मध्य प्रदेश में पिछले तीन विधानसभा चुनाव हारकर 15 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस इस चुनाव में भी अंतर्कलह से बाहर नहीं निकल पा रही है.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए जहां एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ताबड़तोड़ रैलियां करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर हमला कर रहे हैं तो दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस के नेता अपने अंतर्कलह से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
हाल के दिनों में पहले दिग्विजय सिंह, फिर पूर्व विधायक कल्पना पारुलेकर और बाद में जीतू पटवारी के वीडियो मीडिया में चर्चा में रहे और इसने राज्य कांग्रेस की आंतरिक स्थिति को उजागर कर दिया.
दरअसल, सबसे पहले दिग्विजय सिंह का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह कहते दिखे कि उनके प्रचार से कांग्रेस के वोट कटते हैं. भाजपा द्वारा मिस्टर बंटाधार की उपाधि पाए दिग्विजय के इस बयान पर कांग्रेस की पूर्व विधायक कल्पना पारुलेकर ने कहा, ‘जब दिग्विजय सिंह को मालूम है कि वह मिस्टर बंटाधार हैं तो उन्हें यह बयान देने की क्या ज़रूरत थी.’ कल्पना की हाल में ही कमलनाथ ने कांग्रेस में वापसी कराई है.
इसके बाद प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी का एक वीडियो सामने आया जिसमें अपने इलाके में जनसंपर्क करते हुए वह एक व्यक्ति से कहते सुनाई दे रहे हैं कि ‘आपको मेरी इज़्ज़त रखनी है, पार्टी गई तेल लेने.’
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इन सारे बयानों को भाजपा इन चुनावों में बड़े ज़ोर-शोर से उठाकर भुनाने की कोशिश कर रही है. दरअसल आंतरिक गुटबाज़ी से वाकिफ कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने इस साल 26 अप्रैल को मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर सांसद कमलनाथ की नियुक्ति कर इसको साधने की कोशिश की थी.
एक समय ऐसा भी आया जब प्रदेश के सभी बड़े नेता अजय सिंह, सुरेश पचौरी, दिग्विजय सिंह, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया एक मंच से हुंकार भरते नज़र आये.
लेकिन ऐसे बयानों और पिछले कुछ समय में प्रदेश कांग्रेस के कामकाज पर गौर करें तो पार्टी में कलह बढ़ती ही दिखाई पड़ती है. पिछले करीब छह महीने से मीडिया में कांग्रेस की चर्चा सिर्फ गलत वजहों से हुई है.
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इस बयान के पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लगातार गलत वजहों से चर्चा में रहे. अपनी नर्मदा परिक्रमा यात्रा समाप्त करने के बाद उन्होंने घोषणा की कि वे हर विधानसभा क्षेत्र में जाएंगे और कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को एकजुट कर आगामी चुनाव के लिए पार्टी को तैयार करेंगे. लेकिन कांग्रेस ने उन्हें यात्रा पर जाने से रोक दिया. इसी बीच पार्टी की कमान कमलनाथ के हाथ आ गई. उन्होंने 12 मई को निर्देश जारी किए कि बिना पार्टी की अनुमति कोई भी यात्रा नहीं निकाली जाएगी.
फिर अचानक 22 मई को पार्टी ने दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में समन्वय समिति का गठन करके दिग्विजय को वही काम आधिकारिक तौर पर सौंप दिया जो कि वे पहले निजी यात्रा के माध्यम से करना चाहते थे. बाद में दिग्विजय सिंह की एकता यात्रा हुई लेकिन उसे उतनी तवज्जो नहीं मिली.
बेतुके बोल और टिकट वितरण पर रार
चुनावी तैयारियों में जुटी कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि इन विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों को टिकट जल्दी बांट दिए जाएंगे ताकि उन्हें तैयारी के लिए पर्याप्त वक्त मिल सके. इस संबंध में पहले 15 अगस्त की तारीख तय की गई थी. जिसे बाद में 15 सितंबर, फिर कहा गया कि दशहरा के बाद घोषणा होगी लेकिन, अब तक टिकट वितरण नहीं हुआ है और बार-बार तिथि बढ़ाई जा रही है. अब कहा जा रहा है कि अक्टूबर के अंत तक इसकी घोषणा हो जाएगी.
उम्मीदवारों के संबंध में मध्य प्रदेश में कांग्रेस एक तरह से दिशाहीन दिखाई देती है. एक तरह से लगता है कि पार्टी में यही तय नहीं हो सका है कि टिकट पाने की योग्यता क्या होनी चाहिए? किस पर और क्यों दांव खेला जाना चाहिए? टिकट वितरण की क्या शर्तें और नीतियां होनी चाहिए?
इसलिए कभी टिकट के दावेदारों से पार्टी फंड में डिमांड ड्राफ्ट की मांग की जाती है तो कभी सोशल मीडिया पर फॉलोवर्स की. गौरतलब है कि पार्टी संगठन प्रभारी और उपाध्यक्ष चंद्रप्रभाष शेखर ने सर्कुलर जारी किया था कि टिकट उन्हीं दावेदारों को मिलेगा जिनके फेसबुक पेज पर 15,000 लाइक हों और ट्विटर पर 5,000 फॉलोवर्स. बाद में किरकिरी होने के बाद इस फैसले को वापस लिया गया.
इसके अलावा नियम बना कि संगठन के नेताओं को टिकट नहीं दिया जाएगा. बाद में कहा गया कि अगर संगठन का पदाधिकारी टिकट मांगता है और उसमें जीतने की क्षमता है तो उसे टिकट दिया जा सकता है.
इसी तरह कमलनाथ ने दावा किया कि टिकट पाने के 2500 दावेदारों की लिस्ट उनके पास है जिसमें 30 भाजपा के विधायक भी शामिल हैं जो कांग्रेस से टिकट चाहते हैं. बाद में वे आपने दावे से मुकर भी गए. बाद में राहुल गांधी ने भी एक जनसभा में कहा कि पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया जाएगा.
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वहीं, प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया ने भी बयान दिया कि 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले नेताओं और दो बार लगातार चुनाव हारने वालों को टिकट नहीं दिया जाएगा. बाद में इस बयान को भी वापस लिया गया.
दीपक बावरिया का एक और बयान बहुत चर्चा में रहा जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार बनने पर प्रदेश में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी उप मुख्यमंत्री बनेंगे क्योंकि वे दलित हैं. इसका विरोध कई कांग्रेसी नेताओं ने खुलकर किया.
कुछ समय बाद दीपक बावरिया ने कमलनाथ और सिंधिया में से किसी एक के मुख्यमंत्री बनने की घोषणा कर दी. जिसकी प्रतिक्रिया में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के समर्थकों ने उन पर हमला भी कर दिया.
हालांकि इस पर कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना कहते हैं, ‘पार्टी में किसी तरह की गुटबाज़ी नहीं है. सभी नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में एकजुट होकर भाजपा को हराने का काम कर रहे हैं. इस बार हम जीतने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और जब जीतने के लिए चुनाव लड़ा जाता है तो एक एक प्रत्याशी पर बहुत गहन विचार और मंथन किया जाता है. राहुल गांधी ने इस बार साफ कहा है कि जो हमने सर्वे कराया है उस के हिसाब से जीतने वाले प्रत्याशी को टिकट दिया जाएगा.’
वहीं टिकट बंटवारे को लेकर हो रही देरी और कांग्रेस के भीतर मची रार पर स्थानीय पत्रकार दीपक गोस्वामी ने कहा, ‘टिकट बंटवारे में देरी से कांग्रेस का ही नुकसान हो रहा है. इससे पार्टी को आंतरिक गुटबाज़ी को संभालने का समय नहीं मिलेगा. दरअसल मध्य प्रदेश में हर विधानसभा सीट पर अलग अलग कम से कम तीन गुटों के उम्मीदवार अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. किसी एक को टिकट मिलने की स्थिति में बाकी बगावत पर उतर आएंगे. ऐसे में टिकट बंटवारे में देरी की वजह यही समझ आ रही है कि पार्टी यह चाह रही है कि बागियों को निर्दलीय या दूसरी पार्टी में शामिल होकर चुनाव लड़ने का मौका न दिया जाए. फिलहाल टिकट बंटवारे के बाद कांग्रेस में कलह ज़्यादा बड़े पैमाने पर निकलकर सामने आएगी.’
कैसी चल रही है कांग्रेस की चुनावी तैयारी?
कांग्रेस की चुनावी तैयारी भी कुप्रबंधन का शिकार नज़र आती है. पार्टी पहले शिवराज की जनआशीर्वाद यात्रा के खिलाफ जनजागरण यात्रा निकालने की घोषणा करती है. दावा किया गया कि जहां-जहां शिवराज अपनी यात्रा लेकर जाएंगे, उनके पीछे-पीछे कांग्रेस अपनी जनजागरण यात्रा निकालेगी और शिवराज के दावों की पोल खोलकर रख देगी. लेकिन यह यात्रा कैसी रही, इसका पता मीडिया को भी नहीं चला. इसकी चर्चा तब हुई जब कांग्रेस के ही कार्यकारी अध्यक्ष बाला बच्चन यात्रा को असफल बताते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया से कोई अन्य यात्रा निकालने का आग्रह करते हैं.
फिलहाल अब कांग्रेस ने तय किया है कि शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा जहा-जहां जाएगी, वहां कांग्रेस पोल खोलने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करेगी.
कांग्रेस प्रवक्ता रवि सक्सेना कहते हैं, ‘हमारा चुनावी कैंपेन बेहतर तरीके से चल रहा है. कांग्रेस के छोटे बड़े नेता अपने अपने स्तर पर प्रचार कर रहे हैं. इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने 40 दिन 40 सवाल पूछने का सिलसिला शुरू किया है. सोशल मीडिया की हमारी टीम अलग है. जिसने पूरे राज्य के भीतर 12 हज़ार युवा हमसे जुड़े हुए हैं जो सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों से भाजपा सरकार की दावों का पोल खोलने का काम कर रहे हैं.’
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हालांकि, सोशल मीडिया पर कांग्रेस ने भाजपा की कितनी पोल खोली है यह तो पता नहीं लेकिन समर्थकों द्वारा अपने-अपने नेताओं को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए ट्विटर वॉर छेड़ना ज़रूर चर्चा में रहा.
पिछले दिनों कमलनाथ और सिंधिया के समर्थकों में सोशल मीडिया पर ऐसी ही जंग छिड़ी दिखी. ट्विटर पर ‘चीफ मिनिस्टर सिंधिया’ और ‘कमलनाथ नेक्स्ट एमपी सीएम’ ने ट्रेंड किया और दोनों नेताओं को सफाई देने सामने आना पड़ा. दिग्विजय सिंह को लेकर भी ऐसा ही हुआ. उन्हें भी सीएम चेहरा बनाने के लिए ट्विटर पर उनके समर्थकों ने मोर्चा संभाला. दिग्विजय को भी सामने आकर सफाई देनी पड़ी.
हालांकि कांग्रेस की छात्र ईकाई एनएसयूआई के भोपाल अध्यक्ष आशुतोष चौकसे कहते हैं, ‘कांग्रेस की चुनावी तैयारी पूरे जोर शोर से चल रही है. अभी पार्टी के प्रत्याशी घोषित नहीं हुए हैं लेकिन हम डोर टू डोर कैंपेन करके जनसंपर्क का काम कर रहे हैं. छोटी छोटी जनसभाओं का आयोजन किया जा रहा है. हमें जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है.’
सॉफ्ट हिंदुत्व की राह
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्य प्रदेश में भी किसी चुनावी दौरे की शुरुआत गुजरात की तरह मंदिर से कर रहे हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश में सरकार बनने पर कांग्रेस ने 23 हज़ार पंचायतों में गोशाला निर्माण की घोषणा की है. साथ ही नर्मदा परिक्रमा पथ निर्माण, राम गमन पथ निर्माण करने जैसी घोषणाएं इशारा करती हैं कि कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर है.
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक बताते हैं,‘कांग्रेस साफ्ट हिंदुत्व की बात करके भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रही है. राहुल गांधी ने धर्म का कार्ड खेलकर भाजपा को हमलावर नहीं होने दिया है. मध्य प्रदेश में हिंदू बहुसंख्यक हैं और लोग धार्मिक रूप से संवेदनशील हैं. ऐसे में रामभक्त या शिवभक्त राहुल का मज़ाक भी नहीं उड़ाया जा सकता है. इसका फायदा निश्चित तौर पर कांग्रेस को मिलेगा.’
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वे आगे कहते हैं, ‘इस बार मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करके भी कांग्रेस ने बेहतर काम किया है. इसके चलते भाजपा उनपर उतने तीखे हमले नहीं कर पा रही है जितना कि पहले के चुनावों में किया करती थी.’
फिलहाल मध्य प्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के इस वक्त 58 सदस्य हैं. इससे पहले के चुनावों 2008 में पार्टी के 71 और 2003 में 39 विधायक थे.
इस बार कांग्रेस के नेता कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया हर बेरोज़गार युवा को रोज़गार देने की बात तो कर रहे हैं, लेकिन यह संभव कैसे होगा इसकी रणनीति पेश नहीं कर पा रहे हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस की सत्ता में वापस आने की कोशिश राहुल गांधी द्वारा की गई किसानों की कर्ज़ माफी के वायदे और एंटी इंकम्बेंसी पर आकर टिक गई है.