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Thursday, 21 November, 2024
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‘महिला सुरक्षा’ के लिए फ्री बस-मेट्रो को 1500 करोड़ पर निर्भया फंड का 1% भी खर्च नहीं

फ्री ट्रांसपोर्ट को महिला सुरक्षा से जोड़ रही दिल्ली सरकार केंद्र द्वारा 2015 से दिए जा रहे निर्भया फंड का 1% भी ख़र्च नहीं कर पाई है.

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नई दिल्ली: दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने 3 जून को बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि महिलाओं के लिए मेट्रो और बस के सफर को मुफ्त किया जाएगा. घोषणा के दौरान सीएम ने इसे महिला सुरक्षा से जुड़ा एक बड़ा कदम बताया. दिल्ली सरकार ने इससे जुड़े एक बयान में कहा कि इस स्कीम में इस साल 700-800 करोड़ रुपए का ख़र्च आएगा. ये साल आधा बीत गया है, यानी पूरे साल में ये ख़र्च 1500 करोड़ रुपए के करीब बैठेगा.

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी दिल्ली सरकार के महिला सुरक्षा के इस वादे पर गंभीर सवाल खड़े करती है. फ्री ट्रांसपोर्ट को महिला सुरक्षा से जोड़ कर इतना ख़र्च करने को तैयार दिल्ली सरकार केंद्र द्वारा दिए जाने वाले निर्भया फंड का 1% भी ख़र्च नहीं कर पाई. निर्भया फंड महिलाओं को समर्पित है और इनसे जुड़ी अलग-अलग परियोजनाओं पर इसे ख़र्च किया जा सकता है.

निर्भया फंड से जुड़ा डाटा

केंद्रीय एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद को दी गई जानकारी में बताया, ‘केंद्र ने महिलाओं को समर्पित ‘निर्भया फंड’ का गठन किया है. इसके तहत महिलाओं से जुड़ी अलग-अलग परियोजनाओं पर काम किया जा सकता है.’ अगर ये फंड इस्तेमाल नहीं भी होता तो ये केंद्र के पास वापस नहीं लौटता. आइए, देखतें हैं कि दिल्ली को कितना मिला और कितना ख़र्च हुआ-


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इमरजेंसी रेस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम प्रोजेक्ट (इआरएसएस)

-2016-17 में दिल्ली को 2400 लाख रुपए दिए गए थे.

-दिल्ली में इस फंड का एक ढेला भी ख़र्च नहीं किया गया.

इस प्रोजेक्ट के तहत देशभर में आपतकालीन स्थिति से जुड़े 1090 (महिला), 100 (पुलिस) और 101 (फायर ब्रिगेड) जैसे नंबरों की जगह 112 को हेल्पलाइन नंबर बनना है. 20 राज्यों ने ये काम सफलतापूर्वक कर लिया है. लेकिन अभी तक दिल्ली ने ऐसा नहीं किया है. महिलाओं से जुड़े हेल्पलाइन नंबर का एकीकरण के लिए भी दिल्ली को 2015-16 में 49.78 लाख़ रुपए मिले थे. इस रकम का भी एक ढेला ख़र्च नहीं हुआ है.

सेंट्रल विक्टिम कंपेंसेशन फंड (सीवीसीएफ)

-इसके तहत दिल्ली को 16-17 में 880 लाख़ रुपए दिए गए.

-इसमें से अब तक महज़ 30 लाख़ रुपए ख़र्च किए गए हैं.

इस फंड के जरिए एसिड अटैक से लेकर रेप जैसे अपराधों में से किसी का भी सामना करने वाली महिलाओं को आर्थिक सहायत दी जानी है. सहायता रकम पांच लाख़ तक की हो सकती है. सीवीसीएफ फंड के मामले में सबसे ज़्यादा ख़र्च चंडीगढ़, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों ने किया है. चंडीगढ़ को केंद्र ने जितना फंड दिया था उसका दोगुना ख़र्च हुआ है.

साइबर क्राइम प्रिवेंशन अगेंस्ट विमेन एंड चिल्ड्रेन (सीसीपीडब्ल्यूसी)

-इसके तहत दिल्ली को 2017-18 में 251.12 लाख़ रुपए दिए गए थे.

-इस फंड से भी एक ढेला नहीं ख़र्च हुआ.

सेफ सिटी प्रोजेक्ट

-इसमें शामिल आठ शहरों में दिल्ली का भी नाम है जिसे 2018-19 में 6467 लाख़ रुपए दिए गए हैं.

-फॉरेंसिक साइंस लैब को मजबूत बनाने के लिए 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल दिल्ली को 330 लाख़ रुपए दिए गए हैं.

ये पैसे अभी ख़र्च होने हैं. लेकिन दिल्ली समेत देशभर के राज्यों का रिकॉर्ड देखकर इनके इस्तेमाल होने से जुड़ी कोई उम्मीद नहीं जागती.


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कौन है इसका ज़िम्मेवार

गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर सीवीसीएफ से जुड़ी एक गाइडलाइन मिली. इसमें जानकारी दी गई है कि केंद्र इस पैसे को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कॉन्सोलिडेटेड फंड (समेकित निधि) में एक साथ दे देता है. इसके बाद इसके इस्तेमाल का ज़िम्मा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का होता है. केंद्र को ख़र्च की जानकारी देनी होती है.दिल्ली के बारे में इसमें अलग से कोई बात नहीं लिखी है.

दिप्रिंट ने दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्री सिसोदिया से इस मामले पर बात करने की तमाम कोशिशें की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. इसकी भी जानकारी मांगी गई थी कि क्या दिल्ली के पास कोई अपना ऐसा फंड है जिसे ख़र्च किए जाने की वजह से निर्भया फंड पड़ा रह गया हो. लेकिन इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं मिला.

पार्टी के ऑफिस जाने पर पार्टी नेता गोपाल राय से बातचीत में पता चला कि इससे जुड़ी जानकारी पार्टी प्रवक्ता या सरकार देख रहे लोग देंगे. लेकिन पार्टी प्रवक्ताओं और सरकार देख रहे लोगों को तमाम स्तरों पर संपर्क करने का प्रयास किया गया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. दिल्ली सरकार और आप का पक्ष मिलने पर ख़बर को अपडेट किया जाएगा.


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16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में निर्भया के साथ हुए वीभत्स गैंगरेप के बाद यूपीए-2 के कार्यकाल में निर्भया फंड का गठन किया गया था. हालांकि, इसे एनडीएन-1 के कार्यकाल में 2015 से जारी किया जाने लगा. फंड जारी करने के मामले में केंद्र सरकार ने शुरुआत में बहुत लापरवाही बरती थी. इससी जुड़ी जानकारी दिप्रिंट ने 2017 की अपनी एक रिपोर्ट में दी थी.

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