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Friday, 1 November, 2024
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प्रज्ञा ठाकुर संसद में शपथ लेने को तैयार, अनुशासन की कार्रवाई पर सस्पेंस बरकार

ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त बताया था जिससे देशभर में बवाल मच गया था.

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नई दिल्लीः भारतीय जनता पार्टी ने लगता है कि मध्य प्रदेश से पार्टी की सांसद और मालेगांव धमाके की अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर प्रस्तावित अनुशास्नात्मक कार्यवाई को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त बताया था जिससे देशभर में बवाल मच गया था. 17 मई को मामले के तूल पकड़ता देख, भाजपा ने इसे अनुशासन समिति को सौंप दिया था. नाराजगी जताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वो प्रज्ञा को कभी दिल से माफ नहीं कर पाएंगे. अनुशासन समिति को 10 दिन में इस मामले पर फैसला सुनाना था पर लगता है कि ये सब एक लीपापोती थी क्योंकि तीन सदस्यीय समिति निष्क्रिय पड़ी हुई है, उसके अध्यक्ष राज्यपाल बना दिए गये हैं और उसके एक सदस्य ने इस्तीफा दे दिया है.


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निष्क्रिय समिति कैसे फ़ैसला लेती?

तीन सदस्यीय समिति के अध्यक्ष गणेशीलाल पहले ही उड़ीसा के राज्यपाल बन चुके थे और उनकी जगह पार्टी ने नई नियुक्ति की नहीं थी. समिति की दूसरी सदस्य विजया चक्रवर्ती व्यक्तिगत कारणों से समिति से इस्तीफा दे चुकी थीं अब तीसरे सदस्य यूपी के सत्यदेव सिंह बचे जो यूपी बीजेपी अनुशासन समिति के भी अध्यक्ष हैं और जिनके पास पहले से लोकसभा चुनाव में राजनैतिक घात प्रतिघात की 100 से ज्यादा शिकायतें सुननी बाकी थीं.

सत्यदेव सिंह के मुताबिक जब यह मामला समिति के पास भेजा गया तो समिति में न अध्यक्ष थे, न सचिव. उनके मुताबिक आखिर इतने हाईप्रोफ़ाइल मामले पर अकेला एक सदस्य कैसे फ़ैसला लेता? इसलिए हमने बीजेपी संगठन महासचिव रामलाल जी से अनुरोध किया है कि इस मसले पर निलंबन का फ़ैसला वो या तो खुद लें या पार्टी अध्यक्ष से राय मांगें. जमा जोड़ यह निकला, कोर्ट में केस तो आ गया लेकिन केस सुनने के लिए जज नदारद थे.

नए सदस्यों की नियुक्ति से भी बात नहीं बनी

जब प्रज्ञा सुर्खियों में जगह बनाने लगीं तो पार्टी ने सरकार बनने के बाद 4 जून को अनुशासन समिति में दो नए सदस्यों की नियुक्ति की. पंजाब से अविनाश राय खन्ना और यूपी से ओम पाठक. जब ओम पाठक से इस मामले की प्रगति के बारे में दिप्रिंट ने बात की तो उनका जवाब था वो इस मसले पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं.

समिति के दूसरे सदस्य अविनाश राय खन्ना ने कहा हमने कितनी बैठकें की हैं इसका आंकड़ा कार्यालय सचिव महेन्द्र पांडे के पास होगा लेकिन हमारी जानकारी में कोई फ़ैसला नहीं हुआ है और गेंद अब हाईकमान के पाले में है.

अब स्थिति यह है कि प्रज्ञा ठाकुर लोकसभा में शपथ लेने वालीं है और बीजेपी तय नहीं कर पा रही कि आग का दरिया वो कैसे पार करे? वैसे राजनीति में समय पर निर्णय नहीं लेना भी एक बड़ा राजनैतिक निर्णय होता है. साक्षी महाराज, शत्रुघ्न सिन्हा जैसों पर अनुशासनहीनता के कई मामलों में बीजेपी ने समय पर कारवाई नहीं की थी पर बीजेपी की चिंता यह है कि क्या प्रज्ञा ठाकुर विवाद समय के साथ दब जाएगा या बीजेपी के राजनैतिक दामन पर चिपक जाएगा?

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