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Thursday, 25 April, 2024
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कैसे युवा लड़कों का जीवन छीन रही जेनेटिक बीमारी DMD, उदासीन सरकार से पीड़ित परिवारों की गुहार

दिल्ली में पहली डीएमडी जागरूकता रैली में मरीज़ों के परिवारों ने भारत में रिसर्च, सस्ती दवाओं और इलाज के लिए प्रोटोकॉल के लिए फंड की मांग करते हुए चिंता ज़ाहिर की.

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नई दिल्ली: “आप दूसरे बच्चों को आम लोगों की तरह बढ़ते हुए देख रहे हो और आपके खुद के बच्चे को करवट तक लेने के लिए मदद की ज़रूरत पड़ती हो, ये मुझे हर दिन कचोटता है,” राजस्थान के करौली जिले से आई 40-वर्षीय विधवा मां पूजा, जिनका 6 साल का बच्चा एक ऐसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है, जिसका दुनियाभर में अभी तक कोई इलाज नहीं है.

एक अन्य पिता और प्रमुख समाचार चैनल में काम करने वाले 50-वर्षीय बालकृष्ण ने कहा, “हम जिस चीज़ से गुज़रते हैं, उसके लिए दर्दनाक मामूली शब्द है. माता-पिता अपने बच्चों के बड़े होने पर उनके भविष्य के बारे में सोचते हैं, बात करते हैं. हमारे घर में कोई इस बारे में बोलता तक नहीं है.”

कृष्णा और पूजा राजस्थान, कर्नाटक, पंजाब और छत्तीसगढ़ सहित 21 राज्यों के लगभग 500 माता-पिता में से हैं, जो जीन में गड़बड़ी की वजह से होने वाली दुर्लभ जेनेटिक बीमारी ‘ड्यूचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी’ (डीएमडी) के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शुक्रवार को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर आयोजित एक रैली में शामिल होने आए थे.

भारत में पैदा होने वाले प्रत्येक 3500 पुरुषों में से एक लड़का डीएमडी के साथ पैदा होता है, हालांकि, लड़कियों में ये बीमारी बहुत कम होती है, जबकि लड़कों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है.

सरकारी अनुमानों के अनुसार, भारत में इस जेनेटिक बीमारी से पीड़ित प्रत्येक 10 बच्चों में से 8 की मृत्यु 20 वर्ष की आयु तक हो जाती है. यह बीमारी एक डायस्ट्रोफिन जीन के कारण होती है, जो शरीर में एक महत्वपूर्ण डायस्ट्रोफिन प्रोटीन के उत्पादन को रोक देती है.

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इस बीमारी के प्रभावी इलाज की कमी के कारण, दवाएं और फिजियोथेरेपी केवल इसके लक्षणों को कम करने तक ही कारगर हैं. डीएमडी मरीज़ों के परिवारों को हर दिन जिस दर्द से गुज़रना पड़ता है, उसे “शब्दों में बयां भी नहीं” किया जा सकता है.

शुक्रवार को इस रैली में जहां एक ओर बच्चे समर्थन की गुहार लगा रहे थे वहीं माता-पिता अपने आंसू पोंछते हुए सरकार से डीएमडी के मरीज़ों का एक डेटाबेस तैयार करने का अनुरोध कर रहे थे. कई माता-पिता ने दिप्रिंट से अपने बच्चों को होने वाली तकलीफ और दर्द को साझा किया, जिसके बारे में शायद ही भारत में बात की जाती है.

गुरुग्राम की पूजा हांडू और अमित हांडू ने बताया, “मेरा बेटा बहुत जीनियस था. वह ताइक्वांडो में येलो-बेल्ट और बहुत अच्छा स्विमर भी था, लेकिन पिछले दो साल में, मैंने कभी उसे खुद से कुछ काम करते नहीं देखा.”

दंपत्ति का 7-साल का बच्चा तनव डीएमडी से पीड़ित है. तनव बताते हैं, “मैं आज मोदीजी से गुज़ारिश करता हूं, मैं दवाई लेना चाहता हूं, मैं खेलना चाहता हूं, मैं दौड़ना भी चाहता हूं और मैं दूसरों की तरह बड़ा भी होना चाहता हूं…मैं जीना चाहता हूं.”

गुरुग्राम से आए 8-वर्षीय तनव | फोटो- फाल्गुनी शर्मा, देबदत्ता चक्रबर्ती/दिप्रिंट
गुरुग्राम से आए 7-वर्षीय तनव | फोटो- दिप्रिंट

माता-पिता का कहना है कि भारत सरकार ने आज तक डीएमडी से पीड़ित बच्चों की संख्या पर कोई डेटा जारी नहीं किया है.

दिल्ली में रहने वाले बालकृष्ण, जिनके 15-वर्षीय जुड़वां बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हैं, ने कहा, “सरकार के पास कोई डेटा नहीं है. भारत में कई बच्चे इस बीमारी से मर जाते हैं और सरकार यह भी नहीं जानती कि वो किस बीमारी से पीड़ित हैं. जागरूकता की कमी के कारण ज्यादातर में बीमारी का पता नहीं चल पाता है.”

दिप्रिंट ने इस मामले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से फोन और ई-मेल के जरिए संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस खबर के छपने तक कोई जवाब नहीं आया, हालांकि, प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.

शुक्रवार को आयोजित यह रैली पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ के 95वें संस्करण में डीएमडी के बारे में जागरूकता की आवश्यकता और बीमारी के रिसर्च और इलाज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालने की पृष्ठभूमि में हुई थी.


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‘रिसर्च की शुरुआत, सस्ती दवाएं’

जंतर-मंतर पर बारिश से भीगे टेंट्स के नीचे, व्हीलचेयर पर बैठे हुए बच्चे और उनके माता-पिता जिन्होंने ‘सेव आवर सन्स’ बैज पहना हुआ था…एक साथ ‘‘हम बच्चों की एक ही मांग जीवनदान, जीवनदान’’ के नारे लगा रहे थे.

अपने बच्चों के लिए जीवनदान की गुहार लगाते माता-पिता | फोटो- फाल्गुनी शर्मा, देबदत्ता चक्रबर्ती/दिप्रिंट
अपने बच्चों के लिए जीवनदान की गुहार लगाते माता-पिता | फोटो- दिप्रिंट

डीएमडी से पीड़ित 28-वर्षीय तरणदीप कौर उस भीड़ में अपनी व्हीलचेयर को हर-तरफ घुमाते हुए दूसरों का हौसला बढ़ा रही थीं. “मैं अपने पैरों पर चलना और दुनिया देखना चाहती हूं,” उन्होंने कहा, और फिर बच्चों को मुस्कुराने के लिए प्रोत्साहित करते हुए उन्हें दिए गए स्नैक्स को खाने में मदद करने लगीं.

तरणदीप ने हालांकि, ग्रेजुएशन की है, उन्होंने बताया, “मेरा मन है एक बार बाहर जा कर दुनिया देखूं…बस में चढ़ूं…जॉब कर पाऊं.”

डीएमडी से पीड़ित 28-वर्षीय तरणदीप कौर | फोटो- फाल्गुनी शर्मा, देबदत्ता चक्रबर्ती/दिप्रिंट
डीएमडी से पीड़ित 28-वर्षीय तरणदीप कौर | फोटो- दिप्रिंट

रैली में दिल दहला देने वाला एक दृश्य 8-साल की एक लड़की का था, जो चौथी लाइन में बैठी थीं और भीड़ में फंसे हुए अपनी व्हीलचेयर से गिर गई और उसके माथे पर चोट आई, लेकिन उसके अंग उसके शरीर को सहारा देने में सक्षम नहीं थे. वो खुद उठ नहीं सकती थी और उस भीड़ में कोई और भी उसे सहारा नहीं दे सकता था. आनन-फानन में उसकी मां दौड़ती हुई आई और अपनी बेटी को सीने से लगाकर बहुत देर तक रोती रहीं.

रैली में परिवारों ने जो प्रमुख मांगें उठाईं, उनमें सरकार द्वारा डीएमडी से पीड़ित बच्चों का एक डेटाबेस तैयार करने, एम्पावर्ड पैनल का गठन करने, जिसमें सरकारी प्रतिनिधि, मेडिकल एक्सपर्ट, बीमारी से पीड़ित बच्चों के माता-पिता भी हों, शामिल हैं.

बालकृष्ण ने बताया, “केंद्र कम से कम एक केंद्रीकृत पोर्टल (डीएमडी से पीड़ित लोगों के लिए) शुरू कर सकता है. हम चाहते हैं कि सरकार इस बीमारी में अनुसंधान की सुविधा भी प्रदान करे, जो वर्तमान में नहीं हो रहा है क्योंकि दवा कंपनियों के लिए और भारत में डीएमडी के लिए दवाओं के आयात के लिए सिंगल-विंडो क्लीयरेंस नहीं है. ये दवाएं बहुत महंगी हैं और इनकी कीमत करोड़ों में है. कुछ स्वदेशी शोध दवाओं को अधिक सुलभ बनाने में मदद कर सकते हैं.”

तनव के पिता अमित ने कहा, “हमें फंड नहीं चाहिए. हम केवल इतना चाहते हैं कि सरकार हमारे बच्चों को मुफ्त दवाएं और फिजियोथेरेपी मुहैया कराये.” तनव की मां पूजा रोते हुए कहती है, “मेरे बेटे के पास टाइम बहुत कम है और उसे भी जीने का अधिकार है.”

एक अन्य मां टीना, जिनके बेटे की इस बीमारी के कारण 15 साल की उम्र में मौत हो गई, ने कहा, “हमने कश्मीर से कन्याकुमारी, अमेरिका से लंदन हर जगह रिपोर्ट्स भेजीं, मेरा बेटा ढ़ाई साल की उम्र से इस बीमारी से लड़ रहा था और आखिरकार वो पिछले साल हमें छोड़ कर चला गया.”

उन्होंने कहा, “गर्भावस्था के ढ़ाई महीने के भीतर क्रोनिक विलियस सैंपलिंग (भ्रूण में जेनेटिक गड़बड़ियों की जांच करना) एक टेस्ट होता है, जो कि दिल्ली के तीन अस्पतालों (एम्स, गंगाराम और पीजीआई) में साल 2012 से लगभग 25-30 हज़ार रुपये की कीमत पर उपलब्ध है, जिसे सरकार हर गर्भवती महिला के लिए अनिवार्य और सभी अस्पतालों में मुफ्त कर दें.”

2018 में, इंडियन एसोसिएशन ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (आईएएमडी) ने डीएमडी मरीज़ों के लिए व्यापक देखभाल और प्रबंधन प्राप्त करने के लिए हिमाचल प्रदेश के सोलन में एकीकृत मस्कुलर डिस्ट्रॉफी रिहेबिलिटेशन केंद्र की स्थापना की थी, जिसका नाम मानव मंदिर है.

इस बीमारी पर पिछले साल एक फिल्म भी बन चुकी है, जिसका नाम सलाम वेंकी है. इसमें काजोल, आमिर खान और रेवथी ने अभिनय किया है.

रैली में शामिल होने के लिए कर्नाटक से आए 34-वर्षीय जगदीप ने बताया, “मैंने अपने बेटे गगनदीप (9-वर्ष) के इलाज के लिए पिछले दो साल में कर्नाटक से सोलन केंद्र तक हर महीने यात्राएं की है और 20 लाख रुपये खर्च किए हैं, लेकिन डॉक्टर कहते हैं कि मैं केवल उसकी सेवा ही कर सकता हूं.”

उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं मेरा बेटा ज्यादा नहीं जी सकता, लेकिन मैं फिर भी उसे बचाना चाहता हूं.”

राजस्थान के करौली जिले से आई पूजा अपने बेटे प्रभास को गोद में उठाए हुए | फोटो- फाल्गुनी शर्मा, देबदत्ता चक्रबर्ती/दिप्रिंट
राजस्थान के करौली जिले से आई पूजा अपने बेटे प्रभास को गोद में उठाए हुए | फोटो- दिप्रिंट

मेरठ से आए एक अन्य पिता संजीव भी डीएमडी से ग्रसित अपने 11-वर्षीय बेटे आरव बंसल के इलाज के लिए बीते 6 महीनों से सोलन जा रहे हैं.


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जागरूकता की दरकार

भारत सरकार ने 2021 में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा शुरू की गई दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति के तहत बहुत सारी दुर्लभ बीमारियों की पहचान की है, लेकिन सीमित शोध के कारण भारत में डीएमडी के बारे में उतनी जागरूकता नहीं है.

दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पीडिएट्रिक न्यूरोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. शेफाली गुलाटी ने कहा, “दुनिया के कई हिस्सों में इस बीमारी का इलाज तलाशने के मकसद से क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं. कई जगह एग्जॉन स्किपिंग, जीन थेरेपी और स्किन सेल थेरेपी का भी सहारा लिया जा रहा है.”

उन्होंने कहा, “सरकार दवाओं की खरीद और आयात करने में रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है. दवाओं के आयात के लिए दवा नियामक प्राधिकरणों से अप्रूवल प्राप्त करने की बोझिल प्रक्रिया को आसान बनाने में भी मदद कर सकती है.”

मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, वैशाली में ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट विभाग में एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. अखिलेश यादव ने दिप्रिंट को बताया, “डीएमडी के बारे में जागरूकता की कमी को आमतौर पर हमारे देश में विकलांगों के सामाजिक कलंक के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन हाल के दिनों में शिक्षा और जागरूकता में वृद्धि देखी गई है.”

डॉक्टर यादव के अनुसार, डीएमडी केवल रोगी की मांसपेशियों को प्रभावित नहीं करता है- यह उनके पूरे व्यक्ति और परिवार को प्रभावित करता है. डीएमडी के साथ रहने के लिए शक्ति और मदद की ज़रूरत होती है.

उन्होंने कहा, “हमें इस विनाशकारी स्थिति से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए इलाज खोजने और प्रभावी उपचार प्रदान करने की दिशा में काम करना जारी रखना चाहिए.”

डॉ. यादव ने कहा, “माता-पिता के लिए यह ज़रूरी है कि वो डायग्नोज़, रेगुलर चेक-अप्स, दवाएं, सहायक उपकरण और बीमारी के प्रबंधन के लिए भावनात्मक समर्थन प्रदान करें.”

रैली तो आयोजित हो गई, लेकिन उस दिन हर मां-बाप की आंखों से बहते आंसू सरकार से इस बीमारी की पहचान समय पर हो और उनके बच्चों को भी जीने का अधिकार मिले के साथ रिसर्च से जुड़े लोगों को बहुत आशा भरी निगाह से देख रहे हैं. उन्हें किसी चमत्कार का इंतजार है, साथ ही कई सवाल भी कि आखिर कब इस बीमारी के लिए सरकार कड़े कदम उठाएगी, जिससे फिर किसी मां-बाप की गोद सूनी न हो, जो अब अगले बच्चे के बारे में सोचने से भी घबरा रहे हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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