नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि उन्होंने खुद को ‘जी-23 से अलग कर लिया है’ और अब वह कभी भी उस समूह का हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे.
‘जी-23’ तेइस ऐसे कांग्रेस नेताओं के समूह को दिया गया एक उपनाम था, जिन्होंने पिछले साल अगस्त में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को संबोधित करके लिखे गए एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. इसमें उन्होंने पार्टी के भीतर एक फुलटाइम और प्रभावी नेतृत्व सहित कई अन्य सुधारों की मांग की थी.
मंगलवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, मोइली ने कहा कि जिस इरादे से उन्होंने 22 अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ उस पत्र पर हस्ताक्षर किए, वह आज जो कुछ भी चल रहा है उससे एकदम अलग था.
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मोइली ने कहा, ‘मैंने खुद को जी-23 से अलग कर लिया है और अब मेरा उनके किसी भी तरह के कदम या फैसले से कोई लेना-देना नहीं है.’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ’इस पत्र का मक़सद पार्टी के भीतर सुधार के लिए आवाज उठाना था, न कि नेतृत्व परिवर्तन की मांग करना. हाल-फ़िलहाल में ऐसा लगता है कि इस समूह के कुछ सदस्यों द्वारा पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग की जा रही है जिसका मैं बिल्कुल भी समर्थन नहीं करता. हमारा इरादा कभी भी पार्टी आलाकमान पर हमला करने का नहीं था. वर्तमान नेतृत्व मोदी सरकार से लड़ने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है. उनके संकल्प को कमजोर करना ठीक नहीं होगा.’
मोइली ने किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन और जिस तरह कांग्रेस आलाकमान उनके साथ खड़ा है उसका हवाला देते हुए इसे पार्टी नेतृत्व की ताकत के उदाहरण के रूप में पेश किया. उन्होंने कहा, ‘हमारे सभी नेता जमीन पर किसानों के साथ लड़ रहे हैं.’
उनकी यह टिप्पणी सोमवार को लखीमपुर खीरी जाते समय कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की सीतापुर में नजरबंदी के संदर्भ में थी. याद रहे कि श्रीमती प्रियंका वाड्रा को उस समय गिरफ्तार कर लिया गया था जब वो कथित तौर पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के साथ चल रहे कारों के एक काफिले द्वारा कुचले गए लोगों के परिवारों से मिलने लखीमपुर खीरी जा रही थी.
हाल ही में पिछले हफ्ते पूर्व केंद्रीय मंत्री और जी-23 समूह के एक अन्य प्रमुख सदस्य कपिल सिब्बल ने पार्टी की पंजाब इकाई में जारी उथल-पुथल, अध्यक्ष पद के चुनाव और नेताओं के पार्टी से बाहर निकलने के लगातार चल रहे सिलसिले पर चर्चा के लिए कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाने की मांग की थी.
सिब्बल का कहना था कि वह उस जी-23 समूह की ओर से बोल रहे हैं, जिसने एक साल पहले पार्टी में कई बदलाव करने की मांग उठाई थी. लेकिन मोइली ने कहा कि वह कभी इस तरह की मांग के पक्ष में नहीं थे और न ही उनसे इसके लिए कभी कोई सलाह ली गई थी. उन्होंने कहा, ‘मेरा उस मांग से कोई लेना-देना नहीं है, मैं इसके पक्ष में नहीं हूं.’
‘यह कभी भी एक औपचारिक समूह नहीं था’
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक, जितिन प्रसाद, के इस साल जून में भाजपा में शामिल होने के साथ ही ‘जी-23’ पहले ही ‘ जी -22’ में बदल चुका था.
दिप्रिंट से बात करते हुए इस पत्र के एक अन्य हस्ताक्षरकर्ता संदीप दीक्षित ने कहा कि इस समूह का कभी भी कोई ‘औपचारिक’ स्वरुप नहीं था.
दीक्षित ने कहा, ‘यह कभी भी नियमित बैठकों या चर्चाओं के साथ काम करने वाला कोई औपचारिक समूह नहीं रहा है. हमारे सहमति का मूल बिंदु वही सब कुछ था कि जो उस पत्र में लिखा गया था यानि कि पार्टी में संगठनात्मक सुधार से संबंधित मांगें.’
उन्होंने कहा कि तब के बाद से इस समूह में शामिल व्यक्तियों द्वारा किया गया सब कुछ एक व्यक्तिगत क्षमता में किया गया कार्य है.
उन्होंने कहा, ‘कभी-कभी, कोई नेता यहां-वहां कुछ भी बयान दे देता है और इसे पुरे समूह के साथ जोड़ दिया जाता है. यह सही नहीं है. लेकिन हां, मैं अभी भी उन मांगों पर कायम हूं जो हमने उठाईं थीं और इस बात से भी सहमत हूं कि आज तक उन्हें हल करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है.’
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