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Tuesday, 19 November, 2024
होमचुनावमध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव‘पहले घोड़े पर बैठे थे, अब गधे पर’ — दिमनी में लोग BJP से हैं नाराज़ लेकिन कांग्रेस से उन्हें उम्मीदें

‘पहले घोड़े पर बैठे थे, अब गधे पर’ — दिमनी में लोग BJP से हैं नाराज़ लेकिन कांग्रेस से उन्हें उम्मीदें

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ठाकुर बहुल दिमनी से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उर्वरक की कमी और कृषि संकट मुख्य मुद्दे हैं, जिसमें बसपा का भी योगदान है.

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दिमनी: मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के दिमनी में एक किसान राम प्रसाद शर्मा सुबह 6 बजे उठे और उर्वरक का एक बैग खरीदने के लिए अपने क्षेत्र की एक सहकारी समिति में पहुंचे. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि दोपहर के समय, कतार में लगभग छह घंटे बिताने के बाद, उन्हें केवल उर्वरक का एक फटा हुआ बैग मिला, जिसमें कम से कम 5 किलोग्राम गायब था.

लेकिन शर्मा अकेले किसान नहीं हैं. दिमनी में उनके जैसे हज़ारों छोटे पैमाने के किसान अब उर्वरक खरीदने के लिए घंटों लंबी कतारों में खड़े रहने के आदी हो चुके हैं.

दिमनी वो विधानसभा क्षेत्र है जहां से भाजपा के केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आगामी मध्य प्रदेश चुनाव लड़ रहे हैं. तोमर मुरैना निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा लोकसभा सांसद हैं.

उत्तेजित शर्मा जब हाथ में उर्वरक का फटा बैग लेकर घर वापस जा रहे थे, उन्होंने पूछा, “जब मेरे जैसे छोटे किसान खाद और बिजली के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो नरेंद्र सिंह तोमर के इतने बड़े नेता होने का क्या मतलब है?”

उन्होंने आगे कहा, “मैंने पूरी रकम चुका दी, लेकिन हम सहकारी समिति चलाने वालों से शिकायत भी नहीं कर सकते क्योंकि अगर हमें उनके चीज़ों से निपटने के तरीके से कोई समस्या है तो वे हमसे बस मुरैना जाने के लिए कहते हैं.”

एक अन्य किसान दिलीप सिंह तोमर ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें बाजरा 1,900 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,500 रुपये से काफी कम है. उन्होंने कहा, “सरकार ने एमएसपी पर बाजरे की खरीद शुरू नहीं की है और हम निजी डीलरों को बेचने के लिए मजबूर हैं.”

जैसे ही सूरज ढलने लगा, दिलीप सिंह घर चले गए और उनके साथ दिमनी के चांदपुर गांव के निवासी कल्याण सिंह तोमर भी शामिल हो गए.

गेस्ट टीचर कल्याण सिंह ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि वह और उनके जैसे कई अन्य शिक्षक राज्य में स्थायी नियुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

उन्होंने आरोप लगाया, “भाजपा सरकार कहती कुछ है और करती कुछ और है. हम कई साल से स्थायी नियुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और सब कुछ सही करने और सभी मानदंडों को पूरा करने के बावजूद, हम अभी भी इसके लिए एक ऑफिस से दूसरे तक दौड़ रहे हैं.”

हालांकि, गांव में नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के खिलाफ स्पष्ट नाराज़गी है, भारतीय किसान यूनियन के 71-वर्षीय सदस्य गुलाब सिंह परिहार गांव के मुख्य चौराहे पर चाय की दुकान पर बैठे और लोगों को समझा रहे थे कि कैसे भाजपा सरकार किसानों के लाभ के लिए तीन कृषि कानून को लाना चाहती है, लेकिन “कुछ लोगों की ‘खालिस्तानी’ मानसिकता ने परियोजना को पटरी से उतार दिया”.


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नरेंद्र सिंह तोमर के लिए ‘अपर हैंड’?

दिमनी निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 2.5 लाख मतदाता हैं और यहां ठाकुर समुदाय का वर्चस्व है, जिसके बाद कुशवाह और ब्राह्मण आते हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के सदस्यों के पास लगभग 50,000 वोट हैं, जबकि गुर्जर और यादव में से प्रत्येक के पास लगभग 8,000 वोट हैं.

भाजपा ने नरेंद्र सिंह तोमर को मौजूदा कांग्रेस विधायक रवींद्र सिंह तोमर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बलवीर दंडोतिया और आम आदमी पार्टी (आप) के सुरेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ खड़ा किया है.

छोटे किसान किरथराम निषाद केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के रवींद्र सिंह तोमर दोनों से नाखुश हैं.

निषाद ने दिप्रिंट को बताया, “क्षेत्र में कोई विकास नहीं हुआ है. चाहे नरेंद्र सिंह तोमर कृषि मंत्री हों या रवींद्र सिंह तोमर मौजूदा कांग्रेस विधायक हों. तोमर साहब को खुद सोचना चाहिए, वो इतने बड़े नेता होने के बाद, अब यहां आए हैं विधायकी का चुनाव लड़ने के लिए. ये तो वही बात हो गई के पहले घोड़े पर बैठे थे, और अब गधे पर बैठे हैं.

हालांकि, दिमनी के ग्रामीण इसे एक हार के रूप में देखते हैं, भाजपा के एक जिला नेता ने कहा कि दिमनी से उम्मीदवार के रूप में कृषि मंत्री को चुनना पार्टी का सबसे अच्छा फैसला था.

रवींद्र सिंह तोमर ने कहा, “नरेंद्र सिंह तोमर जैसे कद्दावर नेता को मैदान में उतारने का मतलब है कि भाजपा निश्चित रूप से दिमनी सीट जीतेगी.”

नेता ने कहा, “वरना, दिमनी में स्थानीय समीकरण ऐसे थे कि गिर्राज दंडोतिया और एक अन्य उम्मीदवार, शिव मंगल, दोनों टिकट के लिए लड़ रहे थे. अगर दोनों में से किसी एक को चुना जाता तो दूसरा उसके खिलाफ काम करता और भाजपा हार जाती.”

दिमनी के किसान नेता सुभाष चंद्रा ने भी इस भावना को दोहराया कि कृषि संकट, उर्वरकों की कमी और फसल खरीद से संबंधित मुद्दों के बावजूद नरेंद्र सिंह तोमर सीट जीतेंगे.

चंद्रा ने कहा, “यहां कृषि संबंधी कई मुद्दे हैं, जिनमें उर्वरक की समस्या सबसे प्रमुख है, लेकिन दुर्भाग्य से लोग इन मुद्दों पर वोट नहीं देते हैं. वोटिंग पैटर्न ज्यादातर जातिगत समीकरणों से प्रेरित होता है और उस संबंध में सीट पर ठाकुरों का वर्चस्व होने के कारण, नरेंद्र सिंह तोमर का पलड़ा भारी होने की संभावना है.”

तीन नवंबर की रात जिले में भड़की हिंसा के बाद दिमनी में जातीय समीकरण खुलकर सामने आ गए.

ट्रैक्टर पर तेज़ संगीत बजाने को लेकर हुए विवाद के परिणामस्वरूप कथित तौर पर तोमर समुदाय के कुछ लोगों ने ऐदल सिंह गुर्जर की गोली मारकर हत्या कर दी. गुर्जर समुदाय ने कार्रवाई की मांग की प्रशासन ने अगले दिन आरोपियों के घर पर बुलडोजर चला दिया.

Khuri village in Madhya Pradesh's Dimani | Iram Siddique | ThePrint
मध्य प्रदेश के दिमनी का खुरी गांव | इरम सिद्दीकी/दिप्रिंट

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‘लोगों को उम्मीद है कि नेता दरवाजे पर आएंगे’

जबकि दिमनी में कुछ लोगों का मानना है कि जातिगत समीकरण चुनाव को नरेंद्र सिंह तोमर के पक्ष में झुका सकते हैं, दूसरों ने अभी तक अपना मन नहीं बनाया है और वोटों के लिए केंद्रीय मंत्री के उनके दरवाजे पर आने का इंतज़ार कर रहे हैं.

स्थानीय किसान रामरूप वर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “कोई फर्क नहीं पड़ता कि चुनाव कौन जीतता है, हमारी स्थिति शायद ही बदलती है, लेकिन हमने अभी तक अपना मन नहीं बनाया है और इंतज़ार करेंगे और देखेंगे कि हमारे वोट मांगने कौन आता है और फिर उसके अनुसार फैसला लेंगे.”

नरेंद्र सिंह तोमर विभिन्न गांवों में बैठकें कर रहे हैं, लेकिन अभी तक निर्वाचन क्षेत्र में घर-घर अभियान शुरू नहीं किया है.

हालांकि, तोमर के एक वफादार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, अकेले सार्वजनिक बैठकों से कटौती नहीं होगी. उन्होंने कहा, “वो समय चला गया जब लोगों में नेताओं को देखने और उनकी बैठकों में शामिल होने का क्रेज़ था. अब लोग उनसे अपने दरवाजे पर आने की उम्मीद करते हैं.”

दिमनी में स्थानीय भाजपा नेताओं के अनुसार, यह महसूस करते हुए कि यहां मुकाबला आसान नहीं होगा, न केवल नरेंद्र सिंह तोमर बल्कि उनके बेटे और पत्नी भी समर्थन जुटाने के लिए महिला मतदाताओं के साथ-साथ युवाओं को लक्षित करते हुए, निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार करने के लिए निकल पड़े हैं.


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बसपा फैक्टर और कांग्रेस को समर्थन

हालांकि, तोमर समुदाय के वोट नरेंद्र सिंह तोमर और विधायक रवींद्र सिंह तोमर के बीच बंटने की संभावना है, लेकिन बसपा के बलवीर दंडोतिया ने कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए मामला और मुश्किल कर दिया है.

बलवीर 2013 से 2018 तक दिमनी से विधायक थे और स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, उन्होंने एससी समुदाय के कई सदस्यों की मदद की और उनका समर्थन किया, लेकिन 2018 में वह गिर्राज दंडोतिया से चुनाव हार गए, जो उस समय कांग्रेस के उम्मीदवार थे.

भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार गिर्राज 2020 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो गए, लेकिन वो उस साल भाजपा के टिकट पर दिमनी से उपचुनाव हार गए और सीट एक बार फिर कांग्रेस के पास चली गई, जिसने तब रवींद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा था.

गिर्राज पर दोबारा भरोसा जताने को तैयार नहीं बीजेपी ने अब दिमनी से नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा है.

दिमनी के एससी बहुल खुरी गांव के निवासी राम चित्र मोहर ने दिप्रिंट को बताया कि 2018 में चुनाव हारने के बावजूद बलवीर ने गांवों का दौरा करना बंद नहीं किया. उन्होंने कहा, “हमारे पास गांव में एक पानी का पंप है और यह उन्हीं की वजह से है.”

लेकिन जहां मोहर ने बलवीर के काम की सराहना की, वहीं ग्रामीणों को यह भी पता था कि मध्य प्रदेश में बसपा की चुनावी संभावनाएं सीमित हैं.

खुरी गांव के अधिकांश निवासियों ने कहा कि वे अपने बच्चों के लिए रोज़गार चाहते हैं.

खेत में दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद लौट रहे युवाओं की ओर इशारा करते हुए मोहर ने कहा, “हम अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और रोज़गार चाहते हैं. हम नहीं चाहते कि वो हमारी तरह दूसरों के लिए मजदूर बनकर अपना जीवन व्यतीत करें. हम ऐसे उम्मीदवार को वोट देना चाहते हैं जो सरकार बना सके. इसलिए, हमारे वोट कांग्रेस को जाएंगे.”

19-वर्षीय बंटी, जो केवल पांचवीं कक्षा तक पढ़ा है और घर चलाने के लिए वाहन चलाता है, तुरंत बोला: “इस बार, इस गांव के वोट कांग्रेस को जाएंगे.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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