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Saturday, 20 April, 2024
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पीएम मोदी की नई टीम शासन को नई गति देने के साथ सियासी समीकरण साधने की कवायद है

टीम मोदी में बड़े फेरबदल के साथ कई दिग्गज मंत्रियों को हटा दिया गया है. नए चेहरे शामिल करने में जातियों, युवाओं, महिलाओं की भागीदारी के साथ चुनाव वाले राज्यों के प्रतिनिधित्व का भी खास ध्यान रखा गया है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को अपनी टीम में बड़े पैमाने पर फेरबदल के साथ शासन को नई गति देने की कोशिश की है और अपनी मंत्रिपरिषद में करीब तीन दर्जन नए चेहरे शामिल किया और एक दर्जन मंत्रियों को हटा दिया, जिनमें छह कैबिनेट रैंक के थे.

अपने दूसरे कार्यकाल के लगभग मध्य में आकर प्रधानमंत्री ने सभी को अचरज में डालते हुए आधा दर्जन कद्दावर कैबिनेट मंत्रियों को बर्खास्त करके महामारी के दौरान अवांछित विवादों और इससे निपटने में अक्षम रहने को लेकर लग रहे आरोपों के बीच सरकार की छवि सुधारने का अपना इरादा साफ कर दिया है. हटाए गए मंत्रियों में रविशंकर प्रसाद (कानून और आईटी), प्रकाश जावड़ेकर (सूचना और प्रसारण, पर्यावरण), हर्षवर्धन (स्वास्थ्य), रमेश पोखरियाल (शिक्षा), थावरचंद गहलोत (सामाजिक न्याय और अधिकारिता) और संतोष गंगवार (श्रम) शामिल हैं.

मोदी ने शासन व्यवस्था में नई ऊर्जा के संचार के लिए अनुभवी, दक्ष और प्रतिभा सम्पन्न नए चेहरों को टीम में जगह दी है. उनके नए मंत्रिमंडल में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, जो अपने प्रशासनिक कौशल और इनोवेटिव विचारों के लिए जाने जाते हैं, दो पूर्व मुख्यमंत्री—असम के सर्बानंद सोनोवाल और महाराष्ट्र के नारायण राणे—उद्यमी राजीव चंद्रशेखर और भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव आदि शामिल हैं.

मंत्रिमंडल में दो पूर्व आईएएस अधिकारियों आर.सी.पी. सिंह—जो जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष हैं और बतौर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपनी सेवाएं दे चुके हैं—और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के पूर्व निजी सचिव रहे अश्विनी वैष्णव को भी शामिल किया गया है.

प्रधानमंत्री मोदी ने सात मंत्रियों को कैबिनेट रैंक में प्रोन्नत करके पुरस्कृत भी किया—इनमें हरदीप पुरी, अनुराग ठाकुर, आर.के. सिंह, किरेन रिजिजू, मनसुख मंडाविया, परषोत्तम रूपाला और जी. किशन रेड्डी शामिल है. बुधवार शाम को कुल मिलाकर 43 मंत्रियों ने शपथ ली जिसमें 15 कैबिनेट रैंक के थे और बाकी 28 राज्य मंत्री के रूप में शामिल किए गए.

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विधानसभा चुनाव और केंद्रीय मंत्रिमंडल

शासन को नई गति देने की मोदी की पूरी कवायद में राजनीतिक समीकरणों का पूरा ध्यान रखा गया है. सत्तारूढ़ दल के रणनीतिकारों का इस बदलाव के साथ नई टीम में दलितों और ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर खास जोर रहा, वहीं औसत आयु तीन साल कम हो गई है. इसके अलावा आसन्न चुनाव वाले राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश को चुनावी संकेत भेजने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई है.

उनकी टीम में शामिल नए चेहरों का लगभग पांचवां हिस्सा उत्तर प्रदेश से है, जहां अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. यूपी से अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल को फिर मंत्रिपरिषद में जगह मिली है, जिन्हें 2019 में मोदी की सत्ता में वापसी के बाद सरकार से बाहर कर दिया गया था.

पदोन्नत किए जाने वाले हरदीप पुरी और अनुराग ठाकुर आसन्न चुनाव वाले राज्यों पंजाब और हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं.

एक अन्य चुनावी राज्य उत्तराखंड से मंत्रियों की संख्या में तो कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है, लेकिन रमेश पोखरियाल की जगह पर अजय भट्ट के तौर पर कैबिनेट में उसका प्रतिनिधित्व बना रहेगा.

उत्तराखंड में भाजपा द्वारा एक और ठाकुर को मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद मोदी ने कैबिनेट में, पोखरियाल की जगह पर, राज्य के दूसरे सबसे बड़े समुदाय ब्राह्मण को प्रतिनिधित्व देने का पूरा ध्यान रखा.

चुनाव वाले राज्य मणिपुर के डॉ. राजकुमार रंजन सिंह को भी मोदी सरकार में जगह मिली है.

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में गुजरात, जहां नवंबर-दिसंबर 2022 में चुनाव होने हैं, से तीन सदस्य शामिल किए गए हैं और इसके अलावा राज्य से दो अन्य मंत्रियों—मनसुख मंडाविया और परषोत्तम रूपाला—को पदोन्नत करके कैबिनेट रैंक दी गई है.

नए चेहरे बयां कर रहे भाजपा की आगे की राजनीतिक योजनाएं

ऐसा लगता है कि चुनावी समीकरण के अलावा भाजपा के राजनीतिक हितों और भविष्य की योजनाओं ने भी नए चेहरे चुनने और मौजूदा सदस्यों को पदोन्नत करने में प्रधानमंत्री को काफी हद तक प्रभावित किया है.

उदाहरण के तौर पर शिवसैनिक से कांग्रेसी और फिर भाजपा नेता बने नारायण राणे को शामिल किया जाना, जो कोंकण के गढ़ में पूर्व सहयोगी रही शिवसेना पर दबाव बढ़ाने की भगवा पार्टी की रणनीति को दर्शाता है.

मोदी मंत्रिमंडल में सिंधिया का शामिल होने बहुप्रतीक्षित था, खासकर यह देखते हुए कि कैसे उन्होंने पिछले साल मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा की सत्ता में वापसी का रास्ता साफ किया था.

मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की विश्वासपात्र शोभा करंदलाजे सहित कर्नाटक से चार नए चेहरों को मंत्रिमंडल में ऐसे समय में जगह मिली है जब इस 78 वर्षीय लिंगायत नेता ने पार्टी आलाकमान की तरफ से प्रतिकूल रुख अपनाए जाने के बावजूद भी मजबूती से डटे रहकर सत्ता की बागडोर छोड़ने से इनकार कर दिया है.

पश्चिम बंगाल में हासिल राजनीतिक लाभ को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने राज्य से पार्टी के चार नेताओं को मोदी सरकार में जगह दी है, ये नियुक्ति उन दो नेताओं की जगह हुई हैं जिन्हें हटाया गया है.


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भाजपा के सहयोगियों को सत्ता में हिस्सेदारी मिली

आर.सी.पी. सिंह को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिलाए जाने के साथ ही 2019 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में तीन सीटों की मांग करते हुए इसमें शामिल होने से इनकार कर देने वाली जदयू समेत भाजपा के तीन सहयोगी दल मोदी सरकार का हिस्सा बन गए हैं.

ऐसा लगता है कि मोदी के लोजपा नेता पशुपति पारस, जिन्होंने हाल ही में अपने भतीजे चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर दी थी, को कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल करने के लिए सहमत होने के बाद जदयू को सिर्फ एक ही बर्थ से संतोष करना पड़ा है.

अपना दल की अनुप्रिया पटेल और आरपीआई के रामदास अठावले, जो बुधवार तक सरकार में सिर्फ सहयोगी भर थे, के शामिल होने से सरकार में भाजपा के सहयोगियों की संख्या चार हो गई है.

सोशल इंजीनियरिंग का संदेश

मोदी की नई टीम में युवाओं, महिलाओं, दलितों और अन्य पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व पर जोर दिए जाने से अगले साल के शुरू में उत्तर प्रदेश और चार अन्य राज्यों में प्रस्तावित अहम विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक संदेश देने की कवायद साफ नजर आती है.

टीम मोदी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सदस्यों की संख्या 13 से बढ़कर 27 हो गई है, जबकि दलितों के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा चार गुना बढ़कर 3 से 12 हो गया है.

बुधवार को सात नए चेहरों को शामिल किए जाने के साथ प्रधानमंत्री की टीम में महिलाओं की संख्या भी काफी बढ़ गई, जिसका आंकड़ा अब 11 पर पहुंच गया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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