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Thursday, 31 October, 2024
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मध्य प्रदेश में मुसलमानों की राजनीतिक हैसियत क्या है?

मध्य प्रदेश में भाजपा-कांग्रेस ने कुल 4 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. राज्य में मुस्लिम प्रतिनिधित्व के नाम पर सिर्फ एक विधायक है, सांसद एक भी नहीं.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए लगभग सभी 230 सीटों पर प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. अगर हम उम्मीदवारों की सूची को देखें तो प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को टिकट देने से परहेज़ किया है. सत्तारूढ़ भाजपा ने जहां एक मुसलमान प्रत्याशी फातिमा सिद्दीक़ी को टिकट दिया है तो वहीं विपक्षी कांग्रेस ने मात्र तीन मुस्लिमों को उम्मीदवार बनाया है. इसमें भोपाल उत्तर से आरिफ अकील, सिरोंज से मुसर्रत शाहिद और भोपाल मध्य से आरिफ मसूद शामिल हैं.

मुसलमानों की कितनी हिस्सेदारी?

2011 की जनगणना के मध्य प्रदेश की कुल आबादी में 6.57 प्रतिशत मुसलमान हैं. यानी राज्य में करीब 50 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के 51 ज़िलों में से 19 में मुसलमानों की आबादी 1 लाख से ज़्यादा है. प्रदेश के भोपाल ज़िले की कुल आबादी में 22 प्रतिशत तो बुरहानपुर ज़िले की कुल आबादी में 24 फीसदी मुसलमान हैं.


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प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों में मुस्लिमों की अच्छी खासी संख्या है. इसमें से एक दर्जन सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है. इंदौर-1, इंदौर-3, उज्जैन, जबलपुर, खंडवा, रतलाम, जावरा, ग्वालियर, शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, नसरुल्लागंज, इछावर, आष्टा और उज्जैन दक्षिण सीट जैसी विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों का अच्छा खासा असर है.

मुसलमानों को कितना राजनीतिक प्रतिनिधित्व?

मध्य प्रदेश विधानसभा में अभी एकमात्र मुस्लिम विधायक कांग्रेस के आरिफ अकील हैं. भोपाल उत्तर से इस बार भी कांग्रेस के उम्मीदवार आरिफ अकील पिछले तीन विधानसभा चुनावों में जीतने वाले एकमात्र मुस्लिम विधायक हैं. मध्य प्रदेश से किसी भी मुस्लिम सांसद ने भी जीत नहीं हासिल की है.

2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 5 और भाजपा ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा था जिसमें से 1 विधायक जीतने में सफल हुआ.

2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 5 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था. भाजपा ने किसी को उम्मीदवार नहीं बनाया था. इस चुनाव में भी एक मुस्लिम विधायक चुना गया था.

2003 विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने 5 मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था. भाजपा ने इस चुनाव में भी किसी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया था. इस चुनाव में भी एक मुस्लिम विधायक चुना गया था.


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1998 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 4 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. भाजपा ने इस बार भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था. चुनाव में एक निर्दलीय समेत कुल 3 मुसलमान विधायक चुने गए थे.

1993 के विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम जीत कर नहीं आ पाया था, तब कांग्रेस ने छह उम्मीदवारों को टिकट दिया था.

मध्य प्रदेश में 1962 में सबसे ज़्यादा सात मुस्लिम विधायक बने थे. इसके बाद से लगातार मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व घटता चला गया. 1967 में तीन, 1972 में 6, 1977 में 3, 1985 में 5, 1990 में 3 मुस्लिम विधायक चुने गए. 1985 और 1990 में भाजपा के टिकट पर एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचा था.

1993 में भाजपा ने अब्दुल गनी अंसारी को टिकट दिया था, लेकिन वे अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए. इसके बीस साल बाद पार्टी ने भोपाल उत्तर से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ बेग को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा.

क्या कहती हैं पार्टियां?

मध्य प्रदेश चुनाव में वैसे भी कहा जा रहा था कि कांग्रेस अपनी मुस्लिमों की हितैषी छवि से छुटकारा पाना चाह रही है. प्रदेश में कांग्रेस ने पहली बार अपने घोषणा पत्र में गाय, नर्मदा, राम वनगमन पथ और अध्यात्म पर खुल कर बात की है.

मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के मसले पर कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना कहते हैं, ‘आप सिर्फ मुसलमानों की बात नहीं करिए, पूरे अल्पसंख्यक समुदाय की बात करिए. कांग्रेस पार्टी ने लगभग 22 अल्पसंख्यकों को टिकट दिया है. उसमें जैन समाज से 12 से 15, मुस्लिम समाज से 3 और दो ईसाई समुदाय से हैं. आप इस सूची को सिर्फ मुसलमानों के हिसाब से नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के तहत देखिए.’

वहीं, मुसलमानों को पर्याप्त टिकट नहीं देने का आरोप भाजपा पर पिछले कई विधानसभा चुनावों से लग रहे हैं. माना जाता है कि भाजपा ऐसा एक सोची समझी रणनीति के तहत कर रही है.

प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं, ‘भाजपा ने कार्यकर्ताओं की भावना, जनता की अपेक्षा और जीतने की संभावना के आधार पर टिकट दिया है. जाति, पंथ, मजहब के आधार पर टिकट का वितरण नहीं किया गया है. हम वह पार्टी हैं जिसने 60 से ज़्यादा जाति बिरादरी को प्रतिनिधित्व दिया है. इसे इस रूप में देखने की ज़रूरत नहीं है. हमारी जो विचारधारा थी वही विचारधारा है. उसमें कही भी कोई संकोच नहीं है. हम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा लेकर कल भी चलते थे और आज भी चल रहे हैं.’

दूसरी ओर कांग्रेस और भाजपा को मिलाकर लगभग 460 उम्मीदवारों में से सिर्फ 4 मुस्लिम उम्मीदवार होने पर वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, ‘मुस्लिम प्रतिनिधित्व लोकसभा और राज्यों के विधानसभाओं में लगातार गिरता जा रहा है. इसको लेकर किसी को चिंता नहीं है. इसके जो भी कारण हों लेकिन यह बहुत खराब है. लोकतंत्र में किसी भी समुदाय को भागीदारी या हिस्सेदारी न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है. एक तरीके से यह लोकतंत्र का मखौल उड़ाता है. लोकतंत्र में संख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व होना चाहिए. लेकिन अब समस्या है कि जीत ही सबकुछ तय कर रही है.’

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