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Saturday, 2 November, 2024
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सोशल इंजीनियरिंग, राज्य और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर टीम मोदी में रिकॉर्ड OBC, SC चेहरे शामिल

टीम मोदी में 36 नए चेहरों के साथ अब 27 ओबीसी, 12 दलित और 8 आदिवासी मंत्री हो गए हैं. बाकी 30 मंत्री तथाकथित सवर्ण जाति वर्ग के हैं.

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नई दिल्ली: 2019 में दोबारा मिले जनादेश के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कैबिनेट विस्तार और फेरबदल में पूरा जोर अगले साल होने वाले सात राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जाति समीकरणों पर रहा है.

मंत्रिपरिषद में 36 नए चेहरों को शामिल किए जाने के बाद इसमें अब 27 मंत्री ओबीसी, 12 अनुसूचित जाति के और आठ अनुसूचित जनजाति के हो गए हैं. बाकी 30 मंत्री तथाकथित सवर्ण जाति वर्ग के हैं.

यह अभूतपूर्व है क्योंकि 2014 में पहली मोदी सरकार में 13 मंत्री ओबीसी, तीन दलित, छह आदिवासी और 20 सवर्ण थे. 2019 में बनी टीम मोदी में 13 ओबीसी, छह दलित, तीन आदिवासी और 32 सवर्ण थे.

बुधवार के फेरबदल के बाद पांच ओबीसी मंत्रियों, दो दलितों और तीन आदिवासियों के पास कैबिनेट का दर्जा है.

ओबीसी को भाजपा से जुड़ने के लिए ईनाम मिला है, लेकिन फेरबदल यह भी साबित करता है कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिहाज से वे कितनी अहमियत रखते हैं.

ओबीसी को तरजीह, दलित तुष्टीकरण और विधानसभा चुनाव

मंत्रिपरिषद में जगह बनाने वालों में लखनऊ जिले की मोहनलालगंज सीट से दलित सांसद कौशल किशोर भी हैं, जो कोविड की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में बेड और ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा उठाने वाले पहले भाजपा नेताओं में शामिल थे. उन्होंने कोविड के कारण अपने भाई को गंवा दिया था और राज्य में कोविड पर ‘कुप्रबंधन’ को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जमकर घेरा था.

सूत्रों का कहना है कि उन्हें मंत्रिपरिषद में शामिल किए जाने का कारण राज्य में कोविड के कहर के बाद उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच एक अच्छी छवि बनाना है.

यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. यह जालौन के सांसद भानु प्रताप वर्मा और आगरा के सांसद एसपी सिंह बघेल, जो दोनों ही दलित है, को मंत्रिपरिषद में शामिल करने की वजह स्पष्ट करता है. बघेल ने अपने करियर की शुरुआत समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा अधिकारी के रूप में की थी.

उत्तर प्रदेश से ओबीसी चेहरों में अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल, जो 2016 से 2019 के बीच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री के रूप में काम कर चुकी है, को शामिल करने के अलावा महाराजगंज के सांसद पंकज चौधरी और 59 वर्षीय राज्यसभा सांसद बी.एल. वर्मा को भी जगह दी गई है.


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गुजरात, जहां 2022 के अंत में चुनाव होने हैं, से ओबीसी नेता दर्शन विक्रम जरदोश और दलित कोली समुदाय के मुंजापारा महेंद्रभाई को टीम मोदी का हिस्सा बनाया गया है.

राज्य के एक भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रधानमंत्री ने हाल के दिनों में गुजरात को सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया है. कांग्रेस शासन में गुजरात से केवल दो मंत्री थे. अब इस राज्य से छह मंत्री हैं, जो हर जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसमें से दो बहुसंख्यक पटेल समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव की भी रही भूमिका

पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय से ताल्लुक रखने वाले शांतनु ठाकुर और राजबंशी समुदाय के निशीथ प्रामाणिक को 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नई टीम में जगह दी गई है. मोदी सरकार ने राज्य के आदिवासी नेता जॉन बारला को भी शामिल किया है.

महाराष्ट्र के संदर्भ में भी यही हाल रहा है, जहां पार्टी ने आदिवासी और ओबीसी समुदायों को साधा है. राज्य से नए केंद्रीय मंत्रियों में भाजपा का ओबीसी चेहरा और भिवंडी के सांसद कपिल मोरेश्वर पाटिल और ओबीसी समुदाय से ही आने वाले राज्यसभा सांसद डॉ. भागवत किशनराव कराड शामिल हैं. इस राज्य से एक और नए मंत्री डिंडोरी के सांसद भारती प्रवीण पवार हैं, जो आदिवासी हैं.

कर्नाटक से लिए गए नए मंत्रियों, जहां 2023 में चुनाव होने हैं, में शोभा करंदलाजे वोक्कालिगा समुदाय से आती हैं, वहीं भगवंत खुबा, एक लिंगायत; ए. नारायणस्वामी, एक दलित; और राजीव चंद्रशेखर, एक नायर हैं.

कैबिनेट में मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो नागरिक उड्डयन मंत्री बने हैं, के अलावा वीरेंद्र कुमार को जगह दी गई है, वह अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं और सात बार से सांसद हैं. उन्हें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय सौंपा गया है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘आगामी विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनावों को ध्यान में रखते हुए सभी समुदायों को व्यापक स्तर पर प्रतिनिधित्व देना जरूरी था. भाजपा ने हर तरफ विस्तार किया है और इसलिए मणिपुर, त्रिपुरा से लेकर ओडिशा तक, हमने मंत्रियों को चुनने में सोशल इंजीनियरिंग और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का पूरा ध्यान रखा है.’

उन्होंने कहा, ‘यद्यपि उनमें से कई अपने समुदाय के कास्ट लीडर नहीं हैं, लेकिन राजनीति में एक नैरेटिव मायने रखता है. नहीं तो फिर वीरेंद्र कुमार, जो पहले कार्यकाल में मंत्री थे और हटा दिए गए थे, को फिर से क्यों शामिल किया जाता? यह प्रतिनिधित्व बनाए रखने में हमारी तरफ से की गई किसी भी गलती को सुधारने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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