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Wednesday, 11 December, 2024
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SC ने मेंस्ट्रुअल लीव की मांग वाली PIL खारिज की, जानें अन्य देशों में क्या है प्रावधान

सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया गया कि मेंस्ट्रुअल लीव की अनुमति देने से कंपनियां महिलाओं को काम पर रखने से हतोत्साहित हो सकती हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में पेड मेंस्ट्रुअल लीव देने की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह नीतिगत फैसला है और इससे कंपनियां महिलाओं को काम पर रखने से बचेंगी.

दरअसल, 10 जनवरी को एडवोकेट शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका में सभी राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को उनके संबंधित वर्कप्लेस पर मेंस्ट्रुअल लीव के प्रावधान के लिए नियम बनाएं और मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा-14 का पालन करें.

इस याचिका को आज मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की एक बेंच ने सुना था. पिछले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुक्रवार के लिए सूचीबद्ध की थी.

सुनवाई के दौरान, एक इंटरवीनर ने कहा कि मेंस्ट्रुअल लीव की अनुमति देने से कंपनियां महिलाओं को काम पर रखने से हतोत्साहित हो सकती हैं.

इस पर, CJI ने भी सहमति जताते हुए कहा कि यदि कंपनियों को मेंस्ट्रुअल लीव देने के लिए मजबूर किया गया, तो यह उन्हें महिलाओं को काम पर रखने से बचने की ओर ले जा सकता है.

पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के समक्ष एक रिप्रेजेंटेशन दायर कर सकता है.

याचिका को खारिज करते हुए सीजेआई ने कहा

“मामले में नीति आयाम के संबंध में, याचिकाकर्ता एक रिप्रजेंटेशन दायर करने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क कर सकता है.”

दरअसल, याचिका में मांग की गई थी कि मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 में महिलाओं के सामना मातृत्व से संबंधित आने वाली समस्याओं का निदान ठीक से नहीं किया जाता. एक्ट के प्रावधानों में संशोधन के तहत गर्भावस्था, अबॉर्शन, टबटॉमी ऑपरेशन और मेडिकल समस्याओं के समय भी निश्चित संख्या में महिला कर्मचारियों को पेड लीव देना अनिवार्य किया जाना चाहिए.

हालांकि, एक्टिविस्टों का मानना है कि इसे भारत में जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि महिलाओं को अपनी क्रिएटिविटी बढ़ाने के लिए आराम करने की ज़रूरत पड़ती है.

वहीं, एक निजी कंपनी में काम करने वाले शिव का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला व्यावहारिक दृष्टिकोण को देखते हुए लिया गया है, जो कहीं न कहीं सटीक भी है…चूंकि, कंपनियां इन प्रावधानों से बचने के मार्ग खोजने में जुट जाएंगी. और वे समान वेतन पर महिलाओं की तुलना में पुरुषों को तवज्जो देंगी.

हालांकि, शिव का कहना है कि यह पूरे समाज की जिम्मेदारी है कि इसके प्रति सकारात्मक रवैया रखा जाए और सामाजिक जिम्मेदारी को देखते हुए कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए था.

एक अन्य प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली पत्रकार मृणाल वल्लरी इस मुद्दे से खासी नाराज़ नज़र आई.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ”जेंडर की लड़ाई में इस तरह की चीज़ों को खारिज करने से पहले अदालत को लिबरल होना पड़ेगा.”

याचिका को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के तर्क पर उन्होंने कहा, ”आज अदालत अगर इन मामलों से किनारा कर रही है, तो हो सकता है कि भविष्य में महिलाएं बच्चे पैदा करने से भी बचना चाहेंगी.”


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विदेशों में छुट्टियों के क्या हैं प्रावधान

फेमिनिस्ट एक्टिविस्ट कविता कृष्णन ने कहा, “सरकार जब भी कोई निर्णय लेती है, उनके दिमाग में केवल पुरुष वर्कर आते हैं. उन्हें वर्कर के नाम पर महिलाएं नज़र नहीं आती हैं. जबकि इस तरह के प्रावधान करते समय महिला वर्कर्स ही नहीं ट्रांस वुमेन या कोई भी व्यक्ति जिसे पीरियड्स होते हैं, उसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए.”

मेंस्ट्रुअल लीव, जिसे पीरियड लीव भी कहा जाता है, एक ऐसी वर्किंग प्लेस पॉलिसी है जो कर्मचारियों को पीरियड्स के दर्द या असुविधा होने पर काम से समय निकालकर आराम करने की अनुमति देती है. हालांकि, यह पॉलिसी बहुत बड़ी नहीं है, लेकिन यह कुछ देशों में आकर्षण का केंद्र बनती जा रही है. दिप्रिंट आपको बता रहा है कि दुनिया भर में मेंस्ट्रुअल लीव के क्या-क्या प्रावधान और पॉलिसी हैं.

16 फरवरी को स्पेन की संसद ने एक कानून पारित किया, जिसने स्पेन को यूरोप में पहला देश बना दिया, जिसमें वर्कर्स को मेंस्ट्रुअल लीव का अधिकार दिया गया. विधानमंडल ने पारंपरिक रूप से कैथोलिक देश में किशोरों के लिए अबॉर्शन और ट्रांसजेंडर के अधिकारों का भी विस्तार किया.

इसके अलावा, जापान में महिलाओं को हर महीने एक से तीन दिन की छुट्टी लेने का अधिकार है. जबकि दक्षिण कोरिया एक महीने में एक दिन की छुट्टी देता है, तो वहीं, ताइवान में प्रति वर्ष तीन दिन और इंडोनेशिया में एक महीने में दो दिन लीव की पॉलिसी है.

2016 में, स्वीडन पेड मेंस्ट्रुअल लीव पॉलिसी पेश करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया था. इस पॉलिसी के तहत, जो महिलाएं पीरियड्स के दिनों में पेट में गंभीर मरोड़/ऐंठन या अन्य संबंधित परेशानियों का अनुभव करती हैं, वे पेड लीव की हकदार हैं.

2017 में, इटली मेंस्ट्रुअल लीव देने वाला पहला यूरोपीय देश बन गया था. यहां महिलाओं को हर महीने तीन दिन की छुट्टी लेने का अधिकार है. 2015 में, ज़ाम्बिया ने महिलाकर्मियों के लिए प्रति माह एक दिन की छुट्टी का प्रावधान किया. 2019 में, फिलीपींस ने एक कानून पेश किया, जिसमें एक महीने में दो दिनों तक छुट्टी लेने की अनुमति दी गई.

हालांकि, फ्रांस सहित अधिकांश अन्य यूरोपीय देशों ने अभी तक एक समान कानून पेश नहीं किया है. इन देशों की कुछ कंपनियों के पास मेंस्ट्रुअल लीव देने की अपनी पॉलिसी हो सकती हैं, लेकिन यह कानूनी ज़रूरत नहीं है. हालांकि, इस पर गौर किया जाना चाहिए कि मेंस्ट्रुअल लीव के विषय पर बहस और चर्चाएं जारी हैं और कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि यह वर्किंग प्लेस में अधिक से अधिक लैंगिक समानता की ओर एक कदम हो सकता है.

इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका में कई कंपनियों ने स्वेच्छा से अपने कर्मचारियों के लिए मेंस्ट्रुअल लीव की नीतियों को लागू किया है, जिसमें यूनाइटेड किंगडम में स्थित एक सामाजिक उद्यम नाइकी और कोएक्सिस्ट शामिल हैं.

भारत इस मामले में अभी पीछे 

1992 में, एस. एल. भगवती बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के ऐतिहासिक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य और परिवारों की देखभाल करने के लिए मेंस्ट्रुअल लीव प्राप्त करने वाली महिलाओं के पक्ष में तर्क दिया. महिलाओं को 1992 से यह मौलिक अधिकार होना चाहिए था, लेकिन इतनी सारी कंपनियां अभी भी इसे प्रदान नहीं करती हैं.

तत्कालीन बिहार सरकार (1992) ने पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की अध्यक्षता में एक ऐसी नीति पेश की, जिसमें महिला कर्मचारियों को पीरियड्स से संबंधित कारणों से हर महीने दो दिन की पेड लीव देने का प्रावधान किया गया. इस नीति का उद्देश्य महिला कर्मचारियों के स्वास्थ्य और कल्याण को संबोधित करना था, साथ ही इस दौरान उनकी अनुपस्थिति को कम करना और प्रोडक्टिविटी में सुधार करना था.

हालांकि, इस नीति पर बहुत विवाद हुए थे. कुछ लोगों का तर्क था कि कि इसने जेंडर संबंधी रूढ़ियों को मजबूत किया और इसका इस्तेमाल महिला कर्मचारियों के खिलाफ भेदभाव के लिए एक बहाने के रूप में किया जा सकता है, कुछ का कहना था कि यह महिला कर्मचारियों की विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पहचानने और हल करने की दिशा में एक कदम था.

दिप्रिंट के लिए लिखे अपने लेख में पूर्णिया के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट राहुल कुमार ने कहा था, 8 मार्च 2022 को, बिहार के पूर्णिया जिले में पहली बार मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (MHM) के लिए एक योजना शुरू की गई थी. नीति आयोग ने 200 सरकारी उच्च विद्यालयों के लिए MHM-अनुकूल शौचालय और जागरूकता किट के प्रस्ताव को मंजूरी दी, हमने कुछ गैर -सरकारी संगठनों और यूनिसेफ से भी इस बारे में सहयोग के लिए कहा है.

ग्रामीण विकास के लिए एक सरकारी योजना जीविका के सीईओ कुमार ने दिप्रिंट से कहा था, “महिला कर्मचारियों को मेंस्ट्रुअल लीव ज़रूर दी जानी चाहिए, क्योंकि एक समान वर्क फोर्स हैं.” उन्होंने ये भी कहा कि “पैटरनिटी लीव को भी हर जगह लागू किया जाना चाहिए.”

बिहार के नक्शे-कदम पर चलते हुए केरल जैसे कुछ अन्य राज्यों ने भी ऐसी ही पॉलिसी पेश की हैं, जहां महिला कर्मचारी प्रति माह पेड मेंस्ट्रुअल लीव लेने की हकदार हैं.

इस महीने उच्च शिक्षा विभाग ने डिपार्टमेंट के अंतर्गत आने वाले विश्वविद्यालयों में छात्राओं के लिए मेंस्ट्रुअल लीव और मातृत्व लीव को लागू करने का आदेश जारी किया. इसके अलावा, 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला छात्र भी 60 दिनों तक मातृत्व अवकाश का लाभ उठा सकेंगी.

वहीं, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाले सुनील जागलान सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उम्मीद लगाए बैठे थे.

उन्होंने कहा था, ”हमने हरियाणा की लाडो पंचायत के जरिए प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड भेजे हैं, यहां महिलाएं अपने हक की लड़ाई के लिए खुद ही लड़ रही है.”

उनका कहना था कि जब इस तरह के प्रावधान पूरे देश में लागू हो जाएंगे तो हर एक घर में खुद-ब-खुद इस बारे में बातचीत के लिए एक परफेक्ट उम्र का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा.

भारत में मेंस्ट्रुअल लीव पॉलिसी लागू करने वाली कंपनियों में कल्चरल मशीन, एक मुंबई स्थित डिजिटल मीडिया कंपनी, गोज़ोप, एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी, मीडिया कंपनी माथ्रुबुमी और फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म ज़ोमेटो और स्विगी और बायजूस शामिल हैं.

मार्च 2021 में, दिल्ली सरकार ने घोषणा की कि वह अपनी सभी महिला कर्मचारियों को मेंस्ट्रुअल लीव देगी. छुट्टी को वह पीरियड्स साइकल के किसी भी दिन ले सकती हैं और इससे उनकी बाकी छुट्टियों में कटौती नहीं की जाएगी.

जुलाई 2021 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की कि राज्य में महिला कर्मचारी हर महीने एक दिन मेंस्ट्रुअल लीव की हकदार होंगी. एक महीने बाद, महाराष्ट्र सरकार ने इसी तरह की घोषणा की.

पीआईएल में CCS नियमों का हवाला

याचिका में मांग की गई थी कि सेंट्रल सिविल सर्विसेज (CCS) लीव रूल्स में पहले दो बच्चों की देखभाल करने के लिए अपनी पूरी सेवा अवधि के दौरान 730 दिनों तक छुट्टी और 18 वर्ष की आयु पूरी होने तक महिलाओं के लिए चाइल्ड केयर लीव (CCL) जैसे प्रावधान होने चाहिए. इस नियम में अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए पुरुष कर्मचारियों को 15 दिनों की पितृत्व अवकाश भी दिया जाए, जो कि कामकाजी महिलाओं के अधिकारों और समस्याओं को पहचानने में कल्याणकारी राज्य के लिए एक और शानदार कदम हो सकता है.

याचिका में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की स्टडी का हवाला दिया गया था, जिसके अनुसार कहा गया था कि एक महिला को पीरियड्स के दौरान उतना ही दर्द होता है, जितना किसी व्यक्ति को दिल के दौरा पड़ने पर होता है. ऐसा दर्द एक कर्मचारी की प्रोडक्टिविटी को कम करता है और काम को प्रभावित करता है.

धारा-14 क्या है?

मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट, 1961 की धारा-14, वर्किंग प्लेस पर नई माताओं के लिए नर्सिंग ब्रेक के प्रावधान से संबंधित है. यह निर्धारित करता है कि प्रत्येक महिला जो अपने बच्चे की डिलीवरी के बाद काम पर लौटती है, वह अपने बच्चे को नर्सिंग के लिए प्रति दिन आधे घंटे के दो ब्रेक ले सकेंगी, जब तक कि बच्चा 15 महीने का नहीं हो जाता है. हालांकि, यह ब्रेक उसके नियमित ब्रेक से अलग होगा.

हालांकि, इससे पहले भी कई याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि पीरियड्स के स्वास्थ्य के मुद्दों को वर्किंग प्लेस में पर्याप्त मान्यता और समर्थन नहीं दिया जाता है. उनका तर्क है कि मेंस्ट्रुअल लीव इस अंतर को कम करने और इससे संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने में मदद करेगी.

याचिका में यह भी कहा गया था कि 2018 में, लोकसभा में बजट सत्र के पहले दिन डॉ. शशि थरूर ने महिलाओं के यौन, प्रजनन और मासिक धर्म के अधिकार बिल पेश किए थे, लेकिन लोकसभा ने इसकी अवहेलना की क्योंकि यह एक ‘अशुद्ध’ विषय था.

बता दें कि विभिन्न कारणों से महिलाओं को पीरियड्स के दौरान काम से छुट्टी की ज़रूरत होती है जिसमें दर्दनाक ऐंठन, हैवी ब्लीडिंग, थकान और माइग्रेन, चिंता और डिप्रेशन जैसे हार्मोन से संबंधित मुद्दे शामिल हैं.

याचिका में कहा गया है कि मेंस्ट्रुअल लीव प्रदान करने से कंपनियों को लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और अपनी महिला कर्मचारियों की भलाई का समर्थन करने में मदद मिल सकती थी.


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