नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट या ईडी) के पूर्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह के नाम कई चीजों का श्रेय हैं- इन्हीं से एक है रुपहले परदे (सिल्वर स्क्रीन) पर बिताया गया एक थोड़ा सा समय. राजेश्वर सिंह ने 2011 में बनी एक फिल्म ‘क्या ये सच है’ में स्वयं ‘राजेश्वर सिंह’ के किरदार में अभिनय किया था. इस फिल्म में पुलिस बल के भीतर बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार और राजनेता एवं पुलिस गठजोड़ के बारे में बात की गई थी. इस फिल्म के निर्देशक थे -वाईपी सिंह, जो खुद एक भूतपूर्व पुलिसकर्मी और वकील होने के साथ-साथ और राजेश्वर के बहनोई भी हैं.
‘कार्नेज बाई एंजेल’ नाम की किताब, जिसे स्वयं वाईपी सिंह ने लिखा है, पर आधारित इस फिल्म के प्रीमियर में एल.के. आडवाणी, नितिन गडकरी, मेनका गांधी, मुरली देवड़ा और जगदंबिका पाल जैसे राजनैतिक दिग्गज उपस्थित थे.
आज के दिन में, राजेश्वर सिंह, जिनके सहयोगी उन्हें ‘एक तेज दिमाग वाला शख्स’, ‘एक मास्टर नेटवर्कर’ और एक ‘चतुर जांचकर्ता’ के रूप में याद करते हैं, पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद भाजपा में शामिल होकर राजनीति के मैदान में उतरने की वजह से चर्चा में हैं. वह इसी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
यह बात सिर्फ चार साल पहले, साल 2018, से बहुत दूर की कौड़ी लगती है, जब मोदी सरकार ने राजस्व विभाग से राजेश्वर सिंह के खिलाफ कथित तौर पर आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में उनके खिलफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने के लिए कहा था. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पास एक सीलबंद लिफाफे में कई ऐसे आरोपों के साथ में एक रिपोर्ट भी दाखिल की थी, जिनके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने पाया था ये ‘बहुत गंभीर’ और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के साथ छेड़छाड़ करने वाले हैं.
हालांकि, सिंह ने जल्द ही हवा के रुख को अपने पक्ष में कर लिया. उनके करीबी अधिकारी उनकी किस्मत में आये इस बदलाव के लिए उनकी ‘मास्टर नेटवर्किंग स्किल्स (ताल्लुकात बनाने में माहिर होने का कौशल) के साथ-साथ पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम सहित विपक्षी नेताओं के खिलाफ चल रहे मामलों में उनकी ‘कड़ी मेहनत’ का श्रेय देते हैं.
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आपत्ति के स्वर
सिंह के भाजपा में शामिल होने की वजह से कई लोगों की त्योरियां चढ़ गई हैं. वे इसे एयरसेल-मैक्सिस सौदे और 2006 में तत्कालीन वित्तमंत्री चिदंबरम द्वारा दी गई विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड की मंजूरी जैसे मामलों की उनकी जांच से जोड़ कर देख रहे हैं.
ईडी द्वारा कई राज्यों में विपक्षी नेताओं के ‘पीछे पड़ने’ के आरोपों के कारण भी ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं. इनमें सबसे ताजा मामला समाजवादी पार्टी के नेता गायत्री प्रजापति का है, जो यूपी में पिछली अखिलेश यादव सरकार में खनन मंत्री थे और जिनके बारे में स्वयं राजेश्वर सिंह द्वारा लखनऊ क्षेत्र के प्रमुख के रूप में जांच की जा रही थी.
सिंह के करीबी कुछ लोगों का कहना है कि भाजपा नेताओं ने इन सब मामलों की जांचों में उनकी ‘कड़ी मेहनत’ पर ध्यान दिया और यह पार्टी के इस तरह के ‘हृदय परिवर्तन’ का एक कारण हो सकता है. वहीं कई अन्य ने दावा किया कि वह हमेशा से एक ‘बहुत ईमानदार अधिकारी’ थे और उनपर लगे सभी आरोपों को देखने-परखने के बाद भाजपा को उनकी ‘स्वच्छ छवि’ का यकीन हो गया होगा.
एक अधिकारी ने कहा कि सिंह ने यूपीए के दौर में भी कई ऐसे हाई-प्रोफाइल मामलों की जांच की थी जिनमें सत्ताधारी गठबंधन के नेता भी शामिल थे. सूत्रों के अनुसार, सिंह ने ‘कांग्रेस के भीतर कई लोगों का करीबी’ होने के बावजूद इन मामलों की जांच की. कहा जाता है कि वह अहमद पटेल और कपिल सिब्बल सहित कई कांग्रेस नेताओं के करीबी थे, जो उनकी द्वारा दी गयी पार्टियों में नियमित रूप से आते रहते थे.
उन्हें सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा का भी करीबी बताया जाता है, जिन्हें विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ ‘सीबीआई बनाम सीबीआई’ विवाद के बाद हटा दिया गया था. कहा गया कि वर्मा के साथ सिंह के जुड़ाव ने भी सरकार को नाराज किया.
सिंह के साथ काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह एक मास्टर नेटवर्कर (सभी से अच्छे ताल्लुकात बना लेने वाले शख्स) और सभी के दोस्त जैसे है. वह सभी हलकों में बहुत से प्रासंगिक लोगों को जानते हैं और वह उनमें से अधिकांश उनके मित्र जैसे है, इसलिए हमें इस बात पर आश्चर्य नहीं है कि वह राजनीति में शामिल हो गए हैं. हो सकता है कि मौजूदा सरकार विपक्षी नेताओं के खिलाफ उनकी जांच से प्रभावित हो.’
एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, ‘वह बहुत मिलनसार व्यक्ति हैं. वह बहुत तेजी के साथ दोस्त बना लेते है, और उनके पास लोगों को समझाने की एक अच्छी शक्ति है. हो सकता है कि उन पर उनकी नेतृत्वक्षमता की वजह से ध्यान दिया गया हो और फिर उनसे संपर्क किया गया हो. इसके अलावा, चूंकि वह एक साफ-सुथरे रिकॉर्ड वाले व्यक्ति हैं, तो जिस सरकार को पहले उनकी साख पर संदेह था, उसने उनकी जांच की होगी और उसे यकीन हो गया होगा कि वह पाक-साफ है. यही कारण है कि यह तथाकथित हृदय परिवर्तन हुआ और यह (टिकट का) प्रस्ताव आया.’
इस दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘केंद्र द्वारा की गयी जांच में भी उनके खिलाफ वास्तव में कुछ भी नहीं पाया गया था. उन्होंने पहले ही अपने नाम या अपने परिवार के नाम पर दर्ज संपत्ति का पूरा ब्योरा दे दिया था,’
सब का समर्थन
वित्तीय धोखाधड़ी की जांच करने वाली आर्थिक खुफिया और अभियोजन एजेंसी, ईडी, में बिताये अपने 14 साल से अधिक के कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश के एक प्रांतीय पुलिस सेवा अधिकारी (पीपीएस) सिंह, जो लखनऊ में एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं, का अधिकांश राजनीतिक दिग्गजों के साथ आमना-सामना हुआ था.
उनका परिवार सिविल सेवकों (सिविल सर्वेन्ट्स) वाला परिवार है – सिंह के पिता, रण बहादुर सिंह, लखनऊ के डीआईजी के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे, और उनकी पत्नी भी इसी शहर में एक आईजी के रूप में तैनात हैं.
राजेश्वर सिंह ने न केवल हाई-प्रोफाइल मामलों – जैसे कि 2 जी घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, कोयला आवंटन में अनियमितता और एयरसेल मैक्सिस सौदा – की जांच की है, बल्कि उन्होंने खुद को भी भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों सहित कई विवादों के लपेटे में पाया है. हालांकि, वह हमेशा इन सब से बेदाग होकर निकले हैं.
उनके खिलाफ लगे आरोपों के बावजूद, सिंह को हमेशा व उनके वरिष्ठ अधिकारियों, जिनमें उनके वे निदेशक जिनके अधीन उन्होंने काम किया था और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी शामिल थे, का समर्थन मिला और इन सब ने एक से अधिक अवसरों पर– जब भी उनके खिलाफ कदाचार के आरोप लगाए गए थे – उन्हें अपना संरक्षण दिया था.
इसका एक उदाहरण देखें – साल 2011 में जब 2G दूरसंचार घोटाले वाले मामले की जांच की जा रही थी, तो सहारा समूह ने द्वारा सिंह के खिलाफ आरोप लगाए गए थे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गांगुली और जीएस सिंघवी ने सिंह को किसी भी तरह की कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान की.
फिर साल 2017 में जब सिंह के खिलाफ राजस्व सचिव हसमुख अधिया द्वारा आरोप लगाए गए, तो अदालत ने सरकार को इस अधिकारी के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से रोक दिया था.
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सुप्रीम कोर्ट के सामने बोलते हुए इसे ‘राजेश्वर सिंह के खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध और राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई (विच हंट)‘ करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सिंह को किसी भी तरह की जांच से सुरक्षा प्रदान की थी.
मगर, 27 जून 2018 को सिंह के लिए हालात उस वक्त थोड़े से मुश्किल हो गए थे, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकारी को किसी भी प्रकार की जांच का सामना करने से दी गयी सुरक्षा को हटाने का आदेश पारित किया था. ऐसा तब किया गया था जब एक पत्रकार ने सिंह पर कदाचार का आरोप लगाते हुए अदालत में एक जनहित याचिका दायर की और केंद्र ने इस बारे में सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट दाखिल की थी.
हालांकि, उस समय ईडी के निदेशक करनाल सिंह ने अपने से वरिष्ठ अधिकारी, राजस्व सचिव, के खिलाफ जाते हुए राजेश्वर सिंह का समर्थन किया था.
ईडी के सूत्रों के अनुसार, उनके खिलाफ लगाए गए आरोप ‘बदला लेने’ के लिए की गयीं तुच्छ शिकायतों के अलावा और कुछ नहीं थे.
सूत्र ने कहा, ‘केंद्र ने जो रिपोर्ट दाखिल की थी, उसमें सिंह के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं था क्योंकि उन्होंने अपनी संपत्तियों के बारे में पहले ही सब कुछ स्पष्ट कर दिया था. इसके अलावा ये शिकायतें 2011 की थीं जो एक बाद फिर से सामने आईं थीं.’
2 जी घोटाले से संबंधित मामलों में मुख्य याचिकाकर्ता, भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सिंह का पक्ष लेते हुए ‘हसमुख अधिया के नेतृत्व वाली गैंग ऑफ फोर’ पर इस अधिकारी को डरा कर ‘चिदंबरम को बचाने की कोशिश’ करने का आरोप लगाया.
उन्होंने दिवंगत केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली पर एयरसेल-मैक्सिस मामले में सिंह द्वारा की रही जांच को रोकने का प्रयास करने का भी आरोप लगाया.
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तेज निगाहों वाला जासूस
दिल्ली विश्वविद्यालय से ‘मानवाधिकार’ विषय में डॉक्टरेट की उपाधि रखने सिंह ने यूपी पुलिस में अपने कार्यकाल के दौरान भी कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच की.
यूपी पुलिस के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह एक बहुत दृढसंकल्प वाले अधिकारी हैं जो त्वरित निर्णय लेते हैं. वह संगठित अपराध पर नकेल कसने के लिए चलाये गए कई बड़े अभियानों में शामिल रहें हैं और उसके नाम कई मुठभेड़ दर्ज हैं.’
ईडी के पूर्व निदेशक करनाल सिंह के अनुसार, राजेश्वर एक तेज नजर वाले अन्वेषक (जांच करने वाले) थे, जो हमेशा अपनी टीम का साथ देते थे.
उन्होंने कहा, ‘किसी भी मामले के बारे में उनकी समझ, तथ्यों पर उनकी पकड़ काबिले तारीफ थी. वह एक बहुत अच्छे नेतृत्वकर्ता भी थे, जो हमेशा अपनी टीम के पक्ष में खड़े होते थे. यही वजह है कि वे सब हमेशा उनकी प्रशंसा में करते रहते हैं. जासूसी वाले काम पर उनकी अच्छी पकड़ थी. उनके पास हमेशा प्रासंगिक इनपुट (जानकारियां) होते थे, जिससे पता चलता है कि उन्होंने ह्यूमन इंटेलेजन्स (खबरियों पर आधारित जासूसी) को विकसित करने और अपने पास आये मामलों पर भी कड़ी मेहनत की.’
सिंह ने कई जटिल मामलों में जांचकार्य का नेतृत्व किया, जिनमें संदेसरा समूह वाला वह मामला भी था जिसमें कथित तौर पर 50,000 करोड़ रुपये की बैंक धोखाधड़ी में गुजरात की एक फार्मा फर्म शामिल थी. इसके अलावा एक और विवादास्पद केस मांस निर्यातक मोइन कुरैशी के खिलाफ था, जिसने कथित तौर पर सीबीआई के पूर्व निदेशकों एपी सिंह और रंजीत सिन्हा की ओर से एक जबरन वसूली करने वाले शख्श के रूप में काम किया था.
आरोपों का बड़ा पिटारा
साल 2014 में सिंह स्थायी रूप से ईडी में शामिल हो गए थे; वह पहली बार इस एजेंसी में 2007 में प्रतिनियुक्ति पर आए थे. उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन से संबंधित आरोप हैं.
जून 2018 में, एक खोजी पत्रकार होने का दावा करने वाले रजनीश कपूर नाम के एक व्यक्ति ने यह आरोप लगाया था कि सिंह ने धोखाधड़ी के मामलों की जांच करते हुए आय से अधिक संपत्ति अर्जित की है. कपूर ने सूचना के अधिकार के तहत मिले जवाब का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि सिंह को गैरकानूनी रूप से सरकारी जमीन दी गई थी.
इसके बाद, सिंह ने कपूर के खिलाफ एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि उन्हें ‘निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा परेशान किया जा रहा है’, और ‘एयरसेल-मैक्सिस जांच को पटरी से हटाने’ का प्रयास किया जा रहा है.
इसके अलावा, सिंह पर दुबई से आई एक फोन कॉल रिसीव करने का भी आरोप लगाया गया था, जिसके बारे में एक खुफिया एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, इससे राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लग सकती है.
मगर, ईडी ने तब सिंह का बचाव करते हुए कहा था कि 2016 में आई यह कॉल एयरसेल-मैक्सिस मामले के बारे में ‘महत्वपूर्ण जानकारी’ वाले स्रोत की तरफ से की गयी थी.
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