नई दिल्ली: वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दिप्रिंट से कहा कि वे कांग्रेस पार्टी में ‘पंगु और बंधा हुआ’ महसूस करते थे और तय किया कि अब छोडऩे का वक्त है.
सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री सिब्बल ने 30 साल बाद कांग्रेस को 16 मई को अलविदा कहने का फैसला किया. 25 मई को उन्होंने अपना फैसला सार्वजनिक किया और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राज्य सभा का पर्चा दाखिल किया. उनका राज्यसभा में मौजूदा कार्यकाल जुलाई में खत्म हो रहा है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘आजादी ही वह वजह है जिससे मैंने कभी सरकारी सेवा या अफसरशाही की ओर कभी नहीं गया, क्योंकि बोलने की आजादी मेरे लिए सबसे खास है. मैंने जो कुछ किया, कभी नतीजों की परवाह नहीं की. सो, 30 साल बाद मैंने असहाय और बंधा हुआ महसूस किया. मैंने सोचा कि कोई राजनैतिक पार्टी स्वायंसेवी संगठन होती है, इसी पहली वजह से मैंने उसमें शिरकत की.’
उन्होंने कहा, ‘यहां लोग सिर्फ वही बातें कहते हैं, जो नेता सुनना चाहता है. मैं ऐसा कभी नहीं कर सका और मैंने ऐसा कभी नहीं किया. मैं अदालत के भीतर भी ऐसा ही हूं और संसद में भी.’
‘लेकिन 30 साल के बाद, एक दिन मुझे लगा कि बोलने की आजादी खत्म हो गई है. अदालत में भी जब मैं खड़ा होता हूं तो जिसके लिए खड़ा हूं, जो बोल रहा हूं, उसके लिए एक आदर का भाव रहता है. पार्टी में वह नहीं होता है.’
दिप्रिंट पहले यह खबर दे चुका है कि इसी महीने उदयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर के पहले ही सिब्बल की पार्टी छोड़ने की योजना बन चुकी थी. सिब्बल उन 23 कांग्रेस नेताओं में थे, जिन्होंने अगस्त 2020 में पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में आमूल बदलाव के लिए चिठ्ठी लिखी थी. इस समूह ने जिस बदलाव की बात की थी, उसमें अंतरिम के बदले एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, निर्वाचित कांग्रेस कार्यकारिणी समिति (सीडब्लूसी) और केंद्रीय चुनाव आयोग शामिल था.
उसके बाद वे कई मौकों पर बोले. आखिर बार मार्च 2022 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने आवाज उठाई थी. उस मौके पर सीडब्लूसी की बैठक के बाद सिब्बल ने पत्रकारों से कहा कि गांधी परिवार को ‘नेतृत्व से हट जाना चाहिए’ और यह जिम्मेदारी किसी दूसरे को दे देनी चाहिए. उन्होंने यहां तक कहा कि अगर नेतृत्व पिछले आठ साल में पार्टी के पतन को नहीं देख पा रहा है तो वह ‘कुंए के मेढक़’ जैसा है.
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‘कांग्रेस में असहमति की जगह बीजेपी से ज्यादा है’
सिब्बल ने कहा कि भारत में किसी भी पार्टी में सच्चा आंतरिक लोकतंत्र नहीं है. अलबत्ता उन्होंने यह भी कहा कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मुकाबले कांग्रेस ज्यादा लोकतांत्रिक है.
उन्होंने कहा, ‘भले न सुनी जाए मगर कम से कम हम कांग्रेस में बोल तो सकते हैं. हमें किसी कार्रवाई का डर नहीं होता. यही बात मैं बीजेपी के लिए नहीं कह सकता.. वहां कोई प्रस्ताव के खिलाफ बोल नहीं पाता. सुब्रह्मण्यम स्वामी के अलावा कोई अपनी बात नहीं कहता. वे वहीं कहते हैं, जो उनसे कहने को कहा जाता है.’
उन्होंने कहा, बीजेपी में एक ही नेता सर्वव्यापी है. उसने न सिर्फ देश के लोगों के दिमाग पर अपनी बमबर्षा कर दी है, बल्कि अपनी पार्टी के भीतर भी. बीजेपी में शायद ही कोई असहमति है.’
उन्होंने कहा कि पार्टी छोडऩे का मतलब अपनी विचारधारा छोडऩा है.
उन्होंने कहा, ‘मेरा निशाना हमेशा बीजेपी रहेगी. उन्होंने मीडिया, सीबीआइ (केंद्रीय जांच एजेंसी) और ईडी (परर्वतन निदेशालय) समेत देश की सभी संस्थाओं पर कब्जा जमा लिया है.’
‘एजेंसियों के इस तरह के कब्जे और (बुरे) इस्तेमाल के बड़े नतीजे दशकों तक बने रहेंगे, क्योंकि इससे लोकतंत्र के स्तंभ तबाह हो जाएंगे. मैं समावेशी भारत चाहता हूं, और मैं बीजेपी की इस विचारधारा से लडऩे के लिए अपनी ताकत भर सब कुछ करूंगा.’
‘मोदी महा जुगाड़ू’
सिब्बल ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘महा जुगाड़ू’ हैं. वे बहुसंख्यक मानस को समझते हैं और जानते हैं कि वोट पाने के लिए किस भावना से फांसना है.
उन्होंने पूछा, ‘आज, देश की पूरी धन-संपत्ति 4-5 लोगों को सौंपी जा रही है. प्रधानमंत्री तीक्ष्ण बुद्धि के हैं मगर क्या वे नहीं जानते कि वे क्या वे कर रहे हैं और इसके नतीजे क्या होंगे.’
उन्होंने कहा कि बीजेपी देश में राजनैतिक तनाव पैदा कर रही है. उन्होंने कहा, ‘वे लगातार आस्था के मुद्दे उठा रहे हैं. लेकिन आस्था और धर्म से रोजगार और शिक्षा नहीं आएगी. इससे यह नहीं हो पाएगा कि देश में कोई बच्चा बौना न रह जाए. इसलिए यह पार्टी चुनाव जीत सकती है मगर देश के लिए कुछ नहीं कर रही है.’
कवि सिब्बल
तो, वे कांग्रेस छोडऩे के बाद क्या करेंगे? उन्होंने कहा कि वे अपना समय अपने अंदर के कवि को बाहर लाने में लगाएंगे.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं भविष्य में किसी पार्टी से नहीं जुड़ूंगा और सभी विपक्ष को एकजुट करने की पूरी कोशिश करूंगा. मगरउसके अलावा मैं अधिक कविताएं और अपने जीवन के अनुभव पर किताबे लिखने पर फोकस करूंगा.’ उन्होंने कहा, उन्हें भावनाओं , खासकर दर्द का एहसास गहरे होता है.
उन्होंने कहा, ‘मेरी पत्नी नीना और मैं कॉलेज में पहली ही नजर में प्यार में पड़ गए थे, लेकिन 2000 में मैं कैंसर से उसे गंवा बैठा तो मुझे दर्द का एहसास अलग ढंग से हुआ. लेकिन प्यार मेरे जीवन में फिर लौटा. मेरी दूसरी पत्नी प्रोमिला प्यारी महिला हैं. वे जिंदगी के हर मोड़ पर मेरे साथ रहती हैं. इसलिए मैं प्रेम को गहराई से समझता हूं. यह जीवन की केंद्रीय भावना है और हर किसी को जीवन में किसी भी रूप में प्यार मिलना चाहिए.’
कविता के प्रति उनका प्यार कैसे जगा?
‘मेरे पिता मंटो का मुकदमा लड़े थे, तो जब मैं बच्चा था, हर शाम मेरे घर में (सआदत हसन) मंटो और फैज अहमद फैज की उर्दू शायरी की महफिलें जमती थीं. हमारे यहां कविता की संस्कृति हमेशा से रही है. अब मैं स्वतंत्र हूं तो अपने उस प्यार को ज्यादा समय देना चाहता हूं.’
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