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Monday, 9 December, 2024
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‘बूथ पर गैर-मौजूदगी से बढ़ रहा लेफ्ट’ पंचायत चुनाव से पहले शाह और नड्डा के राडार पर बंगाल BJP

बताया जा रहा है कि आंतरिक रिपोर्ट में बंगाल इकाई की संगठनात्मक तैयारियां कमजोर होने की बात सामने आने के बाद, भाजपा आलाकमान ने जमीनी स्तर पर काम तेज करने पर जोर दिया है.

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पटना: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बंगाल इकाई के अपने ताकत को लेकर ‘गुमान’ में रहने से नाखुश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दो-टूक कह दिया है कि आगामी पंचायत चुनावों से पहले राज्य इकाई जमीनी स्तर पर अपने कामकाज में तेजी लाए. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान को वामपंथी कैडर को लेकर भी चिंता सता रही है, क्योंकि इनमें से तमाम पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को हराने की कवायद के तहत भाजपा के साथ आ गए थे लेकिन इस साल के शुरू में नगर निकाय चुनाव के साथ ही अपनी मूल पार्टियों में लौट चुके हैं.

पार्टी सूत्रों ने बताया कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल की एक आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में कुछ जगहों पर बूथ स्तर पर भाजपा की मौजूदगी नहीं है और मार्च 2023 में संभावित पंचायत चुनावों के लिए संगठनात्मक तैयारियों में भी काफी कसर रह गई है. बताया जा रहा है कि राज्य इकाई की संगठनात्मक ताकत के आकलन के लिए आंतरिक रिपोर्ट नड्डा के इशारे पर तैयार की गई है.

पार्टी के एक नेता ने यह भी बताया कि बंसल की आंतरिक रिपोर्ट खुद राज्य इकाई की तरफ से केंद्रीय नेतृत्व को भेजी गई एक रिपोर्ट से काफी अलग है. उन्होंने कहा, ‘बंसल ने बूथ उपस्थिति पर राज्य इकाई की रिपोर्ट में कई विसंगतियों को उजागर किया है.’

वहीं, राज्य के भाजपा सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो ने 2019 के आम चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन का हवाला दिया है. उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि हमारा बूथ स्ट्रक्चर कुछ जगहों पर मजबूत न हो, लेकिन एक मजबूत संगठन के बिना कोई 18 लोकसभा सीटें तो नहीं जीत सकता. पंचायत चुनाव से पहले हम कम से कम 100 जनसभाएं करेंगे, और ये चुनाव टीएमसी के भ्रष्टाचार और स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाएंगे.’

नड्डा ने सोमवार शाम पार्टी नेताओं से मुलाकात की, जबकि शाह ने मंगलवार को संसद में राज्य इकाई के प्रमुख सुकांत मजूमदार और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी से मुलाकात की. उन्होंने राज्य के नेताओं से कहा कि पहले संगठन को मजबूत बनाएं और स्थानीय स्तर पर बैठकों के माध्यम से और ‘अनूठे’ तरीकों का इस्तेमाल कर नियमित तौर पर कैडर के साथ जुड़े रहें.

नड्डा की बैठक में मौजूद सांसदों में से एक ने कहा, ‘उनका संदेश था कि हमें विपक्ष के तौर पर नजर आना चाहिए, न कि केवल मीडिया में… (हमें बताया गया) संगठन तैयार करें और मंडल स्तर पर आंदोलनकारी गतिविधियां चलाएं क्योंकि छोटी बैठकें अधिक प्रभावी होती हैं. निरंतर गतिविधियां जारी रहे वरना कैडर का मनोबल गिर जाएगा.’

केंद्रीय मंत्री सुभाष सरकार – जो पश्चिम बंगाल के हैं – ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम जानते हैं कि कैसे पंचायत चुनावों (2018) के दौरान टीएमसी ने हिंसा का सहारा लिया था. उन्होंने (नड्डा) हमसे इस तरह की रणनीति का मुकाबला करने के लिए जमीनी स्तर पर मौजूद रहने को कहा है. हमें 2019 के लोकसभा चुनाव में हारी 24 सीटों पर जीतने के लिए कहा गया है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई केंद्रीय मंत्रियों को भी तैनात किया गया है.’ 2019 में इन 24 सीटों में से 22 पर टीएमसी जीती थी और दो कांग्रेस के खाते में गई थीं.


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लेफ्ट से मिल रही चुनौती

बंगाल भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जहां उसने 2019 के चुनाव में राज्य की 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी और 2021 के विधानसभा चुनाव में 294 में से 77 सीटें जीती थीं.

पंचायत चुनावों से पहले टीएमसी ने चलो ग्राम अभियान शुरू किया है, जिसके तहत पार्टी की महिला कार्यकर्ता महिलाओं के लिए चलाई जा रही राज्य सरकार की योजनाओं के बारे में प्रचार के लिए गांव-गांव जाती हैं. वहीं भाजपा को अपनी तरफ से उम्मीद है कि वह पंचायत चुनाव प्रभारी देबश्री चौधरी की मदद से ममता की अपील का मुकाबला करने और महिला मतदाताओं के बीच मजबूती से पैठ जमाने में सफल रहेगी.

जमीनी स्तर पर कथित तौर पर ऊर्जा के अभाव के अलावा भाजपा की राज्य इकाई को अंदरूनी कलह जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है जिसकी वजह से ही अर्जुन सिंह और बाबुल सुप्रियो जैसे नेताओं ने इसे छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया था, और वामपंथियों की तरफ से भी एक नई चुनौती मिल रही है.

फरवरी में हुए शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने एक नगरपालिका पर नियंत्रण हासिल कर लिया, जबकि भाजपा एक भी नहीं जीत सकी. राज्य चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, भाजपा ने 62 सीटें हासिल कीं, जबकि माकपा ने 47 सीटें जीतीं. इस बीच, टीएमसी ने 108 नगरपालिकाओं में से 102 पर कब्जा जमाया और कुल 2,254 सीटों में से 1,853 सीटों पर जीत हासिल की.

नड्डा की बैठक में भाग लेने वाले एक अन्य सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में कुछ वोट वामपंथियों की तरफ शिफ्ट हो गए, जो हमारे लिए एक बड़ी चिंता है. माकपा कैडर जमीन पर सक्रिय हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव हमारे लिए एक परीक्षा होंगे. पारंपरिक वामपंथी मतदाता टीएमसी को हराने के लिए किसी भी पार्टी के साथ जा सकते हैं. इसी पर हमें नजरें टिकाकर रखनी हैं और उस जगह को खोना नहीं है.’

हालांकि, पार्टी उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, ‘कुछ वार्डों में वामपंथी बढ़त हासिल कर रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में ऐसा नहीं होगा क्योंकि टीएमसी का मुकाबला करने वाली भाजपा एकमात्र पार्टी है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी) | (संपादन: अलमिना खातून)


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