scorecardresearch
Tuesday, 23 April, 2024
होमराजनीतिठाकरे राजनीति का केंद्र रही है दशहरा रैलियां लेकिन शिवाजी पार्क को लेकर क्यों चल रहा विवाद

ठाकरे राजनीति का केंद्र रही है दशहरा रैलियां लेकिन शिवाजी पार्क को लेकर क्यों चल रहा विवाद

उद्धव की अगुवाई वाले सेना गुट को डर है कि शिंदे की सरकार अपनी ताकत का इस्तेमाल कर के, उन्हें अपनी प्रतिष्ठित दशहरा रैली के लिए मैदान का इस्तेमाल करने से मना करा सकती है. सबकी नज़रें अब बीएमसी पर हैं.

Text Size:

मुंबई: पांच दशकों से अधिक से मुंबई के दादर में शिवाजी पार्क, वार्षिक दशहरा रैली के लिए शिवसेना का स्थल रहा है. लेकिन पार्टी में शत्रुतापूर्ण विभाजन और ‘वास्तविक’ शिवसेना पर चल रहे झगड़े के बाद उद्धव ठाकरे गुट स्थल को लेकर अब ऐसी मजबूत स्थिति में नहीं है.

ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के नेताओं ने आरोप लगाया है कि मुंबई नगर निकाय, बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) शिवाजी पार्क को अपनी रैली के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति देने में देरी कर रहा है.

उन्हें डर है कि एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली नई सरकार अपनी ताकत का इस्तेमाल करके उन्हें अपनी प्रतिष्ठित दशहरा रैली के लिए मैदान का इस्तेमाल करने से मना करा सकती है, वो मैदान जो पार्टी के लिए पर्याय बन चुका है और उसके लिए निकट भविष्य में अपने राजनीतिक एजेंडा को साझा करने का एक माध्यम है.

पिछले शनिवार, सेना नेता और पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ने नागपुर में मीडियाकर्मियों को बताया था कि दशहरा पर रैली (जो इस साल 5 अक्टूबर को है) के लिए उनके बीएमसी को आवेदन भेजने के बावजूद, निगम ने अभी तक उसे स्वीकार नहीं किया है.

इस बीच उद्धव ठाकरे ने सोमवार को जोर देकर कहा कि पार्टी शिवाजी पार्क में अपनी रैली आयोजित करेगी, चाहे उसके लिए आधिकारिक अनुमति मिले या नहीं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उसी दिन, एकनाथ शिंदे गुट के एक सदस्य नरेश म्हास्के सामने आ गए और उन्होंने कहा कि ठाकरे को ‘अनुमति’ मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि उन्होंने पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे की सीख को ‘त्याग’ दिया है.

अपनी ओर से बीएमसी ने अनुमति को रोककर रखने से इनकार किया है और कहा है कि अधिकारी 10-दिवसीय गणेश चतुर्थी उत्सव की तैयारियों में व्यस्त हैं, जो 31 अगस्त को शुरू हो रहा है.

शिंदे ने, जो अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं, 40 शिवसेना और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर जून में पूर्व की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी- जो शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस का गठबंधन था. शिंदे ने घोषित किया था कि एमवीए गठबंधन ‘अप्राकृतिक’ था.

उनके गुट का कहना था कि बीजेपी, जो हिंदुत्व पर बल देती है, बाल ठाकरे की विचारधारा से ज्यादा अच्छे से जुड़ी है, और इसलिए वो एक अधिक उपयुक्त साझीदार है. महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना करने की संभावना को देखते हुए उद्धव ने 29 जून को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था. अगले ही दिन शिंदे गुट और बीजेपी ने राज्य में सरकार बना ली.

लेकिन जिस चीज़ का स्पष्ट फैसला नहीं हो सका, वो ये थी कि शिवसेना के नाम, चिन्ह (तीर और कमान) और विरासत का सही दावेदार कौन है. उद्धव और शिंदे गुट दोनों ‘असली’ शिवसेना होने का दावा करते हैं और इस मामले में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं, जिसने पिछले सप्ताह इस विवाद को एक संविधान पीठ को भेज दिया, हालांकि इसकी सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है.

हालांकि कोर्ट इस लड़ाई की एक जगह है लेकिन दूसरी और ज्यादा प्रतीकात्मक जगह शिवाजी पार्क है.


यह भी पढ़ें: कांग्रेस के पुनरुद्धार के लिए गांधी परिवार के वंशवाद का अंत जरूरी, लेकिन सोनिया-राहुल ऐसा होने नहीं देंगे


शिवाजी पार्क शिवसेना के लिए इतना अहम क्यों है?

शिवसेना की स्थापना 19 जून 1966 को दादर में रानाडे मार्ग पर स्थित बाल ठाकरे के आवास पर हुई थी. उसके कुछ ही समय बाद उन्होंने अपनी साप्ताहिक पत्रिका मार्मिक में ऐलान किया कि उस साल 30 अक्टूबर को दशहरे पर वो शिवाजी पार्क में अपने कार्यकर्ताओं की पहली बैठक को संबोधित करेंगे.

उस स्थल पर पहले ही राजनीतिक रंग चढ़ा हुआ था. राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई के अनुसार, शिवाजी पार्क 1950 के दशक में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के दौरान प्रदर्शनों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल रह चुका था, जिनमें बॉम्बे स्टेट से निकालकर, जिसमें मौजूदा गुजरात का एक बड़ा इलाका शामिल था, एक अलग मराठी-भाषी राज्य बनाने की मांग की गई थी.

देसाई ने कहा, ‘संयुक्त महाराष्ट्र प्रदर्शनों के दौरान शिवाजी पार्क में बहुत सी रैलियां हुआ करती थीं और प्रबोधनकर ठाकरे (बाल ठाकरे के पिता) उनमें शरीक होकर उन्हें संबोधित किया करते थे.

1966 के दशहरे पर जब बाल ठाकरे ने पार्क में अपनी पहली रैली की, तो उसमें भारी भीड़ आकर्षित हुई जो एक परंपरा की शुरुआत का संकेत था.

उसके बाद से हर साल, सेना ने दशहरा रैली आयोजित की है. 2012 में अपनी मृत्यु तक वरिष्ठ ठाकरे, जो एक जबर्दस्त वक्ता थे, यहां पर बड़ी भीड़ को संबोधित किया करते थे और साल के लिए अपनी पार्टी की योजनाओं की झलक पेश करते थे.

ये शिवाजी पार्क की दशहरा रैलियां ही थीं जहां ठाकरे बड़ी घोषणाएं करते थे- भारत-पाक क्रिकेट मैचों के सेना विरोध से लेकर 2010 में अपने पोते आदित्य के पार्टी की युवा विंग, युवा सेना के प्रमुख के तौर पर राजनीति में दाखिल होने तक.

सैनिकों को उनका संदेश भी, जिसमें ठाकरे ने उनसे उद्धव और आदित्य का खयाल रखने को कहा था, उनके आखिरी दशहरा संबोधन में एक रिकॉर्ड किए गए संदेश के तौर पर चलाया गया था.

24 अक्टूबर 2012 को अपने आखिरी दशहरा संबोधन में, जो उनके गिरते स्वास्थ्य के कारण एक वीडियो प्रसारण था, बाल ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी को जमकर कोसा और अपने बेटे तथा पोते के लिए समर्थन की मांग की. उन्होंने कहा, ‘आपने मेरा खयाल रखा, अब उद्धव और आदित्य का खयाल रखिए’.

कुछ हफ्ते बाद जब ठाकरे का निधन हुआ, तो उनका अंतिम संस्कार भी शिवाजी पार्क में ही किया गया और वहां पर उनके सम्मान में एक स्मारक खड़ा है.

पार्टी मुख्यालय, सेना भवन, जिसका निर्माण 1970 के दशक के आरंभ में हुआ था, मैदान से सिर्फ लगभग 200 मीटर की दूरी पर है.

2013 के बाद से, उद्धव ने शिवाजी पार्क में दशहरा रैली को संबोधित किया है. अपने पिता की तरह उन्होंने भी इसे प्रमुख निर्णयों और घोषणाओं के लिए इस्तेमाल किया है.

2018 में उद्धव ने दशहरा रैली में ऐलान किया कि इस साल 25 नवंबर को वो अयोध्या का दौरा करेंगे और उन्होंने बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार से कहा कि वो राम मंदिर के निर्माण की तिथि तय करे.

नवंबर 2019 में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री शिवाजी पार्क से ही शपथ ली. सीएम के नाते अपनी पहली रैली में उन्होंने बीजेपी पर ताना मारा और पार्टी से कहा कि उन्हें हिंदुत्व के बारे में न सिखाए बल्कि आरएसएस से सबक ले.

Newly sworn-in Chief Minister of Maharashtra Uddhav Thackeray, his son and Yuva Sena Chief Aaditya Thackeray acknowledge their supporters, at Shivaji Park in Mumbai. | PTI
मुंबई के शिवाजी पार्क में उद्धव ठाकरे | फाइल फोटो: पीटीआई

देसाई ने कहा, ‘बाल ठाकरे और बाद में उद्धव इन रैलियों में नैरेटिव सेट करते थे, चाहे वो हिंदुत्व हो या मराठी गर्व के बारे में हो और शिवसैनिक पार्टी प्रमुख के सेट किए हुए नैरेटिव को स्वीकार कर लेते थे’.

उन्होंने आगे कहा कि रैली के लिए बंदोबस्त करना और राज्य के विभिन्न हिस्सों से लोगों को मुंबई लाना, चुनाव क्षेत्रों के विधायकों और नेताओं की जिम्मेदारी होती थी.

पार्टी प्रमुख के संबोधन से पहले ही वातावरण गुंजायमान हो जाता था, जिसमें लोक संगीत का प्रदर्शन और स्थानीय नेताओं के भाषण होते थे. देसाई ने बताया कि जब पार्टी प्रमुख वहां पहुंचते थे, तो उनका स्वागत ‘किसी मराठा राजा’ के आगमन से कम नहीं होता था.


यह भी पढ़ें: ‘मन की बात’ में जागरूकता पर जोर के बीच विशेषज्ञों की नजर में कुपोषण भोजन की उपलब्धता से जुड़ा मुद्दा है


रास्ते में क्या रोड़ा है?

पिछले 25 वर्षों में बीएमसी शिवसेना का गढ़ रहा है. इसका मतलब है कि नगर निकाय से दशहरा रैली के लिए अनुमति लेने जैसी तकनीकी बारीकियां कोई मुद्दा ही नहीं रही हैं.

लेकिन बीएमसी सामान्य सभा का कार्यकाल मार्च में समाप्त हो गया और नगर निगम फिलहाल एक प्रशासक के अंतर्गत है, जो सीधे राज्य सरकार को रिपोर्ट करता है.

इस साल, दशहरे की तैयारियां इतनी सुगम नहीं रही हैं.

पिछले सप्ताह मीडियाकर्मियों से बात करते हुए आदित्य ठाकरे ने कथित तौर पर आरोप लगाया, ‘हम लगातार बीएमसी से अनुमति लेने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्होंने अभी तक उसे स्वीकार नहीं किया है. लेकिन, जैसा कि आप जानते हैं ये एक ऐसी सरकार है जो विपक्ष को दबाने का प्रयास कर रही है. और इस सरकार ने अभी तक हमें अनुमति नहीं दी है’.

सेना लीडर और पूर्व मुंबई मेयर किशोरी पेडनेकर ने दिप्रिंट से कहा कि शिवसेना आमतौर से गणेश उत्सव के दौरान अनुमति के लिए आवेदन कर देती है, ताकि अंतिम समय की तैयारियों से बचा जा सके.

उन्होंने कहा, ‘हम आमतौर से गणपति के दौरान ही आवेदन कर देते हैं और उत्सव के बीच में ही हमें इजाजत मिल जाती है. क्योंकि गणेश उत्सव के बाद पंद्रह दिन का अशुभ काल होता है और फिर नवरात्र शुरू हो जाते हैं. इसलिए हमें तैयारियों के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलेगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मुझे आशा है कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस गंदी राजनीति नहीं करेंगे और अनुमति दिलाने में वो हमारी मदद करेंगे. वरना, पार्टी प्रमुख को तय करना पड़ेगा कि रैली कहां की जाए. लेकिन हमें आशा है कि अनुमति मिल जाएगी’.

इस बीच उद्धव ने मुखर भाषा का इस्तेमाल किया है. सोमवार को मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि शिवसेना का वार्षिक जमावड़ा ‘शिवतीर्थ’ पर आयोजित होगा- जिस शब्द को सेना स्थल के लिए इस्तेमाल करती है.

बीएमसी अनुमति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘तांत्रिक मांत्रिक (छल-कपट)…मैं (तकनीकी मुद्दों की) परवाह नहीं करता. शिवसेना अपनी दशहरा रैली शिवाजी पार्क में करेगी’.


यह भी पढ़ें: ऑस्ट्रेलिया के पूर्व PM रड ने कहा- भारत-चीन सीमा पर ‘राजनयिक सुलह’ के लिए जल्द तैयार नहीं होंगे शी


बीएमसी के पाले में है गेंद

जब दिप्रिंट ने बीएमसी में अनुमतियों को देखने वाले एक अधिकारी से बात की, तो उन्होंने कहा कि आवेदन प्राप्त हो गया है लेकिन उस पर गणेश उत्सव समाप्त होने के बाद विचार किया जाएगा.

अधिकारी ने कहा, ‘आवेदन हमें पिछले सप्ताह मिल गया था लेकिन गणेश उत्सव आने वाला है और निगम की प्राथमिकता ये सुनिश्चित करना है कि ये समारोह सुगमता से निकल जाए. जिस तिथि के लिए उन्होंने अनुमति मांगी है वो अभी बहुत दूर है. उत्सव समाप्त हो जाने के बाद हम उनके आवेदन पर विचार करेंगे’.

दादर और माहिम चुनाव क्षेत्र के विधायक सदा सर्वानकर ने दिप्रिंट से कहा कि इस मामले में बीएमसी को निर्णय लेना है. ‘हम (एकनाथ शिंदे गुट) दशहरा रैली के लिए कोई तैयारियां नहीं कर रहे हैं. हम इसमें कहीं से शामिल नहीं हैं. ये (बीएमसी) कमिश्नर का निर्णय है कि अनुमति दी जाए अथवा नहीं. ये आमतौर पर आयोजन से 8-10 दिन पहले दी जाती है, दो महीने पहले नहीं’.

इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए फडणवीस ने, जो गृह मंत्री भी हैं, रविवार को मीडिया से कहा: ‘मुझे जानकारी नहीं है कि ठाकरे की अगुवाई वाली सेना ने क्या किया था. लेकिन एक गृह मंत्री के नाते मैं कह सकता हूं कि हर चीज़ कानून के अनुसार की जाएगी. कानून के खिलाफ कुछ नहीं होगा’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: शिंदे-फडणवीस सरकार ने दूर की बाधाएं तो फिर गति पकड़ने लगी मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना


 

share & View comments