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Sunday, 16 June, 2024
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यूपी में BJP के सहयोगी और पूर्व सांसद के बीच समुदाय के प्रतिनिधित्व की लड़ाई, यह निषाद vs निषाद हो गया है

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले संजय निषाद के नेतृत्व वाली भाजपा की सहयोगी निशाद पार्टी आरक्षण के मुद्दे पर समुदाय को एकजुट करने के लिए कमर कस रही है, लेकिन भाजपा नेता जय प्रकाश की योजना ज़रा अलग है.

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लखनऊ: 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश (यूपी) में यह “निषाद बनाम निषाद” और भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) समुदाय के दो नेताओं के बीच लड़ाई है – जिसमें मछुआरे और नदी से संबंधित व्यवसायों में लगी अन्य जातियां शामिल हैं.

एक ओर भाजपा के नेतृत्व वाली यूपी सरकार में मत्स्य पालन मंत्री और भाजपा गठबंधन सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने सुझाव दिया है कि वह निषादों के समर्थन के असली दावेदार हैं.

दूसरी ओर, भाजपा नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य जय प्रकाश निषाद ने सरकार में अपनी “शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी” सुनिश्चित करने के लिए समुदाय को एकजुट करने और यह संदेश देने के लिए सोमवार को गोरखपुर में “निषाद महाकुंभ” की योजना बनाई है कि वह “अब किसी के बहकावे में नहीं आएंगे”.

दोनों नेता परोक्ष रूप से एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं और शुक्रवार को गोरखपुर में जय प्रकाश निषाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके समर्थकों के आमने-सामने होने की खबर है.

इस बीच बीजेपी ने यह कहते हुए खुद को “निषाद महाकुंभ” से अलग कर लिया है कि यह पार्टी का कोई कार्यक्रम नहीं था, जबकि एक अंदरूनी सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि इस आयोजन को पार्टी का मौन समर्थन प्राप्त था.

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जय प्रकाश निषाद और संजय निषाद के बीच टकराव के बारे में पूछे जाने पर यूपी बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, “हर समुदाय में अलग-अलग नेता होते हैं जो खुद को स्थापित करने और अपना प्रभाव स्थापित करने की कोशिश करते हैं. यदि दो नेताओं के बीच मौखिक द्वंद्व होता है, तो इसका पार्टी या गठबंधन सहयोगियों के साथ उसके संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.

निषाद समुदाय में 22 उपजातियां शामिल हैं और यह गंगा और यमुना के तटों पर सामूहिक रूप से प्रमुख शक्ति है. यह यूपी की आबादी का 14 प्रतिशत हिस्सा है और 70 से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभाव के साथ पूर्वाचल में फैला हुआ है.


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‘आस्तीन का सांप’

शनिवार को दिप्रिंट के साथ बातचीत में बिना नाम लिए संजय निषाद ने एक “आस्तीन के सांप” का ज़िक्र किया, जो समुदाय के लिए बहुत खतरनाक है, जिसे “रिमोट कंट्रोल से चलाया जा रहा था” और वे “विभीषण” जैसा था.

जय प्रकाश निषाद के ‘महाकुंभ’ के बारे में पूछे जाने पर मंत्री ने कहा कि जब उन्हें (राज्यसभा सदस्य रहते हुए) निषाद समुदाय की वकालत करने का मौका मिला, तो उन्होंने ऐसा नहीं किया.

संजय निषाद पिछले हफ्ते अपने खून से निषाद समुदाय को एक पत्र लिखने के लिए सुर्खियों में आए थे और बाद में मीडिया के सामने उन्होंने सरकार से निषादों के लिए अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने की अपनी लंबे समय से चली आ रही मांग बताई थी.

जबकि कुछ मीडिया खबरों में उनके हवाले से कहा गया था कि जनता तय करेगी कि 2024 के चुनावों के लिए निषाद पार्टी को भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहिए या नहीं, संजय निषाद ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने कहा था कि जनता तय करेगी कि वे उनका समर्थन करेगी या समुदाय के “विभीषण” का.

संजय निषाद अपने वार्षिक ‘विभूति जनजाति सम्मेलन’ के बैनर तले 31 अगस्त को निषाद समुदाय की एक सभा आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं.

शुक्रवार को उन्होंने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर निषाद समुदाय के लिए आरक्षण और विभिन्न पदों पर निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैंने (नड्डा) को सूचित किया कि उत्तराखंड में उनकी (भाजपा) सरकार है और उसने शिल्पकार (मूर्तिकार) समुदाय को आरक्षण दिया है. उन्हें एक जाति के रूप में नहीं बल्कि जातियों के समूह के रूप में माना जा रहा है और कुम्हार, प्रजापति और कमकर सहित जातियों की एक सूची बनाई गई है. वे शिल्पकार समुदाय की उपजातियां हैं.”

उन्होंने कहा, “मैंने उनसे कहा कि यूपी में भी ऐसा ही होना चाहिए, ताकि मझवार को एक जाति के रूप में नहीं बल्कि केवट और मल्लाह सहित जातियों के समूह के रूप में माना जाए.” उन्होंने कहा कि इस विषय पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ आगे की चर्चा होगी.

निषाद समुदाय की एससी सूची में शामिल करने की मांग पुरानी है. उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती सपा सरकार ने दिसंबर 2016 में केवट और मल्लाह सहित 17 सामुदायिक उप-जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. हालांकि, इस कदम पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी.

दिसंबर 2021 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त को पत्र लिखा – जिसमें संजय निषाद का एक ज्ञापन संलग्न था, जिसमें एससी श्रेणी के तहत समुदाय को आरक्षण के मामले पर मार्गदर्शन मांगा गया था.

पिछले हफ्ते जय प्रकाश के समर्थकों के बीच कथित झड़प के बारे में बात करते हुए, संजय ने कहा कि निषाद पार्टी की नवगठित कार्यकारी समिति में निषाद समुदाय के कई सदस्यों को शामिल किए जाने के कारण जय प्रकाश असहज थे.

उन्होंने महाकुंभ के लिए धन के स्रोत पर सवाल उठाते हुए यह भी संकेत दिया कि जय प्रकाश को विपक्ष रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित कर रहा है.

उन्होंने कहा, “विभीषण कह रहे हैं कि आरक्षण नहीं तो वोट नहीं”, लेकिन अगर (भाजपा के नेतृत्व वाले) एनडीए को नहीं तो वोट कहां जाएंगे? यह हाथी (बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न) या साइकिल (समाजवादी पार्टी का चिह्न) को जाएगा.”


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‘सभी निषाद नाराज़ हैं’

शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए, जय प्रकाश ने “खुद को निषाद समुदाय के मसीहा (रक्षक) के रूप में पेश करने की कोशिश करने वालों” की आलोचना की.

उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों ने समुदाय को गुमराह किया है और कहा कि “समुदाय के मसीहा से परेशान लोग महाकुंभ में भाग लेंगे.”

उन्होंने कहा, “जिन्होंने मसीहा बनने की कोशिश की, उन्होंने कसरवल आंदोलन में अपनी जान गंवाने वाले अखिलेश निषाद के परिवार के लिए आवंटित धन को लूट लिया.”

जून 2015 का कसरवल आंदोलन सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए निषाद समुदाय का आंदोलन था, जो तब हिंसक हो गया जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को गोरखपुर-लखनऊ रेलवे लाइन से बलपूर्वक हटाने की कोशिश की. इसके बाद हुई गोलीबारी में कथित तौर पर अखिलेश निषाद की मौत हो गई.

जय प्रकाश निषाद ने कहा कि “कसरवल आंदोलन के सिलसिले में 38 लोग अभी भी जेल में हैं और उनके परिवार असहाय हैं और उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है”.

उन्होंने कहा, “हिंसा में अखिलेश निषाद को गोली मार दी गई. उनके परिवार को दी जाने वाली सहायता का बंदरबांट कर लिया गया और आज, कोई भी उस परिवार से बात नहीं करता, जिसने अपना इकलौता बेटा खो दिया. उनकी बहनों की शादी में कोई भी शामिल नहीं हुआ. समुदाय सरकार के साथ संवाद करने का सही तरीका ईजाद कर रहा है.”

प्रकाश ने आगे कहा, “पूर्वांचल के सभी निषाद नाराज़ हैं और इसलिए एक महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है. अब कोई हमारा मसीहा नहीं है और हम मामले को अपने हाथ में लेंगे.”

भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने शनिवार को दिप्रिंट को संकेत दिया कि “महाकुंभ” को भाजपा की मौन स्वीकृति प्राप्त थी, जो “लोकसभा चुनाव से पहले संजय निषाद और उनकी सौदेबाजी की शक्तियों को संतुलित करना” चाहती थी.

पूर्वी यूपी के एक पार्टी नेता ने कहा, “संजय निषाद 2024 के चुनावों से पहले भाजपा से कुछ लोकसभा सीटें चाहते हैं, यही वजह है कि वह अपनी ताकत दिखा रहे हैं और मीडिया में बयान दे रहे हैं. हालांकि, भाजपा में अन्य निषाद नेता भी हैं.”

यह पूछे जाने पर कि क्या “महाकुंभ” को भाजपा का समर्थन प्राप्त था, जय प्रकाश ने कहा, “यह आयोजन न तो किसी पार्टी का था और न ही किसी संगठन का, बल्कि केवल निषाद समुदाय का था.”

उन्होंने कहा, “एक परिवार ने समुदाय के अधिकारों का अपहरण कर लिया है, जिसके कारण समुदाय का विकास रुक गया है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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