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Sunday, 22 December, 2024
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KCR तेलंगाना में उभर रही कांग्रेस से मुकाबला करने के लिए ‘राज्य की भावना’ वाली पुरानी रणनीति को अपना रहे

चुनावी भाषणों में, केसीआर कहते हैं कि राज्य का दर्जा उनके संघर्ष का परिणाम था, उन्होंने 'राज्य के दर्जे की मंजूरी में देरी के लिए' कांग्रेस को दोषी ठहराया, जिसके परिणामस्वरूप कई तेलंगानावासियों ने निराशा में 'अपना जीवन समाप्त' कर लिया.

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हैदराबाद: तेलंगाना की भावना और आंध्र प्रदेश का नेता होने का तंज भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) के चुनाव प्रचार अभियान में वापस आ गया है, क्योंकि 30 नवंबर के तेलंगाना चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को कांग्रेस और भाजपा के साथ कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है.

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) राज्य में सीधे तीसरे कार्यकाल के लिए मैदान में है – इसके कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामा राव के शब्दों में कहें तो “हैट-ट्रिक”.

हालांकि, जनमत सर्वेक्षणों ने कांग्रेस के पुनरुत्थान का संकेत दिया है, पिछले महीने एबीपी-सी वोटर सर्वे ने भी बीआरएस की तुलना में कांग्रेस के लिए अधिक सीटों की भविष्यवाणी की थी. तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर बने राज्य में 10 साल की सत्ता विरोधी लहर से जूझ रहे हैं.

इस सप्ताह की शुरुआत में पूर्ववर्ती महबूबनगर जिले में बीआरएस की चुनावी रैलियों में बोलते हुए, सीएम ने “तेलंगाना को राज्य का दर्ज़ा देने में मंजूरी में देरी” के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया, जिसके परिणामस्वरूप कई तेलंगानावासियों ने निराशा में अपना जीवन समाप्त कर लिया.

केसीआर ने नवंबर-दिसंबर 2009 की अपनी भूख हड़ताल का जिक्र करते हुए सोमवार को देवरकद्रा में कहा, “तेलंगाना बनाने के कांग्रेस के वादे के बावजूद, 14 साल तक हमारे संघर्ष और राज्य के लिए दबाव बनाने के लिए मेरे आमरण अनशन की दीक्षा के बाद ही राज्य एक हकीकत बन सका.”

हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में छात्र आंदोलन और बिगड़ती कानून व्यवस्था की रिपोर्टों की वजह से 11 दिनों के विरोध प्रदर्शन ने यूपीए-द्वितीय सरकार को 9 दिसंबर, 2009 को (कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का जन्मदिन) तेलंगाना बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया था.

क्या कांग्रेस और भाजपा ने कभी ‘जय तेलंगाना’ का नारा लगाया है? राज्य निर्माण में उनका क्या योगदान है? केसीआर ने कथित तौर पर जनता को बताया कि मैंने 2004 में कांग्रेस के साथ तभी गठबंधन किया था जब उन्होंने एक साल के भीतर राज्य का दर्जा देने का वादा किया था.

बीआरएस, जो कि उस वक्त तेलंगाना राष्ट्र समिति थी, ने यूपीए-I को सहयोग दिया था और केसीआर ने पहली मनमोहन सिंह सरकार में 2004 से 2006 तक केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री के रूप में कार्य किया था.

सोमवार को महबूबनगर में, बीआरएस प्रमुख ने जनता को छह दशक पुरानी बात यह कहकर याद दिलाने की कोशिश की कि कांग्रेस सरकार ने ही तेलंगाना का (1956 में) आंध्र में विलय कर दिया था. और इस बात पर जोर दिया कि यूनाइटेड आंध्र प्रदेश और इसकी सत्ताधारी पार्टी की वजह से पिछड़ा रहा.

तेलंगाना के सेंटिमेंट पर केसीआर का भरोसा कोई नई बात नहीं है, उन्होंने 2014 और 2018 के चुनावों में इस भावनात्मक मुद्दे को अपनी क्षमता के अनुसार सफलतापूर्वक भुनाया है. उनकी निर्भरता इन चीज़ों पर उनके मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल पूरे करने और पिछले साल अपनी तेलंगाना राष्ट्र समिति को भारत राष्ट्र समिति में बदलने के बाद बढ़ गई है.

बीआरएस ने महाराष्ट्र में प्रवेश करने के अलावा, इस साल की शुरुआत में आंध्र प्रदेश में कार्यालय खोले और एक राज्य का इकाई प्रमुख नियुक्त किया.

केसीआर ने पिछले सप्ताह आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे खम्मम क्षेत्र में सार्वजनिक बैठकों में कहा, “यदि आप डबल रोड पर हैं, तो यह तेलंगाना है, सिंगल रोड पर हैं तो आंध्र है.” उन्होंने स्थानीय लोगों से राज्य में वोट करने के लिए जाने से पहले सड़कों की स्थिति का आकलन करने के लिए कहा, जो दोनों राज्यों में विकास का एक सूचकांक है.

सीएम ने आंध्र के नेताओं पर भी निशाना साधा, खासकर संयुक्त आंध्र प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी का जिक्र किया.

केसीआर ने कहा, “जब तेलंगाना का गठन किया जा रहा था, तो आंध्र के कुछ नेताओं ने हमारे अस्तित्व पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘हम नहीं जानते कि प्रशासन कैसे करना है.’ किरण कुमार रेड्डी (पावर-प्वाइंट प्रेजेंटेशन देते हुए) ने भविष्यवाणी की कि अगर आंध्र प्रदेश का विभाजन हुआ तो तेलंगाना अंधेरे में डूब जाएगा. अब हमें देखिए, हमारे पास 24 घंटे बिजली की आपूर्ति है. आंध्र के किसान अपना धान बेचने के लिए तेलंगाना आते हैं क्योंकि हम तत्काल भुगतान करते हैं.”

हालांकि, राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि तेलंगाना सेंटिमेंट इस बार बीआरएस के लिए काम नहीं करेगा.

सेवानिवृत्त आईएएस और नागरिक समाज समूहों के नेटवर्क जागो तेलंगाना के संयोजक अकुनुरी मुरली ने दिप्रिंट को बताया, “दो कार्यकाल, एक दशक के अलगाव के बाद, तेलंगाना भावना एक गैर-मुद्दा बन गई है. केसीआर इस बार वही पुराना गाना गाकर मतदाताओं को बेवकूफ नहीं बना सकते. हमारी जमीनी प्रतिक्रिया यह है कि लोग अब तेलंगाना की भावना से प्रभावित नहीं होते हैं.”

जागो तेलंगाना मतदाताओं को नकदी, शराब, साड़ियों या अन्य प्रलोभनों या जाति-धर्म कारकों से प्रभावित हुए बिना सोच-समझकर अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक राज्यव्यापी अभियान चला रहा है.


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‘कांग्रेस-भाजपा नेता दिल्ली-गुजरात आकाओं के गुलाम’

बीआरएस अपने “कल्याणकारी विकास-उन्मुख शासन” का प्रदर्शन कर रहा है, जो जनता के विभिन्न वर्गों को इसके शासन के तहत प्राप्त लाभों की याद दिलाने की कोशिश कर रहा है, जैसे कि आसरा पेंशन, 2बीएचके घर, दलित बंधु, रायथु बंधु और मिशन काकतीय योजनाएं, पोडु वनवासियों को भूमि पट्टे, साथ ही नए राज्य सचिवालय, जिलों में कलेक्टरेट, टियर-2 शहरों में आईटी टावर, एलिवेटेड रोड कॉरिडोर, हैदराबाद में प्रमुख निवेश आदि.

बीआरएस अपनी योजनाओं, कार्यक्रमों और पहलों की एक विस्तृत सूची के साथ अखबारों में पूरे पहले पन्ने पर विज्ञापन दे रहा है, साथ ही टीवी और समाचार मीडिया में वोट मांगते हुए विज्ञापन दे रहा है.

हालांकि, हाल ही में अपने चुनावी भाषणों में, केसीआर, रामा राव और अन्य बीआरएस नेता तेलंगाना आत्म-गौरवम (आत्म-सम्मान) कार्ड खेल रहे हैं, यह दावा करते हुए कि राज्य के लोग उनके सुपरवाइज़र हैं, “कांग्रेस-भाजपा नेताओं के विपरीत” जो कि दिल्ली-गुजरात आकाओं के गुलाम” हैं.

बीआरएस ने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी प्रमुख वाई.एस शर्मिला – जो आंध्र प्रदेश के सीएम वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं – से समर्थन लेने के लिए कांग्रेस और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन के लिए भाजपा पर भी निशाना साधा है. दोनों नेताओं को राजनीतिक रूप से विपरीत विचारधारा का माना जाता है.

केसीआर के भतीजे वरिष्ठ मंत्री हरीश राव ने कुछ दिन पहले संगारेड्डी में कहा था, ”तेलंगाना विरोधी ताकतें, विश्वासघाती भाजपा-कांग्रेस की छत्रछाया में हाथ मिला रहे हैं.” यह दर्शाता है कि बीआरएस एक बार फिर तेलंगाना की भावना पर भरोसा करने का प्रयास कर रहा है.

हरीश ने यह भी कहा कि तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू का तेलंगाना चुनाव से बाहर रहने का फैसला सत्ता विरोधी वोट विभाजन से बचने के लिए कांग्रेस का समर्थन करने की एक चाल थी.

बीआरएस ने 2018 के राज्य चुनावों में कांग्रेस और टीडीपी के गठबंधन का फायदा उठाया था, और नायडू को एक घुसपैठिए और तेलंगाना मामलों में एक खतरनाक प्रभाव के रूप में उजागर किया था. तेलंगाना कांग्रेस प्रमुख रेवंत रेड्डी, जो पहले टीडीपी विधायक थे, उनको राज्य में नायडू के आदमी के रूप में पेश किया गया है.

अकुनुरी ने दिप्रिंट को बताया, ”चुनाव की तारीख नजदीक आने पर बीआरएस इस अभियान को तेज कर सकता है और तेलंगाना के मतदाताओं में बेचैनी पैदा करने के लिए ‘आंध्र का हौव्वा’ दिखा सकता है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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