भोपाल : मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए कुछ विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ने के करीब नौ माह बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो राज्यसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने ऐसा लगता है कि अब अपनी पार्टी के लिए कुछ कर दिखाया है.
मध्यप्रदेश उपचुनावों का रुझान देखें तो साफ पता चलता है कि सिंधिया के अधिकतर वफादार, जिनमें उपचुनाव लड़ने वाले कई मंत्री भी शामिल हैं, निश्चित रूप से विधानसभा के लिए चुने जाने के करीब हैं.
पूर्व केंद्रीय मंत्री उपचुनाव के लिए कांग्रेस के सभी 25 पूर्व विधायकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे थे, जिनमें तीन ऐसे विधायक भी शामिल थे जिन्होंने मार्च के अंत में कांग्रेस सरकार गिरने के बाद इस्तीफा दे दिया था.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार दोपहर 2.45 बजे तक भाजपा उपचुनाव वाली कुल 28 सीटों में से 21 पर आगे चल रही थी.
विपक्षी दल ने सिंधिया पर ‘गद्दार’ का ठप्पा लगाया था और अपनी महत्वकांक्षाओं के लिए भाजपा के 15 साल के शासनकाल के बाद बनी कांग्रेस सरकार को गिराने का आरोप लगाते हुए उन पर जमकर निशाना साधा था. सिंधिया 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने परिवार की विरासत मानी जाने वाली गुना सीट पर चुनाव हार गए थे.
वह मार्च में इसी शर्त पर भाजपा में शामिल हुए थे कि उनके सभी विश्वस्त साथियों को उपचुनावों में मैदान में उतारा जाएगा. हालांकि यह मांग भाजपा के लिए कुछ असहज स्थिति पैदा करने वाली थी क्योंकि पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए उन उम्मीदवारों के पक्ष में काम करना एक मजबूरी था जिनके खिलाफ 2018 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने प्रचार का था.
2018 में हारने वाले पार्टी प्रत्याशियों सहित कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की लेकिन पार्टी ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया.
कांग्रेस के दलबदलू विधायकों को न केवल उपचुनाव का टिकट मिला, बल्कि उनमें से 14 को शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में भी जगह मिली. तुलसीराम सिलावट और गोविंद राजपूत, जिन्हें अप्रैल में पहले कैबिनेट विस्तार में इसमें जगह दी गई थी, को 3 नवंबर को मतदान के ऐन पहले इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उनके बतौर मंत्री छह माह पूरे हो चुके थे. वहीं बाकी 12 विधायकों ने बतौर मंत्री चुनाव लड़ा.
मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास में यह संभवत: पहला मौका था जब एक साथ इतने मंत्रियों को अपने पद पर बने रहने के लिए चुनाव मैदान में उतरना पड़ा. इनमें से केवल दो मंत्री अदल सिंह कंसाना और गिरराज दंडोतिया मुरैना जिले, जो सिंधिया के दबदबे वाले ग्वालियार चंबल क्षेत्र में आता है. के सुमौली और डिमनी निर्वाचन क्षेत्रों में अपने कांग्रेस प्रतिद्वंद्वियों से पीछे चल रहे हैं.
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ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा आगे
भाजपा ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 16 सीटों में से 10 पर आगे चल रही है, जबकि कांग्रेस केवल पांच सीटों पर आगे है. ताजा रुझानों के मुताबिक, एक सीट पर बहुजन समाज पार्टी आगे है.
2018 में कांग्रेस ने इस क्षेत्र में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. समर्थकों ने इस अच्छे प्रदर्शन का पूरा श्रेय सिंधिया को देते हुए कमलानाथ की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी.
सिंधिया समर्थक उपचुनावों में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के बाहर भी अच्छा प्रदर्शन करते नजर आ रहे हैं. उनके खासमखास माने जाने वाले सिलावट और राजपूत, जो क्रमशः इंदौर जिले की सेवर और सागर जिले की सुरखी सीट से मैदान में हैं, भी आसानी से जीत हासिल करते नजर आ रहे हैं
नतीजे भाजपा में सिंधिया की स्थिति मजबूत करेंगे
उपचुनाव के नतीजे निश्चित तौर पर भाजपा में सिंधिया का दबदबा बढाएंगे. लंबे समय से अटकलें लगती रही हैं कि नरेंद्र मोदी कैबिनेट में उन्हें शामिल किए जाने की संभावना इन अहम उपचुनावों के नतीजों से जुड़ी है.
ये उपचुनाव चौहान और कमलनाथ से ज्यादा सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई थे जो अक्सर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में चुनाव प्रचार करते समय अपने और अपने परिवार के नाम पर वोट मांगते हैं.
कांग्रेस ने मध्य प्रदेश उपचुनाव में सिंधिया की काट और गुर्जर वोट हासिल करने के लिए बतौर प्रचारक राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को भी बुलाया था. हालांकि, पायलट ने रैलियों में अपने संबोधन के दौरान एक बार भी सिंधिया का नाम नहीं लिया.
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