा नेता के खिलाफ सबसे ज्यादा फर्जी मामलों के मुकदमे दायर किए थे. ‘हमने कोई फर्ज़ी मुकदमे नहीं डाले. इन्होंने तमाम अपराध किए हैं. यह सच और झूठ की लड़ाई हैं और जीत हमारी ही होगी.’

आकाश रामपुर से भाजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं.

लेकिन, अबदुल्ला इसको बेबुनियाद बताते हुए कहते हैं कि ‘यह चुनाव इस बात को लेकर नहीं है कि आज़म खान चोर हैं कि नहीं बल्कि इस बात को लेकर है कि आपने उज्जवला योजना का दूसरा सिलेंडर क्यों नहीं भरवाया औऱ आपने 2014 में जो करोड़ों रोजगार मुहैया कराने का वायदा किया था वे कहां पैदा किए गए. भाजपा के पास कुछ दिखाने के लिए नहीं है. भुलवाने की तरकीब अब लंबे समय तक नहीं काम में आने वाली है. किसान जानना चाहते हैं कि उनकी आय कहां दुगुनी हुई. लोग पूछ रहे हैं कि महंगाई क्यों बढ़ी, दिल्ली की सीमा पर 700 किसान कैसे मर गए, लखीमपुर में क्या हुआ और आक्सीजन की किल्लत कैसे हुई.’

रामपुर के अज़ीम खान का मानना है कि ‘शब्दों की लड़ाई में आज़म खान को लाभ होगा. लोगों में आज़म खान को लेकर एक सहानभूति है कि उन्हें बेमतलब परेशान किया जा रहा है. राजा साहब भी भले आदमी है लेकिन वे यहां ज्यादा नहीं रूकते. कम से कम हमारी शिकायतें आज़म खान के यहां सुनी जाती हैं. फिलहाल अबकी बार लड़ाई में भाजपा भी शामिल है और असली लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments