पटना: राष्ट्रीय स्तर पर गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस वाले एक मोर्चे के लिए राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को साधने के तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के कथित प्रयासों को तेजस्वी यादव की तरफ से कोई खास उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.
राजद सूत्रों के मुताबिक, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख ने इस हफ्ते के शुरू में तेजस्वी यादव को एक चार्टर्ड विमान से पटना से हैदराबाद बुलाया क्योंकि वह चाहते थे कि तेजस्वी उनके साथ तीसरे मोर्चे का हिस्सा बने. हालांकि, तेजस्वी ने इस बारे में कोई ठोस वादा नहीं किया.
सूत्रों ने कहा कि वार्ता दक्षिण भारतीय राज्यों के साथ-साथ महाराष्ट्र और एक ऐसे गठबंधन पर केंद्रित रही जो भाजपा और कांग्रेस दोनों को हरा सके.
माना जा रहा है कि केसीआर ने यादव से कहा कि ‘आप युवा हैं. देश के लिए कुछ कर सकते हैं.’ लेकिन राजद नेता ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि कांग्रेस राजद की एक पुरानी सहयोगी पार्टी है.
बैठक के अंत में केसीआर ने यादव से एक अलग कमरे में भी कुछ मिनट बात की. सूत्रों ने बताया कि यादव ने राजद के अन्य नेताओं के समक्ष इस बातचीत के बारे में कोई खुलासा नहीं किया है.
राजद एमएलसी सुनील सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने पटना से सुबह 11 बजे उड़ान भरी और उसी दिन (मंगलवार) शाम 7 बजे लौट आए. बैठक कुछ घंटों तक चली लेकिन हमें इसके बारे में कुछ नहीं बोलने को कहा गया है.’
राजद के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘निमंत्रण मिलने के बाद तेजस्वी ने लालू जी से बात की. लालू जी ने उन्हें जाने के लिए कहा क्योंकि इससे राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद बढ़ेगा. लेकिन साथ ही उन्होंने तेजस्वी से कोई प्रतिबद्धता न जताने को भी कहा था और उन्होंने ठीक वैसा ही किया.’
बैठक के बाद, तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय ने ट्वीट किया कि बैठक एक ‘शिष्टाचार भेंट’ थी.
Bihar leader of opposition Sri @yadavtejashwi made a courtesy call on CM Sri K Chandrashekar Rao at Pragathi Bhavan in Hyderabad today. pic.twitter.com/Xq5Bw13QRb
— Telangana CMO (@TelanganaCMO) January 11, 2022
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केसीआर के ‘गठबंधन की कवायद’
यह बैठक ऐसे समय पर हुई है जब केसीआर लगातार गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस गठबंधन को मजबूत करने के प्रयासों में लगे हैं. पिछले महीने इसी सिलसिले में वह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम.के. स्टालिन से मिले थे, जो कांग्रेस के सहयोगी भी हैं. हालांकि, दोनों पक्षों ने इसे महज एक शिष्टाचार भेंट बताया था.
बैठक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से कांग्रेस और यूपीए को भाजपा के खिलाफ मजबूत विकल्प के तौर पर खारिज करने के ऐन बाद हुई थी.
इस महीने के शुरू में सीताराम येचुरी और डी. राजा जैसे शीर्ष वामपंथी नेताओं ने भी केसीआर से मुलाकात की थी.
कभी नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति ‘दोस्ताना रुख वाले विपक्षी’ नेता माने जाते रहे केसीआर को अब भाजपा बहुत ज्यादा रास नहीं आ रही क्योंकि वह दक्षिण भारत में मजबूती से अपने पैर जमाने की कोशिश में जुटी है और इसमें तेलंगाना उसका एक प्रमुख लक्ष्य है. केसीआर ने बुधवार को किसानों के मुद्दे से निपटने के तरीके की आलोचना करते हुए केंद्र से भाजपा को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया.
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कांग्रेस को लेकर क्यों दुविधा में है राजद
कांग्रेस-राजद गठबंधन की शुरुआत जहानाबाद जिले में 12 दलितों के नरसंहार के बाद फरवरी 1999 में बिहार की राबड़ी देवी सरकार को बर्खास्त करने के वाजपेयी सरकार के फैसले के विरोध से हुई थी.
कांग्रेस ने बर्खास्तगी की पहल का समर्थन करने से इनकार कर दिया और इसके कारण यह कोशिश राज्य सभा में सफल नहीं हो पाई.
तबसे दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही हैं. 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान इसमें दूरी आ गई थी जब कांग्रेस इस बात से नाराज थी कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने बिहार में कांग्रेस के लिए केवल तीन लोकसभा सीटें छोड़ी थीं. कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी और करीब एक दर्जन सीटों पर राजद को हार का सामना करना पड़ा. बाद में लालू ने माना कि कांग्रेस को नजरअंदाज करना महंगा साबित हुआ.
2020 के विधानसभा चुनावों के बाद दोनों दलों के बीच संबंध एक बार फिर बिगड़ गए जब कांग्रेस ने महागठबंधन के तहत 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद महज 19 सीटों पर ही जीत हासिल की. राजद नेताओं ने हार के लिए खुले तौर पर कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया. विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव में भी दोनों पार्टियों ने अलग-अलग प्रत्याशी उतारे. यहां तक कि एमएलसी के लिए होने वाले चुनाव में भी ये दोनों ही पार्टियां अलग-अलग लड़ रही हैं.
हालांकि, इन दोनों के बीच संबंध समय की कसौटी पर अमूमन खरे ही उतरे हैं.
राजद के एक दूसरे वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘राज्य के नेताओं के बीच वाकयुद्ध चलते रहने के बावजूद राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ तेजस्वी और लालू के संबंध अभी भी बहुत अच्छे बने हुए हैं. सोनिया गांधी के विदेशी मूल को लेकर भाजपा के हमले के खिलाफ खड़े होने वाले पहले राजनेता लालू जी ही थे.’
राजद नेता ने कहा, ‘कांग्रेस ने राजद सरकार को बचाया. राजद यूपीए-1 का हिस्सा था और यूपीए-2 में भी कांग्रेस का सहयोगी रहा. कांग्रेस ने 2017 में नीतीश के खिलाफ राजद का समर्थन किया (जब जेडीयू ने कांग्रेस-राजद के साथ गठबंधन तोड़ा).’
राजद ने केसीआर से कोई ठोस वादा क्यों नहीं किया, इस पर राजद नेता ने कहा, ‘कांग्रेस भले ही कमजोर स्थिति में है लेकिन अकेले चुनाव लड़कर भी वह बहुत कुछ कर सकती है. राजद के लिए कांग्रेस को पूरी तरह नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल है.’
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