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Friday, 20 December, 2024
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खान बंधु- बिहार में शहाबुद्दीन के आपराधिक साम्राज्य की राख से उठी एक नई ताकत

गैंगस्‍टर से राजनेता बने शहाबुद्दीन की पत्नी कहती हैं कि उन्हें रईस खान और अयूब खान से खतरा महसूस होता है- वो कथित पूर्व-गुर्गे जो कथित रूप से सीवान जिले में शहाबुद्दीन की विरासत पर दावा ठोंक रहे हैं.

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पटना: दशकों तक मोहम्मद शहाबुद्दीन का बिहार के सिवान में एकछत्र राज था- एक आपराधिक साम्राज्य का स्वामी जिसने दर्जनों कत्ल किए थे लेकिन अब कोविड-19 से उसकी मौत होने के एक साल से भी कम समय में उसकी पत्नी इतना खतरा महसूस कर रही हैं कि वो उस इलाके को ही छोड़ने का मन बना रही हैं.

ऐसा कथित रूप से उस खतरे के चलते है, जो दिवंगत सांसद के एक कथित गुर्गे रईस खान और उसके भाई अयूब खान की ओर से महसूस कराया जा रहा है. देखा जा रहा है कि खान बंधु के नाम से चर्चित ये जोड़ी, शहाबुद्दीन की विरासत को कब्जाने की कोशिश कर रही है- जो दिवंगत ठग मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलाल के बाद, जिसने ताजमहल, लाल किले और संसद भवन को ‘बेच’ दिया था, सिवान का दूसरा सबसे कुख्यात अपराधी था.

पिछले हफ्ते जब उसने एक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बिहार विधान परिषद का चुनाव लड़ा (वो हर गया), तो रईस खान के हलफनामे में हत्या, अपहरण और अन्य अपराधों के 12 मामलों का उल्लेख था. अयूब, जिसकी 42 से अधिक मामलों में तलाश थी, जनवरी में गिरफ्तार कर लिया गया.

बृहस्पतिवार को दिप्रिंट के साथ बात करते हुए शहाबुद्दीन की विधवा हिना शहाब ने कहा कि उन्हें और उनके परिवार को खतरा महसूस होता है और वो एक समय अपनी जागीर रहे सिवान को छोड़ देने पर गौर कर रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘अगर मेरे बेटे को कुछ हो जाता है, तो मेरे जिंदा रहने के लिए कुछ नहीं बचेगा. उनकी मौत से पहले 16 साल तक मुझे अपने पति से दूर रखा गया. मेरा बेटा ओसामा महीनों से सिवान में नहीं है. वो दिल्ली में रहता है. फिर भी, गोलीबारी से जुड़ी एक एफआईआर में उसे नामज़द कर दिया गया है. मैं मांग करती हूं कि पुलिस उसे बेगुनाह घोषित करे या अगर मुझे इंसाफ नहीं मिलता, तो मैं सिवान छोड़ सकती हूं’.

वो 5 अप्रैल को एक गोलीबारी के मामले से जुड़ी एफआईआर का ज़िक्र कर रहीं थीं, जब विधान परिषद चुनाव के बाद एक काफिले में लौटते हुए रईस खान पर गोलियां चलाई गईं थीं. हालांकि हमले में खान बच गया लेकिन एक व्यक्ति की मौत हो गई. खान ने स्थानीय पुलिस थाने में एक एफआईआर दर्ज कराई , जिसमें ओसामा समेत सात लोगों को नामज़द किया गया था.

सिवान पुलिस अधीक्षक (एसपी) एसके सिन्हा ने कहा, ‘मामले की अभी जांच चल रही है’. जहां हिना शहाब ने ज़ोर देकर कहा कि ओसामा को फंसाया गया था, वहीं रईस खान ने इसका खंडन किया. उसने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं कोई बच्चा नहीं हूं जिसे पढ़ा दिया जाए. मैं इंसाफ चाहता हूं’.


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मोहम्मद शहाबुद्दीन

एक स्टांप विक्रेता का बेटा शहाबुद्दीन 1992 तक एक छोटा अपराधी था, जब वो एक निर्दलीय के तौर पर सिवान जिले के जीरादेई से बिहार विधानसभा के लिए चुना गया- जो भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का जन्म स्थान था.

उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने शहाबुद्दीन को अपनी छत्रछाया में ले लिया और 1996 में शहाबुद्दीन सिवान से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सांसद बन गया- जिस सीट पर 2009 तक उनका कब्जा बना रहा, जब हत्या और अपहरण के कई मामलों में दोषी पाए जाने के बाद वो चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गया.

सिवान पर उसका मुकम्मल राज था- कथित तौर पर ‘न्याय’ देने के लिए उसने एक समानांतर कोर्ट प्रणाली भी स्थापित कर ली थी, डॉक्टरों की फीस भी तय कर दी. उसके राजनीतिक विरोधियों को चुनावों के दौरान पोस्टर भी लगाने नहीं दिया जाता था और उसके खिलाफ 40 से अधिक आपराधिक मामले जमा हो गए.

1997 में जब शहाबुद्दीन के कथित गुर्गों ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संगठन के पूर्व अध्यक्ष की हत्या कर दी, तो पूरे देश में नाराज़गी की लहर दौड़ गई. 1996 में शहाबुद्दीन के आदमियों ने सिवान के तत्कालीन एसपी एसके सिंघल को मारने की कोशिश की- जो अब बिहार के पुलिस महानिदेशक हैं.

2004 में शहाबुद्दीन ने तेज़ाब में डुबाकर दो भाइयों की हत्या कर दी, जिसके लिए उसे दोषी ठहराया गया. 1999 के लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान, एक छोटी सी अवधि में जनता दल (यू) के कई कार्यकर्ता मार डाले गए.

2004 में शहाबुद्दीन को 1999 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी लिबरेशन) के एक कार्यकर्ता को अगवा करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया, जिसे फिर कभी नहीं देखा गया. उसके बाद से जेल के बाहर उसकी जिंदगी बहुत छोटी रही और आखिर में उसे तिहाड़ जेल भेज दिया गया.

आरजेडी, उसकी पत्नी हिना शहाब को, जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, 2009 के बाद से सिवान में अपनी उम्मीदवार के तौर पर खड़ा करता आया है और उन्हें हर बार हार मिली है. खुद शहाबुद्दीन तिहाड़ जेल में कोविड की चपेट में आ गया और 1 मई 2021 को अस्पताल में उसकी मौत हो गई. उसके शव को किसी अज्ञात जगह पर दफ्ना दिया गया और उसे वापस दिल्ली लाने की इजाज़त नहीं दी गई.


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खान बंधु

कहा जाता है कि रईस खान और अयूब खान वो लोग हैं जो शहाबुद्दीन की हर बात मानते थे लेकिन 2005 में उनके पिता सांसद की इच्छा के खिलाफ सिवान से विधानसभा चुनावों में खड़े हो गए. इस बगावत के लिए शहाबुद्दीन ने उनके पिता को अगवा कर लिया और फिर चेतावनी देकर छोड़ दिया. माना जाता है कि खान बंधुओं ने उसके बाद बगावत कर दी और अपना एक अलग गैंग शुरू कर दिया.

स्थानीय लोगों का कहना था कि खान को अब जेडी(यू) सांसद कविता सिंह और उनके पति अजय सिंह से संरक्षण मिलता है. एक स्थानीय विधायक ने, जो अपना नाम छिपाना चाहते थे, ने कहा, ‘वो एक मुस्लिम चेहरा तैयार करना चाहते हैं, जो आरजेडी से मुस्लिम वोट खींच सके क्योंकि हिना शहाब ने लोकसभा चुनाव लड़े हैं और वो हारी हैं लेकिन फिर भी उन्हें सिवान के सारे मुस्लिम वोट मिल जाते हैं. लगता है कि ये योजना काम कर गई है क्योंकि पंचायत निकायों के एमएलसी चुनावों में रईस खान हालांकि हार गया लेकिन फिर भी उसे अधिकतर मुस्लिम वोट मिल गए’.

लेकिन जेडी(यू) इससे इनकार करती है कि उसका खान से कोई लेना-देना है. एमएलसी नीरज कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम ऐसे लोगों के साथ कोई वास्ता नहीं रखते, जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि हो’.

शहाबुद्दीन के दौर में ये जिला राज्य के भीतर एक राज्य था- सांसद की मर्ज़ी के बिना यहां पत्ता भी नहीं हिल सकता था. लेकिन उसकी मौत के बाद से लगता है कि उसका साम्राज्य बिल्कुल बैठ गया है- भले ही राजनेताओं ने अक्टूबर 2021 में 27 वर्षीय ओसामा की शादी में खूब शान बढ़ाई हो.

सिवान के एक पूर्व विधायक ने कहा, ‘एक आयुर्वेदिक कॉलेज था जिसे शहाबुद्दीन ने स्थापित किया था और वही उसे चलाता था, जिसपर स्थानीय राजनेताओं ने कब्जा कर लिया है. परिवार के पास सिवान शहर में कुछ व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं, जिन्हें आसानी से बेचा जा सकता है. शूटर्स और अपराधी जो पहले शहाबुद्दीन के राज में सहायता करते थे वो अब परिवार को छोड़ गए हैं, चूंकि परिवार अब उन्हें संरक्षण देने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है. हिना शहाबुद्दीन कोई शहाबुद्दीन नहीं हैं. अगर परिवार के लिए हालात और बिगड़ते हैं, तो वो यहां से जा सकते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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