नई दिल्ली: यूं ऐसे कई कारक हैं जिन्होंने पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) के उदय में योगदान दिया है. इनमें से एक तो यह भी है कि आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इसके लिए गांधी परिवार को धन्यवाद देना चाहिए.
शुरुआत में, कांग्रेस आरामदेह स्थिति में दिख रही थी, खासकर यह देखते हुए कि उसके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने जिस तरह से विवादास्पद कृषि कानूनों के विषय पर खुद को एक अजीब से बंधन में उलझा लिया था – पहले तो यह एनडीए के भागीदार के रूप में इस बारे में निर्णय लेने वाली प्रक्रिया का हिस्सा बनी और फिर इसके विरोध में एनडीए सरकार से बाहर निकलने का फैसला किया.
हालांकि, गांधी परिवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को बाहर का रास्ता दिखाते हुए अपनी नाव खुद ही डुबोने का विकल्प चुना. उसके बाद कांग्रेस लगातार नीचे की ओर जा रही थी. उसकी राज्य इकाई के प्रमुख और गांधी परिवार के विश्वासपात्र नवजोत सिंह सिद्धू लगातार अपनी ही सरकार पर कटाक्ष कर रहे थे और अन्य नेता भी आपस में ‘चिक-चिक’ (कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा एनडीटीवी पर बहस में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द) कर रहे थे.
इसने दो स्थापित पार्टियों – कांग्रेस और अकाली दल- के दशकों से निष्प्रभावी शासन के बाद बदलाव के लिए लोगों की तड़प को और तेज कर दिया. अमरिंदर सिंह, जिन्होंने लगातार किसानों के आंदोलन का समर्थन किया था, के पार्टी से बाहर होने के साथ कांग्रेस ने उनके बीच मौजूद अपना सबसे बड़ा दूत भी खो दिया. आप ने पंजाब के किसानों को उस वक्त सक्रिय रूप से समर्थन दिया था जब वे एक साल तक दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे थे और इसने उनके बीच अपने प्रति सद्भावना का भरपूर फायदा भी उठाया.
लेकिन पंजाब में आप की ऐतिहासिक जीत का श्रेय सिर्फ उसके राजनीतिक विरोधियों की विफलताओं को ही नहीं दिया जा सकता. इसके पीछे केजरीवाल द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति थी, जो गांधी परिवार के विपरीत एक तेजी से सीखने वाले शख्श है. आप ने 2017 के विधानसभा चुनावों में अपनी संभावनाओं पर पानी फेरने वाली गलतियों को नहीं दोहराया.
मोटे तौर पर, तीन चीजें थीं जो केजरीवाल ने पंजाब में अपनी पार्टी के 2022 के चुनाव अभियान में सही- सही तरीके से की.
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मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा
साल 2017 में आप ने सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने से परहेज किया था. यह एक गलत णनीति थी, खासकर यह देखते हुए कि शिअद के प्रकाश सिंह बादल और कांग्रेस के अमरिंदर सिंह ने सार्वजनिक जीवन में अलहदा करियर बनाया था.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ही विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री पद के घोषित चेहरे के बिना जाने का जोखिम उठा सकती है.
लेकिन 2017 में आप के केजरीवाल अभी भी एक ब्रांड बनाने की प्रक्रिया से गुजर रहे थे. बादल-बनाम-कौन का सवाल स्वाभाविक रूप से कैप्टन को ही सामने लाया.
हालांकि, 2022 के चुनाव में, केजरीवाल ने आखिरकार भगवंत मान को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश करने का फैसला किया. हालांकि आप में कई को संदेह था कि क्या उन्हें ‘गंभीर’ उम्मीदवार के रूप में देखा जाएगा, खासकर यह देखते हुए कि कैसे उनकी शराब पीने की आदत सार्वजनिक बहस का विषय बन गई है.
लेकिन मान की लोकप्रियता से इंकार नहीं किया जा सकता. वह 2014 में चुने गए आप के चार सांसदों में से एकलौते थे, जो 2019 में फिर से चुने गए. केजरीवाल ने आखिरकार मान पर विश्वास किया और यह रंग लाया.
कट्टरपंथी सिख तत्वों से दूरी बनाना
2017 में आप के चुनाव अभियान में पार्टी के प्रचार के लिए कनाडा से आने वाले सिखों की भीड़-भाड़ देखी गई थी. इसके राजनीतिक विरोधियों ने इसे उग्रवादी तत्वों के साथ आप के गठबंधन के रूप में पेश किया, जो उग्रवाद के इतिहास वाले इस राज्य में एक संवेदनशील मुद्दा है.
केजरीवाल के राजनीतिक विरोधियों ने उनके द्वारा मोगा में खालिस्तान कमांडो फोर्स (केसीएफ) के एक पूर्व आतंकवादी के घर में एक रात बिताये जाने को भी बड़ा मुद्दा बनाया.
इस वजह से हिंदुओं और सिखों का एक बड़ा वर्ग आप से अलग हो गया. नतीजतन, वह केवल 20 सीटों के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रूप में सिमट गयी. केजरीवाल ने इस से भी सबक सीखा.
भले ही इस बार भी आप के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने वास्ते कनाडा से उसके समर्थक आ रहे थे, लेकिन उन्होंने इसे बहुत सोच-समझकर किया. आप नेता किसी भी ऐसे व्यक्ति से एकदम दूर रहे, जिस पर विरोधियों द्वारा कट्टरपंथियों के समर्थक के रूप में पेश किए जाने की संभावना हो.
लोगों के बीच के मोहभंग को भुनाने वाला दिल्ली मॉडल
2017 के विपरीत, जब आप के शासन का ‘दिल्ली मॉडल’ अभी भी बन ही रहा था, 2022 में, यह चुनावी मुद्दे के रूप में पेश किये जाने के लिए तैयार हो गया था. अपनी चुनावी सभाओं में, आप उम्मीदवार दिल्ली में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों के बारे में बाते करते थे और इस बात के किस्से सुनाते थे कि कैसे राष्ट्रीय राजधानी में लोगों को बस एक फोन कॉल करके सब कुछ उनके ही दरवाजे पर मिल जाता है.
बेरोजगारी, नशीली दवाओं के सेवन और अन्य दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के मामले में स्थापित पार्टियों के मौखिक वादों से तंग हो चुके लोग एक विकल्प की तलाश में थे और आप इस नैरेटिव को सफलतापूर्वक भुनाने में कामयाब हो गई.
इन तीनों के अलावा और भी कई कारक थे. जैसा कि कोट कपूर से आप विधायक कुलतार सिंह संधवान ने चुनाव प्रचार के दौरान दिप्रिंट को बताया था, 2017 में भी पार्टी को लोगों का जबरदस्त समर्थन प्राप्त था, लेकिन उन्हें यह यकीन नहीं था कि आप सरकार बना पाएगी अथवा नहीं.
संधवान ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह मामला अब अलग है. पंजाब के लोग भावुक हैं. वे जोखिम लेने से नहीं हिचकिचाते. उन्होंने इस बार अरविंद केजरीवाल को मौका देने का फैसला किया है.’
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