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Monday, 16 December, 2024
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असम में परिसीमन को लेकर विवाद: BJP ने मुस्लिम बहुल सीटों का फायदा उठाने के लिए बनाई रणनीति

चुनाव आयोग ने 2001 की जनगणना के आधार पर असम में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. पिछली कवायद साल 1976 में 1971 की जनगणना के आधार पर की गई थी.

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नई दिल्लीः असम में 15 नवंबर को कानून मंत्रालय के एक अनुरोध के बाद, 2001 की जनगणना के आधार पर राज्य विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन शुरू करने के चुनाव आयोग (ईसी) के फैसले पर एक विवाद छिड़ गया है.

विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार 2011 की जनगणना को आधार न बनाकर अपने हितों के मुताबिक मुस्लिम बहुतायत वाली सीटों के परिसीमन में छेड़छाड़ करना चाहती है ताकि बीजेपी उसका फायदा उठा सके.

कांग्रेस नेता और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने दिप्रिंट से कहा, ‘जब 2011 के जनगणना के आंकड़ें उपलब्ध हैं तो सरकार 2001 के जनगणना के आंकड़ों को इस्तेमाल क्यों कर रही है. असम में, निर्वाचन क्षेत्रों का अंतिम परिसीमन 1976 में 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था.’

AIUDF के नेता और विधानसभा में विधायक अमीनुल इस्लाम भी इस सवाल को उठाते हैं. ‘जब 2026 में सीटें बढ़नी है और 2021 की जनगणना की प्रक्रिया शुरू है तो बीस साल पहले की जनगणना को परिसीमन का आधार बनाना कहां तक उचित है.’

वह कहते हैं कि इसका साफ मतलब है कि बीजेपी सरकार का मास्टर प्लान कुछ और है जिसके लिए यह परिसीमन शुरू किया जा रहा है. उनकी मंशा केवल मुस्लिम बहुल सीटों की जनसंख्या में छेड़छाड़ करने की दिख रही है.’

हालांकि, परिसीमन पर उठ रहे सवालों का राज्य में बीजेपी के अध्यक्ष भावेश कलिता ने पूरी तरह से खंडन किया है. उन्होंने आरोपों को बेबुनियाद बताया है.

उन्होंने चुनाव आयोग के राज्य (असम) में परिसीमन अभ्यास के पूरा होने तक 1 जनवरी, 2023 से नई प्रशासनिक इकाइयों के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध के निर्देश का उल्लेख किया.

कलिता ने दिप्रिंट को बताया, ‘असम में लोकसभा की 14 सीटें और विधानसभा की 126 सीटें हैं जो बरकरार रहेंगी. इस परिसीमन में कोई सीट नहीं बदलनी है. जब 2001 की जनगणना के आधार पर पूरे देश में (2008 में) कवायद शुरू की गई तो असम को भी 2001 के आंकड़ों का लाभ पहले मिलना चाहिए.’


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सवाल उठाना, संदेह केवल भ्रम फैलाना

अगर असम में 2001 और 2011 में हुई जनगणना में मुस्लिम जनसंख्या की तस्वीर पर नज़र डालें तो महज एक दशक में यह सर्वाधिक बढ़ोतरी वाला राज्य रहा है.

आंकड़ों के मुताबिक, 2001 और 2011 की जनगणना में देश भर में मुस्लिम जनसंख्या में केवल 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. यानी 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गया, पर असम में सबसे अधिक मुसलमानों की संख्या बढ़ी.

2001 में जो 30 प्रतिशत थे वो 2011 में बढ़कर 34.2 फीसदी पह पहुंच गए. असम में हिंदुओं की आबादी में 2001 के मुकाबले 7-8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. हिंदू जो 69.9 प्रतिशत थे वह कम हो कर 61.5 प्रतिशत पर पहुंच गए.

राज्य के 35 जिलों में से नौ में मुस्लिम समुदाय बहुमत में है.राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा बार-बार राज्य के सीमावर्ती इलाकों में मुस्लिम जनसंख्या की बढ़ोतरी पर निशाना साधा और असमिया समुदाय की जनसंख्या और उनके संस्कृति पर असर पड़ने की संभावनाओं को रेखांकित किया है.

कलिता कहते हैं, ‘केवल उन विधानसभा जहां जनसंख्या का अनुपात ज्यादा है इसे बाकी विधानसभा की तरह समानुपात में बनाना है. किसी विधानसभा में मतदाता तीन लाख हैं तो किसी में डेढ़ लाख, ऐसे में विधायकों के लिए अपने सरकारी फंड का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता है जहां मतदाता ज्यादा हैं. इसलिए परिसीमन की ज़रूरत आई है.’

उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया चुनाव आयोग करेगा, ऐसे में इस तरह के सवाल उठाना केवल भ्रांति फैलाना है.


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परिसीमन के बारे में जानकारी

परिसीमन भारत में चुनावों के संचालन के लिए महत्वपूर्ण है और इसका उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करना है. इस अभ्यास में जनसंख्या में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करने के लिए लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण शामिल है. जनसांख्यिकीय परिवर्तन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या में भी बदलाव करता है.

गौर करने वाली बात है कि 2002 के एक्ट के मुताबिक 2026 तक किसी राज्य की विधानसभा या फिर लोकसभा की सीटों में कोई बदलाव नहीं हो सकता है.

पूरे देश में 2008 में परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर पूरा किया गया था, जिसमें जम्मू-कश्मीर सहित उत्तर-पूर्व के चार राज्यों में परिसीमन का काम पूरा नहीं हो पाया था.

अरुणाचल, असम, मणिपुर और नागालैंड के कई संगठनों ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में 2001 की जनगणना को इसका आधार बनाने पर चुनौती दी थी. इस समय असम से बीजेपी सहित तमाम राजनीतिक दलों ने तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल से मिलकर परिसीमन को स्थगित करने की मांग उठाई थी क्योंकि नागरिकता राष्ट्रीय पंजीयन (एनआरसी) अभी संशोधित नहीं हुआ था.

सरकार ने इन मांगों के आधार पर 2008 में परिसीमन एक्ट में संशोधन करके चार राज्यों और जम्मू-कश्मीर में परिसीमन को स्थगित कर दिया था.

6 मार्च, 2020 को, भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने चार राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का पुनर्गठन किया.

इस साल फरवरी में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2008 के आदेश को रद्द करते हुए परिसीमन प्रक्रिया को फिर से शुरू करने का आदेश दिया था.

मई में, 2011 की जनगणना के आधार पर जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन का काम पूरा किया गया था.

इस महीने की शुरुआत में असम सरकार ने केंद्र को सूचित किया था कि राज्य में परिसीमन के लिए अनुकूल माहौल है.


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क्या कहती है 2001 और 2011 जनगणना

असम में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और उनकी आबादी 61. 47 प्रतिशत है पर ये 18 जिलों में ही बहुसंख्यक है. 3.12 करोड़ की आबादी में 1.07 करोड़ मुस्लिम हैं. नौ गांव ,धुबरी बारपेटा, करीमगंज ,गोलपारा ,मोरीगांव ,दरांग, हैलाकंडी, बोंगईंगांव जैसे जिलों में मुस्लिम बहुतायत में हैं.

बीजेपी की बढ़ती चुनौती मुस्लिम बहुसंख्यक इलाकों में कांग्रेस और AIUDF के असर को कम करना है.

AIUDF पार्टी जो मुस्लिम मतदाताओं के बीच लोकप्रिय है. उसने 2021 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिस पर 16 पर जीत मिलीय यह स्ट्राइक रेट बीजेपी से भी बेहतर था. 2016 में AIUDF ने 73 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें 13 सीटों पर विजय पाई गई थी.

असम के तेज़पुर से बीजेपी के सांसद प्रणव लोचन बताते हैं, ‘परिसीमन से उन विधानसभा जहां जनसंख्या का असंतुलन है चाहे वो अल्पसंख्यक हों या बहुसंख्यक असमानताओं को दूर करना है, ताकि शासन का लाभ सभी जनता तक पहुंच सके. बड़ी विधानसभा में लाभ पहुंचाना बेहद मुश्किल है.’

असम इकाई के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं हम क्यों उस आंकड़े को आधार मानेगें जहां हिंदुओं की आबादी कम है और मुस्लिमों की ज्यादा, पहले हमें पुराने रिकॉर्ड ठीक करने की ज़रूरत है.’

असम इकाई के एक वरिष्ठ नेता इस बात को रेखांकित करते है, ‘2001 जनगणना को आधार बनाना पार्टी के लिए फायदेमंद है न केवल राजनीतिक दृष्टि से बल्कि आने वाली जनगणना के लिए भी, क्योंकि एक बार जब त्रुटि ठीक हो जाएगी तो आने वाले जनगणना और उसके बाद लोकसभा और विधानसभा की सीटों जब 2026 में बढ़ेगी तो उसका आधार इस परिसीमन से तैयार हो जाएगा.’

सैकिया कहते हैं, ‘जब तक असम की यह प्रक्रिया पूरी होगी तब नए जनगणना के आंकड़ों के आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा, तो सिर्फ एक साल के लिए सरकार क्यों इतना पैसा बर्बाद कर रही है.?

उन्होंने कहा, ‘या इसके पीछे सरकार मुस्लिम बहुसंख्यक विधानसभा की जनसंख्या के अनुपात को दूसरी सीटों में बांटकर अपने हिसाब से सीटें बनाने की रणनीति पर काम करने की मंशा दिखा रही है.हमने चुनाव आयोग से नए आंकड़ों के आधार पर परिसीमन कराने की मांग की है.’

सैकिया के मुताबिक, अब तक एनआरसी में छांटे गए 19 लाख लोगों की किस्मत का कोई फैसला नहीं हुआ है. अनुसूचित जाति की सीटों पर फैसला नहीं हुआ और सरकार द्वारा नया परिसीमन शुरू करना संदेह भी पैदा करता है.

असम के गुवाहाटी यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान प्रोफेसर अखिल रंजन दत्ता कहतें है, ‘असम में बांग्लादेशी जनसंख्या का मुद्दा कई दशकों से है और अपनी संस्कृति और हिन्दुओं और असमी मुस्लिम को बचाने का नारा जो पहले असम गण परिषद ने दिया था बीजेपी ने आत्मसात कर लिया है. इसमें कोई शक नहीं है कि 2011 के आंकड़े बीजेपी के लिए फायदेमंद नहीं रहे. आने वाली जनगणना में यह और बढ़ सकता है इसलिए सरकार कानूनी दांवपेच से अपनी राजनीति के हिसाब से फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.’

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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