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Friday, 22 November, 2024
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कमलनाथ सरकार को बचाने के लिए मध्यप्रदेश में कैसे हाथ-पैर मार रही है कांग्रेस

कांग्रेस के बहुत सारे लोग ये महसूस करते हैं कि जो अभी प्रयास किए जा रहे हैं वो काफी कम और पर्याप्त नहीं है.

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भोपाल: मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार अपने खेमें में सेंध होने से बचाने के लिए हर संभव कोशिशों में लगी हुई है. पार्टी ने अपने संकटमोचकों को काम पर लगा दिया है ताकि वो अपने विधायकों को ‘सुरक्षित जगहों’ पर एक साथ रखें, बागियों को झुनझुना देकर लुभाएं और वापिस पार्टी में लायें, उनके परिवारों के ज़रिए उन तक लुभावने वादे पहुंचाए, साथ ही भाजपा विधायकों को तोड़ने की कोशिश भी कर रही है. हालांकि कांग्रेस नेता स्वयं मानते हैं कि ये चुनौती बहुत कड़ी है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल होने के बाद और 22 विधायकों के इस्तीफे के बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार अनिश्चितता में है. पार्टी के पास 230 सदस्यीय विधानसभा में 114 विधायक हैं.

लेकिन कमलनाथ बिना लड़े हार मानने वालों में से नहीं है. वो हर कोशिश करेंगे कि उनकी सत्ता बरकरार रहे यहां तक कि उन्हें खुद ही विधायकों से मिलना क्यों न पड़े. पिछली शाम भोपाल स्थित मुख्यमंत्री आवास पर सभी विधायकों और हितधारकों के बीच हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कांग्रेस विधायकों को जयपुर भेजा जाए और भाजपा से दूर रखा जाए. बुधवार दोपहर तक सीएम आवास से एयरपोर्ट की तरफ दो बसों में 80 विधायक निकले. जहां से सभी जयपुर रवाना हुए. पार्टी दावा कर रही है कि उनके साथ 14 विधायक हैं जिन्हें अभी भोपाल में ही रखा गया है और अलग-अलग कामों में लगाया गया है.

अमित शाह की क्षमता और भाजपा के संसाधनों से मुकाबला करना पार्टी के लिए काफी मुश्किलों भरा हो सकता है.

समस्या खत्म करने वाली टीम

कांग्रेस के बागी 19 विधायकों को बंगलुरू में रखा गया है जिनपर भाजपा के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की नज़र बनी हुई है. मध्यप्रदेश कांग्रेस में उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार डीके शिवकुमार को विधायकों से संपर्क करने का काम सौंपा गया है. हालांकि अभी तक शिवकुमार के प्रयास सफल होते नहीं दिख रहे हैं जहां भाजपा नज़दीकी से नज़र बनाए हुए है.

डीके शिवकुमार को ऐसी स्थितियों में मध्यस्थ के तौर पर जाना जाता है. उन्हें ही बागी कांग्रेसी विधायकों को मैनेज करने की जिम्मेदारी दी गई है. लेकिन भाजपा शासित राज्य और मजबूत मुख्यमंत्री के होते हुए वो अभी सफल नहीं हुए हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘कमलनाथ उनके साथ लगातार संपर्क में हैं’.


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सूत्रों ने बताया कि कमलनाथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के विश्वस्त अहमद पटेल के लगातार संपर्क में हैं. इस स्थिति से कैसे निपटा जाए और कांग्रेस विधायकों को कैसे पाले में लाया जाए पटेल कमलनाथ को सलाह दे रहे हैं. यह कहने की जरूरत नहीं है कि पटेल लगातार सोनिया गांधी के संपर्क में हैं.

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री लगातार अलग-अलग हितधारकों और खासकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से बात कर रहे हैं.

एक नेता ने कहा, ‘सिंह सरकार चलाने में कमलनाथ की मदद कर रहे हैं. वो भले ही मतदाताओं के बीच अलोकप्रिय हो गए हो लेकिन संगठन और पार्टी कार्यकर्ताओं पर उनकी अच्छी पकड़ है.’

पूरे मसले पर नज़दीकी से नज़र रखने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुकुल वासनिक, हरीश रावत और दीपक बाबरिया भोपाल में हैं जहां वो मुख्यमंत्री की मदद कर रहे हैं. कमलनाथ के नजदीकी सज्जन सिंह वर्मा और दिग्विजय सिंह के खेमे के गोविंद सिंह को सभी कांग्रेसी विधायकों से संपर्क बनाए रखने के लिए लगाया गया है और उन्हें जल्द ही बंगलुरू भेजा जा सकता है.

कमलनाथ इस बीच खुद ही कुछ विधायकों से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि यह प्रभावी साबित होता नहीं दिख रहा है.

नाम न बताने की शर्त पर एक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पिछले सोमवार को कमलनाथ ने विधायक एदल सिंह कनसाना को मिलने बुलाया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. अगली सुबह मुख्यमंत्री खुद कनसाना के घर पहुंच गए लेकिन उन्हें कहा गया कि विधायक घर से निकल चुके हैं. पिछली शाम कनसाना ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है जो साबित करता है कि कैसे राज्य में शीर्ष नेतृत्व अपनी टीम पर से पकड़ खोता जा रही है.’

रणनीति

सबसे पहले कोशिश होगी कि बंगलुरू में बागी विधायकों से बात की जाए और उनको वापिस लाने के लिए अपनी तरफ से ऑफर दिये जाये. सिंधिया के इस्तीफे के बाद राज्यपाल लालजी टंडन को कमलनाथ ने पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने सिंधिया के करीबी छह कैबिनेट मंत्रियों की बर्खास्तगी की मांग की थी.

अब चूंकि ये पद साफ तौर पर खाली है तो कांग्रेस को आशा है कि वो कुछ बागियों को मंत्री पद का झुनझुना देकर और कुछ अन्य पदों का प्रलोभन देकर वापिस बुला लेगी.

पार्टी के पहले नेता जिन्हें उद्धृत किया गया है वे कहते हैं, ‘हम उन 22 विधायकों को बताना चाहते हैं कि हमारे पास खाली पड़े मंत्री पद हैं और जो भी लौटेगा वो कुछ न कुछ पायेगा. जिनको मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जा सकता, हम वादा कर रहे हैं कि हम उनको निकायों आदि में पद दे देंगे.’

इस बीच पार्टी के तीन नेता वासनिक, रावल, बाबरिया इन बागी नेताओं के परिवारों से मध्यप्रदेश में संपर्क में है ताकि वो इन विधायकों तक अपनी बात पहुंचा सकें और उन्हें मना सकें.

गौरतलब है कि कांग्रेस का ज़ोर पहली बार विधायक बने नेताओं पर है क्योंकि उनको विश्वास है कि उनके वापिस लौटने के चांस ज्यादा है बनिस्बद पुराने विधायकों के.


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जो दूसरा पेचीदा मामला है वो है चार स्वतंत्र और तीन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के विधायकों को अपने खेमें में बनाए रखना. पार्टी के सूत्र कह रहे हैं कि स्वतंत्र विधायकों पर तो नियंत्रण रखा जा सकता है पर सपा-बसपा के विधायक तराजू को झुकते देख पाला बदल सकते हैं.

कांग्रेस को आशा है कि वो कुछ भाजपा विधायकों को भी अपने पाले में कर सकती है- खासतौर पर शरद कौल और नारायण त्रिपाठी- दोनों को पार्टी बदलने की आदत है और दोनों ने भाजपा के खिलाफ और कांग्रेस सरकार के समर्थन में विधानसभा में पिछली जुलाई में वोट डाला था.

इस स्थिति में राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका सबसे अहम हो जायेगी और स्पीकर एन पी प्रजापति की मदद से कांग्रेस अपने लिए थोड़ा समय पाने की कोशिश करेगी. इसके लिए विधि और संवैधानिक विशेषज्ञों की राय ली जा रही है और ये कमलनाथ के घर हुई मंगलवार रात की बैठक में शामिल थे.

‘काफी देरी हो गई और अपर्याप्त प्रयास’

वास्तव में कांग्रेस के बहुत सारे लोग ये महसूस करते हैं कि जो अभी प्रयास किए जा रहे हैं वो काफी कम और पर्याप्त नहीं है. उनका कहना है कि विधायकों को दूसरे कांग्रेस शासित राज्यों में भेजा जा रहा है बल्कि मध्यप्रदेश में खुद कांग्रेस सरकार में है. यह साबित करता है कि स्थिति कितनी खराब है और शीर्ष नेतृत्व किस स्थिति में है.

तीसरे कांग्रेस सूत्र ने कहा, ‘सिंधिया काफी लंबे समय से पार्टी से नाराज चल रहे थे. लेकिन 2018 में हुए विधानसभा के बाद पिछले 14 महीनों में वो लगातार बागी होने के संकेत दे रहे थे. कुछ महीने पहले राहुल गांधी को लिखी एक चिट्ठी में सिंधिया ने कमलनाथ सरकार की शिकायत की थी- खासकर किसानों की कर्जमाफी न करने के लिए, मुख्यमंत्री द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं से संपर्क न करने के लिए और कुछ कार्यकर्ताओं और नेताओं के कानूनी मामलों के निपटारा करने में विफल रहने के लिए. यही समय था जब आलाकमान को हस्तक्षेप करना चाहिए था.’

सार्वजनिक तौर पर पार्टी से दूरी हमारे सामने थी. सूत्रों के अनुसार वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक में सिंधिया ने कहा था कि ‘पार्टी में उनकी स्थिति चाय परोसने वाले व्यक्ति जितनी भी नहीं रह गई है’.


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सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ और सिंधिया पिछले एक साल में मुश्किल से ही मिले हैं, वो भी तब जब सिंधिया भोपाल में थे. सिंधिया खेमें के कैबिनेट मंत्री लगातार उनसे संपर्क में थे. ये बात कमलनाथ को चुभ रही थी.

लंबे समय से राज्य में चल रहा असंतोष अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया है और कुछ नेता मानते हैं कि इसका असर राजस्थान जैसे दूसरे राज्यों में हो सकता है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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