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Friday, 15 November, 2024
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हिमाचल का सुखराम परिवार, मंडी के किंगमेकर, चुनाव नजदीक आते ही पार्टी होपिंग ‘परंपरा’ पर फिर सवार

सुखराम के बेटे अनिल शर्मा बीजेपी के विधायक हैं और उनके पोते आश्रय ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले पिछले हफ्ते कांग्रेस का दामन छोड़ दिया.

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नई दिल्ली: कई लोग स्वर्गीय सुखराम या ‘पंडित जी’ को आज भी याद करते हैं. उन्हें 1990 के दशक में तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रहते हुए भारत में पहली सेल्युलर सेवा शुरू करके दूरसंचार क्रांति की शुरुआत करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता रहा है.

लेकिन उन्हें याद रखने की एक वजह और है. वो है सालों से चली आ रही उनके परिवार की दल बदलने की परंपरा. गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में सुखराम का नाम पार्टी-होपिंग का पर्याय बन चुका है. उनके कट्टर और छह बार के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह ने तो उन्हें हिमाचल की राजनीति का ‘आया राम, गया राम’ तक कह दिया था.

सुखराम का इस साल मई में 94 साल की उम्र में ब्रेन स्ट्रोक के बाद निधन हो गया था, लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में आज भी उनका खासा प्रभाव है.

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के महासचिव उनके पोते आश्रय शर्मा ने पिछले हफ्ते पार्टी से इस्तीफा दे दिया. भारतीय जनता पार्टी के एक सूत्र के मुताबिक, पहाड़ी राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले अब वह उनके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं.

सुखराम परिवार के एक करीबी कांग्रेसी नेता ने कहा कि सुखराम के बेटे अनिल शर्मा, जो भाजपा विधायक हैं, पिछले महीने कांग्रेस के साथ मिलाने का संकेत देते नजर आए थे. उन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की थी और कथित तौर पर आगामी चुनावों के लिए अपने और अपने बेटे के लिए टिकट मांगा था.

लेकिन बिना किसी आश्वासन के बैठक से बाहर आने के बाद ऐसा लगता है कि पिता-पुत्र की जोड़ी ने इस बार भाजपा पर दांव लगाया है. यह हाल के हफ्तों में अनिल शर्मा की सीएम जयराम ठाकुर के साथ बार-बार मिलने और 3 अक्टूबर को बिलासपुर में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की अध्यक्षता में जिला पदाधिकारियों की बैठक में उनकी उपस्थिति से साफ होता नजर आ रहा है.


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‘प्रियंका और नड्डा से मिले अनिल शर्मा ‘

आश्रय, उनके पिता अनिल शर्मा और दादा सुखराम 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का साथ देने के लिए उनकी गाड़ी पर सवार हो गए थे. और जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने यह फैसला क्यों लिया, तो परिवार ने उस समय कहा था- ‘ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि मंडी में एक जनसभा के दौरान सुखराम को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उपस्थिति में मंच से दूर रखा गया था.’

उनके परिवार के करीबी एक कांग्रेसी नेता की मानें तो उनके पार्टी से बाहर निकलने का असल कारण कुछ और ही था. उन तीनों को लगने लगा था कि कांग्रेस वीरभद्र सिंह प्रशासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को रोकने की स्थिति में नहीं है. सो वह भाजपा की ओर चले गए.

भाजपा के टिकट पर मंडी से जीतने के बाद अनिल शर्मा को 2017 में जयराम ठाकुर सरकार में मंत्री बनाया गया. लेकिन 2019 में जब उनका कार्यकाल कम हुआ, तो उनके बेटे आश्रय और पिता सुखराम कांग्रेस में लौट गए. क्योंकि भाजपा ने मंडी से चुनाव लड़ने के लिए उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था.

भाजपा के एक अन्य सूत्र ने कहा कि अनिल शर्मा को भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार करने से इनकार करने के बाद मंत्रिपरिषद से हटा दिया गया था, जो मंडी से उनके बेटे के खिलाफ खड़े हुए थे. आश्रय उस चुनाव में भाजपा के राम स्वरूप शर्मा से 4 लाख से ज्यादा मतों के अंतर से हारे थे.

मंडी के एक भाजपा नेता ने बताया कि अनिल शर्मा ने पार्टी की गतिविधियों से खुद को दूर कर लिया और यहां तक कि 2021 में मंडी संसदीय उपचुनाव के लिए भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार करने के निर्देशों की भी अनदेखी की. कांग्रेस ने इस सीट पर वीरभद्र सिंह की विधवा प्रतिभा को मैदान में उतारा और जीत हासिल की थी.

आश्रय शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे पिता पिछले महीने प्रियंका जी और जेपी नड्डा जी दोनों से मिले थे. उन्होंने प्रियंका जी को याद दिलाया कि कैसे सुखराम जी को अतीत में अपमानित किया गया था और कहा था कि हम कांग्रेस में तभी रह सकते हैं जब हमारे गौरव की रक्षा हो, लेकिन उनकी तरफ से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला.

उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि हिमाचल कांग्रेस में ‘वंशवाद’ का शासन चलता है. उन्होंने बताया, ‘पूरी कांग्रेस शिमला से चलती है जहां प्रतिभा सिंह रहती हैं. संगठन में मंडी जिले का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, इसलिए मैंने पार्टी छोड़ने का फैसला किया.’

आश्रय ने बताया कि नड्डा ने अनिल शर्मा को परिवार का गौरव बहाल करने और सभी शिकायतों का समाधान करने का आश्वासन दिया है. वह दावा करते हुए कहते हैं, ‘यहां तक कि उन्होंने (नड्डा) हिमाचल के पार्टी प्रभारी (भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) सौदान सिंह को मेरे पिता को (चुनाव अभियान में) अधिक प्रमुखता से शामिल करने के लिए कहा है.’

अपने राजनीतिक भविष्य को वह कहां देख रहे हैं? इसके जवाब में आश्रय ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं अपने समर्थकों से अपने अगले कदम के बारे में बात कर रहा हूं. लेकिन इतना तो साफ है कि मेरा परिवार एक पार्टी (भाजपा) के साथ रहेगा, मुझे टिकट मिले या न मिले. मेरे पिता चुनाव लड़ेंगे.’

हिमाचल प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि टिकट का बंटवारा पार्टी के आंतरिक सर्वे के आधार पर किया जाएगा. नेता ने कहा, ‘आश्रय की वापसी का निर्णय अभी आखिरी मुकाम तक नहीं पहुंचा है. वह पार्टी में शामिल होने के इच्छुक हैं लेकिन इस मामले में आलाकमान ही अंतिम फैसला लेंगे.’

सुखराम- कांग्रेस के योद्धा

हिमाचल प्रदेश का मंडी जिला दशकों से सुखराम परिवार का गढ़ रहा है. उन्होंने लगातार चार बार (1967-1984) राज्य विधानसभा में मंडी का प्रतिनिधित्व किया. यहां तक कि 1977 की जनता पार्टी की लहर के दौरान भी अपनी सीट बरकरार रखी थी.

उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए 1984 में सीट खाली कर दी और निचले सदन में तीन बार मंडी का प्रतिनिधित्व किया. वह 1989 में मंडी संसदीय सीट हार गए थे, लेकिन 1991 में उन्होंने फिर से वापसी की. उन्हें पीवी नरसिम्हा राव सरकार में दूरसंचार राज्य मंत्री (MoS) बनाया गया.

राजनीतिक विरोधियों की ओर से उनके खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद वह 1996 में अपनी संसदीय सीट बरकरार रखने में कामयाब रहे थे.

दूरसंचार घोटाले में उनकी कथित भूमिका के लिए कांग्रेस से निकाले जाने के बाद सुखराम ने उसी साल अपनी पार्टी ‘हिमाचल विकास कांग्रेस’ की स्थापना की और 1998 के विधानसभा चुनावों में पांच सीटें जीतीं. इस दौरान उन्होंने बहुमत से कुछ दूर रही भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया और प्रेम कुमार धूमल को पहाड़ी राज्य का मुख्यमंत्री बनने में मदद की.

भाजपा ने अनिल शर्मा को राज्यसभा भेजकर उनका एहसान चुका दिया था.

2003 के विधानसभा चुनावों में एचवीसी सिर्फ एक सीट तक सिमट कर रह गई. सुखराम ने फिर वीरभद्र सिंह के साथ बातचीत की और 2004 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ अपनी पार्टी का विलय कर दिया. तब कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को मंडी से मैदान में उतारा था और वह उस सीट को जीतने में कामयाब रही थी. अनिल शर्मा ने 2007 में और फिर 2012 में कांग्रेस के टिकट पर मंडी विधानसभा सीट जीती.

पांच बार के विधायक और तीन बार के सांसद सुखराम 2011 में तब सुर्खियों में आए जब उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने तीन मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराया.

बीजेपी के लिए मंडी क्यों मायने रखती है?

भाजपा के लिए आगामी चुनावों में मंडी सीट के खासे मायने हैं, क्योंकि वह पिछले साल संसदीय उपचुनाव में पीएम मोदी और खुद मुख्यमंत्री सहित स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारने के बावजूद कांग्रेस से हार गई थी.

मंडी जिले में 10 विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां 2012 में इस जिले से केवल पांच भाजपा विधायक चुने गए थे, वहीं 2017 में भाजपा ने इन सभी सीटों को अपने कब्जे में कर लिया था.

अनिल शर्मा ने कहा ‘मंडी (2017) में भाजपा की जीत के पीछे का एक प्रमुख फैक्टर सुखराम का पार्टी में शामिल होने का निर्णय था. 2021 में सुखराम ने प्रतिभा सिंह का समर्थन किया और वह लोकसभा उपचुनाव जीत गईं. सुखराम परिवार का मतदाताओं से भावनात्मक जुड़ाव है.’

मंडी के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ‘कोई नहीं जानता कि पिता-पुत्र की जोड़ी (अनिल और आश्रय) चुनाव तक भाजपा के साथ रहेगी या नहीं, क्योंकि परिवार के बारे में अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है.’

नेता ने कहा, ‘2017 में अनिल शर्मा ने हिमाचल में कांग्रेस के ‘मिशन रिपीट’ के बारे में एक फेसबुक पोस्ट डाली थी. लेकिन बाद में उसी शाम उन्होंने भाजपा में शामिल होने के अपने फैसले की घोषणा कर दी. पार्टी-होपिंग के कारण सुखराम परिवार ने अपना प्रभाव खो दिया है.’

उन्होंने कहा कि मंडी को अब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले के रूप में देखा जाता है.

भाजपा नेता ने कहा, ‘पहाड़ी राज्य में एक या दो सीटें भी चुनाव का परिणाम बदल सकती हैं और सीएम अपने गृह जिले में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते. इसलिए उन्होंने अनिल शर्मा को अतीत में नखरे करने के लिए माफ कर दिया, जिससे पार्टी को शर्मिंदगी हुई थी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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