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Tuesday, 17 December, 2024
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बंगाल के ‘स्पोर्ट्स क्लब्स’ में क्या गड़बड़ी हो रही है, TMC सरकार ने ₹5 लाख दिए फिर भी खेलों का नामो-निशान नहीं

2014 में ममता सरकार ने एक योजना शुरू की जिसके तहत स्पोर्ट्स क्लब्स को 5 लाख रुपये की सहायता दी जाती है. सरकार का दावा है कि इस योजना से 25,000 क्लब लाभान्वित हुए लेकिन ज्यादातर फंड कथित तौर पर कहीं और ही खर्च किया जा रहा है.

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कोलकाता/नई दिल्ली: डायमंड हार्बर स्थित जॉयदेवपुर गांव में एक दूषित तालाब के पास टूटी-फूटी ईंटों वाली एक जर्जर-सी झोपड़ी नजर आती है. झोपड़ी के अंदर कदम रखें तो आपको कुछ छोटे-बड़े एल्यूमीनियम के बर्तन, एक छोटा बेड, हरे रंग की एक कुर्सी, एक झाड़ू और शराब की कुछ खाली बोतलें मिलेंगी.

यह जगह जिस काम के लिए बनी है, उसके नाम पर यहां केवल एक ही चीज है, वह है एकमात्र कैरम बोर्ड और वो भी टूटा हुआ.

यह जॉयदेवपुर मातृमंदिर क्लब (रजिस्ट्रेशन नंबर: एस/69806) है जो कथित तौर पर खेल प्रशिक्षण केंद्र है, जिसे 2017 और 2019 के बीच पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से अनुदान के तौर पर चार लाख रुपए मिले हैं.

यहां से करीब दो किलोमीटर दूर दक्षिण पुरुलिया गांव में दो कमरों वाला यंग एथलेटिक क्लब (एस/12/18676) है. गांव में काफी अंदर स्थित इस क्लब में लकड़ी का एक बेड, खाने के लिए कुछ बर्तन और शराब की खाली बोतलें नजर आती हैं. पूरे परिसर में यहां-वहां कुछ टूटी ईंटें और डंडे बिखरे पड़े दिखते हैं, वहीं कुछ प्लास्टिक के पाइप, एक टूटा हुआ पेडस्टल फैन और हरे रंग की कुछ कुर्सियां भी पड़ी हैं.

क्लब के दो कमरों में से एक की दीवारें चटक गुलाबी रंग से पुती हैं और फर्श मार्बल का बना है. एक दीवार पर बड़ा-सा एलईडी टीवी लगा है और एक म्यूजिक सिस्टम भी रखा है- ये सब 2016 और 2019 के बीच मिले 5 लाख रुपए के सरकारी अनुदान से वित्त पोषित है. यहां पर एक कैरम बोर्ड भी है.

Empty liquor bottles at the Young Athletic Club | Madhuparna Das | ThePrint
यंग एथलेटिक क्लब में पड़ी खाली शराब की बोतलें | मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

उत्तरी 24 परगना जिले के चलंतिका स्पोर्टिंग क्लब (एस/97360) में भी कुछ इसी तरह की स्थिति नजर आती है जहां खेल उपकरण के नाम पर एक टूटा-फूटा कैरम बोर्ड ही मौजूद है.

कृष्णापुर इलाके की एक गंदी-सी गली के अंदर स्थित इस दो-मंजिला इमारत का ग्राउंड फ्लोर बड़े उपकरणों और बर्तनों से भरा पड़ा है जो किसी कैटरर के लगते हैं. ऊपरी मंजिल पर कुछ टूटी कुर्सियां और एक टीवी मौजूद है. इस क्लब को 2017 से 2019 के बीच सरकार की तरफ से करीब चार लाख रुपए का अनुदान मिला है.

उदयन पल्ली दिलीप स्मृति संघ क्लब (एस/2एल/39214) कृष्णापुर से लगभग 25 किमी दूर है. कच्ची सड़क के रास्ते नीचे उतरकर करीब एक किलोमीटर दूर स्थित एक झुग्गी में यह क्लब कचरा शोधन के लिए इस्तेमाल होने वाली एक नहर के किनारे बनाया गया है.

कहने को तो यह यह स्पोर्ट्स क्लब है लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और विधायक सुजीत बोस के पोस्टर और पार्टी के झंडे और बैनर देखकर कोई भी इसे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का कार्यालय ही समझेगा. ममता की तस्वीर वाले नए साइनबोर्ड भर आने बाकी हैं.

अंदर कुछ टूटी कुर्सियां और आधी बनी छत दिखती है जहां दीवार पर फ्रेम में ममता की तस्वीरें लगी हैं. इस क्लब को 2015 से 2018 के बीच सरकार से वित्तीय अनुदान के तौर पर पांच लाख रुपए मिले हैं.

उत्तरी बंगाल के जलपाईगुड़ी के सिखरपुर गांव में, मुर्गीभिता जागृति संघ ओ पथगर (लाइब्रेरी, एस/2एल/एनओ-25298) टिन और पुआल से बना एक छोटा-सा ढांचा है. दिप्रिंट ने जब दौरा किया तो वह बंद मिला.

इस क्लब को 2015 में इस योजना के तहत रजिस्टर्ड किया गया था जिसकी सिफारिश स्थानीय तृणमूल विधायक खगेश्वर रॉय ने की थी.

स्थानीय तृणमूल नेता और क्लब सचिव बिक्रम रॉय ने बताया कि उन्हें ‘दीदी से 5 लाख रुपए’ मिले लेकिन साथ ही दावा किया कि उन्होंने ‘लॉकडाउन के दौरान कंबल बांटे और जरूरतमंद ग्रामीणों की मदद की.’ स्थानीय भाषा में लोगों के जुटने की जगह यानी ‘अड्डा’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘क्लब के पास अब कुछ भी नहीं है इसलिए हम इसे बंद रखते हैं. कमरा केवल ‘अड्डा’ के लिए खुला रहता है. उन्होंने आगे कहा, ‘हमारी योजना जल्द ही कंक्रीट की एक नई इमारत बनाने की रही है’ और बताया कि महामारी के कारण इसमें देरी हुई.


ये पांचों केंद्र उन करीब 25,000 स्पोर्ट्स क्लबों में शामिल हैं जिन्हें पश्चिम बंगाल सरकार ने चार वर्षों की अवधि में पांच लाख रुपये के वित्तीय अनुदान के लिए पात्र लाभार्थियों की सूची में शामिल किया है.

2014 में यह योजना ‘पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों में खेल आयोजनों/खेल से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास और खेल संपत्तियां जुटाकर खेल गतिविधियां ‘बढ़ाने’ को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी.

लेकिन दिप्रिंट ने पश्चिम बंगाल के सात जिलों में जिन 30 लाभार्थी स्पोर्ट्स क्लब का दौरा किया उनमें से 27 को देखकर तो यही लगता है कि इनका खेलों को प्रोत्साहित करने के विचार से कोई लेना-देना ही नहीं है.

एक दर्जन क्लबों ने जहां यह कहा कि वे कभी-कभार फुटबॉल मैच कराते हैं, केवल एक ने तैराकी सिखाने का दावा किया, वो भी पास के तालाब में. उनमें से कई क्लबों ने अमूमन जिस गतिविधि के आयोजन की बात कही, वो थी रक्तदान शिविर लगाना.

कुछ क्लबों ने कहा कि वे मंदिर चलाते हैं. एक ने दिप्रिंट को बताया कि उसके पास खेल आयोजनों के लिए पैसे नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सरकार से मिलने वाला अनुदान ऐसे कार्यक्रमों पर खर्च हो जाता है जिसका खेलों से कोई लेना-देना नहीं है.

एक निर्माणाधीन क्लब ने लॉकडाउन के बाद ‘ग्रामीणों के मनोरंजन’ के लिए ‘जलसा’ करने के उद्देश्य से कोलकाता से एक गायक को बुलाने पर ही करीब 1.5 लाख रुपये खर्च कर डाले.

इस पूरे प्रकरण में कथनी और करनी का अंतर नजर आता है, क्योंकि ममता बनर्जी सरकार इस योजना को एक बड़ी पहल बताकर प्रचारित कर रही है जिसमें दावा किया जा रहा कि ‘25,000 क्लबों को 5 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है’ जो राशि कुल मिलाकर करीब 1,250 करोड़ रुपए होती है.

आखिर करते क्या हैं ये क्लब?

दिप्रिंट ने जिन सभी क्लबों का दौरा किया, उनकी तरफ से बताया गया कि वे राजनीतिक दलों से जुड़े हैं और इसके सदस्य रैलियों में भाग लेने और भीड़ जुटाने जैसी गतिविधियों में शामिल हैं.

दो अलग-अलग क्लब से जुड़े कम से कम दो लोगों ने एक ‘अलिखित नियम’ के बारे में बताया जिसके तहत अनुदान का एक बड़ा हिस्सा- करीब 70 फीसदी- तृणमूल कांग्रेस के नेताओं या पार्टी फंड के लिए निकाल दिया जाता है.

उनमें से एक ने कहा कि तृणमूल से जुड़ाव न रखने का मतलब होता, अनुदान को अपने हाथ से निकलने देना.

प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किए जाने पर पश्चिम बंगाल के खेल और युवा मामलों के राज्य मंत्री मनोज तिवारी ने कहा कि सरकार इस मामले को देखेगी और ‘वह सब कुछ करेगी जो करने की आवश्यकता होगी.’

दिप्रिंट ने कैबिनेट रैंक वाले खेल मंत्री अरूप बिस्वास को एक विस्तृत प्रश्नावली मेल की और फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिए भी उनसे संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली क्योंकि वह कोविड-19 से पीड़ित हैं.

एक विस्तृत प्रश्नावली 30 दिसंबर को मुख्यमंत्री कार्यालय और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव एच.के. द्विवेदी को भेजी गई थी लेकिन ये रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. द्विवेदी को 3 जनवरी को भेजे गए रिमाइंडर टेक्स्ट मैसेज पर भी कोई जवाब नहीं आया.

पश्चिम बंगाल युवा सेवा और खेल विभाग के प्रधान सचिव सुब्रत विश्वास ने कहा कि उनकी तरफ से किए गए एक सर्वेक्षण में भी पाया गया था कि ‘कई क्लबों ने अनुदान का इस्तेमाल उस उद्देश्य के लिए नहीं किया जिसके लिए यह धन दिया गया था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम ऐसे क्लबों को सिस्टम से हटाने की कोशिश कर रहे हैं. वास्तव में जरूरत इस बात की है कि हम योजना का मूल्यांकन करें और देखें कि इस योजना पर उसके उद्देश्यों के अनुरूप अमल हो रहा है या नहीं.’

योजना के तहत सहायता के पात्र क्लबों की सिफारिश करने वाले विधायकों ने व्यापक स्तर पर उनकी गतिविधियों के बारे में अनभिज्ञता जाहिर की है.


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क्या है खेल क्लबों से जुड़ी योजना

खेल अनुदान पश्चिम बंगाल युवा सेवा और खेल विभाग की तरफ से दिया जाता है. बंगाल सरकार के बजट 2020-21 के मुताबिक विभाग को इस वित्तीय वर्ष के लिए 727.97 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं.

अनुदान के तहत पहले साल में दो लाख रुपए प्रदान करने और फिर अगले तीन सालों में प्रति वर्ष एक लाख रुपए के भुगतान का प्रावधान है. सरकार सूची में नए क्लबों को शामिल करती रहती है.

योजना के तहत निर्धारित उद्देश्यों के संबंध में 17 सितंबर 2014 को एक आधिकारिक अधिसूचना जारी की गई थी.

उसी अधिसूचना के साथ खेल विभाग ने दो पेज का फॉर्म जारी किया था जिस पर अनुदान पाने के इच्छुक क्लबों की तरफ से आवेदन मांगे गए थे.

Photos: Madhuparna Das | ThePrint
फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

दिप्रिंट द्वारा हासिल की गई इस योजना संबंधी एक सरकारी सूची के मुताबिक, अनुदान के लिए चयनित क्लबों की सिफारिश तृणमूल नेताओं की तरफ से की गई थी जिसमें विधायक और सांसद शामिल हैं.

विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने सहायता देने से पहले क्लबों के लिए कोई भौतिक सत्यापन या ऑडिट नहीं कराया.

दिप्रिंट ने खासतौर पर लाभार्थी क्लबों से जुड़ी सरकार की आधिकारिक सूची हासिल की जिसमें दो वित्तीय वर्षों 2015-16 और 2016-17 के लिए उनके पंजीकरण नंबर के साथ अन्य ब्योरा भी दर्ज है. दोनों सूचियों में कुल मिलाकर 21 जिले शामिल हैं क्योंकि 2017 में कलिम्पोंग और झारग्राम को अलग-अलग जिला घोषित कर दिया गया था.

इन सूचियों को कई हिस्सों में बनाया गया है जिसमें हर एक में नौ से 11 जिले तक शामिल हैं.

सूची से पता चलता है कि 31 विधानसभा क्षेत्रों वाले दक्षिणी 24 परगना जिले में सरकारी मदद पाने वाले क्लबों की संख्या सबसे अधिक (493) है. 22 विधानसभा सीटों के साथ मुर्शिदाबाद में सबसे कम (69) क्लब हैं.

इन सभी सूचियों में उन निर्वाचित प्रतिनिधियों के नाम भी लिखे हैं जिन्होंने अनुदान के लिए इन क्लबों की सिफारिश की थी. साथ ही उस गांव या कस्बे के नाम भी हैं जहां वे स्थित हैं.

इनमें से कुछ क्लबों की सिफारिश तृणमूल सांसद और राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी (दिप्रिंट ने उनके अनुशंसित क्लबों में से एक माधबपुर सिटीजन क्लब का दौरा किया), स्थानीय विधायक और मंत्री सुजीत बोस (उदयन पल्ली दिलीप स्मृति संघ क्लब), डायमंड हार्बर के पूर्व विधायक दीपक हलदर (अब बीजेपी में चले गए नेता, जॉयदेवपुर मातृमंडल क्लब) और तृणमूल के पूर्व विधायक नरेश चंद्र बाउरी (हातेम खान पल्लीमंगल समिति क्लब) की तरफ से की गई थी.

2016-17 की सूची, जिसमें दक्षिणी और पश्चिमी बंगाल के नौ जिले पुरुलिया, बांकुड़ा, हुगली, बीरभूम, उत्तरी 24 परगना, नादिया, मुर्शिदाबाद, पश्चिमी मिदनापुर और पूर्वी मिदनापुर शामिल हैं- में एक अतिरिक्त कॉलम भी है जो इन क्लबों की ‘राजनीतिक संबद्धता’ को बताता है. जो दस्तावेज दिप्रिंट के पास मौजूद हैं, उनमें अन्य जिलों या 2015-16 की सूची में यह हिस्सा शामिल नहीं था.

नौ जिलों की जानकारी से पता चलता है कि पुरुलिया में अनुदान प्राप्त करने वाले 101 क्लबों में से 71 तृणमूल कांग्रेस से संबद्ध थे और शेष 30 के लिए कॉलम खाली छोड़ दिया गया था.

बांकुड़ा में 154 क्लबों में से 47 बिना किसी संबद्धता के सूचीबद्ध थे जबकि बाकी को तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस (सत्तारूढ़ दल की सहयोगी से संबद्ध सात क्लब थे) के साथ जुड़ा बताया गया है.

हुगली के 235 क्लबों में से 32 के आगे कुछ नहीं लिखा था और बाकी को तृणमूल से संबद्ध बताया गया था. बीरभूम में सभी 200 सूचीबद्ध क्लब सत्तारूढ़ दल से जुड़े थे.

उत्तरी 24 परगना में सूचीबद्ध 426 क्लबों में से 44 को छोड़कर बाकी सभी तृणमूल से संबद्ध थे. नादिया में 181 क्लबों में से 29 को छोड़कर बाकी सब सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े थे. मुर्शिदाबाद में सूचीबद्ध सभी 69 क्लब तृणमूल से संबद्ध थे.

पश्चिमी मिदनापुर में 307 क्लब सूचीबद्ध थे और 261 तृणमूल से संबद्ध थे. पूर्वी मिदनापुर में 217 में बिना किसी राजनीतिक संबद्धता वाले क्लबों की संख्या 63 थी.

कुल मिलाकर सूची में शामिल 1,890 क्लबों में से 1,592 का उल्लेख ‘तृणमूल से संबद्ध’ के तौर पर किया गया है.


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स्पोर्ट्स क्लब के किसी सियासी दल से जुड़े होने का मतलब?

स्पोर्ट्स क्लबों की राजनीतिक संबद्धता कोई नया ट्रेंड नहीं है. पश्चिम बंगाल में वाम दलों के शासन के दौरान भी ऐसा ही होता था.

किसी स्थानीय क्लब या ‘पैरा’ क्लब की राजनीतिक संबद्धता का मतलब है कि संगठन उस राजनीतिक दल के लिए काम करेगा जिसके सदस्य पार्टी से संबंधित या जुड़े हैं और चुनाव अभियानों के दौरान रैलियों में हिस्सा लेने और स्थानीय निवासियों को इसके समर्थन में संगठित करने जैसे काम करेगा.

उदाहरण के तौर पर महिसबथान के उदयन पल्ली दिलीप स्मृति संघ क्लब में मिले पोस्टर और बैनर तृणमूल कांग्रेस से उसके जुड़ाव को स्पष्ट करते हैं.

Photos: Madhuparna Das | ThePrint
फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

क्लब के सचिव निर्मल हलदर ने दिप्रिंट को बताया, ‘क्लब पर स्थानीय बीजेपी सदस्यों ने कब्जा कर लिया था और उन्होंने यहां (बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा) की तस्वीरें लगाईं.’

हलदर ने बताया, ‘बाद में हमने फिर इस पर कब्जा जमा लिया. हमने एक नया साइनबोर्ड मंगवाया है जिस पर दीदी की तस्वीर है. इसे जल्द ही यहां लगाया जाएगा.’

हालांकि, इस क्लब, जो एक मंदिर के बगल में स्थित है- के पास कोई खेल उपकरण नहीं है.

सरकारी अनुदान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी मदद का एक बड़ा हिस्सा ‘बीजेपी नेताओं ने हड़प लिया था जो बाद में भाग गए थे और उनका कुछ अता-पता नहीं लग सका है.’

बीरभूम जिले के दुबराजपुर स्थित हातिमपुर गांव- जो झारखंड सीमा के पास कोयला बेल्ट में आने वाला बंगाल का आदिवासी इलाका है- में बना हातिम खान पल्लीमंगल समिति क्लब (एस/2एल/34113) आंशिक रूप से निर्मित कम्युनिटी हॉल के साथ एक कमरे वाला केंद्र है.

इस क्लब के परिसर में भी ममता बनर्जी के बड़े-बड़े बैनर और पोस्टर लगे हैं.

कुछ ग्रामीणों ने दिप्रिंट को बताया कि क्लब का उपयोग पार्टी बैठकों के लिए किया जाता है लेकिन क्लब अध्यक्ष और हातिमपुर पंचायत प्रधान कुलसुमा बीबी के पति सबूर अली ने पोस्टरों का कारण कुछ और ही बताया. अली ब्लॉक तृणमूल प्रमुख हैं और बताया जाता है कि यहां पंचायत को पार्टी ही चलाती है.

अली ने कहा, ‘दीदी ने हमें हमारी पार्टी का जनाधार मजबूत करने, लोगों से जुड़ने और उनकी मदद करने के लिए पैसा दिया है. इसलिए हमें यहां उनकी फोटो लगानी चाहिए.’

क्लब 2014-15 में रजिस्टर्ड हुआ था और 2015 से सरकारी अनुदान मिलना शुरू हुआ. अली ने बताया कि क्लब को 2016 से 2019 के बीच पांच लाख रुपए मिले हैं.

क्लब की सिफारिश तृणमूल के पूर्व विधायक नरेश चंद्र बाउरी ने की थी जिन्हें इस साल विधानसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं मिला था.


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नेताओं के हाथ में कमान

इस योजना के बारे में जानकारी जुटाने के लिए दिप्रिंट ने दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, अलीपुरद्वार, बीरभूम, दक्षिणी 24 परगना और उत्तरी 24 परगना में स्थित ऐसे 30 क्लबों का दौरा किया. इनमें से अधिकांश को 2015 से 2019 के बीच 4 लाख से 5 लाख रुपए मिले हैं.

दिप्रिंट ने जिन क्लबों का दौरा किया उनके प्रशासकों ने अनुदान के तहत मिली राशि का पूरा ब्योरा हमारे साथ साझा किया.

सचिवों और क्लबों के सदस्यों के साथ-साथ उन क्षेत्रों के निवासियों के साथ भी जो बातचीत हुई, उससे पता चलता है कि लगभग सभी क्लबों में प्रबंधन समितियों में संयोजक, अध्यक्ष और संरक्षक के तौर पर स्थानीय विधायक, पंचायत प्रधान या ब्लॉक नेता ही शामिल होते हैं.

Photos: Madhuparna Das | ThePrint
फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

दिप्रिंट के हाथ लगी आठ क्लबों की समितियों की सूची में स्थानीय विधायक, ब्लॉक तृणमूल नेता या पंचायत प्रधान (या उनकी पत्नी) के नाम क्लब के संरक्षक या अध्यक्ष के तौर पर दर्ज हैं. इस नाते क्लब की गतिविधियों और वित्तीय कार्यों के बारे में उन्हें पूरी जानकारी होगी.

नक्सलबाड़ी के तोताराम जोते युवा कल्याण संगठन में तृणमूल के अंचल अध्यक्ष मोहम्मद कलाम सचिव हैं. इसी तरह, तृणमूल के अंचल सचिव और पंचायत प्रधान के पति शेख सबूर अली हातेम खान पल्लीमंगल समिति के अध्यक्ष हैं.

उत्तरी 24 परगना में तृणमूल नेता देबराज चक्रवर्ती मुख्य सलाहकार हैं और स्थानीय विधायक अदिति मुंशी चालंतिका स्पोर्टिंग क्लब की मुख्य संरक्षक हैं. चक्रवर्ती और मुंशी दोनों ही क्लब की कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं.

रिपोर्ट के शुरू में उल्लिखित ‘55-सदस्यीय’ यंग एथलेटिक क्लब के पूर्व सचिव और वरिष्ठ सदस्य संजीब हलदर ने बताया कि इसे सरकार की तरफ से पांच लाख रुपए की पूरी वित्तीय सहायता मिली थी.

उन्होंने कहा कि एलईडी टीवी और म्यूजिक सिस्टम पर करीब 70,000 से 80,000 रुपए का खर्च आया है और आकर्षक पेंट वाली दीवारों और मार्बल वाले के फर्श पर लगभग एक लाख रुपए खर्च किए गए हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि क्लब पास के ही एक तालाब में ‘निशुल्क’ तैराकी सिखाता है.

हालांकि, क्लब के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि क्लब की स्थिति- जिसमें शराब की खाली बोतलें भी शामिल हैं- को लेकर हैरान नहीं होना चाहिए.

सदस्य ने कहा, ‘तृणमूल के युवा कार्यकर्ता यहां अड्डा और पार्टी की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए आते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘एक अलिखित नियम के तहत सरकारी अनुदान का करीब 70 फीसदी हिस्सा सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को दिया जा रहा है. अगर हम तृणमूल से संबद्ध नहीं हैं तो हमें अनुदान नहीं मिलेगा. नियम यह है कि स्थानीय युवाओं को पार्टी के लिए काम करना है, सभी बैठकों में हिस्सा लेना है और चुनाव के दौरान काम करना है.’


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खेल के बजाए मंदिरों की व्यवस्थासंभाल रहे

दक्षिण पुरुलिया से करीब 10-15 किमी दूर डायमंड हार्बर बाजार क्षेत्र में माधबपुर सिटीजन क्लब (एस/2एल/24487) है, जिसके लिए सिफारिश स्थानीय सांसद अभिषेक बनर्जी ने की थी.

यह क्लब एक जीर्ण-शीर्ण इमारत में चल रहा है और जब दिप्रिंट ने दौरा किया तो यह बंद मिला.

गेट के अंदर ईंटों के ढेर और टूटी-फूटी कुछ छड़ें दिखाई दे रही थीं. खिड़की से झांककर देखने पर कुछ पुरानी ट्रॉफी, टूटी हुई कुर्सियां, लकड़ी की दो बेंच, एक पलंग और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का आदमकद पोस्टर उल्टा पड़ा नजर आया. इसकी छत टिन की एक शीट से बनी हुई है.

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फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

क्लब एक मंदिर के बगल में है और स्थानीय निवासियों ने बताया कि मंदिर की सारी व्यवस्था क्लब ही संभालता है.

क्लब के कोषाध्यक्ष, जो नाम जाहिर नहीं करना चाहते, ने कहा कि उन्होंने ‘अभिषेक बनर्जी से क्लब की आर्थिक मदद का अनुरोध किया था.’

उन्होंने कहा, ‘हम यहां मंदिर भी चलाते हैं. इसमें तीन मूर्तियां हैं. उन्होंने हमारी मदद की और वित्तीय अनुदान के लिए खेल विभाग को सिफारिश भेजी.’ उन्होंने बताया कि क्लब स्थानीय स्तर पर आयोजित फुटबॉल मैचों में भी हिस्सा लेता है.

मंदिर से जुड़ा एक और क्लब बोलपुर के सुरुल गांव में पाया गया. दिप्रिंट के सुरुल तांतीपारा युवा समिति (एस/2एल/22143) पहुंचने पर उसके शटर बंद हो गए थे.

इसके सचिव देबाशीष दास ने माना कि क्लब के पास ज्यादा खेल उपकरण नहीं हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘क्लब मंदिर चलाता है और रक्तदान शिविर आयोजित करता है. हमारे पास खेलों से जुड़े ज्यादा उपकरण नहीं हैं, क्योंकि हमें सरकार से कोई सामान नहीं मिला है. हमें पांच लाख रुपये का वित्तीय अनुदान मिला था जो विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च किया जा चुका है.’

चालंतिका स्पोर्टिंग क्लब के लिए सरकार से सिफारिश पूर्व मंत्री पूर्णेंदु बोस ने की थी, जिन्होंने इस साल चुनाव नहीं लड़ा था क्योंकि पार्टी ने उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारियां सौंप दी थीं.

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फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

इस क्लब के सचिव गौर मंडल ने बताया, ‘क्लब स्थानीय मंदिर का प्रबंधन संभालता है और दैनिक भोग बनाता है और इसमें एक बड़ी लागत आती है.’

उन्होंने कहा, ‘यही वजह है कि यहां इतने बड़े-बड़े बर्तन रखे हैं. हम हर साल रक्तदान शिविर भी लगाते हैं.’

गौर मंडल ने 2017 में क्लब को सरकार से मिले दो लाख रुपए का पहला चेक दिखाया और कहा कि 2019 तक उसे कुल 4 लाख रुपए मिले.

क्षेत्र में तृणमूल की जीत के बाद क्लब को प्रशंसा पत्र और दिवाली ग्रीटिंग कार्ड भी मिले थे. सदस्यों ने दिप्रिंट को अभिषेक बनर्जी के छपे हुए हस्ताक्षर वाला ग्रीटिंग कार्ड दिखाया.


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सामाजिक कार्यों पर खर्च किया पैसा

जॉयदेवपुर मातृमंडल क्लब से जुड़े सौमित्र मंडल, जिन्होंने खुद को ‘कैशियर’ (इसे कोषाध्यक्ष पढ़े) बताया, ने अनुदान की पहली किस्त के साथ प्रमाणपत्र दिखाया जिसके मुताबिक- 2017 में 2 लाख रुपए मिले थे. इसके बाद 2018 और 2019 में क्लब को एक-एक लाख रुपए मिले.

Photos: Madhuparna Das | ThePrint
फोटो: मधुपर्णा दास | दिप्रिंट

खेल से जुड़ी एक्टिविटी या संपत्ति के बारे में पूछे जाने पर मंडल ने कहा, ‘हमने ये पैसा सामाजिक कार्यों पर खर्च किया. हम साल में एक बार रक्तदान शिविर आयोजित करते हैं. पड़ोस में (डेंगू नियंत्रण के लिए) ब्लीचिंग पाउडर छिड़कते हैं और स्थानीय फुटबॉल मैचों में हिस्सा लेते हैं.’

हालांकि, मंडल यह नहीं बता पाए कि क्लब ने इन गतिविधियों पर कितना खर्च किया लेकिन कहा कि हर बार करीब 15,000 रुपए से 20,000 रुपए तक की जरूरत पड़ती है. सरकार को क्लब की सिफारिश डायमंड हार्बर के पूर्व विधायक दीपक हलदर ने भेजी थी जो इस साल विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे.


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कई क्लबों में बंद मिले दरवाजे

उत्तर बंगाल स्थित दार्जिलिंग के सुश्रुत नगर इलाके में कावाखाली जनकल्याण संघ क्लब (एस/1एल/89563) एक निर्माणाधीन या अधूरा पड़ा कमरा मिला, जिसके बारे में ग्रामीणों का कहना था कि यह हमेशा बंद रहता है.

दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी में तोताराम जोते युवा कल्याण संगठन (एस/1एल/60288) एक संकरी गली वाले बाजार क्षेत्र में स्थित टूटा-फूटा और निर्माणाधीन ढांचा था.

क्लब सचिव और तृणमूल ब्लॉक-स्तरीय सदस्य मोहम्मद कलाम ने कहा, ‘हमने कुछ जिम उपकरण खरीदे और इसी में पैसा खत्म हो गया. हम साल में एक बार रक्तदान शिविर चलाते हैं.’

उन्होंने कहा कि क्लब को ‘सरकार से और मदद’ की उम्मीद है क्योंकि ‘हमने अपनी पार्टी को इस बूथ पर 650 वोटों की बढ़त दिलाई थी, जहां पहले मुख्यत: माकपा और फिर बीजेपी का वर्चस्व हुआ करता था.’

सिलीगुड़ी का थिकनिकता सबुज बिप्लब संघ (22670) एक कमरे में चलता है, जहां कैरम बोर्ड, एलईडी टीवी और टिन की छत थी. क्लब का उद्घाटन 2015 में पूर्व विधायक और मंत्री गौतम देब ने किया था उन्होंने ही अनुदान के लिए इसकी सिफारिश की थी. क्लब को उसी साल से धन मिलना शुरू हो गया था.

यह खुला था लेकिन सदस्यों का पता नहीं लग सका और ग्रामीणों का कहना था कि उन्हें उनके ठिकाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

कूचबिहार में जमालदाहा नामक गांव में स्थित जमालदाहा सरबाजॉय क्लब (एस/1एल/37687) पर ताला लगा मिला. इसमें टिन की छत थी.

दिप्रिंट तमाम प्रयासों के बावजूद कावाखाली जनकल्याण संघ और सरबाजॉय क्लब की प्रबंधन समिति का पता नहीं लगा पाया. स्थानीय ग्रामीणों ने दावा किया कि ये क्लब नियमित रूप से नहीं खुलते थे और उन्हें उनके सदस्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

राजगंज का दशदरगा क्लब (एस/1एल/52224) दो कमरों का एक ढांचा है जिसमें एक कैरम बोर्ड और कुछ कुर्सियां नजर आ रही थीं. क्लब के सांस्कृतिक सचिव अनिर्बान डी. सरकार ने कहा कि वे ‘विभिन्न गतिविधियों के अलावा रक्तदान शिविरों’ का आयोजन भी करते हैं.

कूचबिहार की देबी कॉलोनी स्थित तरुण संघ क्लब के सचिव और जिला तृणमूल समन्वयक मदन मोहन सरकार ने कहा कि यह केंद्र ‘अभी निर्माणाधीन है.’

उन्होंने कहा, ‘हम जल्द ही काम पूरा कर लेंगे. हमें सरकारी पैसा मिला लेकिन निर्माण कार्य पूरा करने के लिए हमें कुछ और धन चाहिए. इस क्लब को 2016 से 2019 के बीच पांच लाख रुपए मिले.

सरकारी मदद के इस्तेमाल पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम जलसा के लिए कोलकाता से एक गायक को लाए थे. उन्होंने हमसे 1.44 लाख रुपए लिए. हमने सरकारी अनुदान से पैसा खर्च किया है. लंबे लॉकडाउन के बाद इस कार्यक्रम का आयोजन ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए किया गया था.’

अलीपुरद्वार के फलकटा स्थित कुंजानगर कल्याण संघ क्लब (एस/2एल/6741) काफी हरियाली वाले गांव में अंदर तीन तरफ कंक्रीट की दीवारों और एक तरफ टिन लगाकर बना है.

क्लब के सचिव नीतीश रॉय ने बताया, ‘हमें पांच लाख रुपए मिले लेकिन इसमें से एक बड़ी राशि लॉकडाउन के दौरान लौटे ग्रामीणों और प्रवासी मजदूरों की मदद में खर्च की गई. हम जल्द ही निर्माण पूरा कर लेंगे. हम क्लब रूम का इस्तेमाल शाम की सभाओं के लिए करते हैं.’


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पार्टी नेताओं ने लिया कट

बंगाल के पश्चिमी जिले बीरभूम के दुबराजपुर स्थित राजबती गांव में राइजिंग क्लब (एस/67410) एक दो-मंजिला इमारत में बना है जिसके पास अपना ग्राउंड भी है.

यह उन तीन क्लब में से एक है जहां इस रिपोर्टर ने पाया कि उनका अपना खेल का मैदान है और स्थानीय युवाओं और बच्चों को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है.

हालांकि, इसके सचिव शंभुनाथ बनर्जी ने कहा कि सब कुछ ठीक नहीं रहा है. बनर्जी ने दावा किया कि उन्होंने पिछले साल ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होकर’ तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी थी.

उन्होंने दावा किया, ‘सरकार का जो अनुदान हमें मिलता है उसका उपयोग स्थानीय युवाओं और बच्चों के लिए और खेलों को बढ़ावा देने के लिए किया जाना चाहिए लेकिन पार्टी के नेता इसमें कुछ न कुछ कट ले लेते हैं और चाहते हैं कि उनका हिस्सा पार्टी फंड में जाए. मैंने विरोध किया तो उन्होंने मुझे स्थानीय समितियों से बाहर कर दिया. मैंने तब पार्टी छोड़ दी थी.’


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सरकार इस पर गौर कर रही है

अनुदान के लिए कई क्लबों की सिफारिश करने वाले अभिषेक बनर्जी की टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने उनके कार्यालय से संपर्क साधा, तो उन्हें एक प्रश्नावली मेल करने की सलाह दी गई. प्रश्नावली मंगलवार को भेजी गई थी और यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा की जा रही थी.

राजगंज के विधायक खगेश्वर रॉय ने दिप्रिंट को बताया कि वह इस मामले की जांच के आदेश देंगे.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता था कि वे बुनियादी ढांचे के निर्माण के बजाए किसी और चीज पर पैसा खर्च करते हैं. यह मेरी भी जिम्मेदारी है कि मैं जानूं कि उन्होंने सरकारी पैसे का क्या किया है.’

इसी तरह नरेश बाउरी ने भी कहा कि उन्हें ‘पता नहीं था कि उन्होंने पैसे का क्या किया. मुझे तो इस बार टिकट भी नहीं मिला. पार्टी चाहती थी कि हम कुछ स्थानीय क्लबों की सिफारिश करें और मैंने कर दी.’

डायमंड हार्बर के पूर्व विधायक दीपक हलदर ने इस मुद्दे पर टिप्पणी से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, ‘मैंने वही किया जो मेरी पूर्व पार्टी ने मुझसे करने को कहा था. आप इसके बारे में क्लबों से पूछ सकते हैं. मुझे इस मुद्दे पर और कोई टिप्पणी नहीं करनी है.’

अग्निशमन और आपातकालीन सेवा मामलों के राज्य मंत्री (एमओएस) सुजीत बोस ने कई फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज पर कोई जवाब नहीं दिया.

पूर्णेंदु बोस ने कहा, ‘स्थानीय विधायक और मंत्री के तौर पर उन्हें क्लबों की तरफ से आवेदन मिले थे.’

उन्होंने कहा, ‘मैंने उन्हीं को मंजूरी दी जिन्होंने खेल के मैदानों को विकसित करने या भवन निर्माण जैसे विशिष्ट प्रस्ताव रखे. मैंने उन पर नजर भी रखी लेकिन यह सच है कि कुछ के खिलाफ शिकायतें थीं और हमने उन्हें अनुदान देना बंद कर दिया. लेकिन कुछ क्लबों ने बुनियादी ढांचे के विकास पर अच्छा काम भी किया है.’

दिप्रिंट ने उत्तरी बंगाल के विकास मामलों के पूर्व मंत्री गौतम देब, जो 2021 का विधानसभा चुनाव हार गए थे, से गुरुवार शाम कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिए संपर्क साधा लेकिन उनकी तरफ से किसी प्रतिक्रिया का अभी इंतजार है.

विधायक अदिति मुंशी से संपर्क करने का प्रयास सफल नहीं हुआ क्योंकि उनके सचिव ने इस रिपोर्टर को दो महीने बाद आने को कहा ‘क्योंकि विधायक आगामी विधाननगर नगरपालिका चुनाव के प्रचार में व्यस्त हैं.’

मंत्री मनोज तिवारी ने कहा कि उन्हें ‘केवल सात महीने पहले (मंत्रालय का) प्रभार मिला है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘दरअसल, मैं तब यहां नहीं था जब योजना तैयार की गई और इस पर अमल शुरू हुआ. इस सब पर नजर रखना एक वरिष्ठ मंत्री की जिम्मेदारी होती है. मैं निश्चित रूप से इसे वरिष्ठ मंत्री के पास ले जाऊंगा और सरकारी धन के दुरुपयोग के बारे में पूछताछ करूंगा. निश्चित तौर पर हमें इस मामले पर गंभीरता से गौर करने की जरूरत है. हम वह सब कुछ करेंगे जो इस संबंध में किए जाने की जरूरत है.’

युवा सेवाओं और खेल मामलों के प्रधान सचिव सुब्रत विस्वास ने कहा कि कथित अनियमितताएं उनके राडार पर थीं.

उन्होंने कहा, ‘सरकार ने यह योजना लगभग छह साल पहले शुरू की थी और यह सरकार के पास पंजीकृत क्लबों के लिए थी. इसका उद्देश्य खेल संबंधी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए बुनियादी ढांचे और संपत्ति का निर्माण करना था लेकिन विभाग द्वारा जिला अधिकारियों के माध्यम से कराए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि कई क्लबों ने खेल से संबंधित बुनियादी ढांचे के निर्माण पर कोई पैसा खर्च नहीं किया.’

उन्होंने बताया, ‘हमने क्लबों से अपने खर्च पर एक ऑडिट रिपोर्ट दिखाने को कहा है ताकि पता लग सके कि वे सरकारी अनुदान किन चीजों पर खर्च करते हैं.’

बिस्वास के मुताबिक, ‘शुरुआत में लगभग 40,000 क्लबों ने अनुदान के लिए आवेदन किया था जिनमें से 37,000 वित्तीय मदद के पात्र पाए गए.’

बिस्वास ने कहा कि जो क्लब वित्तीय सहायता की शर्तों के अनुरूप काम नहीं कर रहे उन्हें ‘सिस्टम से बाहर निकालने की कोशिश की जा रही है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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