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Saturday, 2 November, 2024
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योगी को CM की कुर्सी तक पहुंचाने वाली हिंदू युवा वाहिनी का गोरखपुर दफ्तर क्यों वीरान पड़ा है

हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों का कहना है कि जब से यूपी में हिंदुत्व समर्थक सरकार आई है तब से इस संगठन की भूमिका बदली है. हालांकि अब इसका दफ्तर रोज नहीं खुलता और इसके पुराने सदस्य 'धोखे' का भी आरोप लगाते हैं.

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गोरखपुर: गोरखपुर रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूर महाराणा प्रताप मार्ग पर एक गुमनाम सी दो मंजिला इमारत है, जिसके ग्राउंड फ्लोर पर एक ‘हॉलिडे-इन’ है और पहले फ्लोर पर एक स्थानीय ऐतिहासिक स्थल है. ये हिंदू युवा वाहिनी का दफ्तर है, वो संगठन जिसे योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने से बहुत पहले, साल 2000 के शुरुआती दशक में स्थापित किया था.

ऑफिस के दरवाजे के ऊपर एक फीका पड़ चुका पोस्टर टंगा है, जिस पर आदित्यनाथ का चेहरा है लेकिन दोपहर के समय जब दिप्रिंट की टीम वहां पहुंची, तो दरवाजे पर ताला पड़ा था और ऑफिस सुनसान था. आसपास के दुकानदारों का कहना था कि ऑफिस नियमित रूप से नहीं खुलता, उन्होंने कहा कि एक लड़के को इसे आकर खोलना होता है लेकिन किसी-किसी दिन वो आता ही नहीं है.

इसी से अंदाजा हो जाता है कि आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद हिंदू युवा वाहिनी का क्या हाल हो गया है. पूर्व सदस्यों और पर्यवेक्षकों के अनुसार, वो निगरानी संगठन जिसने उन्हें एक उभरती हुई ताकत बनाने में एक भूमिका निभाई, वो अब पर्दे से गायब सा हो गया है.

लेकिन उसके महासचिव प्रमोद कुमार माल इससे सहमत नहीं हैं. माल ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम अभी भी सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यों में पूरी तरह लगे हैं’.

ये पूछने पर कि क्या योगी आदित्यनाथ अभी भी हिंदू युवा वाहिनी के साथ जुड़े हैं, माल आगे कहते हैं: ‘जो भी गोरक्षा पीठाधीश्वर (गोरखनाथ मंदिर एवं मठ का प्रमुख) होता है, वो संगठन का संरक्षक होता है.


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उत्पत्ति और विवाद

हिंदू युवा वाहिनी- जिसका मतलब है हिंदू युवा शक्ति- 2002 में गठित की गई थी. तकनीकी रूप से भले ही ये हिंदुत्व विचारधारा की शाखा न हो लेकिन ऐसे संगठनों के वृहत परिवार में फिट हो जाती है, जो उसे बढ़ावा देते हैं.

इसने अपने जन्म के समय गोरखपुर से दो बार के युवा सांसद, 30 वर्षीय योगी आदित्यनाथ को क्षेत्र में हिंदुत्व के एक प्रमुख पैरोकार के रूप में स्थापित कर दिया.

हिंदू युवा वाहिनी की गतिविधियों की वजह से, जहां एक ओर इसकी काफी बदनामी और आलोचना हुई, वहीं दूसरी ओर बहुसंख्यक समुदाय से समर्थन भी हासिल हुआ. इसने ऐसे मुद्दों पर ज़ोर दिया, जैसे गौरक्षा और ‘लव जिहाद’- एक ऐसा शब्द जिसे प्रेम संबंधों और शादी के जरिए धर्मांतरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसने तथाकथित रोमियो-विरोधी स्क्वॉड्स बनाकर भी ध्यान आकर्षित किया, जो प्यार का खुला इजहार करने वाले लोगों को पकड़कर, उन्हें धमकाते या पीटते थे.

इसने अपने आपको एक ‘घोर सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन’ घोषित किया जो ‘हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को समर्पित था’. इसने कार्यक्रम आयोजित कराए जिनका मकसद, धर्मांतरण कर चुके लोगों को फिर से हिंदू बनाना था और उसे ‘घर वापसी’ करार दिया.

संगठन और स्वयं आदित्यनाथ 2007 में सांप्रदायिक तनावों के केंद्र में आ गए- प्रशासन ने तब के सांसद को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब उन्होंने एक मुसलमान के हाथों कथित तौर पर एक हिंदू व्यक्ति की हत्या पर, एक शोक सभा आयोजित करने पर जोर दिया. उनकी गिरफ्तारी से सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी, जो गोरखपुर से बाहर निकलकर पूर्वी यूपी के वाराणसी जैसे अन्य हिस्सों में फैल गई.

2017 में युवा वाहिनी के तीन सदस्यों को बलात्कार तथा एक पुलिस अधिकारी को पीटने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. उसी साल, इसके सदस्य बुलंदशहर में कथित रूप से एक मुस्लिम व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डालने की घटना में भी शामिल थे, जिस पर एक हिंदू लड़की को भागने में सहायता करने का आरोप था. 2018 में उन पर लव-जिहाद के संदेह में बागपत की अदालत के भीतर एक मुस्लिम जोड़े को पीटने का भी आरोप लगा था.

लेकिन 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में, जब बीजेपी भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई और पार्टी आलाकमान ने आदित्यनाथ को सरकार की अगुवाई के लिए चुना, तो ऐसा लगा जैसे हिंदू युवा वाहिनी मुख्यधारा से गायब ही हो गई.

माल कहते हैं, ‘महाराज जी (आदित्यनाथ) ने नए लोगों के संगठन में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि युवा वाहिनी के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी को रोका जा सके. विपक्षी पार्टियों के बहुत से लोग भी संगठन का नाम लेकर उनके साथ जुड़ने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए तय किया गया कि किसी भी दूसरे संगठन का कोई व्यक्ति अब इसमें शामिल नहीं हो सकता’.

उन्होंने स्पष्ट किया, ‘महाराज जी के सीएम बनने से पहले उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के बहुत से लोग भी संगठन से जुड़े रहे हैं. लेकिन हमारा संगठन दूसरे राज्यों में मौजूद नहीं है’.

ये पूछने पर कि संगठन के कितने स्वयंसेवक अभी भी सक्रिय हैं, माल जवाब देते हैं कि सही संख्या बताना मुश्किल है. वो कहते हैं, ‘ये गिनती करना मुश्किल है कि यहां जिले में कितने सदस्य हैं, चूंकि हमारे यहां 2,000 गांव हैं और हर ब्लॉक में एक 51-सदस्यीय कमेटी है’.


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मोहभंग हो चुके पूर्व-सदस्यों ने मौजूदा स्थिति की आलोचना की

दिप्रिंट से बात करने वाले हिंदू युवा वाहिनी के कुछ मौजूदा और पूर्व सदस्यों का कहना है कि ये अभी भी सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल है लेकिन अब यह उतनी महत्वपूर्ण नहीं रह गई है जितनी पहले थी.

शुरुआती दिनों के एक सदस्य, जिन्होंने अब खुद को संगठन से अलग कर लिया है और राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि उनका इस कारण मोहभंग हो गया कि ये ज्यादा से ज्यादा रातनीतिक होती जा रही थी.

सदस्य का कहना था, ‘इसका गठन बड़े महाराज जी (पूर्व सांसद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ) के आदेशों पर हुआ था. हमें योगी जी का पूरा निर्देशन और समर्थन हासिल था, जो उस समय सांसद हुआ करते थे. लोगों की इस संगठन में आस्था थी, न केवल गोरखपुर बल्कि पूरे क्षेत्र में हिंदुओं के लिए ये एक आशा की किरण थी’.

आगे वो आरोप लगाते हैं कि ‘2012 के बाद वाहिनी राजनीतिक सक्रियता में पड़ गई…मैं उसे तब भी ऐसा संगठन समझता था, जो हिंदू अधिकारों तथा सनातन धर्म के उत्थान के लिए लड़ रहा था…बहुत दुर्भाग्य की बात है कि वर्तमान वाहिनी में राजनेता ज्यादा और सेवक कम हैं. अब वाहिनी से जुड़ा हर कोई व्यक्ति किसी न किसी राजनीतिक पद पर है, जैसे वॉर्ड पार्षद या किसी राजनीतिक इकाई का अध्यक्ष वगैरह’.

सदस्य इस ओर इशारा कर रहा था कि हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश संयोजक डोमरियागंज के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह हैं, जबकि गोरखपुर सिटी संयोजक ऋषि मोहन वर्मा नगर निगम के उपाध्यक्ष हैं.

एक अन्य पूर्व सदस्य का कहना है कि योगी के सीएम बनने के बाद दूसरे सदस्यों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी पूरी हुईं, इसलिए उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी को तवज्जो देना बंद कर दिया.

दूसरे सदस्य ने भी नाम न बताने की शर्त पर दावा किया, ‘स्वाभाविक है कि योगी जी के पास देखने के लिए और बहुत सी चीज़ें हैं. लेकिन युवा वाहिनी के कार्यक्रम कम हो गए हैं क्योंकि बहुत से लोग अपने राजनीतिक पदों पर व्यस्त हो गए हैं…उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी हो गईं, इसलिए उन्होंने संगठन को छोड़ दिया है’.

वो कहते हैं, ‘योगी जी के सीएम बनने के बाद कुछ लोगों को लगा कि वो भी उनके साथ सीएम बन गए हैं. ये चीज़ें एक साथ मिलकर काम नहीं कर सकते. संगठन के लिए समर्पण की जरूरत होती है’. वो आगे कहते हैं कि ये भी एक कारण है कि उन्होंने सक्रियता को छोड़ दिया और अपने कारोबार पर ध्यान लगा रहे हैं.

एक तीसरे सदस्य का कहना है कि 2017 से पहले नियमित रूप से बैठकें हुआ करतीं थीं लेकिन अब वो ‘बहुत कम मौकों’ पर ही होती हैं.

तीसरे अज्ञात सदस्य ने कहा, ‘जब महाराज जी (आदित्यनाथ) गोरखपुर आते हैं, तो ये सारे सदस्य उनके आसपास मंडराते देखे जा सकते हैं लेकिन अन्यथा वो विरले ही मिलते हैं, जब तक कि कोई आयोजन न हो’.

लेकिन, महासचिव माल ऐसे सभी दावों से इनकार करते हैं. वो कहते हैं, ‘ये कहना सही नहीं है कि युवा वाहिनी खत्म हो गई है. हम सरकारी स्कीमों को लोकप्रिय बनाने के काम में लगे हैं और सामाजिक गतिविधियों में शिरकत करते हैं’.

माल आगे कहते हैं, ‘जब सरकार हिंदुत्व-विरोधी थी, तो लोगों के अधिकारों की खातिर हमें छोटी-छोटी चीज़ों के लिए संघर्ष करना पड़ता था. अब ये सब गतिविधियां बहुत सुचारू रूप से चल रही हैं, इसलिए हम दूसरे सामाजिक कार्य कर रहे हैं, जैसे वृक्षारोपण, कुपोषण से निपटना और सामाजिक जागरूकता के दूसरे कार्यक्रम आदि’.

प्रदेश संयोजक और बीजेपी विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह भी वही शब्द दोहराते हैं.

वो दिप्रिंट से कहते हैं, ‘मैं अभी-अभी बलुआ माता मंदिर में युवा वाहिनी द्वारा आयोजित एक हेल्प डेस्क के उद्घाटन से लौटा हूं’.


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‘योगी के हनुमान का हमला’

हिंदू युवा वाहिनी के एक और पूर्व सदस्य सुनील सिंह, एक समय योगी आदित्यनाथ के इतने करीब थे कि रामायण के हवाले से लोग उन्हें ‘योगी का हनुमान’ कहते थे. अब वो समाजवादी पार्टी में हैं और आरोप लगाते हैं कि आदित्यनाथ ने संगठन का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किया.

सुनील सिंह कहते हैं, ‘हमारे शुद्ध आंदोलन में नफरत की घुसपैठ हो गई. हमें सांप्रदायिक मतभेद उकसाने के लिए कहा गया. हमें हिंदुओं से ये कहने के लिए कहा गया कि मुसलमान उनके लिए सबसे बड़ा खतरा है. योगी की जीत को आप अन्यथा किस तरह समझाएंगे? वो उत्तर प्रदेश के बाहर से आते हैं, वो भी एक राजपूत परिवार से. संभव ही नहीं था कि बिना किसी चुनौती के, वो इतने समय तक सांसद रह सकते थे. नफरत की सियासत ने उनके लिए यही काम किया’.

2018 में जब सिंह ने अपना खुद का संगठन खड़ा किया, तो ‘असली’ हिंदू युवा वाहिनी पर विवाद खड़ा होने के बाद उन्हें और आठ अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

वो कहते हैं, ‘योगी आदित्यनाथ ने जुलाई 2018 में मुझे गिरफ्तार करा लिया, जब मैंने ‘हिंदू युवा वाहिनी भारत’ के नाम से एक अलग संगठन खड़ा कर लिया. लेकिन समाजवादी पार्टी में शामिल होते समय, मैंने उसका पार्टी में विलय कर दिया’.

वो ये भी कहते हैं कि बीजेपी नेतृत्व ने आदित्यनाथ को संकेत दिया था कि उन्हें किसी और संगठन के साथ नहीं जुड़ना चाहिए. सुनील ने बताया, ‘उनसे कहा गया कि संगठन के अंदर संगठन नहीं चलेगा’.

वो आरोप लगाते हैं, ‘इसलिए ऐसे बहुत से छोटे-छोटे संगठनों को विघटित कर दिया गया…लेकिन उन लोगों का क्या जो अपने करियर और परिवार को छोड़कर धर्म की सेवा के प्रति समर्पित हो गए थे? उन युवा लोगों के साथ धोखा हुआ’.

इन आरोपों के बारे में सवाल करने पर राघवेंद्र प्रताप सिंह केवल ये कहते हैं, ‘दूसरे क्या कहते हैं मैं उस पर टिप्पणी नहीं कर सकता’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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