कोलकाता: पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनावों से कुछ महीने पहले, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने चिट फंड घोटाले में, जिसकी वो पिछले छह साल से जांच कर रही है, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम लिया है.
सीबीआई ने आधिकारिक रूप से मुख्यमंत्री की पेंटिंग्स को चिट फंड मालिकों के साथ जोड़ दिया है, जो कथित रूप से एक पोंज़ी स्कीम चला रहे थे. उसने ये भी आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री राहत कोष का एक निजी टीवी चैनल के कर्मचारियों के वेतन अदा करने में इस्तेमाल किया, जो सारधा ग्रुप की कंपनी है.
ये आरोप 23 दिसंबर को दायर 277 पन्नों की एक याचिका में लगाए गए हैं, जो दिप्रिंट के हाथ लगे हैं और जिसे सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है. याचिका में कम से कम 19 पत्रों की प्रतिलिपियां शामिल की गई हैं, जो सीबीआई ने 2014 से 2019 के बीच पश्चिम बंगाल सरकार को लिखे थे, जिनमें सरकार से सहयोग करने और घोटाले से जुड़े सबूत एजेंसी के हवाले करने का अनुरोध किया गया था.
तृणमूल कांग्रेस ने सीबीआई के क़दम को ‘राजनीतिक बदले’ की कार्रवाई क़रार दिया है, जबकि विपक्षी बीजेपी का दावा है कि सीबीआई के पास सरकार के खिलाफ एक ‘निर्विवाद’ केस है.
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ममता को चिट फंड घोटाले से जोड़ना
2018 में, सीबीआई ने मुख्यमंत्री की कई पेंटिंग्स ज़ब्त की थीं, और उसे शक था कि इन पेंटिंग्स को कुछ चिट फंड कंपनी मालिकों ने ख़रीदा था, जिन पर उसकी नज़र थी.
एजेंसी ने इस बात को दर्ज किया है कि सीएम की पेंटिंग्स कथित रूप से, उन चिंट फंड कंपनियों के मालिकों ने ख़रीदीं थीं जो पोंज़ी स्कीमें चला रहे थे.
सीबीआई याचिका में कहा गया है, ‘जागो बांग्ला ने, जो एक साप्ताहिक अख़बार है, और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस का मुखपत्र है, कथित रूप से पश्चिम बंगाल सूबे की मुख्यमंत्री द्वारा बनाई गईं कई पेंटिंग्स, 2011-2013 के दौरान पोंज़ी कंपनियों के प्रमोटर्स को बेंचीं थीं’.
‘ये रिकॉर्ड पर आ चुका है कि न केवल मैसर्स सारधा ने उक्त मुखपत्र को पैसा दिया, बल्कि दूसरी पोंज़ी कंपनियों जैसे मैसर्स रोज़ वैली ग्रुप; मैसर्स टावर ग्रुप; मैसर्स पैलान ग्रुप; मैसर्स एंजेल एग्रो ग्रुप ने भी लाखों रुपए मूल्य की पेंटिंग्स ख़रीदीं, जिन्हें कुछ ऐसे लोग चला रहे थे, जो राज्य की शीर्ष अथॉरिटीज़ के साथ जुड़े थे’.
सीबीआई ने सरकार पर सहयोग न करने और सबूतों को मिटाने या दबाने का भी आरोप लगाया है. शीर्ष अदालत में पेश याचिका में कहा गया है, ‘निवेदन किया जाता है कि मैसर्स सारधा केस के अलावा, राज्य की एसआईटी ने पोंज़ी स्कीमों के, किसी दूसरे समूह के खिलाफ, कभी कोई जांच नहीं की, जिनका उल्लेख किया गया है’. याचिका में ये भी कहा गया, ‘केस आरसी 04/एस/204 की जांच के दौरान पाया गया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने भारत के सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, एक सूची पेश की थी जिसमें कुछ रसूख़दार लोगों के नाम और उनके खिलाफ सुबूतों का सार दिया गया था’.
सीबीआई ने ये भी आरोप लगाया है कि कई आधिकारिक कम्युनिकेशंस के बाद भी, वो सूची और आरोपों का सारांश, कभी केंद्रीय एजेंसी को नहीं दिया गया.
सीएम राहत कोष का पैसा निजी चैनल में गया
सीबीआई ने ये भी दावा किया है कि ये बात स्थापित करने के लिए उसके पास सुबूत हैं कि मुख्यमंत्री राहत कोष से क़रीब 6.21 करोड़ रुपए, एक निजी चैनल के कर्मचारियों का बक़ाया अदा करने में ख़र्च किए गए, जिसे सारधा कंपनी समूह चलाता था.
सीबीआई दस्तावेज़ में कहा गया है, ‘6.21 करोड़ रुपए की राशि पहले ही (पश्चिम बंगाल) सीएम राहत कोष (जो प्राकृतिक/अप्राकृतिक आपदा के लिए है) से, मैसर्स तारा टीवी को दी जा चुकी है, जो मैसर्स सारधा समूह की एक ग्रुप कंपनी थी. निवेदन है कि सीएम राहत कोष से एक नियमित रक़म (27 लाख रुपए मासिक), 23 महीने की अवधि के लिए, मई 2013 से अप्रैल 2015 के बीच अदा की गई थी’. दस्तावेज़ में आगे कहा गया, ‘निवेदन है कि ये रक़म कथित रूप से, उक्त मीडिया कंपनी के कर्मचारियों के वेतन के भुगतान के लिए दी गई, जिसकी मैसर्स सारधा कंपनी समूह का हिस्सा होने के नाते जांच चल रही थी’.
उसमें आगे कहा गया: ‘सुदिप्त सेन (सारधा समूह एमडी) ने अपने पत्र में, जिसे अप्रैल 2013 में सार्वजनिक किया गया, तारा मीडिया ग्रुप के मैसर्स सारधा ग्रुप द्वारा ख़रीदे जाने का संक्षेप में वर्णन किया है. बिधान नगर पुलिस ने जांच के दौरान, इस पत्र को अपने रिकॉर्ड में लिया था. निवेदन है कि तथ्य किसी बड़ी साज़िश, और राज्य की उच्चस्तरीय अथॉरिटीज़ की, मिलीभगत की ओर इशारा करते हैं’.
अपनी याचिका में सीबीआई ने कहा है कि उसने 2018 में तब के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर, ‘(पश्चिम बंगाल) मुख्यमंत्री राहत कोष की संरचना और उसके कामकाज’ से जुड़ी जानकारी मांगी थी, लेकिन राज्य सरकार ने ‘अधूरे और गोलमोल जवाब दिए थे’.
तृणमूल ने कहा, राजनीतिक प्रतिशोध
तृणमूल कांग्रेस ने याचिका के पीछे सीबीआई की असली मंशा पर सवाल खड़े किए हैं, और उस पर फर्ज़ी जांच करने और ‘राजनीतिक धमकी’ का आरोप लगाया है.
तृणमूल सांसद और सीनियर एडवोकेट कल्याण बनर्जी ने दिप्रिंट से कहा, ‘सीबीआई के लिए बहुत शर्म की बात है कि पिछले छह वर्षों में वो इस केस को किसी निष्कर्ष पर नहीं ले जा सकी है, जबकि इन आरोपों में अधिकतम सज़ सिर्फ सात साल तक हो सकती है’. उन्होंने आगे कहा, ‘हर बार चुनाव से कुछ महीने पहले, चिट फंड जांच का कंकाल निकलकर सामने आ जाता है. अगर ये राजनीतिक प्रतिशोध नहीं है या सियासी विरोधियों को धमकाने का ज़रिया नहीं है, तो फिर क्या है?’
सरकार की ओर से असहयोग के आरोपों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, ‘यहां पर पश्चिम बंगाल सरकार आरोपित इकाई है. एससी ने सीबीआई को जांच का निर्देश दिया, क्योंकि बंगाल पुलिस पर पक्षपात का आरोप लग रहा था. तो फिर सीबीआई सबूत के लिए, आरोपित पक्ष पर कैसे निर्भर हो सकती है? वो कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि अभियुक्त एजेंसियां उनसे सहयोग करेंगी? उन्हें अपने बल पर केस की जांच करनी चाहिए थी. ये सीबीआई की नाकामी है’.
उन्होंने आगे कहा कि पूर्व तृणमूल नेता, जो इस केस में अभियुक्त हैं अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. बनर्जी ने पूछा, ‘ऐसा क्यों है कि उन अभियुक्त तृणमूल नेताओं का ज़िक्र नहीं है जो अब बीजेपी के साथ हैं? क्या उनके पाप मोदी की वॉशिंग मशीन में धुल गए हैं?’
लेकिन विपक्षी बीजेपी का दावा है कि एजेंसी का केस ठोस है. बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी के पश्चिम बंगाल प्रभारी, कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, ‘ये बिल्कुल ठोस केस है; ममता बनर्जी सरकार के पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है’.
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