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Friday, 19 April, 2024
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दिल्ली, सिक्किम विधानसभाएं 2021 में 10 दिन से भी कम समय बैठीं, 61 दिनों के साथ केरल सबसे ऊपर- PRS सर्वे

रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं ने पिछले साल 500 से अधिक बिल पास किए लेकिन उनमें आधे से अधिक बिल पेश होने के एक ही दिन के भीतर पास हो गए. विधानसभाएं औसतन सिर्फ 21 दिन बैठीं.

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नई दिल्ली: एक स्वतंत्र शोध संस्थान के अनुसार, 29 राज्य और केंद्रशासित क्षेत्रों की विधानसभाएं पिछले साल औसतन सिर्फ 21 दिन के लिए बैठीं, जिनमें दिल्ली और चार अन्य की ये संख्या 10 दिन से भी कम थी.

हालांकि इस अवधि में 500 से अधिक बिल पास किए गए लेकिन इसमें ध्यान देने लायक ये है कि उनमें से 44 प्रतिशत बिल सदन में पेश किए जाने के एक ही दिन के अंदर पास कर दिए गए- ये खुलासा दिल्ली-स्थित पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की राज्य कानूनों की वार्षिक समीक्षा 2021 में किया गया है.

संसद की तरह विधानसभा की भी आमतौर पर साल में तीन बार बैठक होती है- बजट, मॉनसून और शीत सत्र. पीआरएस ने बताया कि 2020 में बैठक के दिनों की औसत संख्या केवल 17 थी. रिपोर्ट में कहा गया कि इसका कारण कोविड महामारी और उससे उत्पन्न लॉकडाउन का प्रभाव हो सकता है.

जनवरी में, द हिंदू ने एक विश्लेषण प्रकाशित किया था कि नौ विधानसभाओं ने, जो बेतरतीब ढंग से चुनी गई थीं, 2021 में 11 से 43 दिन तक काम किया था. इसकी तुलना में संसद की 2021 में 58 बैठकें हुईं थीं.

विधानसभाओं द्वारा पिछले साल पास किए गए बिलों की मुख्य श्रेणियां थीं- शिक्षा (21 प्रतिशत), कराधान (12 प्रतिशत), स्थानीय प्रशासन (10 प्रतिशत) और भूमि तथा कानून व्यवस्था (दोनों 4-4 प्रतिशत).

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सर्वे के लिए डेटा छह प्रकार के स्रोतों से लिया गया, जिनमें आरटीआई जवाब, गजट प्रकाशन और विधायी अनुसंधान अधिकारियों तथा सचिवालयों के साथ सीधे संचार से प्राप्त किए गए दस्तावेज शामिल हैं.


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सबसे अच्छा और सबसे खराब प्रदर्शन

61 दिनों के साथ जहां केरल का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा, वहीं कर्नाटक ने अपनी तालिका में सबसे अधिक 48 बिल पारित किए. ये लगातार दूसरा वर्ष था जब कर्नाटक ने सबसे अधिक बिल पारित किए. 2020 में राज्य ने 55 बिल पास किए थे. सिर्फ दो बिल पारित किए जाने के साथ दिल्ली का प्रदर्शन पिछले साल सबसे खराब रहा.

Illustration: Soham Sen | ThePrint
चित्रण: सोहम सेन | दिप्रिंट

पिछले साल सदनों की बैठकों की संख्या के मामले में ओडिशा और कर्नाटक क्रमश: 43 और 40 दिनों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. इसके विपरीत, नागालैंड, दिल्ली, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा में ये संख्या 10 दिन से कम रही. कुल मिलाकर 17 राज्य और यूटीज़ ऐसे थे, जहां विधानसभाओं की बैठकें 20 दिन से कम रहीं.

पीआरएस रिपोर्ट में कहा गया कि संविधान के कार्यचालन की समीक्षा को गठित राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरडब्लूसी) ने 2002 में सुझाव दिया था कि 70 से कम सदस्यों वाली विधानसभाओं को साल में कम से कम 50 दिन बैठना चाहिए, जबकि अन्य के लिए कम से कम 90 दिन रखे गए थे.

उसमें आगे कहा गया, ‘कुछ राज्यों (मणिपुर, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश) ने अपनी-अपनी विधानसभाओं के नियमों और प्रक्रियाओं के जरिए सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि बैठकों की कम से कम एक न्यूनतम संख्या जरूर हो जाए’.

लेकिन बहुत से राज्य इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए. मसलन, उत्तर प्रदेश में ये संख्या केवल 17 रही जबकि न्यूनतम संख्या 90 दिन थी. इसी तरह पंजाब के कानून निर्माता भी साल में केवल 11 दिन बैठे, जबकि उनकी निर्धारित संख्या 40 थी. ओडिशा भी 42 दिन के साथ 60 की निर्धारित संख्या पूरी नहीं कर पाया.


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खतरनाक गति से पास गिए गए बिल

एक और रुझान ये देखने में आया कि राज्य विधानसभाओं ने बैठकों की संख्या का बिलों के पारित होने पर कोई असर नहीं पड़ने दिया और अक्सर उन्हें उसी दिन पास कर दिया जिस दिन उन्हें सदन में पेश किया गया था.

उत्तर प्रदेश विधानसभा 17 दिन बैठी लेकिन फिर भी उसने 38 बिल पास किए. इसी तरह पंजाब और महाराष्ट्र ने क्रमश: 14 और 15 दिनों में 35-35 बिल पारित किए.

गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और बिहार उन आठ राज्यों में थे, जिन्होंने अपने तमाम बिल एक ही दिन में पेश करके पारित भी कर दिए. रिपोर्ट में कहा गया, ‘निवर्तमान पंजाब विधानसभा ने अपनी पिछली बैठक में 16 बिल पेश करके पारित कराए’.

इसके विपरीत, कर्नाटक, केरल, मेघालय, ओडिशा और राजस्थान को अपनी विधानसभाओं में पेश किए गए आधे दर्जन से अधिक बिलों को पारित करने में पांच दिन से अधिक दिन लगे.

रिपोर्ट के अनुसार, कुल मिलाकर 40 बिल (केवल 10 प्रतिशत) ऐसे थे जो सदन में पेश किए जाने के बाद जांच के लिए विभिन्न स्थायी समितियों को भेजे गए.

रिपोर्ट में कहा गया कि सबसे अधिक बैठकें होने के बावजूद 2021 में केरल ने 144 अध्यादेश लागू किए. क्रमश: 20 और 15 अध्यादेशों के साथ आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे.

अध्यादेश वो युक्ति होते हैं जिनका इस्तेमाल सरकारें उस समय कानून लाने के लिए करती हैं, जब सदन का सत्र नहीं चल रहा होता.

बिहार विधानसभा जो पिछले साल केवल 32 दिन बैठी, उसके स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये सरकार तय करती है कि किसी सत्र में विधानसभा की बैठक कितने दिन चलेगी. लेकिन ये (कम बैठकें) सभी के लिए चिंता का विषय हैं, चूंकि पिछले कुछ सालों में ये कम हो गई हैं…हमें बैठकों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है और हम विधानसभा की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं’.

त्रिपुरा स्पीकर रतन चक्रवर्ती ने स्वीकार किया कि उन्हें और अधिक करने की जरूरत है क्योंकि राज्य विधानसभा की पिछले साल केवल सात बैठकें हुई थीं. उन्होंने आगे कहा, ‘हाल ही में प्रदेश स्पीकरों की लोकसभा स्पीकर के साथ हुई एक बैठक में इस विषय को भी (चर्चा में) उठाया गया. हम विपक्ष को बिलों पर बहस करने के लिए अधिक समय देना चाहते हैं. हम विधानसभा की उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं’.


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