चंडीगढ़: पंजाब में सभी पार्टियों के राजनेता अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हिन्दू समुदाय को लुभाने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 38 प्रतिशत हिस्सा हैं. शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के सुखबीर सिंह बादल से लेकर आम आदमी पार्टी (आप) के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू तक, सभी दलों के राजनेता हाल के हफ्तों में मंदिरों के चक्कर लगाते दिखे हैं.
आम तौर पर यह माना जाता है कि 2017 में कांग्रेस की जीत में हिंदुओं ने निर्णायक भूमिका निभाई थी, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने अब पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और वे भाजपा के साथ एक नया चुनावी समीकरण बनाने पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं. इस कारण से यह वोट बैंक आगामी चुनावों में स्थानांतरित हो सकता है, क्योंकि कम-से-कम चार दल और गठबंधन जीत के लिए प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में कोई भी पार्टी हिंदू वोटरों की अनदेखी नहीं कर सकती.
राज्य में इस समय सत्ता में काबिज कांग्रेस इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है.
रविवार को, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने फगवाड़ा में भगवान परशुराम तपोस्थली का शिलान्यास करते हुए यह घोषणा की कि उनकी सरकार तीन हिंदू महाग्रंथों- रामायण, महाभारत और भगवद् गीता– पर शोध के लिए एक विशेष केंद्र स्थापित करेगी.
उन्होंने राज्य के ब्राह्मण समुदाय के कल्याण के लिए एक संगठन, ब्राह्मण भलाई बोर्ड, हेतु 10 करोड़ रुपये के अनुदान की भी घोषणा की. उन्होंने कहा कि वह स्वयं महाभारत पर पीएचडी करेंगे.
पिछले महीने चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर में तीर्थ यात्रा पर गए थे. इसके अलावा अक्टूबर की शुरुआत में, सिद्धू ने नवरात्रि के दौरान माता वैष्णो देवी मंदिर का दौरा किया था. इन नेताओं की इन यात्राओं और कार्यक्रमों को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया था, जो हिंदू मतदाताओं को लुभाने के प्रयास के रूप में प्रतीत होता है.
हालांकि, पार्टी इस समय बेहद नाजुक स्थिति में है.
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कांग्रेस की भूलें
ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने 2017 में हिंदू मतदाताओं के साथ सही तालमेल बिठाया था, लेकिन तब से पार्टी इस मार्ग से भटक गई है.
डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ के राजनीति विज्ञान विभाग में कार्यरत डॉ कंवलप्रीत कौर ने दिप्रिंट को बताया कि पंजाब में हिंदू मतदाताओं द्वारा ‘सिख कट्टरपंथी’ राजनीति से दूर रहने वाली पार्टियों का समर्थन करने की अधिक संभावना रहती है, और कांग्रेस इस हिसाब से उनके लिए फिट बैठती है.
उन्होंने कहा, ‘आप, जो 2017 में बाकी सब वर्गों की सबसे पसंदीदा थी, उस समय हिंदू मतदाताओं को प्रभावित करने में विफल रही क्योंकि उन्हें राज्य में सिख समुदाय के अंदर के कट्टरपंथी तत्वों का समर्थन करने वाली पार्टी के रूप में देखा गया था.’
कौर ने कहा, ‘पंजाब के हिंदुओं को कट्टरपंथियों का समर्थन करने वाले किसी भी राजनेता या पार्टी पर बेहद संदेह होता है क्योंकि वे अभी भी आतंकवाद के तीन कड़वे दशकों को नहीं भूले हैं, जिससे वे सबसे ज्यादा पीड़ित थे.’
कौर के अनुसार, कैप्टन अमरिंदर सिंह, जिन्होंने 2017 में कांग्रेस के अभियान की कमान संभाली और इस साल सितंबर में अपने इस्तीफे तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, हिंदू समुदाय की इस मानसिकता के साथ अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं और इस तरह वह इस ‘पूरे वोट बैंक’ पर कब्जा करने में सक्षम हैं.
उन्होंने कहा कि इस तथ्य ने उन्हें भाजपा, जिसके साथ वह चुनाव पूर्व सीट का तालमेल कर रहे हैं, के प्रति और अधिक अनुकूल बना दिया है.
वे कहती हैं, ‘अगर आप ध्यान से देखें, तो आप पाएंगे कि कैप्टन अमरिंदर ने हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में रखने की हरसंभव कोशिश की है. पिछले पांच सालों से, वह बड़े पैमाने पर केवल राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित मुद्दों पर बोलते रहे हैं, खासकर पाकिस्तान के बारे में.’
कौर ने कहा, ‘वह एक सेना से सेवानिवृत शख्स हैं और इसलिए उनकी इस तरह के मामलों पर स्वाभाविक पकड़ है. लेकिन हिंदुओं को उनके पीछे इस तरह मजबूती से रखने के लिए एक स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा भी है. यह एक हद तक इस बात की भी व्याख्या करता है कि क्यों वे भाजपा के साथ इतने आराम से जुड़े हैं … सिर्फ इसलिए क्योंकि शहरी हिंदू इस पार्टी के स्वाभाविक मतदाता है.’
कांग्रेस के बारे में माना जाता है कि यह पार्टी के अपनी अंदरूनी दरारों और अमरिंदर सिंह की जगह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद वर्तमान में हिंदुओं के मध्य कमजोर स्थिति में है.
चंडीगढ़ में इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक एवं राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. प्रमोद कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि जब से कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए दो हिंदू संभावित उम्मीदवारों – सुनील जाखड़ और अंबिका सोनी – की अनदेखी की है, तभी से हिंदु इस पार्टी से ‘अलगाव’ महसूस कर रहे हैं
जब कांग्रेस आलाकमान अमरिंदर को बदलने के लिए एक उपयुक्त उम्मीदवार की तलाश कर रहा था, तब अंबिका सोनी ने कहा था कि किसी सिख को ही पंजाब का मुख्यमंत्री होना चाहिए. इसके बाद, जाट सिख नेता नवजोत सिंह सिद्धू और सुखजिंदर रंधावा के नाम विचार के लिए आगे आए. लेकिन उन्हें इस कारण से नजरअंदाज कर दिया गया क्योंकि वे आपस में लड़ने लगे और अंततः चन्नी को चुन लिया गया.
कुमार ने कहा, ‘इस पूरी कवायद ने न केवल हिंदू मतदाताओं को पार्टी से अलग-थलग कर दिया, बल्कि कांग्रेस के खिलाफ जाट सिख वोट के प्रतिकूल ध्रुवीकरण को भी बल दिया ‘
कौर ने कहा कि नवजोत सिंह सिद्धू भी हिंदुओं को करीब लाने में असफल रहे हैं.
पिछले महीने, उन्होंने यह धमकी दी थी कि अगर राज्य सरकार ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और सिख प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी से जुड़े 2015 के एक मामले पर रिपोर्ट जारी नहीं की तो वे भूख हड़ताल पर चले जायेंगे. कौर ने कहा, ‘हालांकि पंजाब में हर धर्म के अनुयायी गुरु ग्रंथ साहिब का व्यापक तौर पर सम्मान करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि सिद्धू केवल सिख केंद्रित एजेंडे पर काम कर रहे हैं.’
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अकाली और आप नेताओं का मंदिर परिक्रमा
कांग्रेस की ही तरह शिअद नेता भी मंदिरों में दर्शन के लिए लाइन में लगे हैं. पिछले महीने की शुरुआत में, शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कई अन्य पार्टी नेताओं के साथ राजस्थान के सालासर में श्री बालाजी मंदिर में मत्था टेका.
इससे पहले, अक्टूबर में, सुखबीर ने हिमाचल प्रदेश में मां चिंतपूर्णी मंदिर, जालंधर में देवी तालाब मंदिर और फिर राजपुरा के नालास गांव में भगवान शिव मंदिर में दर्शन किये थे. उन्होंने अक्टूबर के मध्य में ‘परगट दिवस’ समारोह के एक हिस्से के रूप में अमृतसर स्थित भगवान वाल्मीकि तीरथ स्थल का भी दौरा किया.
कंवलप्रीत कौर ने कहा कि अकाली नेता हिंदुओं पर अपना ध्यान इसलिए केंद्रित कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने सिख समुदाय के बीच अपनी कुछ जमीन खो दी है.
कौर ने कहा,‘अकालियों ने 2017 में मुख्य रूप से [गुरु ग्रंथ साहिब] अपवित्रता के मुद्दे के कारण ही अपमी सत्ता गवां दी थी. बाद में अकाली दल उसी मुद्दे की वजह से छोटे- छोटे गुटों में बंट गया था. अब, यह देखते हुए कि कांग्रेस और आप चुनाव की पूर्व संध्या पर इस मामले को फिर से उठाने में कामयाब रहे हैं, वे (अकाली) सिर्फ जाट सिख वोट पर ही नहीं बल्कि हिंदू वोट पर भी अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.’
उन्होंने यह भी बताया कि कृषि कानूनों के विवाद ने भी इस पार्टी को बहुत हद तक आहत किया है.
कौर ने कहा, ‘जट्ट सिख वोट में किसानों की वह आबादी भी शामिल है, जिनके द्वारा शुरुआत में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों का समर्थन करने के लिए अकालियों को माफ करने की संभावना नहीं है.’
हालांकि संसद में इन कानूनों के पारित होने के बाद शिअद ने राजग से अपना समर्थन वापस ले लिया था, मगर इस पर आरोप है कि सरकार द्वारा इस संबंध में अध्यादेश लाए जाने के समय इस ने कुछ नहीं कहा था.
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी हिंदुओं को लुभाने के लिए मंदिर परिक्रमा का रास्ता अपना रहे हैं. अक्टूबर में, उन्होंने जालंधर स्थित देवी तालाब मंदिर का दौरा किया था, जहां उन्होंने एक जगराता में भी भाग लिया था.
कुमार ने कहा, ‘2017 में आप ने सोचा था कि पंजाब तो सिर्फ सिखों के लिए है और उन्होंने अपना सारा चुनाव अभियान उसी के इर्द-गिर्द केंद्रित किया. इसी वजह से वे हार गए.‘ कुमार आगे कहते हैं, ‘2017 के विपरीत इस बार डेरों, ड्रग्स और डोल्स (अनुदानों) के मुद्दों का उठाया जाना पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. इस बार का चुनाव धर्म-जाति के आधार पर लड़ा जाएगा.’
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