scorecardresearch
Thursday, 23 May, 2024
होमराजनीति‘बीरेन सिंह स्थिति संभालने में असमर्थ’, बोले पूर्व CM इबोबी सिंह- छुपे एजेंडे के चलते मोदी, शाह चुप

‘बीरेन सिंह स्थिति संभालने में असमर्थ’, बोले पूर्व CM इबोबी सिंह- छुपे एजेंडे के चलते मोदी, शाह चुप

सिंह ने जातीय झड़पों और अधिकारियों की निष्क्रियता को लेकर दिप्रिंट से बातचीत की और उम्मीद जताई कि अगर बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकारें निर्णायक रूप से कार्रवाई करें तो शांति कायम हो सकती है.

Text Size:

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री 75 वर्षीय ओ इबोबी सिंह ने गुरुवार को दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह राज्य की स्थिति संभालने में असमर्थ हैं. उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री राज्य में मैतेई और कुकी के बीच ‘जटिल स्थिति को संभालने में असमर्थ’ हैं. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अपने ‘छिपे हुए एजेंडे’ के कारण इसमें हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं.”

उन्होंने पूछा, “अगर मणिपुर को भारत का हिस्सा माना जाता है और अगर वहां कोई समस्या है, तो इसके लिए केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें जिम्मेदार हैं. उन्होंने जातीय हिंसा को तुरंत क्यों नहीं रोका? क्या कोई गुप्त एजेंडा है?”

ओ इबोबी सिंह 2002 से 2017 के बीच 15 वर्षों तक मणिपुर के मुख्यमंत्री रहे थे. उनकी पहचान एक अनुभवी राजनेता के तौर पर होती है.

अभी वह राजधानी दिल्ली में ही हैं, और राज्य में कुकी-मैतेई झड़पों पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, जो इस समय अमेरिका की राजकीय यात्रा पर हैं, के साथ बैठक की मांग कर रहे हैं. इस विषय पर प्रधान मंत्री ने चुप्पी साध रखी है.

मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “हर कोई पूछ रहा है कि वह (मोदी) चुप क्यों हैं. उन्होंने 50 दिनों में कुछ नहीं कहा और इस मुद्दे पर उनसे मिलने का अनुरोध करने वाले विधायकों या राजनीतिक दल के सदस्यों को सुनने के लिए 10 या 15 मिनट का समय नहीं दिया. मैं खुद एक हफ्ते से उनका इंतजार कर रहा हूं.”

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

गैर-आदिवासी मैतेई को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग के विरोध में निकाले गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद मणिपुर में 3 मई को मैतेई, जो इंफाल घाटी में बहुसंख्यक हैं और ज्यादातर हिंदू हैं और कुकी आदिवासियों, जो मुख्य रूप से ईसाई हैं और राज्य के पहाड़ी जिलों में रहते हैं, के बीच झड़पें हुईं.

उसके बाद से राज्य में शुरू हुई हिंसा में अब तक कम से कम 100 से अधिक लोग मारे गए हैं जबकि 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं  50,000 से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हुए हैं. हिंसा के कारण कुकियों ने मणिपुर के पहाड़ी इलाकों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग भी की है.

हिंसा रोकने के लिए विभिन्न हलकों से दबाव के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के लिए नई दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है.

दिप्रिंट के साथ बातचीत के दौरान सिंह ने जातीय झड़पों के पीछे के कारणों के बारे में बात की. इसके लिए उन्होंने अधिकारियों की निष्क्रियता, स्थिति की गंभीरता का आकलन करने में गृह मंत्रालय की विफलता को जिम्मेवार ठहराया. उन्होंने उम्मीद जताई कि अगर बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र और मणिपुर की सरकार ने निर्णायक रूप से काम किया तो स्थिति ठीक हो सकती है.

जब पूछा गया कि शांति कैसे लाई जा सकती है, तो पूर्व सीएम ने दिप्रिंट से कहा, “हमारा अनुरोध है कि पहले लड़ाई, गोलीबारी और आगजनी को रोका जाए. शांति तभी बहाल हो सकती है जब माहौल बातचीत के लिए अनुकूल बनेगा.”

यह पूछे जाने पर कि शनिवार की सर्वदलीय बैठक में वह क्या मांग रखेंगे, सिंह ने कहा, “हमने पहले ही प्रधानमंत्री को अपनी मांगों के बारे में एक ज्ञापन सौंप दिया है और हम राज्य में शांति की अपनी मांग दोहराएंगे.”

‘केंद्र और राज्य को नियंत्रण में रखना होगा’

सिंह ने सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समझौते के बारे में बात की, जिस पर केंद्र और मणिपुर सरकार ने 2008 में कुकी विद्रोही समूहों के साथ हस्ताक्षर किए थे, ताकि विद्रोहियों के साथ राजनीतिक बातचीत शुरू की जा सके और शत्रुता समाप्त की जा सके. इसके साथ ही राज्य के जातीय कुकी आदिवासियों द्वारा अलग मातृभूमि की कि गई मांगों का निपटारा किया जा सके.

समझौते के हिस्से के रूप में, जिन विद्रोहियों ने हथियार छोड़ा था, उन्हें शिविरों में रखा गया था, जिन्हें एसओओ शिविर कहा जाता था.

इस साल 10 मार्च को, यह बताया गया कि मणिपुर ने इस समझौते से हटने का फैसला किया था, यह आरोप लगाते हुए कि आदिवासी उग्रवादी समूह “वन अतिक्रमणकारियों के बीच आंदोलन को प्रभावित कर रहे थे”.

सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि वह “आश्चर्यचकित थे कि मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री से परामर्श किए बिना कुकी विद्रोहियों के साथ समझौते को समाप्त करने की घोषणा कैसे की”, और यह केंद्र और राज्य के बीच “प्राथमिकता का अंतर” दिखाता है.

मणिपुर हिंसा के मद्देनजर आरोप लग रहे हैं कि इसे दोनों पक्षों (कुकी और मैतेई) के सशस्त्र समूहों के साथ-साथ पड़ोसी म्यांमार से अवैध अप्रवासियों और नार्को माफिया द्वारा भड़काया जा रहा है.

सिंह ने आगे बताया कि हिंसा अप्रैल के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शुरू हुई जिसमें मैतेई लोगों को एसटी का दर्जा देने का सुझाव दिया गया था.

उन्होंने पूछा, “मौजूदा स्थिति के पीछे कई कारक हैं. हाई कोर्ट के आदेश के बाद हिंसा शुरू हुई. स्थिति की संवेदनशीलता को समझते हुए राज्य सरकार ने पहले एक्शन क्यों नहीं लिया?”

सिंह ने कहा, “जहां तक एसओओ समझौते का सवाल है, चाहे कोई भी उग्रवादी हो, अगर वे बातचीत के लिए आने के लिए सहमत होते हैं तो बुनियादी नियम होने चाहिए. यदि कोई समूह जमीनी नियमों का उल्लंघन करता है, तो एक निगरानी समूह और समिति होती है. समझौते के उल्लंघन पर निगरानी रखना राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है. उन्हें नियंत्रण में रहना होगा.”

2016 में पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले पूर्व कांग्रेस नेता एन बीरेन सिंह पर निशाना साधते हुए इबोबी सिंह ने कहा, ”(मुख्यमंत्री) इस प्रकार की स्थिति से निपटने में असमर्थ हैं.”

उन्होने कहा, “हो सकता है कि वह मेरी बातें सुनकर खुश न हों, लेकिन यह एक त्रिपक्षीय समझौता था और राज्य सरकार इससे पीछे हटने का एकतरफा फैसला नहीं कर सकती. बीरेन सिंह ने कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया और प्रेस को बताया. अगर मैं सीएम होता, तो केंद्र से परामर्श किए बिना कभी भी प्रेस को कुछ भी नहीं बताता. जब तक केंद्र फैसला नहीं ले लेता, मैं अपनी पत्नी को भी इसके बारे में सूचित नहीं करता.”

पूर्व सीएम ने आगे कहा कि उनका मानना है कि कुकी-मैतेई झड़प अविश्वास का नतीजा नहीं थी- बल्कि उग्रवादियों ने मणिपुर में शांति भंग की थी.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अगर कोई म्यांमार का उग्रवादी राज्य में प्रवेश कर रहा है, तो इसे रोकना केंद्रीय बलों की जिम्मेदारी है. (बीजेपी) सरकार ने पिछले नौ वर्षों में केंद्र में और छह वर्षों में मणिपुर में सीमा पर बाड़ क्यों नहीं लगाई? जब तक बाड़बंदी नहीं होगी, अवैध हथियारों के साथ-साथ उग्रवादियों का प्रवेश होता रहेगा. ये कुकी उग्रवादी भी बाड़ लगवाना नहीं चाहते.”

उन्होंने आगे पूछा कि गृह मंत्रालय द्वारा सीमा की रक्षा के लिए दी गई असम राइफल्स क्या कर रही है.

उन्होंने कहा, “मुझे बताया गया है कि मणिपुर में कई केंद्रीय बल हैं. अगर अवैध घुसपैठ होती है तो सीमा की रक्षा करना असम राइफल्स की जिम्मेदारी है.”


यह भी पढ़ें: भले ही कांग्रेस 2024 के रण के लिए तैयार है, लेकिन क्षेत्रीय नेताओं के PM बनने की चाहत एक बड़ी चुनौती है


‘वे चाहें तो कुछ ही दिनों में हिंसा रोक सकते हैं’

इस सवाल पर कि क्या कांग्रेस की मांग के अनुसार मणिपुर के मुख्यमंत्री को हटाने से शांति आएगी, सिंह ने कहा कि ऐसे फैसले केंद्र को लेने होंगे.

उन्होंने कहा, “मैं अपनी तरफ से सीएम को हटाने की मांग नहीं कर रहा हूं. यह केंद्र और उनके आलाकमान पर निर्भर है कि वे संकट को नियंत्रित करने के लिए तुरंत किस तरह की कार्रवाई करना चाहते हैं.”

सिंह ने कहा, “सैन्य दृष्टि से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है. मैंने बार-बार कहा है कि यदि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री हिंसा रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो वे कुछ ही दिनों में ऐसा कर सकते हैं. उन सभी सशस्त्र लोगों को, चाहे वे विद्रोही समूह हों या आम मैतेई या कुकी हों, तुरंत निहत्था किया जाना चाहिए और अवैध हथियारों को दूर रखा जाना चाहिए. तभी बातचीत हो सकती है.”

जब उनसे पूछा गया कि क्या मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की कांग्रेस की मांग से शांति आएगी, तो भी उनका यही जवाब था.

वो कहते हैं, “चाहे राष्ट्रपति शासन लागू करना हो या बीरेन सिंह को हटाना हो, यह केंद्र को निर्णय लेना है. यदि वे ऐसा करने को इच्छुक नहीं हैं तो मांग के बावजूद भी वे ऐसा नहीं करेंगे. हमारी मांग शांति है, और उचित कार्रवाई समय पर और दृढ़ता से की जानी चाहिए.”

वाजपेयी बनाम मोदी युग

सिंह से पूछा गया कि पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी नेता ए.बी. वाजपेयी और मोदी के समय उत्तर-पूर्व से निपटने में क्या अंतर था?

उन्होंने कहा, ”मैं दोनों नेताओं की तुलना नहीं कर सकता, लेकिन हर कोई जानता है कि वाजपेयी एक अच्छे और महान सज्जन व्यक्ति थे. प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी के कार्यकाल (1999 से 2004) के दौरान मणिपुर के मुख्यमंत्री (2002-2007) के रूप में यह मेरा पहला कार्यकाल था. मैं राज्य में गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहा था लेकिन उन्होंने एक अच्छे सज्जन व्यक्ति की तरह राज्य के मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया.”

मणिपुर के पूर्व सीएम ने उस दौरान की एक घटना को याद किया, जब राज्य वित्तीय संकट से जूझ रहा था.

सिंह कहते हैं, “हमारे पास वेतन देने के लिए पैसे नहीं थे और मैं वाजपेयी से मिलना चाहता था लेकिन नहीं मिल सका. जाने से पहले, मैं इस मुद्दे को उठाने के लिए (पूर्व कांग्रेस प्रमुख) सोनिया गांधी से मिलने गया. उन्होंने (पूर्व प्रधानमंत्री) मनमोहन सिंह को फोन किया जिन्होंने वित्त मंत्री को फोन किया. हम उसी दिन दोपहर 3.30 बजे वित्त मंत्री से मिले और 800 करोड़ रुपये मांगे. शाम 5 बजे हमें वित्त मंत्री का फोन आया कि 400 करोड़ रुपये मंजूर किये गये हैं.”

उन्होंने कहा, ”वाजपेयी के समय में कामकाज का यही तरीका था.”

वो आगे कहते हैं, “यहां, हम 15 दिनों से पीएम मोदी से मिलने का इंतजार कर रहे हैं, उनके अपने विधायक इंतजार कर रहे हैं, लेकिन उनके पास किसी से मिलने का समय नहीं है. आज यही स्थिति है.”

सिंह से पूछा गया कि वह बीरेन सिंह को एक मुख्यमंत्री के रूप में कैसे देखते हैं – जिनका मणिपुर में पिछला कार्यकाल (2017 से 2022) शांतिपूर्ण था और जिन्होंने कांग्रेस में इबोबी सिंह के साथ काम किया था.

मणिपुर के पूर्व सीएम दिप्रिंट से कहते हैं, “बीरेन सिंह ने पहले मेरे नेतृत्व में काम किया है और उन दिनों हमने हर चीज पर चर्चा की थी. लेकिन उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद ऐसा लगता है कि उनकी कार्यशैली थोड़ी गड़बड़ा गई है.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: फंस गए रे ओबामा: मोदी के दोस्त ‘बराक’ आज उन्हें उपदेश दे रहे हैं, लेकिन देखिए बोल कौन रहा है


 

share & View comments