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Friday, 22 November, 2024
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CPM नेता तारिगामी ने कहा- विश्वसनीय चुनाव प्रक्रिया के लिए J&K को राज्य का दर्जा मिलना जरूरी

माकपा नेता और गुपकर गठबंधन के प्रवक्ता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी का कहना है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन इसे देश के अन्य हिस्सों के साथ चाहती हैं.

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श्रीनगर: माकपा नेता और पीपुल्स एलायंस फॉर द गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) के प्रवक्ता मोहम्मद युसूफ तारिगामी का कहना है कि मोदी सरकार ‘कश्मीर के लोगों के साथ टकराव की स्थिति’ में नज़र आ रही है.

तारिगामी ने दिप्रिंट से बातचीत में दोहराया कि ‘विश्वसनीय चुनाव प्रक्रिया’ के लिए ‘जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाना एक प्रमुख अपेक्षा है’ और केंद्र सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘उन्हें यह समझना चाहिए कि एक विश्वसनीय चुनाव प्रक्रिया के लिए पूर्ण राज्य की बहाली की अपेक्षा की जाती है. अगर सरकार राज्य का दर्जा बहाल करती है, तो इससे लोगों को वोट देने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, यह उनमें भरोसा जगाएगा. यह एक आत्मविश्वास का माहौल बनाएगा. अभी, ऐसा लगता है कि भारत सरकार कश्मीर के लोगों के साथ टकराव के मोड में है.’

तारिगामी की यह टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने 24 जून को जम्मू-कश्मीर के प्रमुख नेताओं से मुलाकात की थी और उनमें से कुछ पिछले सप्ताह जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाले परिसीमन आयोग से मिले थे.

माकपा नेता ने दिप्रिंट को बताया कि दिल्ली में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के साथ बैठक में कोई खास ब्योरा दिए बिना पीएजीडी को बताया गया था कि ‘उचित समय’ पर राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा.

उन्होंने पूछा, ‘उपयुक्त समय क्या है? इसकी क्या समयसीमा है? अब अगर हम कहते हैं कि यह चुनाव या परिसीमन की प्रक्रिया के लिए उपयुक्त समय नहीं है, तो क्या हमारी बात सुनी जाएगी?’

यह पूछे जाने पर कि क्या जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने की मांग करने वाली पांच प्रमुख पार्टियों का गठबंधन गुपकर एलायंस राज्य का दर्जा बहाल होने से पहले घोषणा की स्थिति में चुनाव लड़ेगा, तारिगामी ने कहा कि पार्टियों ने अभी इस बारे में कुछ भी नहीं सोचा है.

उन्होंने कहा, ‘अगर चुनाव की घोषणा होती है तो हम सभी पार्टियों के साथ बैठेंगे और चर्चा करेंगे कि आगे क्या करना है, चुनाव लड़ना है या नहीं. हमने अभी इस पर चर्चा नहीं की है. हालांकि, मुझे उम्मीद है कि ऐसी स्थिति नहीं आएगी.’


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‘प्रक्रिया बढ़ाने की कोशिश से हालात और खराब होंगे’

तारिगामी की माकपा और नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) केवल यही दो ऐसी पार्टियां थीं जो 6 और 7 जुलाई को परिसीमन आयोग के सदस्यों से मिलीं, जिसमें मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुशील चंद्र शर्मा और राज्य चुनाव आयुक्त (एसईसी) के.के. शर्मा शामिल थे.

महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन वह इसमें शामिल नहीं हुई.

बैठक के बारे में बताते हुए तारिगामी ने कहा कि ‘कश्मीर के लोगों में अविश्वास की भावना बहुत ज्यादा है, जिसे बहाल किए जाने की जरूरत है’ और परिसीमन आयोग के साथ उनकी चर्चा में इस बात पर जोर दिया गया. उन्होंने कहा कि ‘इस दिशा में काम आगे बढ़ाने से चीजें और खराब हो जाएंगी.’

उन्होंने कहा, ‘हमने आयोग से मुलाकात की और उन्हें बताया कि कश्मीर के लोगों का सिस्टम पर भरोसा नहीं रहा है और उनके इस काम को आगे बढ़ाने से पहले से मौजूद खाई और बढ़ेगी, जिससे चीजें और खराब हो जाएंगी.’

उन्होंने कहा, ‘आयोग ऐसे समय आया है जब लोग निराश हैं और स्थिति सामान्य होने के बारे में उम्मीद छोड़ चुके है. इन परिस्थितियों में परिसीमन अभ्यास व्यापक स्तर पर जनता के बीच भरोसा बढ़ाने का संदेश नहीं देगा.’

तारिगामी ने कहा कि इस तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं कि यह अभ्यास ‘कैसे आबादी के एक वर्ग का पक्ष लेगा और कश्मीर के लोगों के व्यापक हितों को भी नुकसान पहुंचाएगा’ और इसलिए उनका भरोसा जीतना अहम है.


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‘परिसीमन के खिलाफ नहीं’

तारिगामी ने यह भी कहा कि पार्टियां परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं बल्कि बातचीत चाहती हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम परिसीमन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन चाहते हैं कि इसे देश के बाकी हिस्सों के साथ कराया जाए, इसके अलावा हम उनके साथ बैठक के लिए इसलिए गए क्योंकि हमारा मानना है कि अपनी बात को सामने रखने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहिए.’

यह पूछे जाने पर कि एक गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद पीडीपी के शामिल नहीं होने पर भी माकपा और नेशनल कांफ्रेंस ने आयोग से कैसे मुलाकात की, तारिगामी ने कहा कि पीएजीडी ‘सिर्फ एक गठबंधन है इसमें पार्टियों का विलय नहीं हुआ है’ और इसलिए सभी पार्टियों को अपने फैसले लेने का अधिकार है.

उन्होंने कहा, ‘केवल तीन दलों माकपा, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को आमंत्रित किया गया था. यह न्योता हमें पीएजीडी के रूप में नहीं बल्कि व्यक्तिगत पार्टियों के रूप में दिया गया था. पीएजीडी सिर्फ एक गठबंधन है, इसमें पार्टियां एक साथ हैं और हमें विभिन्न मुद्दों पर अपना-अपना रुख तय करने की स्वतंत्रता हासिल है.’

उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए उस बैठक में जाना महत्वपूर्ण था क्योंकि हम बातचीत का कोई भी अवसर या अपने विचारों और मांगों को रखने का कोई मौका गंवा नहीं सकते.’

उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से निहित स्वार्थी तत्व जम्मू-कश्मीर में विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों के बीच भेदभाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और इन परिस्थितियों में गठबंधन का मानना है कि 2011 की जनगणना परिसीमन अभ्यास के लिए रूपरेखा तैयार करने में मददगार होगी.

उन्होंने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर के दूरदराज के इलाकों में रहने वाली आबादी के उपेक्षित वर्गों को भी उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. हमारा जोर इस बात पर है कि परिसीमन की प्रक्रिया पर अमल के दौरान जम्मू-कश्मीर की संवेदनशीलता को ध्यान में रखा जाए. इसे समुदायों और क्षेत्रों के बीच की खाई को और चौड़ा करने के बजाये उसे पाटने में मददगार होना चाहिए.’

माकपा ने आयोग को एक ज्ञापन भी सौंपा जिसमें कहा गया है कि 5 अगस्त 2019 को जो कुछ भी हुआ वह अस्वीकार्य था.


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‘प्रधानमंत्री से मुलाकात से कोई समाधान नहीं निकला’

तारिगामी ने कहा कि प्रधानमंत्री के साथ बैठक का सकारात्मक पहलू यह था कि पिछले दो वर्षों से बंद बातचीत की खिड़की तो खोली गई लेकिन बैठक का अगर कोई एजेंडा होता और इससे कुछ समाधान भी मिलते तो वह इसकी सराहना जरूर करते.

उन्होंने कहा, ‘दो साल तक यहां की मुख्यधारा की पार्टियों और नेताओं को गैंग के तौर पर पेश किया गया और उन्हें हिरासत में रखा गया. अब जब हमें बुलाया गया तो हमने फैसले का स्वागत किया क्योंकि बात न करने से बेहतर है कि बातचीत जारी रहे. लेकिन हम इसकी सराहना करते हैं यदि बैठक में कोई एजेंडा होता और बिना किसी ठोस समाधान के हमें केवल सुनने के लिए नहीं बुलाया जाता.’

तारिगामी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें अपनी चिंताएं सामने रखने के लिए पर्याप्त समय दिया लेकिन उठाए गए मुद्दों पर कोई भी आश्वासन नहीं दिया, जो ‘निराशाजनक’ था.

उन्होंने कहा, ‘हमने लोगों के बीच विश्वास-बहाली के उपायों, व्यापार को बढ़ावा देने, पर्यटन, अब भी पीएसए के तहत बंद कैदियों की रिहाई के बारे में बात की.

‘हमने बताया कि कैसे यहां पर ऐसे प्रतिबंध लगे हैं जिन्हें टाला सकता है और जिनकी वजह से लोगों को कई परेशानियां झेलनी पड़ रही है. कैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जा रहा है और हमारी सारी बातें तो धैर्यपूर्वक सुनी गईं लेकिन किसी समाधान की कोई गारंटी नहीं मिली.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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