scorecardresearch
Saturday, 20 April, 2024
होमराजनीतिअभिषेक बनर्जी पर क्यों निर्भर होती जा रही है ममता की तृणमूल कांग्रेस

अभिषेक बनर्जी पर क्यों निर्भर होती जा रही है ममता की तृणमूल कांग्रेस

ममता के उत्तराधिकारी माने जाते रहे डायमंड हार्बर के सांसद अभिषेक बनर्जी को एक लंबे समय तक न केवल भाजपा की तरफ से बल्कि अपनी पार्टी के भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ा है.

Text Size:

कोलकाता: तृणमूल कांग्रेस की तरफ से कोलकाता में आयोजित शहीद दिवस रैली से पहले राज्य भर में लगाए गए पोस्टरों में सिर्फ दो नेताओं के चेहरे नजर आ रहे थे— एक तस्वीर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की थी और दूसरी थी उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी की, जो सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं.

गुरुवार को भारी बारिश के बीच रैली को संबोधित करने के लिए खड़े होने के साथ अभिषेक बनर्जी ने भीड़ से पूछा कि क्या उन्हें अपना छाता हटा देना चाहिए.

भीड़ की तरफ से जवाब में ‘हां’ की आवाज गूंजते ही उन्होंने छाता हटा दिया और भारी बारिश में भीगते हुए रैली को संबोधित करने लगे, उन्होंने वहां मौजूद लोगों को बताया कि कैसे तृणमूल कांग्रेस अब बंगाल तक ही सीमित नहीं है.

अभिषेक ने अपने 17 मिनट के भाषण में कहा, ‘अब हम अगरतला, असम, गोवा और मेघालय में हैं. यह सब मेरे पार्टी महासचिव बनने के एक साल के भीतर हुआ है.’

ममता के उत्तराधिकारी माने जाते रहे डायमंड हार्बर के सांसद 34 वर्षीय अभिषेक बनर्जी को एक लंबे समय तक न केवल भाजपा की तरफ से बल्कि अपनी पार्टी के भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ा है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

टीएमसी के कई नेता 2021 के विधानसभा चुनावों से पहले जब भाजपा में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ रहे थे, तो उनके निशाने पर मुख्य तौर पर अभिषेक बनर्जी ही होते थे. भाजपा ने न केवल इन विधायकों को पार्टी में शामिल किया बल्कि टीएमसी पर ‘बुआ-भतीजे’ की पार्टी बन जाने का आरोप भी लगाया.

लेकिन इस युवा नेता के लिए स्थितियां एकदम बदल गई हैं, उनकी पार्टी के नेताओं को अब उन्हें ममता के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती है.

ग्रामीणों के साथ चाय पीने और पार्टी के युवाओं का मनोबल बढ़ाने वाले भाषण देने से लेकर टीएमसी के दिग्गज नेताओं का आशीर्वाद लेने के लिए उनके घर जाने तक, वह हर जगह नजर आते हैं. वह अभिषेक बनर्जी ही थे, जो 2019 के आम चुनावों के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को राज्य सचिवालय में ममता बनर्जी से मिलाने लाए थे.

अभिषेक ही अब देश के अन्य हिस्सों त्रिपुरा, गोवा, असम और मेघालय आदि में पार्टी का विस्तार कर रहे हैं. वह नेताओं के साथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और रणनीति भी बना रहे हैं.

कोलकाता स्थित बंगबासी कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर उदयन बंधोपाध्याय ने कहा, ‘यह स्पष्ट हो चुका है कि अभिषेक बनर्जी को ही ममता बनर्जी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर पेश किया जा रहा है. लेकिन यह भाजपा है जिसने पश्चिम बंगाल में अपनी चुनावी रैलियों में लगातार उन पर हमला करके उन्हें नेता बना दिया. यदि आप लगातार ऐसा करते हैं, तो आप अंतत: एक नेता तैयार कर देते हैं. राजनीति में इसे स्वाभाविक चयन प्रक्रिया कहा जाता है.’

तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि अभिषेक पार्टी की राजनीति में नए तौर-तरीके ला रहे हैं.

उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘ममता बनर्जी शक्ति हैं, भावनाओं से जुड़ी हैं, संघर्ष और विरोध की प्रतीक हैं. और अभिषेक ने इन सभी को आत्मसात कर लिया है और समय के साथ इसे मॉर्डन टच भी दे रहे हैं. अब राजनीति एक दशक पहले की राजनीति से बहुत अलग है. अभिषेक जमीनी स्तर पर अपने जनसंपर्क कौशल के साथ-साथ सोशल मीडिया के जरिये ऑनलाइन पहुंच का इस्तेमाल करके समस्याएं सुलझाने का प्रयास करते हैं.’


यह भी पढ़ें: 2016 से बाद के एडमिट कार्ड, जमीन के कागजात- आखिर क्यों SSC मामले में ED ने गिरफ्तार किया TMC नेता पार्थ चटर्जी को


‘एक दाके अभिषेक’

अभिषेक का आउटरीच प्रोग्राम ‘एक दाके अभिषेक (एक कॉल पर अभिषेक)’ शुरू में 18 जून को डायमंड हार्बर के सात विधानसभा क्षेत्रों में लॉन्च किया गया था लेकिन अब इसे तीन पहाड़ी क्षेत्रों जलपाईगुड़ी, कूच बिहार और अलीपुरद्वार तक बढ़ा दिया गया है.

भाजपा ने 2019 में जलपाईगुड़ी, कूच बिहार और अलीपुरद्वार संसदीय सीटें जीती थीं और 2021 के विधानसभा चुनावों में राज्य में टीएमसी की बड़ी जीत के बावजूद इस क्षेत्र की 11 विधानसभा सीटों में से सात पर जीत हासिल करने में सफल रही.

एक तरह से कहें तो ‘एक दाके अभिषेक’ काफी हद तक ‘दीदी के बोलो (दीदी को बताएं)’ जैसे कार्यक्रम की तरह है—यह पहल प्रशांत किशोर की इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पीएसी) ने पिछले साल पश्चिम बंगाल चुनावों से पहले शुरू की थी. ये न केवल शिकायतों के लिए बल्कि नेताओं को सुझाव देने के लिए 24×7 हेल्पलाइन है.

बताया जाता है कि 18 जून को इस पहल के बाद से अभिषेक हेल्पलाइन को डायमंड हार्बर से 1.5 लाख कॉल मिल चुके हैं.

आई-पीएसी की तरफ से साझा की गई एक प्रेस रिलीज के मुताबिक, ‘अधिकांश शिकायतें स्वास्थ्य सेवाओं, कानून और व्यवस्था की समस्याओं से जुड़ी हैं. कम से कम 39,000 कॉल पश्चिम बंगाल के अन्य हिस्सों से आए हैं.’

तृणमूल के राज्य सभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने दिप्रिंट को बताया कि अभिषेक ‘शानदार संगठनात्मक कौशल और मजबूत त्रिभाषी संचार कौशल’ के धनी हैं.

उन्होंने कहा, ‘कई सालों तक पार्टी की युवा शाखा के प्रमुख के तौर पर उत्कृष्ट कार्य करने और दो बार लोकसभा सांसद बनने के बाद अभिषेक को एक साल पूर्व राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था. उनके पास शानदार संगठनात्मक कौशल और मजबूत त्रिभाषी संचार कौशल दोनों हैं. यह एक खास विशेषता है. भारत आने वाले सालों और दशकों में उन्हें और बेहतर तरीके से जान पाएगा.’

अभिषेक बनर्जी ने गुरुवार को पहली बार टीएमसी का रोड मैप समझाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास के बाहर प्रेस को संबोधित किया. उन्होंने यह भी ऐलान भी किया कि पार्टी 6 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहेगी.

यह प्रेस कांफ्रेंस इस लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि आमतौर पर या तो खुद ममता बनर्जी, पार्थ चटर्जी और सुब्रत बख्शी जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेता या फिर लोकसभा या राज्य सभा में पार्टी के फ्लोर लीडर्स यहां प्रेस को संबोधित करते हैं.


यह भी पढ़ें: मॉरीशस जासूसी कांड- भारत के ‘मूंछ वाले आदमी’ को लेकर क्यों मचा हुआ है बवाल


एक नेता तैयार हो रहा

वह 2011 का साल था, जब बुआ ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का 34 वर्ष से जारी शासन ध्वस्त कर दिया था, उसी समय अभिषेक बनर्जी ने राजनीति में कदम रखा था.

वो ममता बनर्जी के परिवार के पहले सदस्य हैं जो राजनीति के मैदान में उतरे और तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा बने. 21 जुलाई 2011 को कोलकाता में शहीद दिवस रैली में अभिषेक बनर्जी को टीएमसी का युवा अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

तीन साल बाद वह पहली बार सांसद बने.

ममता बियॉन्ड 2021 के लेखक जयंत घोषाल ने दिप्रिंट को बताया कि अभिषेक ‘तृणमूल कांग्रेस में संगठनात्मक स्तर पर एक नया ढांचा ला रहे थे (और) इसे गहरा और मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘वह अराजक तत्वों को बाहर निकालने, आधुनिक तर्ज पर जिला इकाइयों का पुनर्निर्माण करने और जबरन वसूली और भ्रष्टाचार से पार्टी को मुक्त कराने के इच्छुक हैं. अभिषेक तृणमूल कांग्रेस की छवि चमका रहे हैं और वह निर्विवाद रूप से तृणमूल में दूसरे नंबर के नेता हैं.’

2021 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों ने अभिषेक बनर्जी पर ‘जबरन वसूली और सिंडिकेट राज’ चलाने का आरोप लगाया था.

शाह ने 1 फरवरी 2021 को पश्चिम बंगाल के डुमुरजुला में एक रैली को संबोधित करते हुए यह भी कहा, ‘मोदी सरकार जन कल्याण के लिए काम करती है जबकि ममता बनर्जी सरकार भतीजे के कल्याण के बारे में चिंतित है.’

हालांकि, पार्टी के लोग वंशवाद के आरोप को निराधार बताते हैं.

घोष ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा को तो वंशवाद की राजनीति पर नहीं ही बोलना चाहिए, क्योंकि इसकी खुद की एक लंबी फेहरिस्त है. आप किसी को कुर्सी दे सकते हैं लेकिन नेता नहीं बना सकते. अभिषेक ने खुद को साबित किया है और इसलिए भाजपा जानती है कि खतरा कहां है. अभिषेक लगातार अपना कौशल निखार रहे हैं और अब वह एक परखे हुए नेता हैं. ममता की कही बात पार्टी के लिए अंतिम होती है लेकिन अभिषेक ने इसमें 2022 एडिशन जोड़ दिया है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: किसानों को गांजे की खेती से कैसे रोका जाए? नकद सहायता रोक सकती है तेलंगाना सरकार


 

share & View comments