शिमला: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा फोर्ट में करीब 400 साल के बाद गुरुवार को शाही परिवार के 489वें वंशज का राज्याभिषेक होगा.
शाही परिवार के एक करीबी ने दिप्रिंट को बताया कि राजनीतिक तौर पर कांग्रेस से जुड़े कांगड़ा के शाही परिवार में 52 वर्षीय ऐश्वर्य चंद्र कटोच का राज्याभिषेक किले के अंदर स्थित अंबिका देवी मंदिर में होने वाला है. ऐश्वर्य चंद्र पूर्व शाही वंशज आदित्य देव चंद कटोच और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता, पूर्व राज्य मंत्री और केंद्रीय मंत्री चंद्रेश कुमारी के पुत्र हैं.
आदित्य देव चंद का 30 दिसंबर 2021 को निधन हो गया था.
कांगड़ा कला और साहित्य के प्रचार में जुटे और शाही परिवार के करीबी राघव गुलेरिया ने दिप्रिंट को बताया कि शोक के बाद एक साल तक परिवार में कोई धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है.
कांग्रेस के सदस्य ऐश्वर्य चंद्र कटोच, जो 2019 से 2020 तक राज्य में पार्टी सचिव रहे, ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने यह समारोह कांगड़ा किले के अंबिका देवी मंदिर में आयोजित करने का फैसला किया है. मेरे परिवार का इस क्षेत्र के लोगों के साथ एक मजबूत रिश्ता है. हमने सालों उनकी सेवा की है. मेरे लिए, यह समारोह कुलदेवी से आशीर्वाद लेने का एक मौका ताकि मैं अपने पूर्वजों की तरह ही अपने लोगों की सेवा कर सकूं.’
प्रदेश की राजनीति में हमेशा शाही परिवारों का दबदबा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह—पूर्व बुशहर राज्य (अब शिमला जिले का हिस्सा) के वंशज—चार दशकों से अधिक समय तक राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर छाए रहे.
स्थानीय निवासियों का कहना है कि ऐसे समारोह न केवल सामाजिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी खासे महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह क्षेत्र के लोगों के साथ शाही परिवार के जुड़ाव को फिर से बढ़ाते हैं.
कांगड़ा के एक दुकानदार जगदेव चंद ने कहा, ‘शाही परिवार का लोगों से जुड़ाव रहा है, यह समारोह इन्हें और बढ़ाएगा ही. चूंकि वे लगभग दस वर्षों से चुनावी राजनीति से दूर हैं, इसलिए लोगों के पास उनके खिलाफ बोलने के लिए कुछ नहीं है.’
गौरतलब है कि पहली बार 1972 में कांग्रेस के टिकट पर हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पहुंची और तीन अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी का प्रतिनिधित्व कर चुकी चंद्रेश कुमारी 2014 के लोकसभा चुनाव में जोधपुर सीट (राजस्थान) पर हार गईं थी. तबसे यानी कि करीब एक दशक से कांगड़ा का शाही परिवार राजनीति से दूर है.
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कांगड़ा का राजनीतिक महत्व
15 विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर बना कांगड़ा क्षेत्र राज्य में राजनीतिक रूप से खासा संवेदनशील है. जाति फैक्टर ने यहां गहरी जड़ें जमा रखी हैं और कोई भी प्रमुख सियासी दल संसदीय या राज्य चुनावों के दौरान उम्मीदवार चुनते समय इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता.
कांगड़ा लोकसभा सीट पर (वोट शेयर के लिहाज से) राजपूत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का लगभग बराबर वर्चस्व है और फिर दलितों और ब्राह्मणों का नंबर आता है.
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के एक रिटयर्ड प्रोफेसर और पॉलिटिकल साइंटिस्ट राजेंद्र सिंह ने कहा कि कांगड़ा लोकसभा क्षेत्र में ओबीसी और राजपूत दोनों की ही 30-30 फीसदी से अधिक आबादी है, जबकि ब्राह्मणों की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, कांगड़ा में करीब 21 प्रतिशत दलित आबादी (करीब 18 फीसदी वोट) है. 2022 में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों ने ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. हालांकि, विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस उम्मीदवार पवन काजल, जो कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे, भाजपा में शामिल हो गए. बीजेपी ने किशन कपूर को मैदान में उतारा था.
गौरतलब है कि उस साल कांग्रेस ने क्षेत्र की कुल 15 विधानसभा सीटों में से 10 पर जीत हासिल की. हालांकि, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कांगड़ा जिले से केवल एक ही कैबिनेट मंत्री बनाया है—चंद्र कुमार (ओबीसी नेता). वहीं, भट्टियात (चंबा) से विधायक कुलदीप सिंह पठानिया को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है.
राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र सिंह का मानना है कि शाही परिवार का कोई भी व्यक्ति कांग्रेस के लिए एक अच्छा दांव हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘कांगड़ा से राजपूत सांसद बने हुए 30 साल से ज्यादा हो गए हैं. कांगड़ा में राजपूत चेहरे का होना किसी भी राजनीतिक दल के लिए फायदेमंद ही होगा.’
भाजपा के डी.डी. खनोरिया 1991 में कांगड़ा से आखिरी राजपूत सांसद रहे थे.
कटोच परिवार और 2024 का लोकसभा चुनाव
गुलेरिया ने कहा, ‘चंद्रेश कुमारी कांगड़ा की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं. वह पूरी सफलता के साथ राज्य विधानसभा में तीन अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.’
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चंद्रेश कुमारी पहली बार 1972 में हमीरपुर जिले के बामसन से कांग्रेस के टिकट पर हिमाचल विधानसभा के लिए चुनी गई थीं. 1984 में कांगड़ा से लोकसभा सदस्य चुने जाने से पहले वह राज्य मंत्री रहीं. चंद्रेश कुमारी ने 1996 में राज्यसभा सदस्य के रूप में भी काम किया और 1999 से 2003 तक अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं.
2003 में, वह धर्मशाला से तीसरी बार विधानसभा पहुंची और लगभग एक वर्ष तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं.
91वें संविधान संशोधन का पालन करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कैबिनेट का आकार घटाया और चंद्रेश कुमारी, पर्यटन मंत्री विजय सिंह मनकोटिया और राजस्व मंत्री बृज बिहारी बुटेल को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया.
गौरतलब है कि 91वें संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या राज्य विधानमंडल की कुल सदस्यता के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी.
चंद्रेश कुमारी 2009 के लोकसभा चुनाव में जोधपुर से निर्वाचित हुईं और 2012 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दौरान केंद्रीय संस्कृति मंत्री बनीं. हालांकि, 2014 में वह इसी सीट से हार गईं.
कांगड़ा से, कांग्रेस के पास अब तक 2024 के आम चुनाव के लिए अपने लोकसभा उम्मीदवार के रूप में कोई बड़ा नाम नहीं है.
परिवार की राजनीतिक अहमियत के बारे बात करते हुए ऐश्वर्य ने कहा, ‘मेरी मां करीब 55 सालों से जनसेवा कर रही हैं. यहां मंत्री रहीं, फिर केंद्र सरकार में रहीं, यहां और जोधपुर से चुनी गईं. लोग हमारे परिवार से प्यार करते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारा परिवार कांग्रेस के साथ है. मैं अब भी पार्टी के साथ हूं. अगर पार्टी मेरे परिवार को कमान संभालने का मौका देती है, तो हम पार्टी और अपने लोगों को निराश नहीं करेंगे.’
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राज्य की राजनीति में शाही परिवारों का रुतबा
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और शिमला ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक (2017 और 2022) विक्रमादित्य सिंह लोक निर्माण मंत्री हैं. वीरभद्र की पत्नी प्रतिभा सिंह मंडी से सांसद हैं और कांग्रेस की राज्य इकाई की प्रमुख हैं.
कसुम्पटी से तीन बार के विधायक और ग्रामीण विकास मंत्री राणा अनिरुद्ध सिंह कोटी के पूर्व शाही परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
एक अन्य कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक आशा कुमारी—जो चंबा में डलहौजी के शाही परिवार से आती हैं—2022 के चुनाव में भाजपा के डी.एस. ठाकुर से हार गई थीं.
कुछ शाही परिवार भाजपा के साथ भी जुड़े हैं. कुल्लू के शाही परिवार के वंशज महेश्वर सिंह पार्टी के पूर्व अध्यक्ष (1990), मंडी से लोकसभा सदस्य (1989,1998 और 1999) और कुल्लू से विधायक (1977,1982,2012) रहे हैं. हालांकि, पार्टी ने उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया.
जुंगा का भी एक परिवार भाजपा से जुड़ा है. तत्कालीन जुंगा रियासत की राजमाता और प्रतिभा सिंह की भाभी विजय ज्योति सेन ने 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं.
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