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Saturday, 9 November, 2024
होमराजनीति‘कृष्ण बनाम कंस’ — बिहार जाति सर्वे के बाद BJP यादव वोटों के लिए नए सिरे से प्रयास में जुटी

‘कृष्ण बनाम कंस’ — बिहार जाति सर्वे के बाद BJP यादव वोटों के लिए नए सिरे से प्रयास में जुटी

गोवर्धन पूजा के दिन पार्टी ने हज़ारों यादवों को पटना में एक समारोह में भाग लेने के लिए इकट्ठा किया. राज्य में बीजेपी के 7 विधायक और 3 सांसद हैं, लेकिन समुदाय को लुभाने की पिछली कोशिशें ज्यादा सफल नहीं रहीं.

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पटना: लोकसभा चुनाव से लगभग छह महीने पहले, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बिहार में यादवों को लुभाने और एकजुट करने की कोशिश में जुटी हुई है. यह समुदाय बड़े पैमाने पर लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ जुड़ा हुआ है.

मंगलवार को गोवर्धन पूजा के मौके पर बीजेपी ने पटना में एक समारोह में भाग लेने के लिए राज्य भर से यादव समुदाय के अनुमानित 20,000 सदस्यों को इकट्ठा किया. इसका आयोजन केंद्रीय राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने किया था और शहर भर में बीजेपी के लगभग सभी यादव नेताओं के पोस्टर लगाए गए थे. यह भाजपा द्वारा विशेष रूप से प्रमुख ओबीसी जाति — यादवों के लिए आयोजित किया गया पहला मेगा कार्यक्रम था.

राज्य विधान परिषद में भाजपा के उपनेता नवल किशोर यादव ने दिप्रिंट को बताया, “यादव दो प्रकार के होते हैं — एक कंस (पौराणिक राक्षस राजा) के अनुयायी हैं और दूसरे भगवान कृष्ण के अनुयायी हैं. जो लोग भगवान कृष्ण का अनुसरण करते हैं, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विकास के दृष्टिकोण के अनुयायी हैं.”

सनातन धर्म में जाति का मिश्रण किया जा रहा है. नवल किशोर ने आगे कहा, “राजद नेता बार-बार सनातन धर्म को अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं जैसे (बिहार) के शिक्षा मंत्री चंद्र शेखर ने रामचरितमानस को अपमानित किया है, बिहार में लगभग 70 प्रतिशत यादव शाकाहारी हैं और सनातन धर्म के कट्टर अनुयायी हैं. यह गलत धारणा है कि यादव केवल राजद को वोट देते हैं. बड़ी संख्या में लोगों ने हमें वोट दिया है.”

इस बीच राजद यादवों को लुभाने के भाजपा के प्रयासों का मजाक उड़ा रहा है. राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने दिप्रिंट को बताया, “भाजपा के यादव नेता उन बंदरों की तरह हैं जिनकी पूंछ काट दी गई है और वे चाहते हैं कि दूसरे भी उनका अनुसरण करें. ऐसा कभी नहीं होगा क्योंकि यादव जाति बड़े पैमाने पर समाजवादी आंदोलन से जुड़ी रही है.”

दिप्रिंट से बात करने वाले अन्य राजद नेताओं ने भाजपा के कदम को डैमेज कंट्रोल की कोशिश बताया क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 नवंबर को मुजफ्फरपुर जिले की रैली में आरोप लगाया था कि नीतीश कुमार सरकार के जाति सर्वे में यादवों और मुसलमानों के पक्ष में हेरफेर किया गया था.

जातीय सर्वे में बिहार में यादवों को 14 प्रतिशत से अधिक बताया गया है. यह एक बड़ी आबादी है जिसे कोई भी राजनीतिक दल नज़रअंदाज नहीं कर सकता.


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यादव वोट और उनका इतिहास

1990 में बिहार के राजनीतिक क्षेत्र में लालू के आगमन से पहले, यादव जाति की वफादारी विभाजित हो गई थी. बी.पी. मंडल और कांग्रेस नेता स्वर्गीय राम लखन सिंह यादव, जिन्हें ‘शेर-ए-बिहार’ भी कहा जाता है, जैसे समाजवादी नेता थे, जिनका बिहार में यादवों पर काफी प्रभाव था.

हालांकि, 1990 और खासकर मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद, यादवों ने अपनी वफादारी पूरी तरह से लालू के प्रति स्थानांतरित कर दी. अगर नीतीश कुमार और बीजेपी 2005 में लालू को हराने में सफल रहे, तो इसका मुख्य कारण गैर-यादव पिछड़ी जातियों का एकजुट होना था.

यादव नेता लेकिन वोट नहीं

बिहार में बीजेपी के पास यादव नेता हैं. राज्य विधानसभा में इसके 78 विधायकों में से सात इसी जाति के हैं, साथ ही राज्य के 17 लोकसभा सांसदों में से तीन भी इसी जाति के हैं, लेकिन कुल मिलाकर, यादव वोट पार्टी के लिए मायावी साबित हुए हैं.

यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने यादव वोटों पर दांव लगाया है. 2013 में नरेंद्र मोदी, जो तब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, ने गांधी मैदान में अपने पहले भाषण में घोषणा की कि यादव मतदाताओं पर उनका स्वाभाविक दावा है, उन्होंने लोगों से कहा, “मैं द्वारका की भूमि से आता हूं (जहां माना जाता है कि भगवान कृष्ण रहते थे).” 2015 में, भाजपा ने नित्यानंद राय — वर्तमान राज्य मंत्री (गृह मामले) और पार्टी का यादव चेहरा — को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया. हालांकि, जहां तक यादव मतदाताओं का सवाल है, इसने भाजपा की किस्मत नहीं बदली.

2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में यादवों के एक वर्ग ने भाजपा को वोट दिया. 2019 के चुनावों के लिए सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव बाद सर्वे के अनुसार, बिहार में लगभग 22 प्रतिशत समुदाय ने भाजपा को वोट दिया था, जबकि बाकी ने ग्रैंड अलायंस को वोट दिया था.

नवल किशोर यादव ने कहा, “मैं 1995 से विधायक रहा हूं और ऐसी सीट पर नहीं हारा हूं जहां बहुत सारे यादव मतदाता हैं. इस बार हम जो बदलाव कर रहे हैं, वह यादवों को हमारी पार्टी के कैडर के रूप में लाने की कोशिश है.”

हालांकि, बीजेपी नेता भी मानते हैं कि पार्टी के ज्यादातर सांसद और विधायक गैर-यादव वोटों से जीते हैं. नाम न छापने की शर्त पर बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “उजियारपुर में नित्यानंद राय और पाटलिपुत्र में राम कृपाल यादव को यादव वोटों का केवल एक अंश मिला. केवल मधुबनी में अशोक यादव को अधिकांश यादव वोट मिले.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


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