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Friday, 29 March, 2024
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अंदरूनी कलह, उम्मीदवारों का गलत चयन’- बीजेपी ने गिनाएं हिमाचल उपचुनाव में हार के कारण

हिमाचल प्रदेश में 30 अक्टूबर को हुए सभी चार सीटों के उपचुनावों में भाजपा हार गई थी, जिससे यह एकमात्र भाजपा शासित राज्य बन गया जहां वह इस बार के उपचुनावों में कोई भी सीट जीतने में विफल रही

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नई दिल्ली: बीजेपी की समीक्षा बैठक में पाया गया है कि 30 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश में हुए उपचुनाव में पार्टी की हार में गलत ढंग से टिकट बांटने, नेताओं के बीच कलह और अतिआत्मविश्वास प्रमुख कारणों में शामिल थे.

पार्टी ने हिमाचल की चार सीटों – मंडी संसदीय सीट और विधानसभा क्षेत्र अर्की, फतेहपुर और जुब्बल-कोटखाई – पर हुए उपचुनावों के लिए 12 समीक्षा रिपोर्टें तैयार की थीं. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशी, प्रभारी मंत्री एवं मंडल अध्यक्ष ने एक-एक रिपोर्ट तैयार की थी.

इस रिपोर्ट की जानकारी रखने वाले भाजपा सूत्रों के मुताबिक, टिकट बंटवारे से कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी और साथ हीं पार्टी राज्य के छह बार के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह की विधवा के प्रति लोगों की सहानुभूति का सही-सही अंदाजा लगाने में भी नाकाम रही.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीट पर टिकट के ‘गलत आवंटन’ ने पूरे के पुरे स्थानीय पार्टी संगठन को एक विद्रोही उम्मीदवार के समर्थन में खड़ा कर दिया. सूत्रों ने चुनाव में ‘पार्टी संगठन के कुछ नेताओं की निष्क्रियता’ को भी हार के एक कारक के रूप में उद्धृत किया गया था.

ये सभी चार उपचुनाव मौजूदा जन प्रतिनिधियों की मौत के कारण हुए थे. अर्की और फतेहपुर पर कांग्रेस का कब्जा था, जबकि जुब्बल-कोटखाई और मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रतिनिधि काबिज थे. भाजपा चारों जगहों पर हार गई, जिससे हिमाचल प्रदेश एकमात्र भाजपा शासित राज्य बन गया जहां वह इन उपचुनावों में कोई भी सीट जीतने में विफल रही. इसके अलावा, उसके उम्मीदवार को जुब्बल-कोटखाई में सिर्फ 4 फीसदी वोट मिले.

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प्रदेश भाजपा ने हार के कारणों का विश्लेषण करते हुए 24 से 26 नवंबर तक शिमला में हुई कई बैठकों में अपने प्रदर्शन का पोस्टमार्टम किया.

इन रिपोर्ट्स पर कोर ग्रुप की पांच घंटे तक चली बैठक में चर्चा हुई. मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और अविनाश राय खन्ना, जिन्हें पार्टी ने हिमाचल मामलों का प्रभारी बनाया है, इस बैठक में उपस्थित थे. अगले दिन राज्य सरकार के प्रभारी मंत्री भी इस चर्चा में उनके साथ शामिल हुए.

खन्ना ने कहा, ‘इस समीक्षा प्रक्रिया के दौरान कई चीजें सामने आई हैं जो संगठन और सरकार के बीच समन्वय की भारी कमी को दर्शाती हैं. हमें इन सब को ध्यान में रखना होगा. तभी हम 2022 का चुनाव जीत पाएंगे.’

हिमाचल के अगले राज्य विधानसभा चुनाव नवंबर 2022 में निर्धारित है.


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‘गलत उम्मीदवार, सहानुभूति वोट, संगठनात्मक समस्याएं’ 

मंडी में मुख्यमंत्री ठाकुर के अपने क्षेत्र से मिली एक रिपोर्ट ने ब्रिगेडियर कुशल ठाकुर (सेवानिवृत्त) को टिकट आवंटित किये जाने को भी इस लोकसभा सीट पर हार का कारण बताया. सूत्रों ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि कारगिल युद्ध के इस दिग्गज का इस क्षेत्र में कोई समर्थन  आधार नहीं था और इसलिए वह अपने स्वयं के गांव नगवैन में भी पार्टी की बढ़त सुनिश्चित नहीं कर सके.

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर  दिवंगत सांसद रामस्वरूप शर्मा जैसा ही कैडर से आने वाला कोई व्यक्ति चुनाव लड़ता तो वह अपने इलाके से  10,000-15,000 वोटों की बढ़त हासिल कर सकता था.

जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है,  कुल्लू के प्रभारी मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर और लाहौल के मंत्री और विधायक राम काल मारकंडा अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी को  बढ़त दिलाने में असमर्थ रहे. जो मंडी निर्वाचन क्षेत्र के भीतर आते हैं.

साथ ही, भाजपा को यह भी लगता है कि वह मंडी में कांग्रेस की विजयी उम्मीदवार प्रतिभा सिंह के प्रति जनता की सहानुभूति की सीमा को समझने में विफल रही. उनके पति पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का जुलाई में निधन हो गया था (जिसकी वजह से अर्की में उपचुनाव हुआ). पति-पत्नी दोनों कई बार मंडी से सांसद रह चुके हैं.

भाजपा को इस निर्वाचन क्षेत्र में संगठनात्मक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा.

निर्वाचन क्षेत्र से मिली रिपोर्टों के अनुसार, कुछ क्षेत्रों में पन्ना प्रमुख और बूथ के प्रभारी वोट दिलाने भी नहीं आये. मंडल अध्यक्षों की रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें शहरी क्षेत्रों में कॉर्पोरेटरस से आवश्यक समर्थन नहीं मिला, जबकि ग्रामीण इलाके  में कार्यकर्ता लोगों को यह नहीं समझा सके कि सत्ता में बनी उनकी सरकार ने उनके लिए काम किया है. रिपोर्ट से निकले निष्कर्ष के अनुसार पार्टी संगठन अनुसूचित जातियों के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभों को गिनने में भी असमर्थ रहा.

बैठक में शामिल एक नेता के अनुसार, ‘कार्यकर्ताओं में असंतोष वैसे तो गलत उम्मीदवारों को टिकट आवंटित करने के बारे में था, लेकिन इससे भी ज्यादा सरकार और संगठन के बीच तालमेल की बड़ी कमी थी. केवल मुख्यमंत्री जी तोड़ मेहनत कर रहे थे पर संगठन के लोग सोये पड़े थे. चुनाव में संगठन के लोग वोट दिलाने नहीं पहुँचे. इसका मतलब है कार्यकर्ता सरकार से नाराज है. सबको साथ नहीं लिया गया.’

एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वरिष्ठ नेताओं के परस्पर विरोधी बयान, सुखराम -कांग्रेस के दिग्गज नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और मंडी के पूर्व सांसद – के परिवार से मेलजोल का कार्यकर्ताओं पर असर पड़ा.

भाजपा सूत्रों ने बताया कि सुखराम के बेटे, मंडी के भाजपा विधायक अनिल शर्मा – जिन्हें उनके बेटे के 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के दिकर पर लड़ने के बाद से दरकिनार कर दिया गया था – ने कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए राज्य के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता कौल सिंह ठाकुर के साथ हाथ मिलाया. उनके अनुसार, शर्मा ने भाजपा के लिए प्रचार नहीं किया और ‘चुपचाप से कांग्रेस का समर्थन किया’.


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‘पार्टी और सरकार के बीच कटुता, बागी नेता’

कुछ ऐसा ही हाल अर्की विधानसभा सीट का भी था. सूत्रों का कहना है कि आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार पार्टी की इस सीट पर हार गलत उम्मीदवार के चयन, आधिकारिक उम्मीदवार की कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करने में असमर्थता और पूर्व विधायक गोविंद राम शर्मा और जिला पंचायत सदस्य आशा परिहार की चुनाव अभियान से अनुपस्थिति की वजह से हुई.

ये दोनों नेता इस निर्वाचन क्षेत्र में प्रभावशाली हैं और पार्टी के उम्मीदवार के रूप में रतन सिंह पाल के चयन का विरोध कर रहे थे.

शर्मा को अपने लिए टिकट चाहिए था. मगर जैसा कि एक भाजपा नेता ने कहा, ‘अगर उन्हें टिकट दिया जाता तो वे काफी आराम से चुनाव जीत सकते थे. लेकिन बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे और संगठन मंत्री (भाजपा महासचिव, संगठन) पवन राणा द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर उनकी उम्मीदवारी को खारिज कर दिया गया था. विद्रोही नेताओं ने पार्टी के पक्ष में प्रचार नहीं किया, जिससे अंततः हमारी हार हुई.’

इसी तरह, भाजपा के पूर्व राज्य उपाध्यक्ष कृपाल परमार-  जिन्होंने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया – को टिकट देने से इनकार करने का कारण उन्होंने पार्टी का समर्थन नहीं करने का उनका फैसला किया. भाजपा के पूर्व सांसद और विधायक राजन सुशांत के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की भी फतेहपुर में भाजपा की हार योगदान देने वाला माना जाता है.

भाजपा के एक महासचिव ने दिप्रिंट को बताया, ‘कुल मिलाकर संगठन में बहुत असंतोष था और हमें अपने कार्यकर्ताओं के बीच भरे गुस्से, गलत उम्मीदवारों को टिकट आवंटित करने और सभी को साथ नहीं ले जाने की कीमत चुकानी पड़ी. पर यह एक बड़ा अलार्म है कि अगर हमने विधानसभा चुनाव से पहले कार्यकारताओं का असंतोष दूर नहीं किया तो हमारी लुटिया डूबनी तय है.’

यह समीक्षा रिपोर्ट अब भाजपा आलाकमान को भेजी जाएगी. इसके बाद, भाजपा नेताओं के मुताबिक, राज्य संगठन, बोर्ड, निगम और राज्य मंत्रिमंडल में बदलाव होना तय है. सूत्रों ने कहा कि आलाकमान इस हार को हल्के में लेने के मूड में नहीं है और वह यह भी जानता है कि कुछ मामूली बदलाव से काम नहीं चलेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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