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Thursday, 21 November, 2024
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‘देश बिक रहा है और मैं कुछ ना बोलूं’, BJP को निशाने पर ना लें तो फिर किसे लें: राकेश टिकैत

रविवार को मुजफ्फरनगर की महापंचायत में किसान नेताओं ने मोदी सरकार और भाजपा को निशाने पर लेते हुए उसे उखाड़ फेंकने का आह्वान किया, जिस वजह से आंदोलन के राजनीतिक होने के आरोप लग रहे हैं.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में रविवार को किसानों की महापंचायत पर सवाल उठ रहे हैं कि यह किसान रैली कम राजनीति ज्यादा थी. हालांकि किसान संगठन के नेता इस बात से इनकार कर रहे हैं कि आंदोलन का राजनीतिकरण हो रहा है.

महापंचायत में किसान नेताओं ने मोदी सरकार और भाजपा को निशाने पर लेते हुए उसे उखाड़ फेंकने का आह्वान किया.

किसानों ने कहा कि वह इस आंदोलन को यूपी भर में ले जाएंगे. वह लोगों से अपील करेंगे कि किसान विरोधी भाजपा नेताओं का सामाजिक बहिष्कार किया जाए. गौरतलब है कि अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं.

किसान महापंचायत में मिशन यूपी लांच किया गया जिसमें यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी के खिलाफ प्रचार करने, सड़कों को टोल फ्री कराने, रिलायंस के पेट्रोल पंपों और उसके प्रतिष्ठानों का बहिष्कार करने, बीजेपी नेताओं का सामाजिक बहिष्कार कराने, उत्तराखंड में बीजेपी के खिलाफ प्रचार करने और 27 तारीख को भारत बंद करने का ऐलान किया गया है. लिहाजा इस आंदोलन का यूपी की राजनीति पर गहरा असर पड़ सकता है.

भाजपा नेताओं और मोदी सरकार का कहना है कि कृषि कानून किसानों के पक्ष में है और आंदोलन के नाम पर किसान राजनीति कर रहे हैं.

एक चैनल से बात करते हुए भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि तीन कृषि कानून किसानों के पक्ष में है और आंदोलन के नाम पर अब राजनीति हो रही है. वहीं केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने कहा कि यह कुछ किसान संगठनों का चलाया हुआ कार्यक्रम है जो मोदी विरोधी, मनोहर विरोधी और बीजेपी विरोधी है.

वहीं राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) नेता जयंत चौधरी, आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल, सुखबीर सिंह बादल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया है.


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‘देश बचाने की राजनीति’

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने दिप्रिंट से कहा, ‘किसान आंदोलन ना राजीनितक था, ना है और ना रहेगा और ना ही अपने मुद्दे से भटक रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘देश में जो घटनाक्रम हो रहा है उस पर बोलना राजनीति है क्या. देश में बेरोजगारी पर बोलना राजनीति है, देश की मंडियां बिक रही हैं उस पर बोलना राजनीति है, क्या तीन कृषि कानूनों और एमएसपी से अलग बोलना राजनीति है, इसे तो राजनीति नहीं कह सकते. यह तो देश बचाने की राजनीति है.’

गौैरतलब है कि राकेश टिकैत इससे पहले दो बार चुनाव भी लड़ चुके हैं. 2007 में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने चुनाव लड़ा था लेकिन वो हार गए थे. इसके बाद 2014 में आरएलडी के टिकट पर अमरोहा से उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और इसमें भी उन्हें हार मिली.

किसान आंदोलन के राजनीतिक होने के सवाल पर संयुक्त किसान मोर्चा और जय किसान आंदोलन के सदस्य योगेंद्र यादव ने दिप्रिंट से कहा, ‘किसान राजनीति के अखाड़े से बाहर हैं. आंदोलन ना तो कोई चुनाव अभी तक लड़ा है ना ही ऐसी कोई योजना है. लेकिन राजनीति का शिकार किसान राजनीति के प्रति आंख मूंदकर बैठ नहीं सकता.’


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‘देश की दशा-दिशा और सरकार का मिजाज राजनीति से तय होता है’

योगेंद्र यादव ने कहा, ‘लोकतंत्र में देश की दशा-दिशा और सरकार का मिजाज राजनीति से तय होता है इसलिए सरकार की नीति और नीयत का ताला खोलने के लिए राजनीति की चाबी लगानी पड़ेगी.’

‘अगर देश की नीति बदलने का काम राजनीति है तो किसान आंदोलन राजनीति से विमुख नहीं रह सकता. लोकतंत्र में हर बड़ा सवाल राजनीति के पटल पर रखा जाता है और रखा जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘चुनाव में उम्मीदवार बनने को छोड़कर बाकी सब तरह की राजनीति यानि दबाव की राजनीति, संघर्ष की राजनीति, विचार निर्माण की राजनीति, झूठ के काट की राजनीति यह सब किसान आंदोलन करता आया है और करेगा.’

‘जो लोग कहते हैं कि ये (किसान) जबर्दस्ती आंदोलन को 2022 तक खींचेंगे, 2024 तक खींचेंगे तो मोदी जी यह प्रयोग करके क्यों नहीं देख लेते.’


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‘कृषि कानून वापस होते ही आंदोलन भी वापस होगा’

किसान संगठन के नेताओं का कहना है कि अगर मोदी सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेती है और एमएसपी की गारंटी देती है तो आंदोलन वापस ले लिया जाएगा.

योगेंद्र यादव ने कहा, ‘हमने तो हमेशा से कहा है कि तीन कृषि कानून वापस ले लें और एमएसपी की कानूनी गारंटी दे दें तो, आंदोलन वापस हो जाएगा.’

राकेश टिकैत ने कहा कि अगर मोदी सरकार तीनों कानून वापस ले लें, आगे के लिए एक कमेटी बना दें तो आंदोलन वापस हो जाएगा.

किसान आंदोलन के राजनीतिक होने और अपने मूल मुद्दों से भटकने के सवाल पर सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के प्रोफेसर अभय दूबे ने दिप्रिंट से कहा, ‘किसान ने आंदोलन करके देख लिया लेकिन सरकार उसकी सुनने की तैयार नहीं है. जैसा कि किसान आंदोलन चाहता है कि तीनों कृषि कानूनों को खारिज कर दिया जाए लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती और उसने इसे टाल दिया है.’

‘किसान आंदोलन इसको मानने के लिए तैयार नहीं है, उसका मानना है कि जब सरकार को मौका मिलेगा उसे फिर वापस लाएगी. अब किसान आंदोलन के सामने इसके अलावा कोई चारा नहीं बचा है कि वह एक राजनीतिक रूप अख्तियार करे और चुनाव की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करे.’


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‘देश बिक रहा है और मैं कुछ ना बोलूं’

भाजपा और मोदी सरकार को निशाने पर लेने के सवाल पर राकेश टिकैत ने कहा, ‘भाजपा को निशाने पर ना लें तो फिर किसे लें. जो पार्टियां इस मसले में शामिल ही नहीं तो उन्हें निशाने पर क्यों लें, निशाने पर तो उनको लूंगा ना जिसकी सरकार है.’

तीन कृषि कानूनों से अलग दूसरे मुद्दों पर बात करने पर उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट से एक ऑर्डर ला दो मेरे खिलाफ, देश बिक रहा है और मैं कुछ ना बोलूं.’

उन्होंने कहा, ‘मायावती ने गन्ने के दाम 80 रुपये बढ़ाए क्या उनका नाम ना लें, अखिलेश यादव ने 50 रुपये बढ़ाए तो क्या उनका नाम ना लें, योगी जी ने एक रुपया नहीं बढ़ाया तो क्या उनको धन्यवाद दें, जो काम करेगा देश में उसका नाम लिया जाएगा. अगर इसको राजनीति कहते हैं तो हमें बता दो कि कौन देश में राजनीति नहीं कर रहा.’

टिकैत ने कहा, ‘भाजपा के लोग आरोप लगा रहे हैं कि आंदोलन में समाजवादी पार्टी के लोग थे, बीएसपी के लोग थे तो इसमें तो बीजेपी के लोग भी थे. जिन लोगों ने वोट जिसको दिया सब थे, किसान था जो कि आंदोलन कर रहा है.’

हालांकि सीएसडीएस के अभय दूबे कहते हैं, ‘अगर किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पाता है तो फिर उसकी मांगों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. क्योंकि लोकतंत्र में जनता का दबाव आंदोलन के जरिए और चुनावी प्रक्रिया के जरिए व्यक्त होता है. यही दो तरीके हैं.’

‘आंदोलन के जरिए वह व्यक्त करके देख चुका है, चुनावी प्रक्रिया के जरिए उसे व्यक्त करके अभी दिखाना है.’

गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में पिछले 9 महीने से ज्यादा समय से दिल्ली के अलग-अलग सीमाओं पर किसान धरने पर बैठे हैं. सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता भी हो चुकी है लेकिन इस मुद्दे का अभी तक कोई हल नहीं निकला है.


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